मैना का एक जोड़ा
मैना का एक जोड़ा
बात यही कुछ सात- आठ महीने पहले की है। मेरे आंगन में मैना का एक जोड़ा जिसमें एक नर एक मादा था , न जाने कहाँ से उड़ कर आया। मुझे बचपन से ही पशु पक्षियों से बहुत प्रेम रहा है। बच्चे सब विदेश में रहने के कारण हम दो प्राणी ही घर पर रहते हैं। मुझे तो मानो उस मैना के जोड़े में बच्चे मिल गए। मैंने प्यार से उनके साथ बात करना व बिस्कुट देना शुरू कर दिया। सुबह पांच बजे से
दोनों बच्चे आ जाते और मेरी खिड़की में आवाज करके मुझे उठाते । बिस्कुट देने के बाद वह दोनों समीप के खेतो में उड़ जाते। पेड़ों की सबसे ऊंची डाली पर
झूला झूलते हैं,खेलते हैं,फिर दस- ग्यारह बजे फिर बिस्कुट खाने आते हैं। फिर एक बार दिन छिपने से पहले आकर बिस्कुट खाते हैं। आजकल दोनों बच्चे बिस्कुट फेंक देने से नहीं खाते हैं बल्कि मेरे हाथ से खाते हैं। एक बरतन में उनके लिए पानी रखा रहता है।
मैंने उन बच्चों
का नाम चुन्नू मुन्नू रखा है। मैं जब उनसे कहती हूँ कि बेटा राम-राम बोलो तो अपनी आवाज में राम-राम बोलते हैं। मैं जब रसोई घर में काम करती हूँ। तो खिड़की पर बैठकर बातें करते हैं। दिन छिपते ही अपने घर में चले जाते हैं। मुझे नहीं मालूम की उनका घर कहां हैं। सुबह पांच फिर मेरे कमरे की खिड़की पर जगाने आ जाते हैं। मुझे ऐसा आभास होता है कि जैसे वे मेरी भाषा समझते हैं। फिर लगता है कि हर प्राणी कोई भाषा समझे या न समझे पर प्रेम की भाषा जरूर समझता है।
अब वे दोनों बच्चे मेरी पूरे दिन की दिनचर्या का एक हिस्सा बन चुके हैं। जब तक वे दिन में चार- पांच बार आकर बात न करें। तो मेरी आँखें उन्हें ढूंढती रहती हैं। दूर पेड़ पर बैठे होने पर मैं अगर चुन्नू मुन्नू बोलकर आवाज देती हूँ तो तुरंत उड़कर मेरे पास आ जाते हैं।उन्होंने मेरे जीवन का खालीपन भर दिया है। मैं उनसे बहुत देर तक बातें करती रहती हूँ। समय कब पंख लगाकर उड़ जाता है। पता ही नहीं चलता है।
बच्चों, अगर जीवन में खुशी चाहिए तो पशु-पक्षियों से प्रेम करो। उनसे बातें करो। पशु-पक्षी हमारे सबसे अच्छे मित्र हैं। जो कि हमें तनाव रहित रखते हैं। हमारे जीवन को खुशियों से भर देते हैं।