सुनसान सड़क
सुनसान सड़क


निधि को आज अपने कार्यालय से निकलने में देर हो गई थी। पिछले दो दिनों से छुट्टी पर होने के कारण आज उस पर काम का बोझ अधिक था। नौकरी ज्वाइन करने से पहले ही फर्म के मालिक से तय हो गया था कि उसे अपने हिस्से का काम स्वयं निपटाना होगा। फिर वो चाहे रोज का काम रोज में ही निपटा दे या फिर चार दिन का काम एक दिन में। निधि ने मालिक की इस शर्त को सहर्ष स्वीकार कर लिया था। निधि ने कार्यालय से निकलते समय घड़ी देखी। 'अरे बाप रे! आठ बज गए हैं। काम करते हुए समय का ध्यान ही नहीं रहा।' नई नौकरी, नया जोश, नया शौक। समय का ध्यान रहता भी तो कैसे? उसने अपना मोबाइल निकाला। घर का नंबर मिलाया।
"हां मां! मैं अभी-अभी अपने आफिस से निकली हूं। बस थोड़ी देर में घर पहुंचती हूं।"
"..."
"नहीं मां! मैं टैक्सी से आ रही हूं। जल्दी पहुंच जाऊंगी। और सीधे घर पहुंचूंगी। रखती हूं।"
निधि ने टैक्सी कंपनी को फोन लगाकर टैक्सी बुक करा दी। जब तक निधि कार्यालय के मुख्य द्वार तक पहुंचती टैक्सी भी द्वार पर आ चुकी थी। निधि ने टैक्सी का पिछला दरवाजा खोला और बैठ गई।
"चलो।"
निधि ने टैक्सी में बैठते ही कहा। टैक्सी निधि के घर की तरफ चल पड़ी। टैक्सी से निधि के कार्यालय और घर के बीच लगभग बीस मिनट का फासला था। अमूमन जब सड़क पर ट्रैफिक अधिक होता है तब बीस मिनट में घर पहुंच जाती है। मगर आज शाम का प्राईम-टाईम निकल जाने के कारण ज्यादा ट्रैफिक नहीं था। इसलिए आज उसे पंद्रह से सोलह मिनट में ही घर पहुंच जाना चाहिए। उसने मन ही मन हिसाब लगाया और निश्चिंती से अपना लैपटॉप खोलकर कुछ काम करने लगी। दस मिनट के बाद अचानक उसकी दृष्टि लैपटॉप से हटकर टैक्सी से बाहर चली गई। उसे लगा कि टैक्सी उसके घर के रास्ते पर न जाकर किसी और रास्ते पर जा रही है।
"ये कहां ले जा रहे हो? ये तो... का रास्ता नहीं है।"
निधि ने ड्राईवर से पूछा।
"मेम साहब! इधर एक छोटा सा काम है। उसे निपटा कर फिर आपको छोड़ देता हूं।"
"पहले मुझे मेरे घर छोड़ दो। फिर अपना काम निपटाना।"
जवाब में ड्राईवर ने टैक्सी को एक अपेक्षाकृत पतली सड़क पर मोड़ दिया। ये सड़क शहर से बाहर की ओर जाती थी और कुछ ही दूरी पर सड़क एकदम सुनसान भी हो जाती है और जंगल भी शुरू हो जाता है। दिन के समय वो दो-तीन बार इस सड़क पर आ चुकी थी। दिन में भी इस सड़क पर इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई पड़ते हैं। अंधेरा हो जाने पर तो दूर-दूर तक कोई नहीं मिलेगा। निधि के मस्तिष्क में खतरे की घंटी बज उठी। उसे ड्राईवर की नियत पर शंका होने लगी।
"ये कहां ले जा रहे हो मुझे?"निधि ने पुनः प्रश्न किया।
"चुपचाप बैठी रहो। इसी में तुम्हारी भलाई है।"ड्राईवर का स्वर अचानक बदल गया। उसने अपना मोबाइल निकाला। कोई नंबर मिलाया और कहा-
"... रोड़ पर पहुंचो। आज तुम लोगों की मेरी तरफ से दावत है।"अब निधि को निश्चय हो गया कि वो किसी बड़े संकट में फंस गई है। उसने इस संकट से निपटने का उपाय सोचना शुरू कर दिया। संकट के समय यदि धैर्य से सोचा जाए तो कोई भी संकट अधिक देर तक नहीं रुक
सकता। ये वो बहुत अच्छी तरह जानती थी। कुछ सेकेंड में ही उसके मन में उपाय सूझ गया। सबसे पहले तो उसने अपने मोबाइल में एक मैसेज टाइप करके अपने घर और १०९० पर भेज दिया। मैसेज था- "मैं मुसीबत में हूं। प्लीज! हेल्प मी।" उसे पूरा विश्वास था कि घर वालों को मैसेज मिलते ही घर वाले एक्टिव हो जाएंगे। दूसरी तरफ १०९० पर मैसेज जाने पर उसके मोबाइल की लोकेशन ट्रेस करके पुलिस भी उसकी सहायता के लिए आ जाएगी। अब जरूरत इस बात की है कि इसे तब तक उलझाए रखा जाय जब तक कि पुलिस की सहायता नहीं पहुंच जाती।
"इधर कोई वाइन शॉप है?"निधि ने ड्राईवर से पूछा।
"वाइन शॉप? उसका क्या करना है?"
"वो... दरअसल मुझे शराब और मर्द के बिना नींद नहीं आती। कम से कम आधी बोतल शराब और दो-तीन मर्द मुझे रोज जरूरत पड़ते हैं।"निधि ने अपना दांव फेंका।
सूरत से कितनी शरीफ दिखती है मगर है साली पूरी रंडी। ड्राईवर ने मन ही मन खुश होते हुए सोचा।"पहले बताना था। शराब की दुकान तो पीछे छूट गई। और आगे दस किलोमीटर तक कोई दुकान नहीं है।"
"हां! दरअसल मैं लैपटॉप पर बिजी हो जाने के कारण ध्यान ही नहीं दे पाई कि गाड़ी किधर जा रही है। एक काम करो ना! गाड़ी यू-टर्न ले लो। कितने पीछे होगी दुकान?"
"लगभग ढ़ाई किलोमीटर पर है। ठीक है मैं वापस लेता हूं।"कहकर ड्राईवर ने टैक्सी को यू-टर्न दिया। उसकी टैक्सी सीधे शराब की दुकान पर रुकी। टैक्सी से उतरकर ड्राईवर एक लीटर की व्हिस्की की बोतल ले आया।
"कौन सी लाए?"
निधि का उद्देश्य केवल समय गुजारना था।ड्राईवर ने चलताऊ ब्राण्ड बताया।
"किसी अच्छे ब्राण्ड की लाओ। पैसों की चिंता मत करो। मैं सारे पैसे एक साथ चुका दूंगी।"
"महंगी शराब तो यहां नहीं मिलेगी। उसके लिए तो शहर जाना पड़ेगा।"
"तो चलो। इसमें सोचना क्या?"
ड्राईवर व्हिस्की की बोतल वापस करने के लिए दुकान की तरफ मुड़ा।
"कहां जा रहे हो?"
"इसे वापस करने।"
"इसे अपने पास रखो। बाद में कभी पी लेना।"
ड्राईवर मदमस्त हो रहा था। एक खूबसूरत लड़की के साथ महंगी शराब...। वो भी फोकट में। वाह! क्या बात है! लौंडिया दिलेर है। ड्राईवर की बुद्धि हवा हो चुकी थी।
ड्राईवर ने टैक्सी स्टार्ट की और शहर की तरफ चल दिया। इधर निधि ने अपने मोबाइल से अपनी लोकेशन घर और १०९० पर भेजनी शुरू कर दी। अभी टैक्सी ने शहर में प्रवेश किया ही था कि पुलिस की एक एस्कार्ट गाड़ी ने टैक्सी को ओवरटेक किया। ड्राईवर ने बड़ी फुर्ती से टैक्सी को ब्रेक लगाया। जितनी फुर्ती से टैक्सी रुकी, उतनी ही फुर्ती से पुलिस की टीम ने टैक्सी को चारों तरफ से घेर लिया। एक महिला सब इंस्पेक्टर ड्राईवर की खिड़की पर पहुंचकर कड़ककर बोली-
"ऐ! चल निकल बाहर।"
इधर हैरान-परेशान ड्राईवर बाहर निकला। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब अचानक हो क्या रहा है। उधर निधि भी फुर्ती के साथ टैक्सी से बाहर आ गई।
"इंस्पेक्टर साहब! मैं ही हूं जिसने १०९० पर मैसेज किया था। ये मुझे शहर से बाहर सुनसान इलाके में ले गया था।"
निधि ने इंस्पेक्टर को सारी बात बताई।
"इसने अपने कुछ दोस्तों को भी बुलाया है। इसका मोबाइल चेक कीजिए। आखिरी काल उन्हीं को की गई है। इसने रास्ते में शराब भी खरीदी है। अगली सीट पर पड़ी होगी।"
इंस्पेक्टर ने ड्राईवर का मोबाइल और शराब जब्त कर लिया।
"ऐसा कर, अपने दोस्तों को फोन कर और उन्हें यहीं बुला।"
ड्राईवर ने आनाकानी की।
"तू नहीं बुलाना चाहता तो कोई बात नहीं। तेरे मोबाइल से उनका नंबर मिल जाएगा। फिर पुलिस को उन लोगों को बुलाने में देर नहीं लगेगी। अरे कश्यप! ये फोन लो। जिस नंबर पर आखिरी काल की गई है उस नंबर को डायल करो और उससे कहो कि इसका एक्सीडेंट हो गया है। फौरन इस जगह पर चले आएं।"
कश्यप पुलिस टीम में शामिल एक हवलदार था। उसने ड्राईवर का फोन लिया, नंबर मिलाया और मैसेज दे दिया। इंस्पेक्टर के कहने पर पूरी पुलिस टीम आसपास इस तरह से छिप गई कि यदि ड्राईवर भागने की कोशिश करें तो भाग न सके। सिर्फ निधि को उसके पास छोड़ा। जिस जगह पर टैक्सी पकड़ी गई थी उस जगह पर एक चाय की दुकान थी। इंस्पेक्टर वहीं बैठकर चाय पीने लगी। थोड़ी ही देर में एक बाइक वहां आकर रुकी। उस पर दो लोग सवार थे। उनमें से एक ने बाइक से उतरते ही कहा-
"फोन पर तो किसी ने बताया था कि तेरा एक्सीडेंट हो गया है। मगर तू तो एकदम ठीक-ठाक है।"
इससे पहले कि ड्राईवर कोई जवाब देता, इंस्पेक्टर सामने आ गई।
"वो फोन मेरे कहने पर किया गया है। भागने की कोशिश मत करना। वरना मुझे गोली मारने में देर नहीं लगेगी।"
इंस्पेक्टर के सामने आते ही आसपास छुपे सारे पुलिसकर्मी भी आ गए। ड्राईवर और उसके दोनों साथी पकड़ लिए गए। इस बीच निधि के भाई और पिता भी वहां आ पहुंचे। निधि को सकुशल पाकर पिता और भाई की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। निधि अपने परिवार वालों के साथ घर चली गई।