Neerja Pandey

Tragedy

4.5  

Neerja Pandey

Tragedy

नैना अश्क ना हो... भाग - 5

नैना अश्क ना हो... भाग - 5

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पत्रकार ने जैसे ही नव्या को देखा उसको देखते हीउसकी ओर लपका। नवल जी और शांतनु जी ने उसे रोकने के लिए आगे बढ़े, पर उन दोनों की कोशिश सफल नहीं हो सकी।

वो, कुछ दूर था तब भी वहीं से नव्या से सवाल किया,

"नव्या जी आपको कब और कैसे पता चला? कैप्टन शाश्वत

शहीद हो गए।"

क्या कहा आपने ?

नव्या ने विस्मित ! होकर पूछा।

नवल जी कुछ नहीं बेटा कहते हुए, उसे अंदर लाने की कोशिश की।

पर बाहर लगी भीड़ और न्यूज़ रिपोर्टर्स को देख कर उसे

कुछ अनहोनी की आशंका हो गई।

अब वो खुद पर काबू ना रख सकी।  

उसके कानों में यही शब्द बार - बार गूंजने लगे," कैप्टन शाश्वत शहीद हो गए।

इतना सुनते ही नव्या बेहोश हो गई। उसे नवल जी ने सहारा दिया और शांतनु जी की मदद से घर में लाकर बिस्तर पर लिटा दिया।  

 जैसे -जैसे शाश्वत के आने का समय हो रहा था मालूम हो रहा था पूरा शहर घर के बाहर उमड़ पड़ा हो। नव्या थोड़ी थोड़ी देर में होश में आती और शाश्वत का नाम पुकारती फिर बेहोश हो जाती । मैं भी वहीं पास ही थी। पर, नव्या की ओर देखने की मेरी हिम्मत नहीं थी। जब नव्या को होश आया उसकी निगाह मुझ पर पड़ गई। अपनी मेंहदी दिखाकर बोली आंटी रची तो है  ना ! 

इसमें मैंने शाश्वत का नाम भी लिखवाया है। ये देखिए, कहती हुई मुझे दिखाने लगी। 

"मेरा रोम-रोम चित्कार रहा था "। मै गवाह थी,समय के साथ परवान चढ़े उनके रिश्ते की। पलपल दोनों को साथ

जीते देखा था।शाश्वत मेरे लिए बेटे जैसा ही था।उसकी

सफलता मुझे अपनी सफलता लगती थी। नव्या की मासूमियत ने मुझे अपना बना लिया था। सदैव ही, "मै उन दोनों को साथ देखना चाहती थी"। शाश्वत को खोने की मैने

कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी।जब मै इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रही थी ;तो नव्या के लिए कितना मुश्किल है ये स्वीकार करना। मेरे पास शब्द नहीं थे कि मै

 नव्या को कैसे समझाऊं ? 

बाहर, शोर बढता ही जा रहा था। शहर के सारे बड़े अधिकारी, नेताओं का जमावड़ा लग गया था। शाश्वत को लेकर सेना के जवान आ गए थे। तिरंगे में लिपटा शाश्वत आ चुका था। सभी का रो रोकर बुरा हाल था। पूरा शहर उमड़ गया था, अपने

 बहादुर बेटे को की शहादत को सम्मान देने के लिए।

नव्या को शाश्वत के आखिरी दर्शन 

 के लिए लाया गया । वो तो जैसे अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठी थी। शाश्वत की मां और नव्या की मां नव्या को लेकर बाहर शाश्वत के पास आई। 

 नव्या ने दोनों से अपने हाथों को छुड़ा लिया और जल्दी से

 तिरंगे में लिपटे शाश्वत के पास आ गई। उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर, शाश्वत से बातें करने लगी। 

 शाश्वत देखो, तुम्हें मेरे मेंहदी लगे हाथ पसंद है ना, देखो जैसे ही मैंने सुना कि तुम आ रहे हो मैंने मेंहदी लगवा ली। 

तुमने देखा नहीं ; गौर से देखो इसमें "तुम्हारा नाम भी लिखा है "।उठो शाश्वत ! उठो ना ! देखो मै तुम्हे पुकार रही हूं। 

तुम्हारी नव्या तुम्हें पुकार रही है।

नव्या की पीड़ा देखकर मेरा हृदय दर्द से फटा जा रहा था। सभी द्रवित मन से शाश्वत को याद कर रहे थे।

 नव्या का, "करूण- कृंदन "सबके हृदय को चीर कर रख दे रहा था। 

 उस शाश्वत से अलग करना बड़ा ही मुश्किल था। शाश्वत को अनन्त यात्रा पर ले जाने की घड़ी करीब आ गई थी।जब रोते रोते अचेत हो गई नव्या, तभी उसे अलग किया जा सका। 

 चारों तरफ, शाश्वत अमर रहे की आवाज गूंज रही थी।

उसको अंतिम विदा देकर मैं भी वापस घर आ गई।

  वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता। धीरे - धीरे शाश्वत की तेरहवीं का दिन भी आ गया।

 भारी मन से मै उनके घर गई।

सारे क्रिया - कर्म बोझिल वातावरण में निपटाए जा रहे थे।

अपना - अपना गम अंतः करण में दबाए सभी एक दूसरे

को दिलासा दे रहे थे।

मै वापस जाने से पहले नव्या से मिलना चाहती थी। मेरे

मन की बात शायद नव्या तक पहुंच गई।

कुछ देर बाद, उसने मुझे पास बुलाया और कहने लगी आंटी आपको तो सब पता है शाश्वत ने आपके सामने ही तो वादा किया था कि इस जनम नहीं जनम - जनम तक मेरा साथ निभाएंगे, वो मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते। शाश्वत हमेशा मेरे साथ रहेंगे ये कहते हुए आंखों से आंसुओं को पोछ रही थी। मैं नहीं रोऊंगी। उन्हें मेरा रोना बिल्कुल पसंद

नहीं था।

फिर, मै कैसे रो सकती हूं? शाश्वत मेरी रग - रग में बसा है। वो मेरी सांसो की खुशबू है। मै हर पल उसे महसूस कर 

सकती हूं। 

 नव्या की पीड़ा देखकर मेरा हृदय दर्द से फटा जा रहा था। सभी द्रवित मन से शाश्वत को याद कर रहे थे। 

जिन्दगी को बिना शाश्वत के नव्या कैसे जिएगी ?

पढ़िए अगले भाग में।


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