beena goyal

Tragedy Inspirational

2.5  

beena goyal

Tragedy Inspirational

सपनों की उड़ान

सपनों की उड़ान

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बात उन दिनों की है जब प्रिया बहुत छोटी थी। वह लड़कों के स्कूल में पढ़ना चाहती थी। पर क्यों...? यह माँ नहीं जानती थी। उसके ख़्वाब उसे उस ओर मानो ले जा नहीं रहे थे बल्कि खींच रहे थे। वो भी पूरी ताकत से, और वो उस ओर खिंचती जा रही थी। वजह थी कि उस समय में केवल लड़कों के स्कूलों में ही साइंस विषय पढ़ाये जाते थे। और वो साइंस पढ़कर कुछ हासिल करना चाहती थी।

गरीबी ने उसे आठवीं तक चुंगी के स्कूल में पढ़ने के लिए मजबूर किया था। स्कूल बदलना था। सदा बाकी के कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को जब भी वह अप -टू- डेट हो लड़के- लड़कियों को स्कूल जाते देखती, उन्हें बातें करते सुनती, तो उसके सपने हिलोरें मारने लगते, पँख फैला उसे उड़ने को उकसाते, पर बाल मन से बस उन्हें देखती रह जाती। चुंगी के स्कूलों का क्या ....? उसे अपने सपने उन्हीं स्कूलों से साकार होते दिखाई दे रहे थे।


नये स्कूल में दाखिले का वक्त आया, माँ से कहा- मैं लड़कों वाले स्कूल में पढ़ना चाहती हूँ। माँ ने झिड़क दिया। पापा ने भी कोई बात नहीं मानी। आखिर माँ ने उसे लड़कों की स्कूल में पढ़ने को क्यों मना किया ? ऐसा क्या कारण था प्रिया यह सोच नहीं पा रही थी। बार-बार उसके मन में यही सवाल उठ रहा था।उसे कई दिनों तक नींद नहीं आई। उसको ऐसा लगने लगा कि जैसे उसकी जिंदगी में कुछ रहा ही नहीं । वह बार-बार अपने मन को समझा देती कि रहने दो प्रिया जब माँ ही नहीं मान रही है तो तुम क्या कर सकती हो। पर मन था कि मान ही नहीं रहा था। आखिर एक दिन उसके सब्र ने जवाब दे ही दिया और काफी सोच समझ के बाद वह माँ से यह सवाल पूछा बैठी- आखिर माँ आप मुझे यह बताओ कि आप मुझे लड़कों के स्कूल में क्यों नहीं पढ़ने देना चाहते? तब माँ ने उसको बताया कि तू तो वैसे भी लड़की है तू पढ़ कर क्या करेगी? तुझे तो पराए घर जाना है ना। मैं तो अपने बेटे को पढ़ाऊंगी। वही मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा। तू तो आज है कल नहीं है। यह बात सुनकर तो जैसे प्रिया की हालत खराब हो गई। उसे माँ से ऐसे विचारों की उम्मीद ना थी। प्रिया अंदर से टूट गई। उसके मन में यह विचार गूंजने लगा कि माँ आज के समय में भी ऐसी सोच क्यों रखती हैं? लेकिन प्रिया की कोई इतनी अच्छी दोस्त भी नहीं थी जिससे वह अपनी बातें कह सकती। अपने दिल का दर्द बता सकती। गरीबी की कारण उसका कोई दोस्त बनना भी पसंद नहीं करता था। इसलिए उसका कोई अच्छा दोस्त नहीं था। 

कुछ समय व्यतीत हो जाने के बाद उसने मन ही मन संकल्प लिया और उसने सोचा कि एक दिन मैं अपनी माँ को कुछ बनकर दिखाऊँगी। लाख विनती करने पर जब उसे अपने सपने टूटते-बिखरते दिखाई दिए तो उसे एक आइडिया आया। इस उम्मीद के साथ कि शायद फॉर्म देखकर ही दोनों मान जाएं और वह स्कूल जा कर एक फॉर्म ख़रीद लाई। परन्तु .....। मजबूरन उसे नवी कक्षा में भी चुंगी के स्कूल में एडमिशन लेना पड़ा। परन्तु कहते हैं ना कि जब इरादे मजबूत हों तो दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती। 

"जहाँ चाह वहाँ राह"। वह खूब मन लगाकर पढ़ती, मेहनत करती। दसवीं में अच्छे नम्बरों से पास हुई। स्कॉलरशिप उसका सहारा बनी और बस ...,उसे उड़ने के लिये आसमान मिल गया। उसने पँख फैला लिये और पा लिया अपनी मंज़िल को। वह एक अच्छी टीचर बनना चाहती थी। और आज एक कॉन्वेंट स्कूल में साइंस की टीचर बनकर अपने सपनों को नया आयाम दे रही है अपने जैसी लड़कियों की मदद कर, उनके सपनों को टूटने-बिखरने से रोक कर। किसी ने ठीक ही कहा है- घायल की गति घायल जाने।


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