मधुलिका साहू सनातनी

Tragedy Inspirational

4.6  

मधुलिका साहू सनातनी

Tragedy Inspirational

कहानी  रीता की कर्मठता

कहानी  रीता की कर्मठता

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     मनी और सुबोध अपने दोनों बच्चों सृजन और रचना के साथ इस शहर में नये नए आये थे । दोनी बच्चे छोटे थे तो उन्हें घर मे एक काम करने वाली सहायक लड़की की जरूरत महसूस हुई । सुबोध ने अपने एक परिचित से बात किया तो उसने किसी ठेकेदार से मिलवाया ।

      ठेकेदार वैसे तो मकान बनवाने का काम करता था । यही उसका मुख्य काम था । इस लाइन में होने के कारण उसे मजदूरों की भी जरूरत होती थी इसलिये उसके पास प्रवासी मजदूरों का लंबा सम्पर्क था । झारखण्ड में नक्सलियों के उत्पात से बनी तबाही के कारण वहाँ की आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल रहती आयी है इसलिए वहाँ के निवासियों को बाहर जा कर काम करने की मजबूरी है ।

     इन्हीं नक्सलियों का आतंक एक और रूप में देश को जकड़ रहा है । पर उस आतंक की समाज मे देश की राजनीति में कोई चर्चा नहीं । वहाँ नक्सली छोटी लड़कियों को बंधक बना कर रखते हैं । उन्हें भी नक्सलवाद की ट्रेनिंग देते हैं । ये बच्चियाँ उनकी बाध्यता को मानने को मजबूर हैं । यदि वे ऐसा नहीं करेंगी तो उनके साथ कुछ भी हो सकता है - कुछ भी मतलब कुछ भी ....।

     इन आतंकों से घबरा कर अक्सर वहाँ के परिवार अपनी लड़कियों को सुरक्षित रखने के लिये झारखंड से बाहर घरेलू काम के लिये भेज देते हैं इससे न केवल लडकियाँ सुरक्षित रहती हैं बल्कि अच्छा पैसा भी अपने घर भेजती रहती हैं।

      ठेकेदार के सम्पर्क में इसी तरह से बहुत सारे मजदूर वर्ग होते थे जो अपनी लड़कियों को वहाँ से निकल कर दिल्ली नोयडा गाजियाबाद या इसी तरह के बड़े जिलों में भेजने को आतुर रहते थे । सुबोध का सम्पर्क इसी तरह के एक ठेकेदार से हुआ । अभी चार दिन हुए उसके पास एक नई लड़की आयी हुई थी - रीता । आयु लगभग यही रही होगी 14/15 साल ।

     सुबोध के घर रीता को लगा दिया गया । खाना कपड़ा के साथ प्रति माह 6000 रुपये । सुबोध उसे लेकर जब आया तो मनी को बहुत आराम मिल गया । रीता ने भी घर आते ही घर के सारे काम करना सीखना शुरू कर दिया । रीता पांचवीं कक्षा तक पढ़ी थी इसलिये शहर के तौरतरीकों को न जानते हुए भी काम करने लगी और जल्दी ही सन्तोषजनक काम करने लायक हो गयी ।

     इसी बीच कॅरोना की दूसरी लहर भी भारत में चल निकली और लोगों को अपना ग्रास बनाने लगी । रीता घर का काम जरूर करती थी पर उसे घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी । एक तरह से देखा जाय तो उसके लिये अच्छा था ।

     मनी और सुबोध को बाहर आफिस जाना ही होता था । इसलिये घर लौटते ही पहले साबुन से हाथ धोकर भाप लेते फिर तुरंत बाहर कपड़े बदलते थे । यह नियम पक्का था । पर न जाने किस तरह सुबोध को कॅरोना का संक्रमण लग गया उसे बुखार आया और उसे क्वारंटाइन होना पड़ा । अब घर की पूरी जिम्मेदारी मनी पर आ गयी । घर का हर काम उसे ही करना पड़ रहा था । घर के अंदर रीता को घर के बाहर मनी को । बच्चो के स्कूल की छुट्टियाँ चल रही थीं । इससे थोड़ी राहत थी । पर रीता का काम बढ़ गया था ।

    इसी बीच न जाने किस तरह मनी को भी कॅरोना का संक्रमण लग गया । अब घर मे बचे चार लोग सृजन रचना दादी और रीता । दादी पहले भी कोई काम नहीं कर पाती थीं । उनका ज्यादा समय बिस्तर पर ही बीतता था । अब 15 साल की लड़की पर सारी जिम्मेदारी आ गयी । उसने मनी को भी सुबोध वाले कमरे में ही शिफ्ट कर दिया । एक कमरा छोड़ कर एक मे दादी और दूसरे कमरे में खुद बच्चो को लेकर रहने-सोने लगी ।

     जब सब सही चल रहा था तो दिन भर तो कम करती पर शाम के समय दो घण्टे उसे टीवी देखने की अनुमति थी । उतने समय मे वह अपना सीरियल देखती और थोड़ा बहुत संसार की जानकारी भी लिया करती थी । ऐसे ही एक दिन उसने जब टीवी पर प्लास्टिक के कपड़ों में लोगों को अस्पताल में काम करते देखा तब उसके पूछने पर मनी ने उसे बताया था कि इसे पीपीकिट कहते हैं और उसकी सारी जानकारी भी दिया था । अब जब दोनों कॅरोना से संक्रमित होकर पड़े थे तो अपने पास आने से मनी ने मना कर दिया था । पर कुछ कम बहुत जरूरी थे - खाना पानी देना , कपड़े धोना चादर बदलना , उस कमरे की साफ सफाई करने जैसे बहुत सारे काम थे जो उसे करने ही थे । अब अगर वह ऐसे ही चली जाती कमरे में तो उसे भी कॅरोना होने की संभावना थी । दोनो बच्चे अलग माँ पिता के पास जाने को मचलते तो उन्हें भी सम्हालना होता था ।

     सृजन और रचना सामान्य दिनों में बहुत उधम काटते थे । रीता ने उनको भी सारी बातें समझा बुझा कर उनको भी काम मे लगा कर उनके उधमी स्वभाव को बदल दिया । मातापिता को कॅरोना हुआ जानकर दोनो बच्चे वैसे भी डरे थे । अब रीता के समझाने और उनको भी काम मे शामिल करने से उनकी घर फैलाने की आदत पर कंट्रोल हुआ । अंततः दोनो बच्चो के भी व्यवहार में अंतर आ गया ।

     रीता ने जो प्लास्टिक के थैले आते थे उन्ही में से बड़े थैले छाँट कर आपस मे जोड़ कर अपने लिये स्कर्ट बना लिया और ऊपर का टॉप भी । इस तरह उसने अपनी समझ से एक काम चलाने लायक पीपीकिट तैयार कर लिया । इस तरह उसने मनी के कमरे में जाने लायक अपने को बना लिया और कमरे से बाहर निकलते ही उसे उतार कर मनी की तरह भाप लेती ।

     घर के लिए सब्जी बाहर ठेलेवाले से ले लेती और राशन के लिये बस बाहर जाना पड़ता तो राशन भी अपने पैसों से लाने लगी । सामान्य दिनों में वह सुबह 6 बजे उठती थी अब क्योंकि उस पर काम दुगना पड़ गया तो सुबह उसे पाँच बजे उठना पड़ता था । दादी का काम करती फिर मनी सुबोध को चाय नाश्ता देती । तब सृजन और रचना को उठाती उन्हें नहलाती धुलाती तैयार करती खुद भी तैयार होती । मशीन बन चुकी रीता ने आखिर 10 दिन कॅरोना के पार कर दिये ।

      दस दिन बाद मनी और सुबोध की रिपोर्ट नेगेटिव आ गयी थी । और सब ठीक होने लगा । मनी के ठीक होते ही रीता ने मनी की अपने खर्च किये पैसों का हिसाब थमा दिया । रीता के किये उपकार से सुबोध और मनी कृतज्ञ थे । उन्होंने उसका न केवल पैसा उसे वापस दिया बल्कि निश्चित भी कर लिया कि अब जब भी स्कूल खुलेंगे तो सृजन और रचना के साथ ही वह भी स्कूल जाया करेगी । इस तरह एक ग्रामीण लड़की ने अपनी सूझबूझ से अपना जीवन सँवार लिया

     


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