स्पर्श
स्पर्श
मानसी निढाल सी बीसियों लोगों से घिरी बैठी थी। जब भी कोई नया व्यक्ति अंदर आता समवेत रुदन और तेज़ हो जाता। मानसी को तो समझ मे ही नही आ रहा था ये हुआ क्या।
कुल 25 वर्ष का ही तो था उसका बेटा, सेना में भर्ती के बाद भी उसकी चुहल और खिलंदड़ापन जरा भी कम नही हुआ था। जब भी छुट्टियों में घर आता पूरा गांव उसके साथ ठहाके लगाता । और आज उसके सामने दिवाकर का मृत शरीर था। चार को मार कर मरा था, लोग बड़ी बड़ी बातों से उसके शौर्य का वर्णन करते और फिर वही कलेजा चीर देने वाला रुदन, ---
थक चुकी थी वो भी रोते रोते कभी सेना में ही रह कर बलिदान देने वाले पति को याद करती तो कभी गबरू जवान बेटे का शव---- उफ्फ, कहाँ से हिम्मत लाये?
तभी सेना के ही वस्त्रों में सुसज्जित एक व्यक्ति ने धीरे से उसके कंधों पर हाथ रखा, गर्दन घुमा कर देखते ही उसके आंखों की चमक बढ़ गई, और वो अनायास खड़ी हो गई।
"माँ----", ये संदीप की आवाज थी, दिवाकर के अभिन्न मित्र की---
"मुझे मालूम था तुझे कुछ नही होगा, पता नही लोग झूठ क्यों बोल रहे हैं?"
"माँ----" संदीप ने उसे कसकर अपने बाहुपाश में बांध लिया।
मानसी की आंखों में प्रेम और संतोष दोनो ही दिख रहा था।
सूजी हुई आंखें घिरे धीरे मुंदती जा रही थी, संदीप उसे लिए हुए ही सोफे पर बैठ गया, अब मानसी का सर उसकी गोद मे था, और वो भीग चुकी आंखों से उसके बालों में हौले हौले उंगलियां फिरा रहा था।
मानसी उस स्पर्श के प्यार को महसूस करते हुए निश्चिंत होकर गहरी निद्रा में डूब चुकी थी-------
