कर्फ्यू का सत्रहवाँ दिन
कर्फ्यू का सत्रहवाँ दिन
मन बहुत बेचैन है किसी भी काम में दिल नहीं लगता ना पढ़ने में न खाना बनाने में। अजीब सी बेचैनी हो गई है ऐसा लगता है कि अब जिंदगी खत्म सी हो गई जिंदगी में शायद कुछ करने के लिए बचा ही नहीं।
कहा प्रतिस्पर्धा में ही लगा रहता था कि उसने यह कर लिया तो मुझे भी नहीं करना है क्या इंसान इस अदृश्य कोरोना वायरस के हाथों की कठपुतली है लगता तो ऐसा ही है क्योंकि यह दृश्य अपनी मुट्ठी में दुनिया को कर रहा है।
सारी दुनिया कोरोनावायरस के इशारे पर नाच रही है यह वायरस दुनिया को निकलता ही जा रहा है क्या यह पूरी दुनिया को खत्म कर देगा पता नहीं किसी ने कभी सोचा भी नहीं था कि रामायण और महाभारत द्वारा इस जिंदगी में दोबारादेख पाएंगे यहां तक कि जिन पात्रों ने इसमें रोल निभाया उनको भी यह उम्मीद नहीं होगी।