Neerja Pandey

Tragedy

3  

Neerja Pandey

Tragedy

नैना अश्क ना हो... भाग 6

नैना अश्क ना हो... भाग 6

5 mins
264


नव्या ने अपने आंसू पोछ लिए थे, क्योंकि शाश्वत नहीं चाहता था कि वो रोए या उसकी आंखों में आंसू का एक कतरा आए, पर पर दिल में अंदर तक रची - बसी उसकी यादें नव्या को जीने नहीं दे रही थी। जब भी सोने के लिए अपनी आंखें बंद करती,

"शाश्वत का हंसता हुआ चेहरा उसके सामने आ जाता।"

 नव्या चौंक कर बैठ जाती।  

        

किसी तरह सो भी जाती, तो भी उसे सपने में शाश्वत ही दिखाई दे रहा था। इधर नव्या का हाल बेहाल... था तो उधर शाश्वत के मां की हालत ऐसी हो गई थी कि उन्हे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो अपने बेटे के लिए रोएं, उसकी शहादत पर गर्व करे या नव्या को दिलासा दे। शाश्वत के पिता का दर्द तो नाकाबिले बयां था। एक तो उनका बेटा "शहीद हो गया था" ऊपर से ये मीडिया वाले लगभग रोज ही इन्टरव्यू के लिए घेरे रहते, वो ठीक से बेटे के जाने का मातम भी नहीं कर पा रहे थे। 


साक्षी तो नव्या को एक पल भी अकेला नहीं छोड़ती थी। हमेशा चहकने वाली, नव्या को बिल्कुल गुमसुम देख उसका दिल बहलाने का प्रयास करती।

आज एक महीना पूरा होने को आया। शांतनु जी, पत्नी नव्या और साक्षी को लेकर मन्दिर जाना चाहते थे। वो शाश्वत के आत्मा की शांति के लिए गरीबों को भोजन करा कर, कुछ दान देना चाहते थे। जब नवल जी को मंदिर जाने के बारे में पता चला तो, वो बोले मैं भी साथ चलूंगा। सुबह ही नवल जी गायत्री, के साथ आ गए।

पूरी तैयारी हो चुकी थी। साक्षी, नव्या को भी लेकर ड्राईंगरूम में आई। गायत्री ने नव्या को देखा तो उठ कर खड़ी हो गई। और आगे बढ़ कर नव्या को सीने से लगा लिया। उसके गालों पर हाथों से सहलाते हुए, हिम्मत देने का प्रयत्न किया।


सभी लोग मंदिर पहुंच गए। एक एक करके सारे लोग अंदर जाने लगे, पर नव्या की हिम्मत नहीं हो रही थी अंदर जाने की। उसकी आंखों के आगे, उसका और शाश्वत का मन्दिर आना " जिस दुकान में, प्रसाद और फूल - माला लिया था, शाश्वत ने सब कुछ चलचित्र की भांति आंखों के आगे घूम गया। 

उसके पैर शक्तिहीन होकर जवाब देने लगे। साक्षी ने सहारा दिया और मंदिर के अंदर ले आई। वहां मौजूद गरीबों को भोजन कराया जाने लगा।

परंतु नव्या का दिल यहां नहीं लग रहा था। उसने साक्षी को साथ लिया, मंदिर के पीछे बहती नदी की सीढ़ियों पर आ कर बैठ गई।

शाश्वत के कहे शब्द, उसके मनोमस्तिष्क में अक्षरशः घूम रहे थे। उसकी दो ही ख्वाहिश थी, एक देश सेवा करना और दूसरा नव्या के साथ जिंदगी बिताना। दोनों ही अरमान उसके पूरे हो गए थे। देश की खातिर शाश्वत ने सर्वाेच्च बलिदान दिया था।


सहसा ही नव्या को ये ख्याल आया कि शाश्वत का पहला प्यार देश था। जब तक ईश्वर ने मौका दिया। उसने जी जान लगा कर देश की सेवा की। फिर अंत में अपने प्राणों की परवाह न करते हुए, आतंकी हमले को ना कामयाब कर दिया। वरना, उस दिन आतंकियों का इरादा पूरी चौकी को ही ब्लास्ट करने का था। शाश्वत ने अपनी बुध्दिमता का परिचय देते हुए गुप्त रूप से मदद बुला ली थी। अगर वे कामयाब हो जाते तो बहुत सारे सैनिक मारे जाते। यही पर शाश्वत ने नव्या का साथ मांगा था और जीवन भर साथ रहने का वादा किया था। क्या हुआ जो, शाश्वत बहुत कम समय देश की सेवा कर पाया। एक संकल्प लिया नव्या ने, शाश्वत की इच्छा को मैं पूरा करूंगी। हां, मैं उनकी इच्छा पूरी करूंगी। सामने धुँधली दिखती नदी अब साफ दिख रही थी। नव्या ने अपने आंख में आए आंसुओं को पोंछ डाला था। मन में निश्चय कर वो उठ खड़ी हुई। साक्षी को साथ लिया और जहां सब को खाना खिलाया जा रहा था, वहां आ

 गई। सब के साथ वो भी सबको आग्रह के साथ खाना खिलाने लगी। उसे शाश्वत खुद के अंदर महसूस हो रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो बिछड़ा ही नहीं है। उसमें आए परिवर्तन को सब महसूस कर रहे थे। सब कुछ निपटा कर शांतनु जी सब को लेकर वापस लौट लिए।


घर आकर सब आराम से बैठ गए। शांतनु जी ने नौकर  बहादुर को आवाज दी कि सब के लिए चाय बना कर लाए। जब तक बहादुर चाय बना कर लाता सब खामोशी से बैठे रहे। नवल जी ने सकुचाते हुए कहा, शांतनु जी आप बुरा ना माने तो मैं आपसे एक निवेदन करना चाहता हूं।

 शांतनु जी तुरंत ही बोले, हां- हां नवल जी संकोच मत करिए, हम एक ही परिवार है। जो भी मन में हो कह दीजिए। इतना सुनकर थोड़ा हौसला मिला नवल जी को। वो बोले,"नव्या की मां कुछ दिनों के लिए नव्या को अपने साथ रखना चाहती हैं। जगह बदलने से नव्या के मन को थोड़ा सा सुकून मिल जाएगा।

शांतनु जी ने कहा, हां बिल्कुल ले जाइए। इसको कहने में इतना संकोच करने की क्या जरूरत थी। आप ठीक कह रहे है। माहौल बदलना जरूरी है, नव्या बिटिया के लिए। नव्या जो खामोश बैठी सब सुन रही थी, बोली " हां पापाजी आप ठीक कह रहे है, शाश्वत के बिना अब मेरा इस घर पर अधिकार खत्म जो हो गया है। मैं चली जाती हूँ।"

इतना कह कर नव्या उठ कर जाने लगी। शांतनु जी जल्दी से उठ कर नव्या के पास गए और उसे गले लगा कर जोर- जोर से रोने लगे। रोते हुए बोले, "बिटिया तूने ये कैसे सोच लिया कि शाश्वत नहीं है तो तुम्हारे सारे अधिकार खत्म हो गए।" मैं तो तुम्हारे भले की सोच कर कह रहा था। अगर तुम नहीं जाना चाहती तो मत जाओ। तुम्हारे जाने से घर सूना ही हो जाएगा। शाश्वत से शादी के बाद मैंने तुझे अपनी बेटी के रूप में देखा था, पर अब तू मेरी बेटी नहीं है। तू तो ...मेरा बेटा है बेटा...। हां.… तू तो मेरा शाश्वत है मेरा शाश्वत....कहते शांतनु जी नव्या को गले लगा कर रोने लगे। नव्या भी रोते हुए कह रही थी, हां पापाजी मैं आपकी बेटी नहीं बेटा हूं। शाश्वत जो जिम्मेदारी छोड़ कर गए है उन्हें मैं बेटा बन कर पूरा करूंगी। मैं आपकी शाश्वत हूं।


इतना करुण दृश्य देखकर सभी की आंखे भीग गई। गायत्री जी नव्या के पास जा कर उसे चुप कराते हुए बोली, हाँ बेटा तू अपने घर में ही रह और शाश्वत बन कर अपने फर्ज पूरे कर, हमारा जब भी मन करेगा हम आकर मिल लेंगे, या फिर तू अपने परिवार के साथ आना।


क्या हुआ जब शांतनु जी को नव्या के देश सेवा के लिए गए फैसले के बारे में पता चला????????


   पढ़िए अगले भाग में।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy