Manjula Dusi

Inspirational Tragedy

5.0  

Manjula Dusi

Inspirational Tragedy

सोने के पिजरें से आजादी

सोने के पिजरें से आजादी

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शाम ढलने को थी, डूबते सूरज की लालिमा ने आसमान को अपने आगोश में ले लिया था, पंछी अपने घरौंदों को लौट रहे थे..उनका कलरव मानो किसी मधुर संगीत की भांति कानों में रस घोल रहा था।

निशा हर शाम चाय का कप लिए अपने आलिशान बंगले की छत पर आ जाती थी, बस यही वो पल होता था जब वो खुद जीता जागता सा महसूस करती थी, वरना इतने बड़े बंगले के कीमती, सजावटी और निर्जीव वस्तुओं की तरह ही थी, जो सिर्फ़ बंगले की शोभा और रुतबा बढ़ाने के लिए रखे गए थे और कोई अस्तित्व भी तो नहीं था उसका,कई कंपनियों के मालिक राजीव के पिता और उसके पिता के दोस्त थे,उसके पिताजी को बिजनेस में भारी नुकसान हुआ तो राजीव के पिता जी नें उन्हे कर्ज़ देकर मदद की।

जब उसके पिताजी कर्जा उतारने में असमर्थ हुए तो राजीव के पिताजी ने अपने बेटे के निशा का हाथ माँग कर्जा माफ़ करने की पेशकश की और कोई रास्ता भी तो नहीं था उसके पिताजी के पास, कातर आँखों से विदा किया उसे जानते थे कि अंधेरे कुँए में धकेल रहे हैं अपनी बेटी को, खुद को दोषी मानते रहे और इसी दुख के साथ दुनिया को अलविदा कह दिया, तो बचपन से ही नहीं थी। कोई नहीं था जिससे अपना दुख कहे।

तभी बाहर के शोर ने उसका ध्यान खींचा, बंगले के पास कुछ खाली ज़मीन थी तो कुछ बंजारों ने अपने तंबू लगा लिए थे। एक बंजारन दूसरी के बाल पकड़-पकड़ के पीट रही थी,"तुझे मेरा ही मर्द मिला था रंगरलियाँ मनाने के लिए.तेरा वो हाल करूंगी कि मेरा तो क्या तेरा खुद का मर्द भी ना देखेगा तुझे"

फिर वहीं पास खड़े अपने पति को पीटने लगी,"मुझमें क्या कमी थी जो इस चुड़ैल के पास गया, अबकी देखा ना किसी और को तो आँखें नोच लूँगी

उसका पति माफ़ी माँगते हुए आगे पीछे घूमने लगा, माफ़ करदे रज्जो ग़लती हो गई, मती मारी गई थी मेरी अब ऐसा कभी नहीं होगा रज्जो गुस्से से अपने तंबू में चली गई और उसका पति गिडगिडाता सा उसके पीछे भागा। फिर क्या हुआ ये तो पता नहीं, लेकिन निशा को लगा जैसे रज्जो की जगह वो है, उसके पति की जगह राजीव,और वो दूसरी बंजारन की जगह कभी शीला कभी मीना और कभी सोनिया। काश कि वो भी उनके बाल इसी तरह नोंच पाती, काश कि वो राजीव का कालर पकड़ कर इसी तरह पूछ पाती कि, "उनमें ऐसा क्या है जो मुझमें नहीं है ,काश कि अपने अधिकारों के लिए इसी तरह आवाज़ उठा पाती जो आज तक उसे कभी मिला ही नहीं। उससे लाख गुना बेहतर तो ये अनपढ़ बंजारन है,जो अपने अधिकारों के लिए लड़ना तो जानती है,और वो इतना पढ लिख कर भी कुछ नहीं कर पा रही है, धिक्कार है खुद पर।

सोच ही रही थी कि कि पीछे से घर सम्हालने वाली नैनी ने आवाज़ दी,"मैम पार्टी का टाइम हो रहा है,राजीव सर ने आपको तैयार रहने को कहा है,"मन ही मन कुछ फैसला लेते हुए पलटी, सारे मेहमान आ चुके थे राजीव सोनिया के साथ चिपक-चिपक के डाँस कर रहा था तभी निशा नें हाथ में सूटकेस लिए हाल में प्रवेश किया और दृढ़ आवाज़ में कहा,"राजीव मैं ये घर छोड़कर जा रही हूँ। पिताजी ने जो कर्जा लिया था उसके बदले तुम्हारे साथ बिना कुछ कहे इतने साल गुजार लिए, कुछ बाकी हो तो जाकर पिताजी से ही माँग लेना, राजीव और सारे मेहमान अवाक से खड़े देख रहे थे। दरवाज़े तक गई और फिर पलटी",तुमने तो कभी मुझे पत्नी नहीं माना लेकिन मैंने तुम्हें दिल से अपना पति माना था, इसलिए इतना हक तो बनता है कहते हुए एक झन्नाटेदार झापड़ सोनिया के गाल पर और एक झन्नाटेदार झापड़ राजीव के गाल पर रसीद कर दिया और पूरे आत्मविश्वास से कदम बढ़ाते हुए घर से बाहर निकल गई। जाते-जाते रज्जो को तंबू के बाहर बुलाया और कस के गले लगा लिया, रज्जो को तो कुछ समझ में ही नहीं आया कि इतने बड़े घर की मेमसाहब ने उसे क्यों गले लगाया। लेकिन निशा तो जानती थी जो आत्मविश्वास उसमें आया है वो रज्जो की वजह से ही है, आज उसे सोने के पिंजरे से जो आज़ादी मिली है वो रज्जो की वजह से ही है, रज्जो ने निशा का सोया आत्मविश्वास जो जगा दिया था।


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