सतरंगी
सतरंगी
तीन चार दिन गुरुजी नहीं आए। पांचवे दिन आए तो जैसे ही शोभा ने शुरू किया फिर खासी आने लगी । तभी कृष्ण भी आ गया। उसे खासते देख बोला "कोई लापरवाही नहीं चलो डॉक्टर के यहां। " शोभा जाने को तैयार नहीं थी कही कि सीरप पी लूंगी तो ठीक ही जाएगा। पर कृष्ण ने एक ना सुनी । गाड़ी बाहर निकाल कर शोभा की प्रतीक्षा करने लगा। मजबूरी में शोभा को जाना ही पड़ा।
डॉक्टर ने देखा,"बोला कोई खास बात नहीं दवा लिख दे रहा हूं आराम हो जाएगा। "
पन्द्रह दिन कि दवा लिखी थी डॉक्टर ने। हर दिन ये सोचा जाता की आज आराम हो जाएगा । पर आराम नहीं हुआ।
आज फिर कृष्ण उसे लेकर दूसरे डॉक्टर के पास गया। उसने भी कुछ खास नहीं बताया । बस बोला सूखी खासी है ,ठीक हो जाएगा।
पन्द्रह दिन और बीत गए । कोई आराम नहीं हुआ।
अब कृष्ण इंतजार करने को तैयार नहीं था। विभा को बच्चों के पास उन की देख रेख के लिए छोड़ , खुद शोभा को ले मुंबई में माधव के पास चला आया। माधव मुंबई में ही गवरमेंट हॉस्पिटल में कार्यरत था, और परिवार सहित यही रहता था।
माधव ने सबसे पहले शोभा की सारी जांच करवाने का फैसला किया।
दो दिन लगे इस लैब से उस लैब दौड़ धूप कर जांच करवाने में।
कुछ रिपोर्ट तो तुरंत मिल गई । जो नॉर्मल थी। कुछ रिपोर्ट दो दिन बाद मिलनी थी।
आज सारी रिपोर्ट आनी थी। माधव ने कहा कि वो रिपोर्ट ले लेगा। जैसा भी होगा उसे फोन पर बता देगा । पर कृष्ण को इतना सब्र नहीं था । बोला "बैठ के ही क्या करूंगा ? जाता हूं थोड़ा घूम भी लूंगा और रिपोर्ट भी ले आऊंगा।"
साथ शोभा को ले पहले घूमने गया। काफी समय हो गया था जब दोनों इस तरह घूमने निकले हों। सीधा वो दोनों मरीन ड्राइव गए । वहां समंदर की लहरों को देख फुरसत के पल बिताए।
उसके बाद सीधा हॉस्पिटल जा कर रिपोर्ट लिया। कृष्ण जब रिपोर्ट लेकर डॉक्टर के पास गया तो डॉक्टर ने रिपोर्ट ले कर कुछ पल देख फिर उठ कर अंदर चले गए। वहां जाकर माधव को फोन कर रिपोर्ट की जानकारी दी," डॉक्टर माधव आपकी भाभी की रिपोर्ट लेकर आपके भैया आए है, उसमें कुछ भी ठीक नहीं है। मैं आपको भेज दे रहा हूं आप खुद ही देख लीजिएगा। "
माधव ने डॉक्टर से कहा कि, "भाभी को ना पता चले । आप इस बात को ध्यान रखिएगा। भैया से से अकेले में रिपोर्ट के बारे में बात करिएगा। प्लीज डॉक्टर....।"
"ओके डॉक्टर माधव कोई बात नहीं मैं इस बात को खयाल रक्खूंगा कि आपकी भाभी को पता ना चले ,रिपोर्ट के बारे में।"
इसके बाद डॉक्टर केबिन में आए और नर्स से बोले कि, "मैडम को ले जाओ ब्लडप्रेशर, हार्ट बीट और वेट ले लो।"
नर्स शोभा को लेकर चली गई।
डॉक्टर ने कृष्ण से कहना शुरू किया, " सर अब मैं आपको क्या बताऊं ....?"
डॉक्टर को कहने में झिझकते देख कृष्ण घबरा गया।
" डॉक्टर साहब जो भी बात हो प्लीज मुझे जल्दी बताइए।" कृष्ण बेचैनी से बोला।
"सर मैडम को सेकेंड स्टेज कैंसर है। वो किडनी से लेकर उनके आधे लंग को प्रभावित कर चुका है। जल्द से जल्द मैडम का किमो शुरू करना होगा। "
"सर अक्सर ऐसा होता है कि पेशेंट अचानक इस बीमारी के बारे में सुनकर अपनी हिम्मत हार देता है। फिर दवा या कोई भी ट्रीटमेंट अपना असर नहीं दिखा पाता। इस लिए जब तक हो सके आप मैडम को इस बारे में ना ही बताए तो अच्छा होगा। मैं आपको किमो के पहले होने वाले सारे टेस्ट के लिए लिख देता हूं । कल आप मैडम को लेकर आ जाइएगा। मैं सारे इंतजाम करवा दूंगा।"
किंकर्तव्य मूढ़ सा कृष्ण बैठा रह गया । ये खबर उसके होश उड़ाने के लिए काफी था। वो समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या करे?
जब दूसरे पेशेंट ने आकर डॉक्टर से बात करना शुरू किया तो कृष्ण को एहसास हुआ कि डॉक्टर का वक्त बहुत कीमती है। उसने बहुत ज्यादा वक्त ले लिया।
कृष्ण "ठीक है डॉक्टर साहब " कहता हुआ उठ कर जाने लगा।
"सर हौसला रखिए आपको मैडम को भी संभलना है।" जाते हुए कृष्ण से डॉक्टर ने कहा।
"हां",में सर हिला कृष्ण केबिन से बाहर चला गया।
अब तक नर्स डॉक्टर का बताया सारा टेस्ट करके शोभा को बाहर बैठा गई थी।
शोभा बेसब्री से कृष्ण का इंतजार कर रही थी।
उसे देख पूछा, "कहां रह गए थे ? बहुत देर कर दी ..... । क्या कहा डॉक्टर ने? "
"कुछ नहीं बस कल बुलाया है , कुछ टेस्ट करवाने है।" कृष्ण बोला।
"तो तुम इतना परेशान क्यों हो...?" शोभा बोली।
"कुछ नहीं बस थोड़ा सा थक गया हूं, भूख भी लग आई है । चलो... घर चलें ।" कृष्ण ने कहा।
इधर माधव भी सारे रिपोर्ट देख चुका था। भाभी की बीमारी का जान कर वो भी बहुत परेशान था ।
कृष्ण शोभा के साथ घर आया । माधव की पत्नी भी डॉक्टर थी। वो कुक को सारा कुछ समझा कर गई । इस कारण कुक ने उनके पहुंचने पर खाना लगा दिया। कृष्ण से खाया ना गया। पर वो बैठा रहा कि शोभा ठीक से खा ले।
दूसरे दिन सुबह दस बजे से ही टेस्टों का दौर चल पड़ा कभी ये टेस्ट तो कभी वो टेस्ट। शोभा समझ नहीं पा रही थी कि आखिर उसे ऐसा क्या ही गया है जो इतने टेस्ट करवाए जा रहे है ! कई टेस्ट ऐसे थे जो काफी दर्द देते थे। उनके बाद शोभा बेहाल हो जाती।
आखिर में किमो के लिए कैंसर के सबसे बड़े टाटा इंस्टीटयूट में जाना पड़ा । पढ़ी लिखी शोभा इतनी अनजान ना थी कि समझ ना पाए कि उसे यहां किस लिए लाया गया है !
पर अगर कृष्ण नहीं चाहता कि वो जाने तो वो अनजान ही बनी रहेगी।
कृष्ण ने उससे कहा था कि उसे चेस्ट इन्फेक्शन है। उसका सबसे बेहतर इलाज यहां होता है। इसलिए उसे यहां लाया है।
किमो शुरू हो गया । माधव की वजह से सारे डॉक्टर स्पेशल ट्रीटमेंट की व्यवस्था कर देते। कहीं भी उन्हें इंतजार नहीं करना पड़ता।
वहां विभा बच्चों की देख भाल कर रही थी ,इस कारण बच्चों की कोई चिंता नहीं थी।
इलाज का दौर पूरा हुआ । अब तीन महीने बाद डॉक्टर ने फिर बुलाया था।
कृष्ण को भी कोर्ट जाना जरूरी हो गया था । आखिर कब तक छुट्टियां लेता !
कृष्ण ने विभा को सब कुछ बता कर उसका सहयोग मांगा था। उसके घर वाले भी अच्छे थे । इस कारण शोभा के वहां रहने पर कोई एतराज़ नहीं करते थे।
वो दोनों घर आ गए । बीमारी की बात सुन कर कृष्ण के माता पिता, शोभा के माता पिता बहनें ,कृष्ण की बहनें सभी बारी बारी से आए।
शोभा की तबियत अब ठीक थी। कुछ अंतराल के बाद उसे दिखाने जाना होता था।
अल्प वय में ही समीक्षा समझदार हो गई । मौसी ने उसे सब कुछ समझ दिया था। अब फिर कृष्ण का तबादला होना था। इस बार उसने स्पेशल रिक्वेस्ट पर की पत्नी बीमार है बनारस में अपनी पोस्टिंग करवा ली। अब तक पिताजी रिटायर हो गए थे। वो गांव में रहते थे। बहू की बीमारी ने उन्हें तोड़ दिया था। एक दिन अचानक उन्हे ब्रेन स्ट्रोक हुआ और वो चल बसे। मां घर पे अकेली हो गई। वो कृष्ण के पास ही बनारस आ गई।
अब शोभा का इलाज बी एच यू में होने लगा। समीक्षा की पढ़ाई भी बी एच यू में होने लगी।
पर आखिर कब तक दवा और बेहतर देख भाल के सहारे शोभा की हालत स्थिर रहती। उसकी स्तिथि दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी। अब वो बस अपने नित्य कर्म ही कर पाती । उसमें भी हाफने लगती।
समीक्षा का ग्रेजुएशन पूरा हो गया था । वो पीजी के साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रही थी। शोभा अपने लाड़ले बच्चों को देखती तो आंखो को बरसने से ना रोक पाती। कितने ख्वाब सजाए थे इन बच्चों के लिए । उन्हें अपने पसंद का वो सब कुछ देगी । चाहे वो जौब हो या जीवन साथी । वो अपने जिगर के टुकड़ों के जीवन का कोई भी महत्वपूर्ण पल नहीं देख पाएगी। वो जब भी अपने गहने देखती थी पहले सोचती ये हार समीक्षा का होगा , ये जड़ाऊ कंगन मैं शेखर की बहू को दूंगी। अपने सारे गहने आधे आधे दोनों बच्चों में बाट दूंगी।
जब भी समीक्षा को देखती सोचती दुल्हन के वेश में वो कैसी लगेगी ?
एक दिन कोर्ट से आने पर वो कृष्ण से बात नहीं की। उसे देख मुंह फेर कर लेट गई। कृष्ण पास बैठ कर माथे पर हाथ फेरते हुए बोला, " मुझसे कोई ग़लती हो गई शोभा ! नाराज़ हो क्या जो मुंह फेर लिया?" साड़ी के पल्लू को मुंह में लगा जबरन अपनी रुलाई रोक शोभा ने सिर्फ ना में सर हिलाया।
पर कृष्ण कहां मानने वाला था ! "इधर मुंह करो। मुंह क्यों फेरा हुआ है ?"
कह कर शोभा का चेहरा अपनी ओर घुमा लिया।
शोभा फफक पड़ी। गले लग कर रोते हुए बोली, "कृष्ण मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो...। मैं समीक्षा को दुल्हन बने देखना चाहती हूं। मेरी बस ये इच्छा पूरी कर दो। मैं चैन से आखिरी सांस ले सकूंगी।"
"मेरी प्यारी शोभा आज तुम्हें क्या हो गया है..? तुम्हें कुछ नहीं होगा तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी । ज्यादा तकलीफ़ है! डॉक्टर के पास ले चलूं !" शोभा के चेहरे से आंसुओं को पोंछते हुए बोला।
"नहीं में सब जानती हूं , मैं ठीक नहीं हो सकती! बस तुम मेरी ये इच्छा आखिरी ख्वाहिश समझ कर पूरी कर दो। " अपना सर कृष्ण के कंधे पर टिका कर बोली।
"पर शोभा अभी वो पढ़ रही है।" कृष्ण ने कहा।
" नहीं .. वो शादी के बाद भी पढ लेगी। " शोभा ने कहा।
शोभा को कुछ आभास था कि समीक्षा किसी लड़के को पसंद करती है, पर बात कितनी गंभीर है ये उसे नहीं पता था।
" ठीक है मैं समीक्षा से बात करता हूं।"। कह कर कृष्ण ने दिलासा दिया।
रात के खाने के बाद कृष्ण ने समीक्षा को बुला कर सारी बात की और उससे उसकी पसंद के बारे में पूछा ।
समीक्षा ने सब सच सच बता दिया कि मां की बीमारी की वजह से ये बात आप सब को नहीं बताई। वो यहीं एसडीओ की पोस्ट पर कार्यरत है। कृष्ण ने उसे घर लेकर आने को कहा।
समीक्षा रौशन को घर लेकर आई । कृष्ण और शोभा को तसल्ली थी कि बेटी ने एक अच्छा और समझदार जीवनसाथी चुना है। रौशन बहुत ही सम्मान पूर्वक उन दोनों से मिला।
शोभा की बीमारी को देखते हुए शीघ्र ही विवाह की तारीख निकली गई।
खास खास मेहमानों के उपस्थिति में विवाव संपन्न हो गया। आज शोभा की मन की मुराद पूरी हो गई थीं। दुल्हन के वेश में सजी समीक्षा को वो मन भर कर निहार लेना चाहती थी।
मद्धिम स्वर में एक विवाह गीत शोभा ने गया। उसका अरमान था कि बेटी के विवाह में जी भर कर गाने गाएगी । ज्यादा तो नहीं पर एक गीत गाकर उसने मन की मुराद पूरी कर ली थी। उस बीमारी की हालत में भी जिसने भी उसके गाने को सुना बिना प्रशंसा के नहीं रह पाया।
गले लगा कर समीक्षा जो जी भर कर दुआएं देकर शोभा ने विदा किया।
रोती हुई समीक्षा मां को छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी पर आखिर जाना तो था ही।
अब शोभा के चेहरे पर एक असीम शांति की झलक थी । उसने अपना सबसे बड़ा अरमान पूरा कर लिया था। जाना तो आखिर सभी को है एक दिन ।
उसकी हालत तेजी से गिरने लगी। अधिकतर कृष्ण छुट्टियों पर ही रहता।
अब वो अपने निजी काम भी नहीं कर पाती थी। कृष्ण ने नर्स लगाई थी पर सिर्फ उसके गैरहाजरी में ही वो शोभा की देख भाल करती थी। जब कृष्ण होता तो उसके सारे काम खुद करता।
कभी - कभी शोभा रोने लगती और कहती , "आप मेरे पति हो... । मैं आपसे अपने ये सब अपनी क्या सेवा करवा रहीं हूं? मुझे भगवान कभी माफ नहीं करेगा। मैंने तुमको परेशान कर दिया है।"
कृष्ण रुंधे स्वर में बोला, " शोभा तुम मेरी आंखों के सामने रहो । बस तुम्हारी सांसें चलती रहें , मैं सारी जिंदगी यूं ही तुम्हारी सेवा करता रहूंगा , वो भी बिना उफ़ किए। बस... शोभा तुम मेरी आंखों के सामने रहो।"
समीक्षा की शादी के साल पूरा होते होते शोभा का आखिरी वक्त आ गया।
जीना तो अब कृष्ण भी नहीं चाहता था। पर बच्चों के लिए उसे जीना ही था।
सौम्य और शेखर को वो किसके भरोसे छोड़ता !
उन्हे एक अच्छा भविष्य देना भी तो कृष्ण की जिम्मेदारी थी।
शोभा ने वादा किया कि वो भले ही शरीर से कृष्ण के साथ ना रहे। पर वो हमेशा उसके साथ रहेगी।
जिस वसंत में वो मिले थे उसी वसंत में शोभा ने इस जहां को अलविदा कह दिया।
कृष्ण ने अपनी आंखों से आसूंओं को नहीं बहने दिया। उसने कभी नहीं महसूस किया कि अब शोभा उसके साथ नहीं है। अब भी नौकर सुबह दो कप चाय बनाता है। एक शोभा का एक कृष्ण का। कोर्ट से आते ही कृष्ण शोभा की तस्वीर को देख मुस्कुराता है.... और पूछता है... "देर तो नहीं हुई शोभा......"
मन के बसंत का कैसे होगा अंत,
जब है तू हर पल मेरे संग।
ना देखे तुझे भले ही ये जहां
पर मै तो देखूं तुझे हर पल
कभी यहां ...... कभी वहां ......❤️

