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Neerja Pandey

Abstract Romance Tragedy

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Neerja Pandey

Abstract Romance Tragedy

सतरंगी

सतरंगी

22 mins
330

खुशी से कृष्ण की चाल दोगुनी तेज हो गई थी। जब कुछ देर रिक्शा नहीं मिला तो वो पैदल ही चल पड़ा।

वहां पहुंच कर देखा शोभा का घर दुल्हन की तरह सज रहा था। घर पहुंचते ही उसका सारा जोश ठंडा हो गया। टूटे दिल से पर मन में आस लेकर वो घर के बरामदे में खड़ा हो कर आते - जाते लोगों को देखने लगा । इन अनजान चेहरों में वो किससे शोभा के पिताजी के लिए पूछे की वो कहां है?

कुछ पल हुए तभी कहीं से विभा उसे देख रही थी ; आई और सबसे अलग अंदर के कमरे में ले गई।

विभा ने कमरे में रक्खी कुर्सी पर बैठने को कहा।

कृष्ण ने बिना कुछ कहे पेपर विभा के हाथ में पकड़ा दिया।

"ये क्या ?"कहते हुए विभा ने पेपर खोला। पेपर में रिजल्ट और एक स्थान पर गोला किए हुए कृष्ण के नाम को देख कर खुशी से उछल पड़ी।

"अरे!....ये तो आपका नाम है । आप सेलेक्ट हो गए।" खुशी से सैल्यूट करते हुए बोली, "जज साहब को पहला सैल्यूट मेरा कुबूल हो।"

कृष्ण भी विभा के बोलने के तरीके से हंस पड़ा।

"मै बस अभी गई और अभी आई" कहकर विभा अंदर चली गई।

कुछ देर बाद लौटी तो साथ में मां पापा भी थे। दोनों को देख कृष्ण ने उठ कर चरन स्पर्श किया। दोनों ने आशीर्वाद दिया। उन्हें छोड़ कर विभा मुंह मीठा करने के लिए मिठाई लेने चली गई।

मां "बैठो बेटा" कह के खुद भी पास ही बैठ गई।

रघुराज जी बोले,"बहुत बड़ी कामयाबी मिली है बेटा तुम्हें ,वो भी पहले हीं प्रयास में। बधाई हो बेटा; तुम जिंदगी में बहुत कामयाब जज बनो,

मेरा आशिर्वाद है।"

कृष्ण ने कहा,"पिता जी मैं कुछ कह सकता हूं ! "

"हां बेटा बोलो "

"पिताजी मैं सबसे पहले आप सब को ही ये खबर बताने चला आया।

मैं घर भी नहीं गया , अभी मम्मी पापा को भी नहीं पता है कि उनका बेटा जज बन गया है। मैं शोभा को पाने की आस में ही कही नहीं गया।

आप कह रहें है मै कामयाब होऊं । मैं क्या करूंगा इस कामयाबी का जब शोभा ही मेरी जिंदगी में नहीं होगी। मैंने उसी के लिए दिन रात मेहनत कर, सब कुछ भुला कर ये कामयाबी पाई है। अब जब वो ही नहीं होगी तो क्या करूंगा मै इस कामयाबी का। प्लीज़ पिता जी आप मुझे अपना बेटा समझ कर आशीर्वाद दे दें। शोभा के चेहरे पर जब तक मेरी जिंदगी है में शिकन नहीं आने दूंगा। पिताजी में यहां से खाली हाथ नहीं जाऊंगा । या तो आप मुझे शोभा को जीवन साथी बनाने का आशीर्वाद दें या शोभा खुद मुझे जब तक जाने को नहीं कहेगी में यहां से नहीं जाऊंगा । पर ये तो तय है कि शोभा के बिना मैं नहीं जिउंगा।"

असमंजस में रघुराज जी क्या करें? कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक तरफ उनका चुना हुआ हकलाता लड़का था। जिसका परिवार नित नए मांग रख रहा था। अब शादी में उनकी प्रतिष्ठा बढ़े ,इसके लिए क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा था ! एक तरफ उनकी बेटी की खुशी के लिए

अपना सब कुछ न्योछावर करने वाला कृष्ण था। सुंदर सुशील कृष्ण के आगे उनका चुना हुआ वर कहीं नहीं ठहरता था।

अभी वो सोच में गुम ही थे कि क्या करें ? तभी विभा ट्रे में मिठाई पानी और चाय ले कर आई और बोली, "पिताजी दीदी के ससुराल से फोन आया है आप जाकर बात कर लें। "

रघुराज जी "ठीक है बेटा " कहते हुए चले गए।

दूसरी तरफ फिर लड़के की मां ही थी।

"नमस्कार समधी जी...,मैंने सोचा आपको याद करा दूं । अब ये तो कुछ कहते नहीं; आप बिना कुछ कहे कुछ देते नहीं। मैंने आपसे कहा था ना कि कुछ ऐसा करिएगा की हमारी इज्जत रिश्तेदारों के सामने रह जाए । आपने कोई व्यवस्था की?"

रघुराज जी ने मद्धिम स्वर में कहा, "अभी तो कुछ नहीं किया।"

इतना सुनते ही लड़के की मां का स्वर तीखा हो गया। बोली "हमें तो कार देने को लोग तैयार थे ,पर हमें आपकी बेटी पसंद सा गई थी। अब छोड़िए ... मैं क्या कहूं ...! आप एक अच्छी सी मोटसाइकिल की ही व्यवस्था कर दीजियेगा । अब जब हो जाए इंतजाम तब बताइएगा तो हम बारात ले कर निकलेंगें ।"

इतना सुनकर रघुराज जी क्रोध से कांपने लगे । वो ब्लड प्रेशर के मरीज थे। सांसे फूलने लगी।जोर से चिल्ला कर बोले, "नहीं कर सकता मैं आपके बेटे के लिए मोटरसाईकिल का इंतजाम और आपको कोई जरूरत नहीं बारात लेकर आने की । मैं ये रिश्ता तोड़ता हूं।"

"सोच लीजिए ! फिर दुबारा शायद आपकी बेटी की बारात पूरी जिंदगी ना आए।"लड़के की मां ने कहा।

एक निश्चय कर रघुराज जी बोले ,"शादी तो परसों ही होगी, पर आपके बेटे से नहीं।" कह कर फोन काट दिया।

घर में मौजूद मेहमान रघुराज जी की तेज आवाज सुनकर इक्कठे हो गए। जब उन्हे पूरी बात पता चली तो सब के अलग अलग विचार थे।

कोई कह रहा था,"अच्छा किया ऐसे लालची घर से रिश्ता तोड़ कर रघुराज जी ने" तो कोई कह रहा था कि," बेटी के बाप को तो सहना ही पड़ता है। अब बिना दहेज के कहां बेटी के हाथ पीले होंगे!"

इन सब बातों की परवाह बिना किए रघुराज जी निर्णय ले चुके थे कृष्ण को अपना दामाद बनाने का।

वो उस कमरे में गए जहां कृष्ण बैठा था। जोर से चिल्ला कर ,"शोभा....

शोभा.... " आवाज दिया।

सुनकर शोभा घबराती हुई दौड़ी आई कि पिता जी अब उसे बहुत

डांटेगे । क्यों की कृष्ण आया है उसे पता था। डरती कांपती शोभा पिताजी के पास जाकर खड़ी हो गई।

पिताजी ने शोभा का हाथ कृष्ण के हाथ में देकर कहा, "परसों शादी करनी है तो बोलो कृष्ण ! क्या अपने परिवार वालों को राजी कर बारात ले कर आ सकते हो?"

पल भर में डरी सहमी शोभा के जीवन में सच में वसंत आ गया। अब सिर्फ मौसम ही वसंत का नहीं था उसके जीवन में भी रंग बिरंगे फूल खिलने वाले थे।

कृष्ण तो मानो खुशी से पागल ही हो गया।

"जी पिता जी.... मैं अभी घर जाता हूं। परसों आपके यहां बारात में अपने घर वालों को लेकर आता हूं।" कृष्ण ने कहा।

"पर बेटा मुझे तुम्हारे पिताजी से बात कर उन्हें शगुन तो देना होगा।"

रघुराज जी ने कहा।

" अब ये सब मैं क्या जानूं? जैसा आपको उचित लगे।"

कृष्ण ने कहा।

रघुराज जी से आशीर्वाद ले कृष्ण अपने घर के लिए चल पड़ा। दो -दो खुशियां एक साथ मिल जाने से उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ थे। कृष्ण कैसे जाए कि समय कम लगे ये सोच ही रहा था कि ट्रेन से जाए या बस से । इसका समाधान शोभा के मामा ने निकाला। वो कृष्ण से बोले,"बेटा तुम मेरी गाड़ी ले जाओ तो जल्दी पहुंच जाओगे।" इलाहाबाद से बनारस पहले अपने पापा के पास जाकर,फिर उन्हे साथ लेकर जाने का प्रोग्राम बनाया कृष्ण ने।

वो शाम पांच बजे सीधा पापा के पास मेन ब्रांच में पहुंच गया। वहीं पास में पापा का क्वार्टर भी था। उसके पापा महेंद्र जी क्वार्टर पर जाने की तैयारी ही कर रहे थे। अचानक कृष्ण को देख घबरा गए, पर उसके प्रफुल्लित चेहरे को देख उन्हें अंदाजा हो गया कि जरूर कृष्ण इंटरव्यू में सफल हो गया है। वो उठ कर उसके पास आते हुए बोले, " किला - फतह ?"

हंसते हुए कृष्ण ने सर 'हां ' में हिलाया और पापा के पैरों में झुक गया।

प्रसन्नता से महेंद्र जी ने उसे उठा कर गले से लगा लिया। खुशी से उनके आंखों से आंसू बह रहे थे।

पापा को रोते देख कृष्ण की आंखों में भी आंसू आ गए।

पिता पुत्र दोनों की आंखों से खुशी के आसूं बह रहे थे।

उन्हे इस तरह रोता देख ऑफिस बन्द करने आया चपरासी घबरा गया कि साहब क्यों रो रहे है।

उसे भौचक्का देख महेंद्र जी ने जेब से सौ की नोट निकली और उसे देते हुए बोले, "राजाराम.. कृष्ण जज की परीक्षा पास कर गया है। ये लो ...घर मिठाई लेते जाना बच्चों के लिए। "

जल्दी से छुट्टी का एप्लिकेशन लिख कर उसे दिया, और बोले," राजाराम ये बड़े साहब को दे देना। मैं घर जा रहा हूं ,कृष्ण की मां के साथ ये खुशी बांटने । "

अच्छा हुआ कि वो खुद तैयार हो गए घर जाने के लिए । कृष्ण को नहीं कहना पड़ा । अब रास्ते में वो सारी बात पापा को समझा सकता था।

जब वो बाहर आए तो बस स्टॉप जाने के लिए रिक्शा करने लगे तो कृष्ण ने बताया कि वो गाड़ी से आया है।

"तब तो कोई परेशानी हीं नहीं है। जल्दी घर पहुंच कर तुम्हारी मां को ये जोरदार खबर सुनाते है। वो तो पागल ही होजाएगी।" कह कर ठठा कर हंस पड़े ।

ड्राइवर गाड़ी चला रहा था ,पापा के साथ कृष्ण पीछे की सीट पर बैठ गया। अब समस्या थी कि पापा से बात कैसे शुरू करे ?अभी वो सोच ही रहा था कि ये समस्या भी हल हो गई। पापा ने खुद ही पूछ लिया,

"बेटा ये गाड़ी किसकी है ?"

" जी पापा में आपको बताने ही वाला था। पापा प्लीज आप गुस्सा मत होइएगा । मैं किसी से कुछ ऐसा वादा कर आया हूं जिसका हक मुझे नहीं था पर परिस्थिति ऐसी बन गई की और कोई रास्ता नहीं था। मुझे पता है आपको इस बात से ठेस लगेगी पर पापा मेरी खुशी के लिए मेरी पहली और आखिरी गलती समझ कर माफ़ कर दीजियेगा। प्लीज पापा मुझे मुझे माफ कर दीजियेगा।" इतना कह कर कृष्ण पापा का हाथ अपने हाथ में लेकर बड़े उम्मीद से उनकी आंखों में देखने लगा।

अपने लाडले बेटे की हर खुशी महेंद्र जी उसके बिना कहे ही पूरी की थी। अब वो परेशान थे कि कृष्ण ऐसा ने ऐसा क्या कर दिया जिसे करने का हक उसे नहीं था।

"बोलो बेटा ..मेरा जी घबरा रहा है ,मैंने पहले भी कभी किसी चीज के लिए तुम्हे और तुम्हारे भाई को नहीं रोका...अब भी नहीं रोकूगा....। बताओ बेटा क्या बात है ?"

पापा के इन शब्दों से कृष्ण को अपनी बात कहने का हौसला हुआ।

फिर उसने सारी बात शुरू के अंत तक बिना रुके पापा को बता डाली।

और ये भी की पापा आपसे तो मैंने बता दी पर मां से नहीं बता पाऊंगा।

मां से आप ही बात करना ।

सुलझे विचारों के महेंद्र जी सदा से ही अपने बच्चों की इच्छा का सम्मान करते थे तो अब इतने बड़े फैसले में बेटे का साथ कैसे ना देते ! कृष्ण की बात समाप्त होते ही बेटे के पीठ पर धीरे से धौल जमाते हुए बोले,"अच्छा तो ये बात है ! बेटा जज बनने के साथ ही दूल्हा बनने की परीक्षा भी पास कर चुका है। फ़िक्र ना कर बेटा ..….बारात परसो ही जाएगी ,वो भी गाजे बाजे के साथ । तेरी मां को मैं समझा दूंगा।"

पापा की बातों से कृष्ण के दिल पर पड़ा बोझ हल्का हो गया। अब वो निश्चिंत हो गया कि पापा सब संभाल लेंगे।

एक जगह गाड़ी रोक कर पीसीओ से रघुराज जी को बता दिया कि पापा से बात हो गई है ,आप कल आ सकते है।

घर पहुंच कर मां को दो दो खुशखबरी सुनाई पापा ने। मां इस तरह अचानक शादी के लिए तैयार नहीं थी। उसके भी कुछ अरमान थे अपने बड़े बेटे के शादी को लेकर। पर पति के समझाने पर कि परिस्थिति ऐसी नहीं की शादी टाली जा सके। आखिर तय तारीख पर शादी ना होने से लड़की के पिता समाज में क्या कहेंगे। ? वो भी राजी हो गई।

कल लड़की वाले आ रहे है । इतना सुनते ही मां के पांव में पहिए बंध गए। वो आस पास के पड़ोसीयों को बुला कर बेटे के जज बनने और शादी की खबर बता कर सबसे मदद करने का अनुरोध कर रही थीं ।

आगे पढें ... क्या हुआ जब रघुराज जी शगुन लेकर महेंद्र जी के घर आए।

जब दिल में उत्साह हो तो क्या नहीं हो सकता ! समय कोई मायने नहीं रखता। उधर शोभा के पिता सारे रिश्तेदारों सहित जोर शोर से तैयारी में आधी रात तक लगे रहे।

इधर तुरंत ही कृष्ण ने भाई माधव के हॉस्टल फोन कर बुला लिया। इस तरह अचानक भाई की शादी की बात सुनकर माधव खुशी से उछल पड़ा। बोला , "भैया आप फिक्र मत करो मैं तुरंत आता हूं।" अपने भाई की खुशी में शामिल होने माधव तुरंत घर की ओर चल पड़ा।

रघुराज जी अपने सामर्थ्य अनुसार सब के लिए भेंट ले कर कृष्ण के घर की और कुछ खास रिश्तेदारों के साथ चल पड़े।

कम समय के बावजूद महेंद्र जी ने घर की सजावट और अतिथियों के स्वागत कि पर्याप्त तैयारी कर ली थी।

महेंद्र जी उल्लासित हृदय से सभी का स्वागत कर रहे थे। जहां तक मेहमान निमंत्रित कर पाए , किया था।

रघुराज जी जब इतने सारे उपहारों को लेकर कृष्ण के घर सकुचाए से पहुंचे तो महेंद्र जी ने दिल के खोल कर स्वागत किया। उन सभी के व्यवहार से रघुराज जी का संकोच कम होने लगा। महेंद्र जी नाराज़ हो रहे थे कि "शगुन कि बस एक सुपारी ही बहुत होती है। क्या जरूरत थी आपको इतना सब कुछ ले कर आने की !"

रघुराज जी का परिचय जब कृष्ण की मां से करवाया गया तो उनकी बस एक ही प्रबल इच्छा थी कि एक झलक बहू की देख लें ।

रघुराज जी को उनकी पत्नी ने शोभा कि एक सुंदर सी फोटो दे दी थी साथ में, शायद उन्हें इसका आभास था कि परिवार के बाकी लोग भी घर की बहू को देखना चाहेंगे।

"हां बहन जी बिल्कुल आप अपनी बहू को देखिए ।" कहते हुए रघुराज जी ने अपने पास के बैग से निकाल कर शोभा की फोटो कृष्ण की मां को पकड़ा दी।

कृष्ण की मां शोभा की फोटो देख कर बेहद खुश हुईं। अपने सुदर्शन बेटे के लिए ऐसी ही खूबसूरत बहू की कृष्ण की मां की इच्छा थी।

अचानक से बदले घटना क्रम में जो कुछ भी हो रहा था । वह रघुराज जी को सही लग रहा था । कृष्ण के घर से लौटते हुए रघुराज जी सोच रहे थे कि कहां लालची परिवार से रिश्ता जुड़ने जा रहा था; और कहां अब कृष्ण जैसा सुदर्शन जज दामाद उन्हें मिल रहा था। एक फैसला जिंदगी बदल देता है । ये बात अब उन्हें सौ प्रतिशत सही लग रही थी।

इतनी जल्दी जो कुछ भी संभव था। उतनी व्यवस्था कर महेंद्र जी दूसरे दिन शाम को बारात लेकर रघुराज जी के दरवाजे पर खड़े थे।

बेहद खुशनुमा माहौल में कृष्ण और शोभा की शादी संपन्न हो गई।

उन दोनों ने ही नहीं सोचा था कि उनके प्यार को इतनी जल्दी मंजिल मिल जाएगी। एक दूसरे को पाकर वो बेहद खुश थे।

सारी रस्में पूरी हो गईं अब विदाई होनी थी। शोभा अपने पिताजी और मां से लिपट कर रो रही थी। विभा भी रो रही थी ,पर दीदी की खुशी के लिए उसे ही चुप कराने की कोशिश कर रही थी।

शोभा विदा होकर ससुराल आई। जहां उसका स्वागत पूरे रीति रिवाज से हुआ। जब भी कोई कहता की अब तो बेटा जज बन गया है , और कहीं शादी करते तो बहुत दहेज मिलता तब तुरंत ही कृष्ण की मां बोल उठती "दहेज तो जरूर मिलता पर क्या इतनी सुंदर और संस्कारी बहू मिल पाती !"

शोभा कृष्ण के परिवार में रच बस गई। वो सिर्फ कृष्ण की शोभा ना बन कर पूरे परिवार की शोभा बन गई।

कुछ समय बाद कृष्ण की पोस्टिंग चंदौली में मुंसिफ मजिस्ट्रेट के पद पर हो गई। पहले वो अकेला ही गया। फिर कुछ समय बाद मां ने शोभा को भी साथ में भेज दिया।

वो दुनिया सपने से भी ज्यादा हसीन थी । जहां ना कोई बंदिश थी ,ना कोई दीवार। अपने प्यार को पा लेने की एक अजीब सी संतुष्टि थी। एक दूसरे में समाए कृष्ण और शोभा को समय का पता ही नहीं चलता। कृष्ण जैसा पति पाकर शोभा धन्य हो गई थी। शोभा की बेपनाह खूबसूरती में डूबा कृष्ण खुद को भाग्यशाली समझता की उसे इतनी सुन्दर पत्नी मिली है। कृष्ण उसे पलकों पर रखता। अपने हाथों से कृष्ण शोभा को कोई काम नहीं करने देता।

जब भी शोभा उदास होती तो कहता, "मां पिताजी की याद आ रही है, या विभा और रोहन की।" बस अगली छुट्टी में उसे लेकर घर वालों से मिलवाने चल देता। फिर अगली छुट्टी में पापा मां के पास बनारस चला जाता। दिन स्वप्न रथ पर पंख लगा कर उड़ रहे थे।

डेढ़ साल बाद शोभा के गर्भ में उसके प्यार कि निशानी आ गई। इस खबर से कृष्ण के परिवार में खुशियां छा गई। अब तो कृष्ण और भी ज्यादा शोभा का ध्यान रखता। सरकारी नौकर के अलावा एक नर्स को हमेशा शोभा के पास रखता। समय बीतता रहा। पूरा एहतियात दोनों बरत रहे थे। समय से चेक उप कराने खुद कृष्ण ले कर जाता।

समय आने पर कृष्ण की मां आ गई देख भाल करने के लिए।

समय पर प्रसव पीड़ा होने पर शोभा को लेकर मां हॉस्पिटल गई।

डॉक्टर ने जांच कर एडमिट कर लिया । दर्द से जूझती शोभा को देख कृष्ण विकल हो रहा था। वो बार बार डॉक्टर से शोभा की तबियत के लिए पूछता।

लाख कोशिश के बाद भी नॉर्मल डिलेवरी नहीं हो पाई । हार कर डॉक्टर ने ऑपरेशन कर बच्चे को बाहर निकला।

बच्ची को देख कर सभी पिछली पीड़ा को भूल गए। बच्ची खूब गोरी चिट्टी और स्वस्थ थी। मां बच्ची और शोभा की बहुत देख भाल करतीं।

छठे दिन शोभा घर आई । उसी दिन छट्ठी भी थी। छोटा सा कार्यक्रम भी था घर पे बच्चे के स्वागत में।

शोभा के पिता जी , मां , रोहन , विभा सभी आए थे बच्ची को देखने।

छोटी सी गुड़िया को देख सभी का दिल खुश था।

बच्ची का नाम समीक्षा रखा गया । उसके आने से शोभा और कृष्ण की जीवन में बहार आ गई थी। वो जैसे - जैसे बड़ी हो रही थी उसकी बाल सुलभ चंचलता सबका मन मोह लेती।

समीक्षा के दो साल के होते होते एक बार फिर शोभा मां बनने वाली थी।

इस बार शोभा और कृष्ण दोनों के माता पिता चाहते थे कि इस बार बेटा हो।

कहीं ना कहीं शोभा भी मन ही मन इस बार बेटा ही चाहती थी। वो भगवान से प्रार्थना करती की जैसे उसकी हर ख्वाहिश पूरी की है इस बार उसे बेटा दे कर ये इच्छा भी पूरी कर दें । शोभा की मां उसे अपने पास रखना चाहती थीं ,पर कृष्ण को इतनी छुट्टियां नहीं मिलती और वो बिना शोभा के एक दिन भी नहीं रह सकता था।

संयोग से डिलेवरी से पहले कृष्ण का तबादला इलाहाबाद ही हो गया।

उसके यहां शिफ्ट होने पर मां भी आ गई। शोभा की मां तो पहले से ही इसी शहर में थी।

बस जिसका इंतजार था वो पल आ गया । शोभा ने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दिया। सब की इच्छा पूरी हो गई थी।

खूब धूम धाम से बच्चे का जन्मोत्सव मनाया गया। अब शोभा का परिवार पूरा हूं गया था। जो भी देखता रश्क करता की वो कितनी खुशहाल है । मान सम्मान देने वाले सास ससुर, इतना प्यार करने वाला पति , दो गोल - मटोल सुंदर बच्चे। कोई कसर तो ना थी उनकी जिंदगी में।

जैसे सारे संसार की खुशियां उनके आंगन में सिमट आई थी। उस बच्चे का नाम सौम्य रक्खा गया ।

सौम्य अब चार महीने का हो रहा था पर उसके अंदर कोई भी विकास नहीं दिख रहा था । ना तो वो हंसता मुस्कुराता था ना ही पलटना ही शुरू किया था। शोभा महसूस कर रही थी इन बातों को। जब भी वो कहती की समीक्षा तो अब तक ये सब करती थी तो मां और सास कहती लड़के थोड़ा देर में सभी काम शुरू करते है, तो वो चुप हो जाती।

पर उसे सब ठीक नहीं लग रहा था। एक दिन उसे परेशान देख जब कृष्ण ने पूछा तो उसने अपनी मन की आशंका को उससे बता दिया।

कृष्ण ने कहा, " इसमें परेशान होने की क्या बात है ? चलो कल ही

बच्चों के डॉक्टर के पास चल कर दिखाते है।"

कृष्ण ने शोभा के मन की आशंका जब माधव से बताई तो वो तुरंत ही अपने दोस्त ,जो बच्चों का बहुत बड़ा डॉक्टर था, से बात कर भाई से कहा वो जाकर कल दिखा लें । कोई भी प्रॉब्लम होगी तो उसका इलाज हो जाएगा।

अगले दिन कोर्ट से आते ही शोभा और कृष्ण सौम्य को लेकर डॉक्टर के पास गए । सौम्य को देखते ही उनके चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभर आई ।

वो कृष्ण और शोभा को बैठने को कह कर बच्चे को चेक - अप केलिए लेकर अंदर चले गए।

सौम्य को देख कर डॉक्टर के चेहरे पर आए शिकन को इन दोनों ने भी महसूस किया था। ये पल उन दोनों पर बहुत भारी था। बेचैन शोभा को तसल्ली देने के लिए कृष्ण ने उसके हाथों को अपने हाथो मे लेकर धीरे से थपथपाया ।

जब डॉक्टर बाहर आए तो नतीजे पर पहुंच चुके थे। सौम्य को शोभा की गोद में देकर उन्हें समझाने लगे," देखिए सर ....मैं आप दोनों को झूठी तसल्ली देकर अंधेरे में नहीं रखना चाहता। बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है। आपकी आशंका शोभा जी सही थी। ये सामान्य बच्चों से थोड़ा अलग होगा। आपको इसकी विशेष देख भाल करनी होगी।"

आगे डॉक्टर ने क्या क्या कहा शोभा को कुछ समझ नहीं आया। डॉक्टर के कहे दो शब्दों ने उन पर वज्र पात कर दिया था। वो शून्य हो चुकी थी । पढ़ी लिखी शोभा को ,'डाउन सिंड्रोम ' का मतलब समझाने की जरूरत नहीं थी।

उसके हाथ से बच्चे को ले कृष्ण घर की ओर वापस चल पड़ा। बार बार शोभा के कानों में एक ही बात गूंज रही थी ' जब कृष्ण ने उसे गोद में पहली बार लिया था यही कहा था " मेरा बेटा भी मेरी तरह जज बनेगा।"

अब तो वो बिना सहारे की अपनी जिंदगी भी.......... । इतना सोचते हुए शोभा की आंखे अनवरत बहने लगी।

कृष्ण ने रो लेने दिया शोभा को। इन आंसुओं से उसका जी हल्का ही जाएगा।

घर पहुंच के कृष्ण ने शोभा को संभाला ," क्या हुआ शोभा जो हमारा सौम्य सामान्य नहीं है! हम मिलकर उसकी देखभाल करेंगे। उसे ऐसा बनाने की कोशिश करेंगे कि वो किसी का मोहताज नही हो।"

शोभा और कृष्ण बड़े प्यार से सौम्य का पालन - पोषण करने लगे।

एक बार फिर खुशियों ने दस्तक दी कृष्ण के दरवाजे पर। शोभा फिर मां बनने वाली थी। इस बार कोई दिक्कत ना होने पर भी हर पन्द्रह दिन पर कृष्ण खुद जांच करवाने ले कर जाता। अब उसका ट्रांसफर सीतापुर हो गया था। दो दो बच्चों की देख भाल बहू कैसे कर पाएगी इस हालत में ! इसलिए मां अब उनके साथ ही थी। हर पल बहू का ध्यान रखती। मां के देख - रेख में समय पूरा होने पर शोभा ने फिर एक बेटे को जन्म दिया ।

इस बार भी मन में डर था। पर जब डॉक्टर ने जांच कर बताया कि बच्चा बिल्कुल नॉर्मल है तो सभी के चेहरे पर सुकून फ़ैल गया। इस बच्चे का नाम शेखर रखा गया।

छह वर्ष की समीक्षा और चार वर्ष का सौम्य नन्हे से भाई को देकर बहुत प्रसन्न थे। समीक्षा तो प्रयास करती की उसे गोद से उतारे ही ना ।

अब वो स्कूल जाने लगी थी । भाई के पास रहने के लिए वो रोज स्कूल ना जाने का नया नया बहाना बनाती।

शेखर धीरे धीरे बड़ा होने लगा। चार वर्ष का होने पर वो दीदी समीक्षा के साथ स्कूल जाने लगा। सौम्य का एडमिशन भी कृष्ण ने करवाया था। पर वो टीचर की कोई बात समझ नहीं पाता। उसे स्कूल जाना अच्छा भी नहीं लगता था । इस कारण शोभा उसे घर पर ही एक टीचर से कह कर , थोड़ा बहुत पढ़ाने को रख लिया था। उसके लिए भी स्कूल बैग, किताबें सब कुछ आता। सुंदर सौम्य अब बेडौल होने लगा था। लाख कोशिश करने के बाद भी शोभा उसे कोई भी बात समझाने में असफल रहती। मां के साथ सोते भाई शेखर से उसे चिढ़ होती।

हार कर शोभा को सौम्य को ही अपने पास सुलाती।

जब भी ज्यादा परेशान हो जाती शोभा तो भगवान से विनती कर रोने लगती,"हे... भगवान मेरी किस गलती की सजा मेरे बेटे को मिल रही है!

जो भी गलती हुई हो उसे माफ कर दो भगवान।"

फूट कर रोती शोभा को संभालना कृष्ण के लिए कठिन हो जाता। वो हमेशा यही कहती मेरे बाद मेरे इस नादान का क्या होगा?

कृष्ण बार बार कहता हम दोनों मिल कर इसका ध्यान रखेंगे। ऐसा क्यों कहती हो ... कि तुम्हारे बाद इसका कौन ध्यान रक्खेगा।?

हर खुशी मिलने के बाद भी शोभा अपनी जिंदगी में सौम्य की वजह से संतुष्ट नहीं थी।

समीक्षा और शेखर क्लास दर क्लास आगे बढ़ते रहे। दोनों ही पढ़ाई में अच्छे थे। लगातार देखभाल और इलाज से सौम्य इस काबिल बना गया था कि अपना पर्सनल काम कर लेता था। शोभा और कृष्ण अपने बच्चों की परवरिश में व्यस्त थे। शोभा को संगीत का बड़ा शौक था। ये कृष्ण जानता था। जब वो छोटी थी तब प्रयाग संगीत समिति में संगीत सीखने जाती थी । पर बाद में पिताजी ने बन्द करवा दिया था।

अब जब थोड़ा समय वो अपने शौक के लिए निकाल सकती थी।

उसे बिना बताए कृष्ण ने एक संगीत शिक्षक को घर पे बुला लिया।

ये देख पहले तो वो तैयार नहीं हुई कि अब क्या करूंगी सीख कर?

पर कृष्ण जानता था कि वी सिर्फ उपरी मन से मना कर रही है।

कृष्ण के अनुरोध पर शोभा ने अपनी संगीत शिक्षा फिर से शुरू कर दी।

शोभा का गला बेहद सुरीला था। जब वो अलाप लेती सुनने वाला वाह कहे बिना नहीं रह पाता।

कृष्ण की सोच बिल्कुल सही साबित हुई। जबसे संगीत सीखना शुरू किया । उसके अंदर काफी परिवर्तन आ गया था। शोभा अब काफी खुश रहने लगी थी। शोभा को खुश देख कृष्ण ने चैन की सांस ली।

तीन बच्चों की मां , गरिमामय पद पर आसीन पति, जो उसकी छोटी से छोटी खुशी के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता था, और क्या ख्वाहिश होती है किसी स्त्री की। सौम्य को जिस रूप में भगवान ने उसे दिया था ; उसने एक्सेप्ट कर लिया था।

पर उसे इस बात को जरा भी अनुमान नहीं था कि अभी एक तूफान और आने वाला है । ये बस पल भर की शांति है।

समीक्षा ने बारहवीं में और शेखर सातवीं में थे। शोभा के पैर थोड़े थोड़े सूजे रहते । उसने उस ओर ये सोच कर ध्यान नहीं दिया कि पैर लटका कर बैठने या फिर ज्यादा थकान की वजह से सूज जाते होंगे।

पैरों में हल्का।दर्द बराबर बना रहता। ये मामूली समस्या समझ के उसे अनदेखा करती रही।

एक दिन गुरु जी वो संगीत सीख रही थी पर बार बार जब भी सुर चढ़ते उसे खासी आने लगती। गुरुजी ने उसे मना के दिया," बेटा आज रहने दो कल रियाज कर लेना। "

तीन चार दिन गुरुजी नहीं आए। पांचवे दिन आए तो जैसे ही शोभा ने शुरू किया फिर खासी आने लगी । तभी कृष्ण भी आ गया। उसे खासते देख बोला कोई लापरवाही नहीं चलो डॉक्टर के यहां। शोभा जाने को तैयार नहीं थी कि सीरप पी लूंगी तो ठीक ही जाएगा। पर कृष्ण ने एक ना सुनी । गाड़ी बाहर निकाल कर शोभा की प्रतीक्षा करने लगा। मजबूरी में शोभा को जाना ही पड़ा।

डॉक्टर ने देखा,"बोला कोई खास बात नहीं दवा लिख दे रहा हूं आराम ही जाएगा। "

पन्द्रह दिन कि दवा लिखी थी डॉक्टर ने। हर दिन ये सोचा जाता की आज आराम ही जाएगा । पर आराम नहीं हुआ।

आज फिर कृष्ण उसे लेकर दूसरे डॉक्टर के पास गया। उसने भी कुछ खास नहीं बताया । बस बोला सूखी खासी है ,ठीक हो जाएगा।

पन्द्रह दिन और बीत गए । कोई आराम नहीं हुआ।

अब कृस्न इंतजार करने को तैयार नहीं था। विभा को बच्चों के पास उन की देख रेख के लिए छोड़ , खुद शोभा को ले मुंबई में माधव के पास चला आया। माधव मुंबई में ही गवरमेंट हॉस्पिटल में कार्यरत था, और परिवार सहित यही रहता था।

माधव ने सबसे पहले शोभा की सारी जांच करवाने का फैसला किया।

दो दिन लगे इस लैब से उस हॉस्पिटल दौड़ धूप कर जांच करवाने में।

कुछ रिपोर्ट तो तुरंत मिल गई । जो नॉर्मल थी। कुछ रिपोर्ट दो दिन बाद मिलनी थी।

आज सारी रिपोर्ट आणि थी। माधव ने कहा कि वो रिपोर्ट ले लेगा। जैसा भी होगा उसे फोन पर बता देगा । पर कृष्ण को इतना सब्र नहीं था। बोला बैठ के ही क्या करूंगा ? जाता हूं थोड़ा घूम भी लूंगा और रिपोर्ट भी ले आऊंगा।


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