सत्रह घोड़े

सत्रह घोड़े

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हमारे गाँव में एक आदमी मर गया। अपने बेटों के नाम उसने ऐसी वसीयत छोड़ी:

बड़े बेटे के लिए अपनी जायदाद का 1/2 भाग छोड़ता हूँ। मँझले बेटे के लिए अपनी जायदाद का 1/3 भाग छोड़ता हूँ, और छोटे बेटे के लिए अपनी जायदाद का 1/9 भाग छोड़ता हूँ। जब यह आदमी मरा तो उसकी जायदाद में बचे थे सिर्फ 17 घोड़े, और उनके अलावा कुछ भी नहीं। अब बेटे 17 घोड़ों को आपस में बाँटने लगे।

“मैं,” बड़े वाले ने कहा, “ सारे घोड़ों का 1/2 हिस्सा लूँगा. मतलब, 17/2 होगा 8 1/2।

“तुम 8 1/2 घोड़े कैसे ले सकते हो?” मँझले बेटे ने पूछा, “कहीं तुम घोड़े के टुकड़े तो नहीं करने वाले हो?”

“ठीक कहा,” बड़े भाई ने उससे सहमत होते हुए कहा, “ बस, तुम भी अपना हिस्सा नहीं ले पाओगे। क्योंकि 17 को न तो 2 हिस्सों में, न 3 में और न ही 9 में बाँटा जा सकता है!”

“तो फिर क्या किया जाए?”

“देखो,” छोटे भाई ने कहा,“ मैं एक बड़े विद्वान आदमी को जानता हूँ, उसका नाम है इवान पेत्रोविच रास्सूदिलोव, वो हमारी मदद कर सकता है। ”

“ठीक है, तो उसे बुला ला,” बाकी दोनों भाई बोले.

छोटा भाई चला गया और जल्दी ही एक आदमी के साथ लौटा, जो घोड़े पर सवार था और एक छोटे से पाईप से कश लगा रहा था।

“लो,” छोटे भाई ने कहा, “ ये ही हैं इवान पेत्रोविच रास्सूदिलोव।”

भाइयों ने रास्सूदिलोव को अपना दुखड़ा कह सुनाया। उसने बड़े ध्यान से उनकी बात सुनी और कहा:

”तुम मेरा घोड़ा ले लो, तब तुम्हारे पास 18 घोड़े हो जाएँगे, फिर तुम उन्हें आराम से बाँट लेना। ”

भाईयों ने 18 घोड़े बाँटना शुरू किया।

बड़े ने लिए 1/2 --- 9 घोड़े,

मँझले ने लिए 1/3 --- 6 घोड़े, और

छोटे ने लिए 1/9 ---- 2 अब भाईयों ने अपने घोड़े इकट्ठा किए. 9+6+2, कुल मिलाकर हुए 17 घोड़े और इवान पेत्रोविच अपने अठारहवें घोड़े पर बैठकर कश लगाने लगा। “तो, खुश हो ना?” उसने भौंचक्के भाइयों की ओर देखा और चला गया ।

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