सपाट दीवारें
सपाट दीवारें
मिटटी से बनी और गोबर से लिपी पुती वे दीवारें बचपन में हमारी दुनिया का एक अहम् हिस्सा होती थी।उन दीवारों में हम सारे बच्चें लुका छिपी का खेल खेला करते थे।हम अपनी ही दुनिया में मस्त रहा करते थे।वे दीवारें हमे इस बड़ी सी दुनिया में महफ़ूज रखा करती थी।
लेकिन जैसे जैसे मैं बड़ी होती गयी,वह गोबर वाली दीवारें मुझे नापसन्द लगने लगी थी।मन ही मन मैं सोचा करती थी की बड़े होकर इन दीवारों को सीमेंट से पक्की और खूबसूरत बनवाएंगे।बड़े होने पर अपनी मसरूफियात में जैसे हम उन दीवारों को भूल भी गए थे।
आज पता नहीं इस खूबसूरत बंगले नुमा घर में बैठ कर यह सब क्यों याद आ रहा है मुझे?इस घर की दीवारें एकदम plain और बेहद खूबसूरत रंगों से सजी,सुंदर और महंगी पेंटिंग्स से संवरी है।
लेकिन ये दीवारें पता नही क्यों मेरे मन में अकेलेपन का अजीब सा ख़ौफ़ और एक अलहदगी का अहसास भर देती है।ये दीवारें है तो एकदम plain लेकिन मुझे बिलकुल सपाट सी लगती है,एकदम disconnected सी......
ना आज माँ है और ना ही उसका वो आँचल है।
उस के हाथों से गोबर से लिपी पुती वे दीवारें अब मै कहाँ से लाऊँ जो मुझ में महफ़ूज होने का अहसास भरती रहती थी?......
ये सीमेंट की पक्की दीवारें आज मुझे अजीब सी लग रही है जो साथ होकर भी मेरे साथ नहीं है ....