सतरंगी
सतरंगी
आज देव का लॉ कॉलेज में पहला दिन था। जोश से भरपूर कृष्ण की दिली इच्छा थी लॉ के इस मंदिर में पढ़ने की। उसका एडमिशन तो मेन कैंपस में भी हो जाता पर वो लॉ के द्रोणाचार्य माने जाने वाले प्रोफेसर एम.पी. तिवारी से इतना प्रभावित था कि वो ए. डी.सी. में ही एडमिशन लेने का निश्चय कर चुका था। देव की जीवन यात्रा का ये सिर्फ एक पड़ाव भर था। वो लॉ करने के बाद पीसीएसजे की परीक्षा में बैठना चाहता था। उसका इरादा सिर्फ परीक्षा में बैठने का नहीं था, बल्कि वो पूरा निश्चय कर चुका था कि उसे पहली बार में ही सफल भी होना है।
कॉलेज का पहला दिन तो सब से परिचय में ही बीत गया।
थी।
था। आप कहीं और बैठ जाती... तो अच्छा होता ! पीछे से ठीक से समझ नहीं आएगा।"
वो लड़की सरकती हुई उसके लिए जगह बना दी। फिर बोली,"मुझे भी तो पढ़ना है, आप यहीं बैठ जाइए साथ में पढ़ लेंगे। "
नाम तो बता दीजिए कम से कम हमें।साथ बैठने का सुख ना सही कम से कम नाम सुन कर ही अपना कलेजा ठंडा कर लें। "कह कर अपनी नोटबुक कृष्ण के पीठ पर मारी।
पता , "मैंने पूछा ही नहीं" पर कोई भी ये मानने को तैयार नहीं था।
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