कर्फ्यू का सोलहवां दिन
कर्फ्यू का सोलहवां दिन


कभी-कभी मन यह बात सोचने पर मजबूर हो जाता है कि कोरोना वायरस क्या प्रकृति की देन है क्योंकि आज विश्व पटल पर मनुष्य घरों में कैद है सड़के सारी सुनसान पड़ी हुई है पशु पक्षी आराम से सड़कों पर घूम रहे हैं जहां थोड़े दिनों पहले इंसान की भागदौड़ के कारण चिड़ियों की चहचहाट सुनाई नहीं देती थी आज सुनाई देती है देश-विदेश में जानवर सड़कों पर आराम से बिना चिंता के घूम रहे हैं उनको गाड़ियों के नीचे आकर मरने की कोई चिंता नहीं है पार्क में भी जानवरों को खोल दिया गया है जिससे कि वो आराम से घूम सकें और मजे की बात तो एक ही है कि जिस झूले पर बच्चे झूलते थे आज वहां जानवर झूल रहे हैं कैसी विडंबना है न कोरोना वायरस होता ना लोग घरों में कैद होते ना ही यह सब होता ।पता नहीं ऊपर वाले को क्या मंजूर है लगता है प्रकृति मनुष्य की आधुनिकता से बहुत दुखी हो गई थी शायद इसीलिए यह सब हुआ।