संवेदना
संवेदना


समय का ध्यान रखा करो सबका समय कीमती है समय पर हर जगह पहुंचना चाहिए हर कार्यक्रम, हर आयोजन में मगर इसी बातें सुनी व किताबों में ही पड़ी है वास्तव में लोग हर जगह देर से पहुंचते है, कुछ पूछो तो कहते हैं हम इंडियन है नेता देश से आते हैं।
मगर यह मेरे ग्रुप की पहली ऐसी सदस्य लगती है जो चार का मतलब 3.55 पहुंचती हैं वाकई समाज हो या घर ,या खुद को योग्य बनाने की बात ,समय की अहमियत को समझना चाहिए जो बखूबी समझती हैं कविता जी.
न केवल समय बल्कि सबकी भावनाओं को भी समझना चाहिए इसलिए संवेदना का काम शुरू हुआ जिसमें किसी के घर किसी भी तरह का दुख मृत्यु हो तो वहां सेवा में पहुँचती हैं, संवेदना टीम
जाने क्यों रिश्ते उलझे उलझे से लगते हैं
शब्दों के दायरे भी कम से पड़ने लगते हैं
कहने को बहुत कुछ होता है मगर चुप रहना मुनासिब समझते हैं।
कभी-कभी लगता है कि दुनिया बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है और दूसरे ही पर महसूस होता है संस्कार घट रहे हैं बात कुछ समय पहले की है किसी की मृत्यु के बाद पगड़ी रस्म में जाना हुआ, वहां कुछ देर परिवार को सांत्वना देकर लोग आपस में बातें करते हैं कौन सी मूवी लगी है। अरे, सूट अच्छा लग रहा है कहां से लिया, कल किटी में क्या पहनोगी परिवार की बातें, और पुरुष भी आप खरीदी में कब जा रहे हो, व्यापार कैसा चल रहा है। मकान का काम कहां तक पहुंचा, ऐसी बातें करते हैं मुझे बहुत दुख होता है हम किसी की मृत्यु में गए हैं परिवार के लिए प्रार्थना करें सांत्वना दें की फिर वहां ऐसी बातें ? ?
ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मानव की संवेदनशीलता समाप्त होती जा रही है इतनी बेरुखी विचलित करती है।
वह लोग खाली बैठे रहते हैं तो इस तरह की बातें करते हैं इसलिए हमने संवेदना की स्थापना की जिसमें एक निश्चित समय पर लोग पहुंचते हैं और निश्चित समय में जाते हैं और सत्संग होता है और किसी को गले नहीं लगते , कोई भीड़ जमा नहीं होती है। लोग लाइन से जाते हैं। कुछ समय की मेहनत के बाद हमने बदलाव महसूस किया यहां तक कि किसी के मरने पर भोजन खिलाना भी गलत है फिर लोग मिठाइयां पकवान क्यों खाए, निरन्तर प्रयासरत है..कि एक समय आएगा कि जिस लक्ष्य को लेकर संवेदना का प्रारंभ हुआ उसमें सफलता अवश्य मिलेगी।
लोगों के अलग-अलग मत हैं फिर भी हम कोशिश में लगे हैं कि मृत्यु भोज को भी बंद किया जाए सिर्फ परिवार के जो बाहर से लोग आते हैं जो परिवार के लोग उनके लिए ही भोजन बनाया जाए यह परिवार पर एक अनावश्यक बोझ पड़ता है और इस सही भी नहीं लगता ,जब परिवार दुख में वहां पर छप्पन भोग खाएं ।
वास्तव में किसी के जाने का दुख क्या होता है और आर्थिक परेशानी क्या होती मैंने बहुत करीब से महसूस की है। पिताजी बचपन में ही नहीं रहे और मां जब मैं 12 साल की थी, तब मां मुझे छोड़कर ईश्वर के पास चली गई।
भाई भाभी ने प्यार दिया पाला मगर जो प्यार मां-बाप करते हैं जो मां-बाप की कमी होती है वह कभी कोई पूरी नहीं कर सकता जो विशालता मां के हृदय में होती हो बच्चों के लिए होती है वह किसी में कहीं नहीं देख पाते हैं। भाभी की खुद की 5 बेटियां थी फिर भी उन्होंने मुझे प्यार अच्छे संस्कार दिए।
दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त की उस जमाने में ना ज्यादा आज़ादी थी नहीं शिक्षा का महत्व आगे की पढ़ाई जीवन के उतार-चढ़ाव ने सिखा दी
छोटी उम्र में ही शादी हो गई दुनियादारी की समझ नहीं एक सीधी साधारण लड़की ,एक नए माहौल में आकर काफी कुछ बदल गया एक बड़ा सयुंक्त परिवार जिसमें हर उम्र के रिश्ते डरी सहमी सी रहती तेज आवाज़, लोगों का एक अलग तरह का अनुशासन, धीरे-धीरे परिवार ने मुझे समझा यूं कहो कि मैंने ही समझ लिया जीवन कुछ आसान सा हो गया
परिवार में सासू मां अक्सर बीमार रहती जिसके चलते जल्दी चल बसी, उनके जाने के बाद पूरे परिवार की अप्रत्यक्ष जिम्मेदारी मुझ पर आ गई पहले घूंघट प्रथा थी हम कोई निणर्य नहीं लेते थे परिवार का, मगर धीरे-धीरे सब बदल गया सासू मां के जाने के बाद बार-बार ससुर जी से बात करनी पड़ती, खाना देना ,दवाइयां देने ,कभी कोई मिलने आता ,कभी कोई भी रहने आता यह सब हमें ही करना था घुंघट व बिना बात के संभव नहीं था बड़ी सास ( सास की बहन) ने कहा कि अब घुंघट हटाओ, अब तुम घर की बड़ी हो अब मैंने तुम्हें लेने घर के छोटे बड़े हर रिश्ते को तुम्हें निभाना है हर चीज से वहां आना-जाना दुख सुख में लोगों का साथ में देना है परिवार में शादी विवाह लगे रहेंगे और तुम्हें संभालना है अब तुम धीरे-धीरे काम संभालो धीरे-धीरे मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ता गया और परिवार का विश्वास भी मुझ पर, मैंने हर रिश्ते को दिल से निभाया आज भी निभाती हूं मानो यही सच्ची सेवा है।
मेरी जिम्मेदारियां बढ़ती गई और मेरा अपना परिवार भी मेरे दो बेटे और एक बेटी है उन्होंने मुझे हमेशा साथ व सम्मान दिया आज दो बहू भी हैं। और उनके बच्चे भी ,मैंने जो संघर्ष एक बेटी और बहू के रूप में किया मैं नहीं चाहती मेरे बच्चे करें शायद इसलिए बहु को बेटी जैसा ही प्यार अपनत्व देती हूं।
कभी-कभी तो बहू कहती है मेरी सगी मां से भी मैं इतनी बात शेयर नहीं करती जितनी आप से करती हूं , मतलब हम सास बहू का रिश्ता कम और एक दोस्त का रिश्ता ज्यादा है।
कभी-कभी पति कहते हैं तुम क्या थी और तुम क्या बन गई तुम खुद तो सोना बनी और हम सब को भी निखार दिया ।
कुछ सालों से समाज के काम से जुड़ी हूं जहां हर सोच के लोग हैं फिर भी सब समाज को आगे बढ़ता हुआ ही देखना चाहते हैं ।अक्सर लोग पद, प्रसिद्धि की चाह रखते हैं मगर मुझे तो है अपने काम के प्रति समाज के प्रति संवेदना है , इसलिए हर काम दिल से करती हूं, करती रहूँगी। ये मेरा सौभाग्य है कि जो प्यार और विश्वास परिवार से प्राप्त होता हैं वही प्यार और विश्वास समाज से भी मिल रहा है। वास्तव में हम समाज को देते नही उससे लेते है ।