स्वाभिमान
स्वाभिमान
बाहर टैक्सी खड़ी थी। उसमें दो बैग रखे थे। घर के अंदर से एक बुजुर्ग दंपति बाहर निकल रहे थे और उनके पीछे-पीछे उनका बेटा और बहू भी बाहर आ गए थे।
“रुक जाइए मम्मी पापा, हमारे होते हुए आप लोग वृद्धाश्रम में शिफ्ट क्यों होना चाहते है? यह भी तो आप ही का घर है। निधि और विदित भी आपके ही बच्चे है।”
“हाँ, वे दोनों हमारे ही बच्चे हैं और रहेंगे भी लेकिन हम उनके दादा-दादी हैं, तुम्हारे नौकर नहीं जिनके शरीर के बेकार होने का तुम लोग इंतजार कर रहे हो। भले ही हमने अपनी जमापूंजी तुम्हारे लिए खर्च कर दिया हो लेकिन अपना स्वाभिमान हमने बचा कर रखा है।”,
“तो क्या आप दोनों ने कल रात हमारी बातें.....” कहते कहते बहू की जबान रुक गई थी लेकिन टैक्सी नहीं रुकी।