स्वामिभक्त बैल
स्वामिभक्त बैल


सुजानपुर में सोहन नाम का एक किसान रहता था। उसके एक पुत्र था,उसका नाम राजू था। सोहन के पास 4 गाये, 5 बकरियां, दो बैल थे। सोहन की पहली पत्नी का नाम सीता था। वह अपने पति, बच्चे व जानवरों का अच्छा ध्यान रखती थी। दुर्भाग्यवश गीता का स्वर्गवास हो गया था। लोगो के ज़ोर देने पर और राजू की देखभाल के लिये सोहन ने गीता नाम की एक औरत से शादी कर ली थी। वह सीता जैसी नहीं थी। वह राजू को बिल्कुल अच्छा नहीं रखती थी। पति के सामने झूठमूठ का अच्छा रखने का दिखावा करती थी। सोहन के दो बैल थे। सोहन खेती का कार्य उन दोनों की सहायता से करता था। दोनों बैलों के नाम हीरा व मोती थे। दोनों पहले वाली मालकिन को बहुत पसंद करते थे। नयी मालकिन को वो ज़रा भी पसंद नहीं करते थे। वो उनको दिनभर काम करने के बाद ठीक से चारा भी नहीं देती थी। राजू दोनों बैलों को अपना दोस्त मानता था। जब भी उसकी सौतेली माँ गीता उसे सताती, वह उनके पास जाकर फूट-फूटकर रोता, उसके साथ-साथ दोनों बैल भी रोते जैसे कह रहे हो, तू क्यों रोता है पगले, हम है न तेरे साथ। ऐसे ही समय निकलता गया, राजू बड़ा होकर एक युवक बन गया, इधर दोनों बैल भी वृद्ध हो गये। राजू का नम्बर फॉरेस्ट ऑफिसर में आ गया। उसे दो साल की ट्रेनिंग के लिये शहर जाना था। शहर जाने से पहले वह हीरा-मोती के गले लगकर ख़ूब रोया। हीरा-मोती भी राजू के गले लगकर ख़ूब रोये। अंत मे जैसे वो ऐसा कह रहे हो, तू जा राजू हम तेरा इंतज़ार करेंगे।
इधर राजू दो साल की ट्रेनिंग के लिये शहर आ गया। उधर राजू की सौतेली माँ, हीरा-मोती पर और अत्याचार करने लगी। वह रोज सोहन पर दबाव डालने लगी, स्वामी ये बैल तो बूढ़े हो गये, ये अब मुफ्त में चारा खाते है, क्यो ने हमे इन्हें बूचड़खाने भेज दे। वह रोज सोहन को यह बात कहकर तंग करती। बेचारे बूढ़े बैल, राजू के इंतज़ार में सब चुपचाप सहन करते। कहते है न किसी झूठ बात को रोज-रोज कहे तो वह सच हो ही जाती है। आख़िरकार एक दिन गीता को सोहन की मौन स्वीकृति मिल गई। गीता घर पर एक कसाई को बुला लाई। दोनों बैल समझ गये थे की मालकिन उन्हें बूचड़खाने भेज रही है। दोनों की आँखों में आँसू आ गये जैसे की थोड़े समय के लिये रुक जाओ, हमारे दोस्त राजू को आने दो फिर चाहे तुम हमे ले जाना। उधर कसाई बोला ये तो मरियल बैल है, इसके में 500 रुपये से ज़्यादा नहीं दूँगा। गीता बोली मुझे तो पैसे भी नहीं चाहिए तू तो बस इन आफ़त को ले जा। कसाई उन्हें लेकर बूचड़खाने की तरफ जाने लगा। रास्ते मे एक जगह कसाई को भूख लगी, उसने जल्दबाजी में बैलो को पेड़ के ढीला बांध दिया। हीरा-मोती रस्सी से छुड़ाकर वापिस अपने घर आ गये। गीता उन दोनों को देखकर जलभुन गई। वह लकड़ी लेकर आई, बोली नालायक़, बेकार के बैल वापिस आ गये। वो उन्हें लकड़ी से मारने लगी, मोती गीता को मारने ही वाला था पर हीरा ने मना कर दिया। ये जैसी भी है अपनी मालकिन है। गीता उन्हें मारते जा रही थी और कहती जा रही थी, तुम्हें कहीं कुएँ में डूब कर मर क्यों नहीं जाते। तुम इतने ही स्वामिभक्त हो तो तुम्हें तुम्हारे राजू की कसम मेरी नज़रों से तुम यहां से कहीं दूर चले जाओ। आज से पहले कभी मालकिन ने उन्हें राजू की कसम नहीं दी थी। कसम हम इंसान तोड़ सकते है पर बेचारे मूक जानवर नहीं । वो दोनों बेचारे मायूस होकर सुजानपुर के पास के जंगल में चले गये।
उधर इस घटना के कुछ ही दिनों बाद राजू सुजानपुर आया। आते ही पहले वो हीरा-मोती की मांद की तरफ गया। उन्हें वहां न पाकर राजू का मन बेचैन हो उठा। वो बोला माँ हीरा-मोती कहां गये। उसकी माँ ने रूखे स्वर में जवाब दिया, कुछ दिन पहले वो निखट्टू घर छोड़कर भाग गये। दो दिन तक राजू अपने दोस्त हीरा-मोती के ग़म में डूबा रहा। संयोगवश राजू की ड्यूटी सुजानपुर के पास के जंगल में हुई। हीरा-मोती भी उसी जंगल मे थे। पर राजू को पता नहीं था। एकदिन राजू जंगल में दौरे पर गया तो उस पर एक शेर ने हमला कर दिया। राजू जीप से ही चिल्लाने लगा बचाओ, बचाओ। कुछ दूर जाकर जीप भी रुक गई। अपने दोस्त राजू की आवाज़ जैसे ही हीरा-मोती के कानों में पड़ी। वो उस आवाज़ की तरफ़ तेजी से दौड़कर आये। अपने दोस्त को खतरे में देखकर हीरा-मोती शेर से जा भिड़े। उस समय उनके वृद्ध शरीर मे बिजली सी तेजी आ गई। उन दोनों ने शेर को अपने सींगों से मार-मारकर अधमरा कर दिया। पर शेर तो आख़िर शेर होता है, हीरा-मोती उससे लड़ते-लड़ते बुरी तरह से घायल हो गये, शेर अधमरा होकर दुम दबाकर वहां से भाग गया। फिर भी उन्हें खुशी थी उन्होंने अपने दोस्त को शेर से बचा लिया था। राजू उन्हें लेकर जानवरों के अस्पताल गया। पर खून ज़्यादा बहने से दोनों बैलों ने अपने दोस्त राजू को देखते-देखते ही प्राण त्याग दिये थे। राजू की आँखों से अविरल गंगा-जमुना बहते रहे। वो कहता रहा दोस्तों उठ जाओ अब कभी तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊंगा। उसके पिता उसे ढांढस बंधा रहे थे, वो कह रहे थे देख बेटा वो मरे नहीं तेरे लिये शहीद हुए है, वो सदा तेरे-मेरे दिल मे जिंदा रहेंगे।
बाद में राजू ने सुजानपुर में हीरा-मोती का स्मारक बनाया।
जानवर कभी धोखा नहीं देते है।
धोखा तो हम इंसान लोग देते है।
जानवर तो प्यार का भूखा होता है,
अपने स्वामी के लिये हम जान भी देते है