सोच बदलो
सोच बदलो
साँची जल्दी-जल्दी खाना बना रही थी क्यूंकि आज उसके ऑफिस में एक मीटिंग थी जिस वजह से उसका टाइम से ऑफिस पहुंचना बहुत ज़रूरी था, तभी उसकी सासु माँ सविता जी रसोई में आई और उससे बोली "तुम सिर्फ अपने लिए रोटी बना कर पैक कर लो, जय के लिये रोटी मैं बना कर पैक कर दूंगी क्यूंकि तुम तो इतनी जल्दबाज़ी में टेढ़ी- मेढ़ी सी रोटियां बना रही हो, जब वो ऑफिस में सबके सामने अपना टिफ़िन खोलेगा, तो उसकी कितनी बेइज़्ज़ती होगी और मेरे लिए भी अभी से रोटी मत बना कर रखना तुम्हारी बनाई हुई रोटी दोपहर तक बिलकुल सख्त हो जायेंगी।"
सविता जी की बातें सुन कर साँची का चेहरा उतर गया। उसने जल्दी से अपना टिफिन पैक किया और अपने कमरे में आ गई। साँची को पता था, जय ने अपनी मम्मी की सारी बातें सुन ली क्यूंकि वो उस समय पानी लेने रसोई में आया था। साँची को इस बात का हमेशा बहुत अफ़सोस होता था की जय अपनी मम्मी को कभी भी कुछ नहीं कहता था चाहे वो साँची को कितना भी भला-बुरा कह दें और साँची से भी घर में शान्ति बनाये रखने की उम्मीद रखता था।
आज ऑफिस में भी साँची का मन उखड़ा-उखड़ा सा रहा।ऑफिस में सबने मूवी जाने का प्रोग्राम बनाया पर साँची ने सबको यह कह कर मना कर दिया कि उसके सर में बहुत दर्द हो रहा है। साँची ऑफिस से घर जाते समय सोच रही थी उसकी और जय की शादी को छः महीने हो गए पर आज तक भी मम्मी जी ने उससे प्यार से बात तक नहीं की। हमेशा उसके काम में नुक्स निकालना।
सबसे ज़्यादा गुस्सा तो उसे जय पर आता था, जो हमेशा बुत बना हुआ सब कुछ देखता और सुनता रहता था। साँची घर पहुंची तो दरवाज़ा खुला देख वो सीधा अंदर घुस गई क्यूंकि जिन आंसुओं को उसने दबा रखा था अपने कमरे में जा कर जी भर कर रो कर उन्हें बाहर निकलना चाहती थी, तभी उसे मम्मी के कमरे में से जय की आवाज़ें आई। उसने सोचा जय आज जल्दी कैसे आ गए। वह अपनी सास के कमरे की तरफ गई की "जय से पूछ लूँ चाय के लिये" अभी वो दरवाज़े पर ही पहुंची थी की उसने सविता जी की ज़ोरदार आवाज़ सुनी "अब तू अपनी बीवी की तरफदारी करेगा। माँ तो तेरे लिए कुछ रह ही नहीं गई, तेरी भी क्या गलती है जब साँची तेरे सारे दिन कान भरेगी तो तुझे तो वो ही सही लगेगी"| जय ने अपनी माँ को समझाते हुए कहा "मम्मी साँची क्यूँ मुझे भड़कायेगी।
आज सुबह भी मैंने आपकी सारी बातें सुन ली थी। आपने उसकी कितनी बेइज़्ज़ती की फिर भी उसने अपने मुंह से एक शब्द नहीं निकाला। पता नहीं आज उसने पूरा दिन ऑफिस में कैसे काम किया होगा।
सविता जी ने तालियां बजाते हुए कहा "वाह बेटा वाह एक तो मैंने सोचा उसके हाथ की टेढ़ी-मेढ़ी रोटी जब तू ऑफिस में खायेगा तो तेरी कितनी बेइज़्ज़ती होगी इसलिए मैंने तेरे लिए टिफ़िन पैक किया और तू मुझे ही दोषी ठहरा रहा है।" जय ने अपनी माँ के कन्धों पर हाथ रखते हुए कहा "माँ ठन्डे दिमाग से सोचो, साँची ने मुझसे भी ज़्यादा पढ़ाई की है, जब मैं पढ़ाई करता था आप हर समय मेरा ख़याल रखती थी। मुझे हिलने भी नहीं देती थी और आप आज भी मेरा उतना ही ख्याल रखती हो पर साँची के हर काम में आप नुक्स निकालती हो। एक बार भी आपने सोचा जब उसने मुझसे भी ज़्यादा पढ़ाई की है तो उसे तो मुझसे भी ज़्यादा मेहनत करनी पड़ी होगी, अपनी पढ़ाई के लिए। उसकी माँ ने भी उसकी पढ़ाई पूरी करने में दिन-रात उसका साथ दिया होगा।वो तो फिर भी घर के सब काम जानती है। मैं जब उसकी मदद करना चाहता हूँ, तो आप मुझे बीवी का गुलाम कहती हो पर एक बार तो सोचो वो भी तो मेरी तरह इंसान है।ऑफिस से तो वो भी उतना ही थक कर आती है, जितना मैं थक कर आता हूँ फिर भी मैं आते ही आराम करता हूँ और वो घर के कामों में लग जाती है। सुबह भी उससे जितना काम हो सकता है कर के जाती है।"
सविता जी ने कहा "तो तू क्या चाहता है, घर के सारे काम मैं अकेले करूँ।"
जय ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा "माँ अब अपनी सोच बदलो, हम सब घर के काम मिल कर करेंगे ताकि किसी एक पर सारा भार ना आये। बर्तन, कपड़े और सफाई के लिए तो मैड है ही, रही खाना बनाने की बात तो सब्ज़ी और सलाद मैं काट दूंगा, टिफ़िन भी मैं पैक कर दूंगा।
सब्ज़ी तो साँची अच्छी बना लेती है, वो सब्ज़ी बना देगी और आप गोल-गोल रोटी बना देना। धीरे-धीरे हम आपसे गोल-गोल रोटी बनाना सीख लेंगे फिर हम आपको गर्म-गर्म रोटी बना कर खिलायेंगे।" सविता जी ने जय को गले लागते हुए कहा "बेटा तूने आज मेरी आंखें खोल दी, वाक़ई हम सबको इस सोच से बाहर आना होगा कि एक लड़की चाहे बाहर के कामों में कितनी ही निपुण क्यूँ ना हो, घर तो उसे अच्छे से सम्भालना आना ही चाहिये। तेरी शादी में सभी रिश्तेदारों ने मुझे इतना भड़का दिया कि काम-काजी बहु है, तुम्हें नौकरानी ना बना दे इसलिए शुरू से ही उसे दबा कर रखना इसलिए मैंने उस बेचारी का शादी से लेकर आज तक कभी ज़रा सा भी ख्याल नहीं रखा पर अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है"| यह सब सुन कर साँची के चेहरे पर मुस्कान तैर गई वो जल्दी से रसोई में गई और सबके लिए चाय बनाने लगी।