स्त्रीधन
स्त्रीधन
“श्याम, क्या बात है ? चार-पाँच दिनों से आप परेशान दिख रहे हो !”
“कुछ भी नहीं, ऑफिस में काम बढ़ गया है।”
“मत टालिए, आज आपको सच बताना ही पड़ेगा।”
“जाओ..तंग मत करो, अकेले रहने दो मुझे।”
“अर्रे, आपकी पत्नी हूँ। आपकी समस्या मेरी समस्या है, सच जानकर ही उठूँगी !”
“तो सुनो...चार दिन पहले ही बैंक का एक मैसेज मिला था, मुझे कार का लोन चुकाना है। दो दिनों के अंदर दो लाख रूपये जमा करने हैं मुझे ... दिमाग काम नहीं कर रहा है। कहाँ से इतनी भारी रकम ...
“आपसे कितनी बार बोली, दिखावे पर मत जाइए। जीवन में संतुलन जरूरी है। जितनी चादर हो ,उतना ही पैर पसारिये पर सुनता कौन है, दिखावे का भूत आपके सर चढ़ बोलने लगा। क्या जरूरत थी महंगी कार और फर्नीचर खरीदने की ?
पांच साल की नौकरी हो गई आपकी। बैंक में सिर्फ खाता है, जमा के नाम पर कुछ भी नहीं। दो बच्चे हैं हमारे, पहले उनका भविष्य है ! और..आप दिखावे में कर्ज पर कर्ज ...
“ज्यादा चिल्लाओ मत, एक तो मैं परेशान हूँ...ऊपर से तुम्हारा लेक्चर ! मेरी समस्या है, मुझे अकेले ही निपटना है ” श्याम के स्वर में परेशानी साफ़ झलक रही थी।
उनकी नजरों में नजरें डालकर देखी, वो बहुत बेचैन दिख रहे थे। मैं बेडरूम गई और झट से एक पोलोथिन उठाकर ले आई।
“ये लीजिये और इसे बेचकर अपना ऋण चुकता कीजिये।”
“ अरे...तुम्हारा दिमाग खराब तो नहीं हो गया ? इतने सारे गहने ! सब तुम...हा..रे.. हैं !” श्याम... हतप्रभ, पोलोथिन के अंदर झांकते हुए बोले।
“ हाँ..है, तो ? यह मेरा स्त्रीधन है। इस पर निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ मेरा है।”
“मैंने अपनी कमाई से तुम्हें नाक का एक बूटा भी बनवाकर नहीं दिया। आज तक सारे पैसे ऐशोआराम पर फेंकता रहा,और तुम..अपने सारे गहने !
पोलोथिन पकड़ते हुए श्याम धम्म से जमीन पर बैठ गया।”
उसकी आँखों से आँसुओं की बूंदें मोती की तरह जमीन पर बिखरने लगी।
“आपातकाल में ही स्त्रीधन की सार्थकता है, उठो...जाओ बाजार। मैं अपनी भावनाओं को दरकिनार कर मुस्कुराते हुए बोली, पर मेरी आँखें अपलक पोलोथिन को एकटक देखती रही।
स्त्रीधन...अब बिकने के लिए तैयार हो गया।