सुहागरात की परीक्षा
सुहागरात की परीक्षा
मुकेश छब्बीस साल का एक खूबसूरत और होनहार नौजवान था। जब राज्य प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास कर वह अपने ही गृह जिले में एक उच्च पद पर आसीन हो गया, तब उसके सामने विवाह के लिए एक से बढ़कर एक खूबसूरत, पढ़ी - लिखी, ऊंचे खानदान की, रईस और नौकरीशुदा लड़कियों के रिश्तों की लाइन – सी लग गयी थी। मुकेश भली भांति जानता था कि शादी -ब्याह कोई बार-बार होने वाला काम नहीं है। एक बार जिससे शादी हो गयी तो बस फिर सात जन्मों का तो पता नहीं पर इस जनम का जीवन भर का साथ तो निभाना ही है।
बचपन में ही एक सड़क दुर्घटना में पिता जी की मौत के बाद माँ ने कितनी कठिनाइयों से उसे पाल पोस कर बड़ा किया, उसका भी उसे बखूबी अंदाजा था। उसकी माँ ने अपने जीवन में बहुत अधिक कष्ट झेले हैं, अब जबकि वह सक्षम है, तो अपनी माँ को अधिक से अधिक आराम और सुख पहुंचाना चाहता था। इस कारण भी अपनी शादी के लिए लड़की के चयन में वह अतिरिक्त सावधानी बरत रहा था। उधर जिन लोगों ने उसके पिता जी की असामयिक मौत के बाद उनकी तरफ एक बार झाँक कर भी नहीं देखा था, वे लोग आये दिन किसी न किसी लड़की की सिफारिश लेकर आ धमकते।
काफी सोच-विचार कर वह अपनी माँ और मामा जी की पसंद पर अपने लिए ममता को चुन लिया। ममता एक पढ़ी-लिखी और खूबसूरत लड़की थी, जिसके माता - पिता की बहुत पहले एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी थी। उसका पालन - पोषण उसके चाचा-चाची ने बड़े ही लाड़ - प्यार से किया था। ममता उसी शहर में स्थित एक सरकारी विद्यालय में शिक्षिका थी, जहाँ पर मुकेश की पोस्टिंग थी।
रिश्ता तय होने के बाद उन दोनों की आमने - सामने एक-दो बार ही मुलाक़ात हो सकी थी। इसका कारण यह था कि मुकेश जहाँ एक प्रशासनिक अधिकारी था, ममता भी उसी शहर में स्थित एक सरकारी विद्यालय में शिक्षिका थी। उस शहर में उन दोनों को जानने - पहचानने वाले बहुत से लोग थे। उन दोनों को विवाह से पहले ही साथ – साथ घूमते – फिरते देख कर लोग तरह – तरह की बातें करते, मीडिया में भी यह बात फैलने का डर था। वैसे भी छोटे शहरों में ऐसी बातें बहुत ही तेजी से फैलती हैं। सो, वे दोनों इन सबसे बचने के लिहाज से आमने - सामने कम ही मिलते, पर रात को फुर्सत मिलते ही मोबाइल पर घंटों बतियाते रहते। कुल मिलाकर उनका रिश्ता तय होने और शादी के बीच की तीन माह की अवधि में वे दोनों मोबाइल पर ही इतनी सारी बातें कर लिए कि अब उन्हें लगता ही नहीं था कि वे तीन माह पहले वे एक दूसरे से एकदम अपरिचित थे।
समय अपनी रफ्तार से निकलता गया। ममता और मुकेश दोनों के पिता जी नहीं थे, इस कारण वे आशंकित थे परन्तु ईश्वरीय कृपा से बहुत ही धूमधाम से उन दोनों की शादी यथासमय संपन्न हो गई। और अब आ गया सुहागरात। सुहागरात कितनी मिठास है इस शब्द में हर युवक - युवती इस खूबसूरत पल का सालों इंतजार करते हैं। इसके लिए वे कई प्रकार सपने बुनते हैं। आज जब उसकी सुहागरात है, तो पता नहीं क्यों समय के साथ - साथ उसकी घबराहट भी बढ़ती ही जा रही थी। वैसे रिश्ता तय होने के बाद वह लगभग रोज ही ममता से घंटों बात कर लेता, पर यूँ आमने-सामने वह भी एक ही कमरे में पता नहीं कैसे वह सिचुएशन को हैंडल करेगा। इसी उधेड़बुन में अंततः वह समय भी आ गया, जब उसकी चचेरी और ममेरी भाभियों ने उसे उस कमरे में पहुंचा दिया, जहाँ पर दुल्हन के वेश में उसके सपनों की रानी ममता उसका इंतजार कर रही थी।
ऐसा नहीं है कि वह इस कमरे में आज पहली बार आया था। वह तो यहीं पला बढ़ा था, पर आज उसकी भाभियों ने उसे सुहागकक्ष के रूप में दुलहन की तरह सजा दिया था। उस पर खूबसूरत बेड पर उसकी दुल्हन ममता बैठी उसका इंतजार कर रही थी।
सच, ममता आज नई दुलहन के वेश में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। बिलकुल परी लोक की राजकुमारी जैसी। किताबों और फिल्मों के माध्यम से प्राप्त जानकारी के मुआताबिक मुँह दिखाई की औपचारिक रस्म अदायगी और हीरे की अंगूठी उपहार में देने के बाद मुकेश बोला, "ममता, आज मुझे पहली बार ये एहसास हो रहा है कि मोबाइल पर बातें करना कितना आसान होता है। पता नहीं क्यों आज मुझे तो खुद पर तरस भी आ रहा है। कितना बड़ा बेवकूफ हूँ नी मैं ?"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं जी आप ? आप जैसे भी हैं, बहुत ही अच्छे हैं।" वह शर्माते हुए बोली।
"हाँ, तुम भी तो भारतीय नारी जो ठहरी। अब तो ऐसा बोलना ही पड़ेगा न।" वह बोला।
"नहीं जी, ऐसी तो कोई बात नहीं है। पर आज आप ऐसा क्यों कह रहे हैं।" वह शर्माते हुए पूछी।
"अरे भई, तुम कितनी खूबसूरत लड़की हो, तुमसे तो मुझे प्यार - मुहब्बत की बातें करनी थी, पर मैं ठहरा एक किताबी कीड़ा। पिछले तीन महीने से लगातार मैं तुमसे साहित्य, कला, खेल, संस्कृति, राजनीति और पर्यावरण की चर्चा ही करता रहा हूँ। जबकि मुझे तो तुमसे पर्यटन, फैशन, फ़िल्में और प्यार - मोहब्बत की बातें करनी थी ...." वह किसी तरह रौ में बोल गया।
"तो अब कर लीजिए ना। अभी कौन - सी देर हो गयी है।" वह शर्माते हुए बोली।
"हाँ भी, अब तो जिंदगी भर वही करनी होगी। वैसे भी आज तो हमारी सुहागरात है। तो शुरुआत प्रैक्टिकल से करें। थ्योरिटिकल क्लासेस तो जिंदगी भर चलती ही रहेगी न।" मुकेश उसकी हाथों को हाथ में लेकर बोला।
"मुकेश जी, आज तो मैं बहुत ही ज्यादा थक गई हूँ। सिर में बहुत दर्द भी हो रहा है। नींद भी आ रही है। प्रैक्टिकल फिर कभी।" ममता उनींदी आँखों से बोली।
मुकेश के लिए यह अप्रत्याशित स्थिति थी। पर यह सोच कर कि अब तो जीवन भर का साथ है। जहाँ इतने साल इंतजार किए, वहीं कुछ दिन और सही। बोला, "ठीक है मैडम जी। जैसा आप ठीक समझें। आप यहाँ पलंग पर सो जाइए। मैं वहाँ सोफे पर सो जाऊँगा।"
"नहीं जी, आप यहीं सो जाओ न, ऊधर पलंग पर ही। मैं इधर सो जाऊँगी।" वह एक तरफ खिसकती हुई बोली।
"ठीक है।" मुकेश दोनों के बीच एक तकिया रखकर बोला, "अब लाइट ऑफ करके चुपचाप सो जाओ। गुड नाईट।"
"गुड नाईट।" वह बोली और कमरे की लाइट ऑफ कर दी।
मुकेश को नींद नहीं आ रही थी। उसने ऐसे सुहागरात की तो कल्पना तो सपने में भी नहीं की थी। पर सच तो सामने ही था। सालों का इंतजार आज के इंतजार पर भारी पड़ रहा था। वह सोच रहा था कि पता नहीं किस बेवकूफ ने ऐसा लिखा है कि "जो मजा इंतजार में है, वह पाने में कहाँ ?'' मेरी तरह इंतजार किया होता तो पता नहीं वह क्या लिखता ?
लगभग घंटा भर का समय बीत गया। आज नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। वैसे पढ़ने-लिखने में उसकी बचपन से ही रुचि थी। जब भी उसे नींद नहीं आती, वह पढने बैठ जाता पर आज वह लाइट जला कर पढ़ नहीं सकता था, क्योंकि ममता की नींद में खलल पड़ सकता था। वैसे भी उसके सर में दर्द बता रही है। उसे भी बेवजह परेशानी होगी। सो, मुकेश एक चद्दर को ओढ़ कर मोबाइल में ही एक कविता लिखने लगा। उसकी आदत है, कि जब भी नींद नहीं आती या बोरियत महसूस होती है, तो वह कविताएँ, शायरी लिखने बैठ जाता था।
जिंदगी हर कदम परीक्षा लेती है
इंसान हर कदम परीक्षा देता है
हर किसी को यह पता होता है
हर परीक्षा उसे निखारता है
फिर भी वह परीक्षा से क्यों डरता है ?
वह लिखने में मगन था, कि तभी ममता धीरे से उसके चद्दर में घुसते हुए बोली, "वावो क्या बात है ? अभी-अभी पता चला कि हमारे साहब जी तो शायर भी हैं। इतनी रात गए, वह भी सुहागरात को, किसके लिए शायरी लिखी जा रही है ?"
चौंक पड़ा था वह, बोला, "अरे ममता, तुम अभी तक सोई नहीं हो क्या ? या फिर एक झपकी मार चुकी हो ?"
"नींद नहीं आ रही है मुझे। किससे चैटिंग हो रही है आपकी ? जरा हमें भी तो पता चले ?" वह शरारत से बोली।
"अब तक तो जिससे चैटिंग होती थी, वह कर नहीं सकता।" वह बोला।
"क्यों ? मैं आपको कभी किसी से चैटिंग के लिए मना नहीं करूंगी।" ममता बोली।
"अरे यार, बाजू में सो रहे इंसान से भला कोई कैसे चैटिंग कर सकता है ?" मुकेश बोला।
"सही कह रहे हैं जी आप। पर प्यार - मोहब्बत की प्रैक्टिकल क्लास तो शुरू कर ही सकते हैं। दरअसल मैं परखना चाह रही थी कि आपको मेरी इच्छा - नाइच्छा की कितनी परवाह है ?" वह मुकेश की बाहों में समाते हुए बोली।
"तो इस परीक्षा का रिजल्ट कैसा रहा ?" मुकेश की पकड़ मजबूत होती जा रही थी।
"फर्स्ट क्लास फर्स्ट। बधाई हो साहब जी। आपको सौ में सौ अंक मिले हैं।" वह मुकेश के गालों में चुबंन की झड़ी लगाते हुए बोली।