Nisha Nandini Bhartiya

Romance

5.0  

Nisha Nandini Bhartiya

Romance

सुनो ! तुम मुझसे वादा करो

सुनो ! तुम मुझसे वादा करो

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नरेश अंकल और नियति आंटी आज अपनी शादी की पचासवीं वर्षगाँठ मना रहे थे। आज नरेश अंकल और नियति आंटी दोनों ही सत्तर साल के हो चुके हैं।

पचास साल पहले बीस वर्ष की उम्र में उन दोनों ने घरवालों के विरुद्ध होकर, घर से भागकर प्रेम विवाह किया था।

आज उनके एक बेटी दो बेटे हैं। छह नाती-नातिन और पोते-पोती हैं। आज सब मिलकर अपने माता-पिता, दादा-दादी या नाना-नानी के विवाह की पचासवीं वर्षगाँठ को धूमधाम से मना रहे थे। सुंदर सजावट की गई थी। चारों तरफ नाच-गाना चल रहा था तो कहीं खाना-पीना चल रहा था। पंडाल के एक तरफ सभी बुजुर्गों के लिए कुछ खेल रखे गए थे। नियति आंटी और नरेश अंकल अपने मित्रों के साथ बच्चों के समान खेल रहे थे। उनके सभी साथी जो कि लगभग उन्हीं की उम्र के थे।खिलखिलाकर हंस रहे थे और बहुत खुश दिखाई दे रहे थे। नरेश अंकल की बेटी नीता मेरी बहुत अच्छी मित्र थी इसलिए इस उत्सव में मुझे भी बुलाया गया था। मुझे सभी बुजुर्गों का इतना मजा लेकर खेलना और खुल कर हंसना बहुत अच्छा लग रहा था।

मैं सोच रही थी काश इन सभी बुजुर्गों का हर दिन ऐसे ही खुशियों से भरा होता। तो कितना अच्छा होता। आज हर जगह बुजुर्गों को प्रताड़ित और अपमानित करने की घटनाएं सुनाई देती रहती हैं। थोड़ी देर में सभी लोग भोजन करने चले गए।

नरेशअंकल और नियति आंटी को उनके प्रेशर व हृदय रोग की दवाइयों के कारण पहले ही खाना खिला दिया गया था। उनके बैठने के लिए कुछ ऊँचाई पर एक सुंदर सा झूला सजा कर बनाया गया था।

नरेश अंकल और नियति आंटी उस झूले पर बैठे अपनी पुरानी यादों में खोये हुए थे। दोनों ने स्कूल से कॉलेज तक एक साथ पढ़ाई की थी और उस जमाने में यानी कि आज से पचास साल पहले जब कोई प्रेम विवाह के बारे में सोच भी नहीं सकता था। उस समय दोनों ने घर से भागकर पहले एक मंदिर में शादी की थी और उसके बाद कोर्ट में जाकर शादी कर ली थी। शादी के एक माह तक जब तक नौकरी नहीं मिली थी। तब तक दोनों अपने इलाहाबाद में रहने वाले प्रिय मित्र गणेश के घर रहे थे। वहीं रहकर दोनों नौकरी के लिए आवेदन पत्र देते रहे। गणेश उनका हर तरह से ध्यान रखता था। नियति आंटी के पिता बहुत नाराज थे इसलिए उन्होंने कोई खोज खबर नहीं ली। पर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। दोनों का आत्मिक प्रेम ही एक दूसरे का संबल और सहारा था। उस जमाने में दोनों ने एम.ए किया था। बैंक की परीक्षा पास करके दोनों एक साथ इलाहाबाद के स्टेट बैंक में काम करने लगे।

अब समय बदलने लगा। दोनों का प्रेम और गहरता गया। कुछ समय बाद दोनों ने मिलकर इलाहाबाद में ही एक छोटा सा दो कमरों का घर भी ले लिया। इलाहाबाद में ही उनका बड़ा बेटा नितिन पैदा हुआ। अब दोनों की खुशियाँ परवान चढ़ रही थी। जब नितिन तीन साल का था तब उनके बेटे नितेश का जन्म हुआ और नितेश के जन्म के पांच साल बाद उनकी सबसे छोटी संतान नीता का जन्म हुआ।

इलाहाबाद में मेरा घर उनके घर के पास में ही था। स्कूल से कॉलेज तक मैं और नीता एक साथ ही पढ़े थे। हम दोनों में गहरी दोस्ती थी। मैं अक्सर नीता के घर जाती रहती थी। मुझे उसके घर जाकर बहुत अच्छा लगता था। नरेश अंकल और आंटी बहुत ही अच्छे स्वभाव के थे। वह अक्सर बालकनी में बैठकर चाय पीते और हँस-हँस कर बातें करते थे। नीता कहती थी कि मैंने अपने मम्मी-पापा को कभी झगड़ते नहीं देखा। दोनों में बहुत प्यार है। दोनों हमेशा रात का खाना एक साथ ही खाते हैं।

नियति आंटी का मायका और ससुराल दोनों बनारस में ही था। वे दोनों अपने तीनों बच्चों के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। अब उनकी शादी को बारह साल हो चुके थे।

नियति आंटी के पिता जब गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए थे। तब उन्होंने अपनी बेटी को वापस अपने घर बुलाया था। इलाहाबाद में रहते हुए विवाह के पूरे बारह साल बाद अपने तीनों बच्चों को लेकर नियति आंटी और नरेश अंकल रिटायर्ड कर्नल साहब यानि नियति आंटी के पापा को मिलने गये थे। नियति आंटी की माँ की मृत्यु बहुत पहले ही हो चुकी थी जब नियति आंटी मैट्रिक में पढ़ती थीं। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं। वह बारह साल तक अपने पापा से मिलने के लिए तड़पती रहीं पर कर्नल साहब ने अपनी बेटी के इस विवाह को स्वीकार नहीं किया था। उसके दो कारण थे एक तो यह था कि नरेश अंकल कायस्थ परिवार से थे और दूसरा वो बहुत ही साधारण परिवार से थे। उस समय नरेश अंकल के पिता एक छोटी सी कंपनी में क्लर्क के पद पर थे। दोनों ही बनारस में रहते थे। नरेश अंकल के माता-पिता ने तो अपने बहू-बेटे को स्वीकार कर लिया था पर कर्नल साहब का दवाब था कि अगर वह बेटे-बहू को घर पर लाते हैं तो वह कोर्ट केस कर देंगे कि उनके बेटे ने जबरदस्ती की है, इसलिए नरेश अंकल के माता-पिता इलाहाबाद जा कर अपने बच्चों से मिल आते थे पर बनारस कभी नहीं लाए।

जब बारह साल बाद नियति आंटी अपने घर आईं तब नीता पांच साल की थी। मेरी पहली दोस्ती नीता से तब हुई थी क्योंकि मेरे नाना जी भी आर्मी में थे और उसी कैम्पस में रहते थे। जिसमें कर्नल अंकल रहते थे। नियति आंटी जब सपरिवार अपने घर पहुंची तो कर्नल अंकल बिस्तर पर बीमार पड़े थे। आखिरी सांसें ले रहे थे। नियति आंटी और नरेश अंकल को देखकर वह बच्चों की भांति जोर-जोर से रोने लगे। उन्होंने अपने बेटी-दामाद को कसकर गले लगाकर आशीर्वाद दिया फिर बारी-बारी से अपने नाती नातिन को प्यार किया और ढेर सारा आशीर्वाद दिया। कर्नल अंकल का रोना थम ही नहीं रहा था। वह अपनी गलती के लिए बार-बार अपनी बेटी से क्षमा मांग रहे थे। उस दिन नियति आंटी भी अपने पिता के गले लगकर बहुत रोयीं थी। दोनों एक दूसरे को बारह साल बाद देख रहे थे। कर्नल अंकल बीमारी के कारण हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गए थे।

तीनों बच्चे नितिन, नितेश और नीता अपने नाना जी से मिलकर बहुत खुश थे। उस समय कर्नल अंकल ने नरेश अंकल के हाथ में अपनी बेटी का हाथ देते हुए कहा था- "सुनो तुम मुझसे वादा करो"

कि मेरी बेटी को हमेशा खुश रखोगे। मैंने अपनी सारी सम्पत्ति तुम दोनों के नाम लिख दी है। अब आज से यह घर तुम्हारा है। नरेश अंकल ने कर्नल अंकल का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा था। पापा जी - मुझे आपकी सम्पत्ति नहीं आपकी बेटी चाहिए। मैं आपकी बेटी से बहुत प्रेम करता हूं, और मरते दम तक करता रहूंगा। आप निश्चिंत रहे, आपकी बेटी को जीवन में कभी कोई दुख न होगा। नरेश अंकल बोलते जा रहे थे। उस समय कर्नल अंकल के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। सुकून था। धीरे-धीरे उन्होंने हमेशा के लिए आंखें बंद कर ली। नीता का अपने नाना जी के साथ बस इतना सा मिलन हो सका। इस मिलन की घड़ी की मैं भी साक्षी बनीं क्योंकि उस समय मैं गर्मियों छुट्टियों में अपने नाना जी के घर गई हुई थी।

आज सत्तर साल की आयु में अपनी पचासवीं वर्षगांठ मनाते हुए दोनों हाथों में हाथ लिए अपनी पुरानी यादों को ताजा कर रहे थे। उस सजे हुए झुले पर बैठे हुए उन दोनों ने जाने कितनी ही पुरानी यादों को ताजा किया। अरे ! नियति तुम्हें याद है जब काली चरण कॉलेज में बी. ए प्रथम वर्ष में मैं तुमसे पहली बार मिला था। तब तुम मनोविज्ञान की क्लास में सबसे पीछे अकेली बैठी थी। तुम बहुत सीधी और शर्मिली लड़की थीं।

जैसे कुछ याद करते हुए नियति ने कहा- हाँ नरेश तुम मेरे पास धीरे से आए थे और मुझसे कहा था, क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी और मैंने हाँ में सिर हिलाया था। फिर तुमने अपना हाथ आगे किया तो मैंने भी कर दिया। नरेश बोल पड़ा देखो प्रिय उस समय का पकड़ा हुआ तुम्हारा हाथ मैंने अभी तक पकड़ रखा है। दोनों बच्चों की तरह खिलखिला कर हंस पड़े। नरेश तुम्हें वो बी.ए द्वितीय वर्ष का शनिवार दो मार्च वाला दिन याद है। जब हम दोनों अंग्रेजी की क्लास छोड़कर शहीद भगत सिंह पिक्चर देखने गए थे। कितने अच्छे थे वो दिन। हाँ पर तुम्हें तो पूरी मूवी में अपने कर्नल पिता का डर लगा रहा, कहीं उन्हें पता चल गया तो क्या होगा। पर आज तक किसी को कुछ पता न चला। अरे तुमने मुझे बुर्खा जो पहना दिया था। हाँ ,और याद है वो बुर्का किसका था ? तुम नसरीन की कवर्ड में से चुरा कर ले आए थे। नरेश बोल पड़ा। पर मैंने दूसरे दिन उसकी कवर्ड में रख दिया था। वो तो ठीक है पर उस दिन उसे घर जाने में कितनी तकलीफ हुई थी। वह अपने दुपट्टे से मुंह बांध कर घर गई थी। उसके अब्बूजान और भाईजान ने उसे कितना डांटा था।

तब से वह हमेशा बुर्खे को बैग में डाल कर कंधे पर लटकाए रहती थी। नरेश बीच में ही बोल पड़ा तुम्हें वो दिन तो जरूर ही याद होगा। जब बी.ए तृतीय वर्ष में हम लोग कॉलेज की तरफ से पिकनिक पर नैनीताल गए थे। कैम्प के अंदर खाना पीना चल रहा और हम दोनों बाहर घूम रहे थे। नियति जोर से हंसते हुए बोल पड़ी, और हाँ ! तुम्हें वहां पर पेड़ों के बीच में एक मोर पंख मिला था और तुमने वो मोर पंख मुझे देकर शादी के लिए प्रपोज किया था। मोर पंख पाकर मैं बहुत खुश थी। अरे! वो पल मैं कैसे भूल सकता हूँ। वो मेरे जीवन का सबसे सुनहरा पल था। तुम अचानक शरमा कर मेरे गले लग गईं थीं। पर अपने पापा को याद कर तुरंत ही पीछे हट गईं थीं, क्योंकि तुम्हें मालूम था कि कर्नल साहब हमारी शादी के लिए कभी तैयार न होंगे। नियति कुछ सोचते हुए बोली- सुनो, मैंने वो मोरपंख अब तक अपनी तिजोरी में रखा है। वो मेरे लाखों रुपए के हीरे जवाहरात से भी कीमती है। उसमें बांके बिहारी का आशीर्वाद है। नरेश ने नियति का हाथ कस कर पकड़ते हुए कहा- कि मैंने तुम्हारे कारण ही मनोविज्ञान में एम.ए किया था। हाँ मुझे पता है जबकि तुम्हारी रुचि अंग्रेजी में थी। नियति बीच में बोल पड़ी। सुनो नरेश, आज हमारे पास सब कुछ है। हमारे सब बच्चे ऊँचे-ऊँचे पदों पर आसीन हैं। किसी बात की कोई कमी नहीं है। हम दोनों दुनिया के सबसे खुश किस्मत लोगों में से हैं। भरापुरा परिवार है। आज हमारे बच्चे कितनी धूमधाम से हमारी पचासवीं वर्षगाँठ मना रहे हैं। हमारे बच्चे हमें कितना मान-सम्मान देते हैं। अब मुझे भगवान से कुछ नहीं चाहिए। बस मैं तो भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ कि हम दोनों का साथ कभी न छूटे। मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकूंगी। सुनो नरेश, तुम मुझसे वादा करो कि मुझे जीवन के इस मोड़ पर अकेला न छोड़ोगे। नरेश ने नियति को गले लगाते हुए कहा अरे पगली, तू भी कैसी बच्चों जैसी बातें कर रही है और वो भी आज के दिन। हम दोनों ने तो जन्म ही एक होने के लिया है। हम दोनों को तो कई जन्मों तक साथ निभाना है। दोनों पुरानी यादों में डूबे हुए वादों में उलझे थे। वादा निभाने की बात कर रहे थे कि अचानक झूला टूट गया।

दोनों एक दूसरे के गले में हाथ डाले धरती पर गिरे। सिर पर चोट लगने के कारण दोनों एक साथ अपने वादे को निभाते हुए पुनर्जन्म लेने के लिए ईश्वर के चरणों में चले गए। चारों तरफ हाहाकार मच गया। सभी लोग झूले की तरफ दौड़ने लगे पर नरेश अंकल और नियति आंटी का एक दूसरे को दिया हुआ वादा पूरा हो गया।


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