सतरंगी
सतरंगी
खुशी सेदेव की चाल दोगुनी तेज हो गई थी। जब कुछ देर रिक्शा नहीं मिला तो वो पैदल ही चल पड़ा।
वहां पहुंच कर देखा को कहा।
के नाम को देख कर खुशी से उछल पड़ी।
"अरे!....ये तो आपका नाम है । आप सेलेक्ट हो गए।" खुशी से सैल्यूट करते हुए बोली, "जज साहब को पहला सैल्यूट मेरा कुबूल हो।"
थे। दोनों को देख ने उठ कर च मुंह मीठा करने के लिए मिठाई लेने चली गई।
मां "बैठो बेटा" कह के खुद भी पास ही बैठ गई।
रघुराज जी बोले,"बहुत बड़ी कामयाबी मिली है बेटा तुम्हें ,वो भी पहले हीं प्रयास में। बधाई हो बेटा; तुम जिंदगी में बहुत कामयाब जज बनो,
मेरा आशिर्वाद है।"
आप कह रहें है मै कामयाब होऊं । मैं क्या करूंगा इस कामयाबी का जब शोभा ही मेरी जिंदगी में नहीं होगी। मैंने उसी के लिए दिन रात मेहनत कर, सब कुछ भुला कर ये कामयाबी पाई है। अब जब वो ही नहीं होगी तो क्या करूंगा मै इस कामयाबी का। प्लीज़ पिता जी आप मुझे अपना बेटा समझ कर आशीर्वाद दे दें। । पिताजी में यहां से खाली हाथ नहीं जाऊंगा । या तो
असमंजस में रघुराज जी क्या करें? कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक तरफ उनका चुना हुआ हकलाता लड़का था। जिसका परिवार नित नए मांग रख रहा था। अब शादी में उनकी प्रतिष्ठा बढ़े ,इसके लिए क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा था ! एक तरफ उनकी बेटी की खुशी के लिए
अभी वो सोच में गुम ही थे कि क्या करें ? तभी विभा ट्रे में मिठाई पानी और चाय ले कर आई और बोली, "पिताजी दीदी के ससुराल से फोन आया है आप जाकर बात कर लें। "
रघुराज जी "ठीक है बेटा " कहते हुए चले गए।
दूसरी तरफ फिर लड़के की मां ही थी।
"नमस्कार समधी जी...,मैंने सोचा आपको याद करा दूं । अब ये तो कुछ कहते नहीं; आप बिना कुछ कहे कुछ देते नहीं। मैंने आपसे कहा था ना कि कुछ ऐसा करिएगा की हमारी इज्जत रिश्तेदारों के सामने रह जाए । आपने कोई व्यवस्था की?"
रघुराज जी ने मद्धिम स्वर में कहा, "अभी तो कुछ नहीं किया।"
ये रिश्ता तोड़ता हूं।"
"पड़ता है। अब बिना दहेज के कहां बेटी के हाथ पीले होंगे!"
इन सब बातों की परवाह बिना किए रघुराज जी निर्णय ले चुके थे कृष्ण को अपना दामाद बनाने का।
आई कि पिता जी अब उसे बहुत
वाले थे।
उचित लगे।"
ले पहुंच गया। वहीं पास में पापा का क्वार्टर भी था। उसके पापा महेंद्र जी क्वार्टर पर जाने की तैयारी ही कर रहे थे। अचानक कृष्ण को देख घबरा गए, पर उसके प्रफुल्लित चेहरे को देख उन्हें अंदाजा हो गया कि साहब को दे देना। मैं घर जा रहा हूं ,कृष्ण की मां के साथ ये खुशी बांटने । "
" जी कर
अपने लाडले बेटे की हर खुशी महेंद्र जी उसके बिना कहे ही पूरी की थी। अब वो परेशान थे कि कृष्ण ऐसा ने ऐसा क्या कर दिया जिसे करने का हक उसे नहीं था।
"बोलो बेटा ..मेरा जी घबरा रहा है ,मैंने पहले भी कभी किसी चीज के लिए तुम्हे और तुम्हारे भाई को नहीं रोका...अब भी नहीं रोकूगा....। बताओ बेटा क्या बात है ?"
परिस्थिति ऐसी नहीं की शादी टाली जा सके। आखिर तय तारीख पर शादी ना होने से लड़की के पिता समाज में क्या कहेंगे। ? वो भी राजी हो गई।
कल लड़की वाले आ रहे है । इतना सुनते ही मां के पांव में पहिए बंध गए। वो आस पास के पड़ोसीयों को बुला कर बेटे के जज बनने और शादी की खबर बता कर सबसे मदद करने का अनुरोध कर रही थीं ।
तक लगे रहे।
कर ली थी।
महेंद्र जी उल्लासित हृदय से सभी का स्वागत कर रहे थे। जहां तक मेहमान निमंत्रित कर पाए , किया था।
रघुराज जी जब इतने सारे उपहारों को लेकर स्वागत किया। उन सभी के व्यवहार से रघुराज जी का संकोच कम होने लगा। महेंद्र जी नाराज़ हो रहे थे कि "शगुन कि बस एक सुपारी ही बहुत होती है। क्या जरूरत थी आपको इतना सब कुछ ले कर आने की !"
रघुराज जी का परिचय जब इच्छा थी कि एक झलक बहू की देख लें ।
रघुराज जी को उनकी पत्नी ने को देखना चाहेंगे।
"हां बहन जी बिल्कुल आप अपनी बहू को देखिए ।" कहते हुए रघुराज जी ने अपने पास के बैग से निकाल कर शोभा की फोटो खूबसूरत बहू की कृष्ण की मां की इच्छा थी।
अचानक से बदले घटना क्रम में जो कुछ भी हो रहा था । वह रघुराज जी को सही लग रहा था । कृष्ण के घर से लौटते हुए रघुराज जी सोच रहे थे कि कहां लालची परिवार से रिश्ता जुड़ने जा रहा था; और कहां भी संभव था। उतनी व्यवस्था कर महेंद्र जी दूसरे दिन शाम को बारात लेकर रघुराज जी के दरवाजे पर खड़े थे।
कि उनके प्यार को इतनी जल्दी मंजिल मिल जाएगी। एक दूसरे को पाकर वो बेहद खुश थे।
सारी रस्में पूरी हो गईं अब विदाई होनी थी। उसका स्वागत पूरे रीति रिवाज से हुआ। जब भी कोई कहता की अब तो बेटा जज बन गया है , और कहीं शादी करते तो बहुत दहेज मिलता तब तुरंत ही कृष्ण की मां बोल उठती "दहेज तो जरूर मिलता पर क्या इतनी सुंदर और संस्कारी बहू मिल पाती !"
कर पूरे परिवार की शोभा बन गई।
कुछ समय बाद मजिस्ट्रेट के पद पर हो गई। पहले वो अकेला ही गया। फिर कुछ समय बाद मां ने शोभा को भी साथ में भेज दिया।
वो दुनिया सपने से भी ज्यादा हसीन थी । जहां ना कोई बंदिश थी ,ना कोई दीवार। अपने प्यार को पा लेने की एक अजीब सी संतुष्टि थी। एक दूसरे में "मां पिताजी की याद आ रही है, या विभा और रोहन की।" बस अगली छुट्टी में उसे लेकर घर वालों से मिलवाने चल देता। फिर अगली छुट्टी में पापा मां के पास बनारस चला जाता। दिन स्वप्न रथ पर पंख लगा कर उड़ रहे थे।
आ गई देख भाल करने के लिए।
समय पर प्रसव पीड़ा होने पर
डॉक्टर ने जांच कर एडमिट कर लिया । दर्द से जूझती पूछता।
लाख कोशिश के बाद भी नॉर्मल डिलेवरी नहीं हो पाई । हार कर डॉक्टर ने ऑपरेशन कर बच्चे को बाहर निकला।
बच्ची को देख कर सभी पिछली पीड़ा को भूल गए। बच्ची खूब गोरी चिट्टी और स्वस्थ थी। मां बच्ची और भी थी। छोटा सा कार्यक्रम भी था घर पे बच्चे के स्वागत में।
कहीं ना कहीं करती की जैसे उसकी हर ख्वाहिश पूरी की है इस बार उसे बेटा दे कर ये इच्छा भी पूरी कर दें । शोभा की मां उसे अपने । मान सम्मान देने वाले सास ससुर, इतना प्यार करने वाला पति , दो गोल - मटोल सुंदर बच्चे। कोई कसर तो ना थी उनकी जिंदगी में।
जैसे सारे संसार की खुशियां उनके आंगन में सिमट आई थी। उस बच्चे का नाम सौम्य रक्खा गया ।
सौम्य अब चार महीने का हो रहा था पर उसके अंदर कोई भी विकास नहीं दिख रहा था । ना तो वो हंसता मुस्कुराता था ना ही पलटना ही शुरू किया था। शोभा महसूस कर रही थी इन बातों को। जब भी वो कहती की समीक्षा तो अब तक ये सब करती थी तो मां और सास कहती लड़के थोड़ा देर में सभी काम शुरू करते है, तो वो चुप हो जाती।
पर उसे सब ठीक नहीं लग रहा था। एक दिन उसे परेशान देख जब जब माधव से बताई तो वो तुरंत ही अपने दोस्त ,जो बच्चों का बहुत बड़ा डॉक्टर था, से बात कर भाई से कहा वो जाकर कल दिखा लें । कोई भी प्रॉब्लम होगी तो उसका इलाज हो जाएगा।
अगले दिन कोर्ट से आते ही मे लेकर धीरे से थपथपाया ।
जब डॉक्टर बाहर आए तो नतीजे पर पहुंच चुके थे। रही थी ' सहारे की अपनी जिंदगी भी.......... । इतना सोचते हुए शोभा की आंखे अनवरत बहने लगी।
का पालन - पोषण करने लगे।
एक बार फिर खुशियों ने दस्तक दी लिए वो रोज स्कूल ना जाने का नया नया बहाना बनाती।
स्कूल जाना अच्छा भी नहीं लगता था । इस कारण करने के बाद भी शोभा उसे कोई भी बात समझाने में असफल रहती। मां के साथ सोते भाई शेखर से उसे चिढ़ होती।
उसकी छोटी से छोटी खुशी के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता था, और क्या ख्वाहिश होती है किसी स्त्री की। सौम्य को जिस रूप में भगवान ने उसे दिया था ; उसने एक्सेप्ट कर लिया था।
पर उसे इस बात को जरा भी अनुमान नहीं था कि अभी एक तूफान और आने वाला है । ये बस पल भर की शांति है।
तो जैसे ही बात नहीं दवा लिख दे रहा हूं आराम ही जाएगा। "
पन्द्रह दिन कि दवा लिखी थी डॉक्टर ने। हर दिन ये सोचा जाता की आज आराम ही जाएगा । पर आराम नहीं हुआ।
माधव ने सबसे पहले शोभा की सारी जांच करवाने का फैसला किया।
दो दिन लगे इस लैब से उस हॉस्पिटल दौड़ धूप कर जांच करवाने में।
कुछ रिपोर्ट तो तुरंत मिल गई । जो नॉर्मल थी। कुछ रिपोर्ट दो दिन बाद मिलनी थी।
आज सारी रिपोर्ट आणि थी। माधव ने कहा कि वो रिपोर्ट ले लेगा। जैसा भी होगा उसे फोन पर बता देगा । पर