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Neerja Pandey

Romance

4  

Neerja Pandey

Romance

सतरंगी

सतरंगी

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अब तक आपने पढ़ा कृष्ण की बीमारी से प्रभावित हुई पढ़ाई में शोभा ने काफी मदद की। शोभा के दिए नोट्स से कृष्ण अच्छे नंबरों से पास हो गया। अब कृष्ण मदद करता पर फाइनल नोट्स शोभा ही बनाती। वहीं दोनों पढ़ते। शोभा नोट्स तो अच्छे बनाती पर ज्यादा देर तक याद नहीं रख पाती इस कारण उसके नंबर कृष्ण से कम ही रहते। पर कृष्ण के ज्यादा नंबर आने पर शोभा बहुत खुश होती।

इन सब में शोभा और कृष्ण के बीच दोस्ती हो गई। कब ये दोस्ती प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला। साथ में पढ़ते तथा वे खाली पीरियड में बातें करते।

ऐसे ही समय बीतता रहा। फाइनल ईयर की परीक्षा सर पे थी, साथ ही पी सी एस जे की भी परीक्षा कुछ समय बाद ही थी। इस कारण कृष्ण की जान से जुटा हुआ था । चाहती तो शोभा भी यही थी पर उसके पापा लॉ की पढ़ाई के ही खिलाफ थे। बड़ी मुश्किल से शोभा ने उन्हे मनाया था। अब वो जल्दी से जल्दी शोभा की शादी कर देना चाहते थे। कही से उनको पता चला था,कृष्ण के बारे में इस कारण वो ज्यादा चिंतित रहते थे । उनका कपड़े का बिजनेस था जो कुछ खास अच्छा नहीं चल रहा था। चार बहनों एक भाई में शोभा तीसरे नंबर पर थी। पापा की जमा पूंजी दो बहनों की शादी में ही समाप्त हो गई थी। शोभा और उसकी छोटी बहन विभा की शादी की चिंता दिन रात शोभा के पिता रघुराज जी को सताती थी।

वो अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे शोभा का विवाह तय करने की पर दहेज की मांग से निराश हो जाते।शोभा जब कृष्ण से बताती की उसकी शादी की बात चल रही तो कृष्ण परेशान है जाता। कहता बस थोड़ा समय और चाहिए । मैं कुछ बन जाऊं फिर तुम्हारे पापा से आकर तुम्हारा हाथ मांग लूंगा। इस जुनून में वो दिन रात पढ़ता। असफलता के लिए उसके पास वक्त नहीं था।

शोभा को पाना था तो उसे सफल होना ही था। एग्जाम के बाद शोभा और कृष्ण बिल्कुल कट गए एक दूसरे से। शोभा पर पिता का पहरा था तो कृष्ण के पास जिम्मेदारी थी।

दिन रात परिश्रम का फल रहा की कृष्ण ने पहले प्री परीक्षा पास की फिर मेन में भी सफल हो गया। अब बस बारी इंटरव्यू की थी। इधर जोर शोर से शादी ढूंढी जा रही थी शोभा की । उसकी सुन्दरता पे बात तय हो जाती पर जैसे ही रघुराज जी अपनी असमर्थता जताते कुछ देने लेने से रिश्ता टूट जाता।

आज फिर लड़के वाले आए थे देखने शाभा को देखने। सारी बातें हो गई उन्हे दहेज भी नहीं चाहिए था। बस लड़का थोड़ा सा बोलने में अटकता था। ना पसंद होते हुए भी मजबूरी में रघुराज जी ने हां कर दी।

उदास शोभा एक दिन विभा को साथ ले बाजार के लिए निकली । उसे अपने दिल की सरी बात बताई और कृष्ण के कमरे पर जा पहुंची।उसे सामने देख कुछ पल के लिए कृष्ण सब कुछ भूल गया उसे अपनी आंखो पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसके सामने शोभा खड़ी है।

कुछ पल बाद जब संयत हुआ। "अरे...! शोभा तुम कैसे आई ,?"

शोभा ने विभा से कृष्ण का परिचय कराया। विभा ने नमस्ते किया।

कृष्ण दोनों को अंदर ले आया।शोभा से सारी बातें जानकर उसे बहुत दुख हुआ। उसने आश्वासन दिया तुम चिंता मत करो । बस इसी हफ्ते मेरा इंटरव्यू है। उसके बाद शीघ्र ही रिज़ल्ट भी आ जाएगा तब मैं तुम्हारे पिताजी से मिलूंगा।

उदास शोभा जिन सुनी आंखों से कृष्ण को देख रहीं थी। कृष्ण का कलेजा तार - तार हो रहा था। उन दोनों को चाय पिला कर कृष्ण विदा करने गेट तक आया। विभा के करीब आकर धीरे से बोला, " विभा अपनी दीदी का खयाल रखना मैं बहुत जल्दी आऊंगा। पिताजी से शोभा का हाथ मांगने । मैं कोई सड़क छाप रोमियो नहीं हूं। अपने जीते जी जब तक शोभा ना चाहे में उसे अपने से दूर नहीं होने दूंगा।"

फिर बोला," विभा दीदी को अकेला मत छोड़ना।"

इसके बाद रिक्शा बुला कर उन्हें बिठा कर अंदर चला आया। इस खबर से कृष्ण बहुत निराश हो गया था। उसके पास बहुत कम समय था।आंखों से बहते आंसू को काबू में ना कर सका तो लेट गया तकिए में मुंह छुपा कर जी भर रोया । कुछ समय बाद उठा आंखों को पोछा और मुंह धोकर फिर पढ़ाई में लग गया। उसके पास समय नहीं था ,ना तो रोने का ना ही असफल होने । वो जी जान से इंटरव्यू की तैयारी में जुट गया।

इधर शोभा की शादी जहां तय हुई थी, उन्हे कुछ ज्यादा ही जल्दी थी शादी की। शोभा के लाख मना करने के बाद भी तारीख दो महीने बाद की तय की गई। जिस दिन कृष्ण का इंटरव्यू था उसी दिन शोभा की सगाई हो गई। विभा बार बार मम्मी पापा को थोड़ा इंतजार करने के लिए कह रही थी ,पर वो बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। कृष्ण के बारे में थोड़ी बहुत आशंका थी पर उसे भी बाकी लड़कों की तरह समझते थे। जो लड़कियों से दोस्ती सिर्फ समय बिताने के लिए करते हैं।

इंटरव्यू बहुत अच्छा हुआ था, उसे पूरी उम्मीद थी कि उसका सलेक्शन हो जाएगा।सबसे छुप कर यहां तक कि शोभा से भी बिना बताए कृष्ण से मिलने आई । उसने बताया कि दीदी कि सगाई हो गई है। वो इतना टूट चुकी है कि उसे है अपना नसीब मान कर चुपचाप अपने सारे सपनों को कुर्बान करने को तैयार है। कृष्ण ने विभा को बताया कि बस अब रिज़ल्ट आने की देर है। विभा ने कहा शायद तब तक बहुत देर हो जायेगी। परेशान कृष्ण ने कल ही आने की बात की । वादा किया कि मै कल ही आकर पिताजी से शोभा का हाथ मांगूंगा।

विभा ने घर आकर किसी से कुछ नहीं कहा। यहां तक कि शोभा से भी नहीं बताया कि वो कृष्ण से मिलने गई थी। बस चुपचाप घर व्यवस्थित करने में लगी रही।इधर जब से सगाई हुई थी लड़के वालों का बर्ताव थोड़ा बदल सा गया था। कभी दबाव डालते की शादी इस नहीं इस मैरेज हॉल से नहीं दूसरे मैरेज हॉल से करिए । जिसमें वो कह रहे थे वो काफी महंगा था।

फिर फोन आया कि हमें तो कुछ नहीं चाहिए बस लड़के के फूफा और जीजा को सूट पीस के साथ घड़ी भी दे दीजिएगा। इन सब बातों से रघुराज जी बहुत परेशान थे। रोज कोई न कोई सुझाव दिया जाता की ऐसा कर दीजियेगा।

दूसरे दिन शाम को जब रघुराज जी दुकान से आए। उसके थोड़ी देर बाद कृष्ण आया। विभा जो सुबह से ही जरा सा गेट खटकता तो दौड़ कर झांकती की कौन आया ? पूरा दिन ऐसे ही बीत चुका था। अब जैसे ही गेट खुलने की आवाज आई विभा भाग कर बाहर आई और कृष्ण को अंदर लेकर आई और बैठने को कहा। पिताजी अंदर के कमरे में थे।

वो सबसे छोटी होने के पिताजी की लाडली थी। उसे पिताजी से कोई भी बात करने में कोई भी झिझक नहीं होती थी।

" पिता ..जी ...पिताजी... वो दीदी के साथ जो कृष्ण भैया पढ़ते है ना... वो आए है , आपसे मिलने मैंने बैठक में बिठाया है चलिए आप। "

रोष में रघुराज जी बैठक में आए ।मन ही मन वो नाराज़ होते हुए आए की ' उसकी इतनी बड़ी हिम्मत हो गई की घर चला आया। मैं अभी उसकी बेइज्जती कर घर से बाहर निकालता हूं। ' यही सोचते हुए वो आए और सोफे पर बैठ गए। जैसे ही वो बैठे तुरंत उठ कर कृष्ण दोनों हाथों से उनके चरणों को छूने झुक गया। तब तक झुका रहा जब तक वो उसके कंधे पर हाथ रख कर 'खुश रहो ' नहीं कह दिया । जब कृष्ण बैठ गया तो उसके चेहरे पर उनकी निगाह गई।

वो देखते ही रह गए । लंबा , ऊंचा कद, गठीला बदन गेहूंआ रंग ऊंचा माथा, बोलती आंखे। बरबस ही उनके खयालों में शोभा के होने वाले पति का चेहरा आगया।माहौल की बोझिलता को कम करने के लिए आवाज लगा कर विभा को चाय लाने को बोला।

भारी आवाज में पूछा, "क्या करते हो तुम? "

"जी पिता जी पी सी एस जे का इंटरव्यू दिया है । पूरी उम्मीद है चुन लिया जाऊंगा।"पिताजी का संबोधन रघुराज जी को प्रभावित के गया।

चाय पी कर खामोशी को तोड़ता हुए कृष्ण पास आकर घुटने के बल बैठ गया और बोला, "पिताजी मैं बात को घुमा फिरा कर कहने में विश्वास नहीं रखता। मैं शोभा से शादी करना चाहता हूं। उसे ताउम्र खुश रखूंगा। "

कृष्ण के हाथों से अपना हाथ छुड़ा कर उसे सोफे पे बैठने को कहा, फिर बोले, " बेटा शोभा की सगाई हो चुकी है । डेढ़ महीने में शादी है। मैं मुकर नहीं सकता अपनी वचन से। " इतना कह कर वो उठ कर अंदर चले गए।

कृष्ण को अकेले बैठे देख शोभा की मां और विभा ड्रॉइंगरूम में आ गई। कृष्ण ने उनका भी चरन स्पर्श किया। वो धीरे धीरे उसके परिवार और पढ़ाई के बारे में जानकारी ले रहीं थी। दो भाईयों और चार बहनों का भरा पूरा परिवार था। बहनों की शादी हो चुकी थी। भाई का ट्वेल्थ के बाद ही सीपीएमटी में सलेक्शन हो गया था। वो केजीएमसी से एमएमबीबीएस कर रहा था। पिताजी पोस्टल डिपार्टमेंट में थे। वो बनारस में रहते थे । घर पे मां खेती का काज सीजन में आकर देख लेती थी। हर लिहाज से कृष्ण जंच रहा था मां को। पर अपनी शंका का समाधान करते हुए बोली, "बेटा तुम्हारे माता पिता क्या राजी होंगे ? अगर वो ना माने तो !"

"मांजी ये मेरा काम है उन्हे राजी करना ; अगर मान गए तो ठीक वरना मैं शोभा का साथ निभाऊंगा।"

अपने सद् गुणों से शोभा के परिवार में सभी के दिल में हलचल मचा कृष्ण चला गया।

विवाह तय हो चुका था, सगाई भी हो गई थी। रघुराज जी तिलक के कार्यक्रम की तैयारियां कर रहे थे। कुछ मांग ना थी इस कारण उनका बजट कम था पर बाद में सभी के लिए कपड़े की व्यवस्था भी करनी पड़ी उनके कहने पर। तिलक के पांच दिन बाद ही शादी थी।

छोटा भाई ही तिलक का समान भेंट करता है । ऐसी परम्परा शोभा के घर थी । रोहन सारे समान थल से निकाल कर लड़के को पकड़ाता जाता और साथ बैठा व्यक्ति उसे बगल में रखता जाता। जब सभी चीजे निकाल कर रोहन ने पकड़ा दी तो लड़का जिज्ञासा से थाल में देखने लगा, रोहन से पूछा और चीजें कहां है? कुछ छूट तो नहीं गया!

रोहन ने ना में सिर हिलाया ," नहीं जीजाजी सारी चीजें मैंने दे दी।"

वो लड़का फिर बोला, " ध....ध... ध्यान से देखो शायद रुपए छूट गए हैं !"

रोहन छोटा अवश्य था पर इतना उसे भी पता था कि इशारा किस ओर है।लड़के के परिवार को अपेक्षा थी कि कुछ नगद रुपए जरूर रघुराज जी जरूर चढ़ाएंगे। अपनी इच्छा के अनुरूप ना होने पर उनका व्यवहार थोड़ा खिन्न सा हो गया था। ना तो किसी ने रोहन की ना ही रघुराज जी को किसी ने जलपान के लिए पूछा । रघुराज जी तो वैसे ही बेटी के यहां का कुछ भी नहीं खाते पीते । पर शिष्टाचार वश भी ना पूछना उन्हे अखर रहा था।

घर आकर वो निढाल से अपने कमरे में जाकर लेट गए । जबकि घर में मेहमान थे। तभी विभा ने आकर कहा, "पिताजी दीदी के ससुराल से फोन आया है ,वो आपसे बात करना चाहते है।"

"हूं...."कह कर वो विभा के पीछे पीछे चल पड़े।

दूसरी तरफ से फोन पर लड़के की मां थी।

"नमस्ते समधी जी" आवाज में रुष्टता का पुट लिए कहा।

"जी नमस्कार " रघुराज जी बोले।

"क्या समधी जी हमने नहीं मांगा तो आपने अपनी तरफ से भी कुछ नगद चढ़ाना उचित नहीं समझा । सारी रिश्तेदारी में हमारी थू - थू हो रही है। अरे!...आपके पास नहीं था तो हमसे लेकर ही चढ़ा देते कम से कम हमारी प्रतिष्ठा तो बनी रह जाती। अब शादी में ऐसा मत करिएगा हमारी इज्जत रह जाए इसका प्रबन्ध कर लीजिएगा।" कह कर फोन काट दिया।

रघुराज जी चिंता में थे कि क्या ऐसा प्रबंध करें शादी में कि उनकी इज्जत रह जाए ! उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था।अब शादी कैंसिल करें तो समाज में बदनामी होने का डर था। पर इन लालची लोगों के घर शोभा को देने का फैसला उन्हे गलत लग रहा था। दो दिन असमंजस में बीते। तैयारियां चल रही थी।

आज सुबह से ही कृष्ण परिणाम का इंतजार कर रहा था। जैसे ही परिणाम आया वो खुशी से उछल पड़ा पेपर में अपना नाम देख कर। वो सिर्फ सफल ही नहीं हुआ था, उसकी पूरे स्टेट में 244वी रैंक आई थी। वो इस खुशी को अपने माता पिता के साथ बांटना चाहता था।पर वो घर जाता तो इतनी जल्दी वापस नहीं आ पाता। दो दिन बाद ही शोभा की शादी थी।वो उसे पाने की हर कोशिश कर लेना चाहता था।बिना एक पल भी व्यर्थ गंवाए कृष्ण शोभा के घर की ओर चल पड़ा।


क्या हुआ कृष्ण जब शोभा के घर पहुंचा? पढ़े अगले भाग में ।


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