संतोष करना सीखो
संतोष करना सीखो


"क्या सोच रही हो नंदिनी ?" गीत ने पूछा " कुछ नहीं ऐसे ही जाने क्या क्या ख्याल दिमाग में आ रहे " खिड़की से बाहर प्रकृति को निहारते हुए नंदिनी ने कहा.......
गीत को तो नंदिनी ने कह दिया पर उसे पता था गीत कुछ नहीं सुनेगा, उसने कब समझा था नंदिनी को। अब उसे खुद के साथ रहने की आदत हो गयी है और गीत जो उसने शादी से पहले सवाल किया था जिसपर गीत ने आश्वासन दिलाकर उसे विश्वास दिलाया था, वो आज अधूरा रह गया और नंदिनी की बात सच हो गयी थी।
नंदिनी बाहर देखते हुए खाना बनाते हुए अतीत में खो जाती है जब नंदिनी और गीत एक ही ऑफिस में काम करते थे और एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। नंदिनी बहुत ही चंचल और खुश मिज़ाज़ स्वभाव की लड़की थी पर बहुत समझदार भी। बस उस समय इतना सोचती नहीं थी कि क्या सही और क्या गलत। गीत को तो जब नंदिनी पहली बार ऑफ़िस आई थी तब ही पहली नज़र में प्यार हो गया था। पर जब पता चला कि नंदिनी की सगाई होने जा रही है तो प्यार का इज़हार न कर सका। नंदिनी जिसे पसंद करती थी उससे सगाई होने जा रही थी पर अचानक सगाई टूट गयी। जिससे सगाई होनी थी उसने नंदिनी को धोखा दिया। अब नंदिनी उदास रहने लगी थी। गीत को नंदिनी के करीब आने का मौका मिला।
धीरे - धीरे नंदिनी भी गीत को पसंद करने लगी थी पर डरती थी कि ये फैसला सही होगा या नहीं। नंदिनी बचपन से एक ही सवाल का जवाब ढूंढती आयी थी पर अभी तक जवाब नहीं मिला था। उसने सोचा क्या गीत मेरे सवाल का जवाब दे पायेगा। उसने पूछा "जब हम किसी चीज़ या इंसान को पा लेते हैं तो फिर हम उसकी कदर करना भूल जाते हैं। " तब गीत के जवाब से आश्वासन हो गया कि गीत को चुन कर कोई ग़लती नहीं की उसने।
पर जब शादी हुई तो गीत भी नंदिनी के उस सवाल की तरह हो गया। गीत शादी के बाद अपनी ज़िम्मेदारियों में इतना वयस्त हो गया कि जिसके लिए सब कर रहा था नंदिनी, उसको तो समय देना ही भूल गया था। न तो गीत कभी नंदिनी को फ़ोन करता था न ही वाट्सप पर मैसेज, फेसबुक पर तो उसने नंदिनी को ब्लॉक कर दिया था। वाट्सप प्रोफाइल में तो आज तक गीत ने अपने साथ उसकी तस्वीर तक नहीं लगाई थी। कहता था हमारे घर की औरतें पतियों के साथ नहीं दिखानी चाहिए। इतना ही नहीं ससुराल में तो गीत कभी सोना तो दूर पास बैठता तक नहीं था नंदिनी के साथ।
धीरे -२ नंदिनी की जगह एक गुड़िया जैसी हो गयी जैसे किसी बच्चे को कोई गुड़िया पसंद आई हो और मिलने के बाद उसे घर के एक कोने में फेंक दिया हो और जब मन किया मरोड़ दिया। गीत को बस अब नंदिनी की ज़रूरत खाने के लिए और शारीरिक ज़रूरत के लिए पड़ती थी। गीत उसके साथ कभी किचन के काम में हेल्प नहीं करवाता था और नंदिनी अगर शिकायत करे की वह थक गयी तो गीत कहता था यह तो सब औरतें करती हैं तुम कौन सा अनोखा काम कर रही हो।
नंदिनी ने बहुत संभालने की कोशिश करी लेकिन कुछ न कर सकी। गीत के अंदर संतोष की कमी आ गयी थी। वो जिस किसी चीज़ को पसंद करता उसे वह चाहिए ही होती थी जबकि नंदिनी को जो चीज़ उसके पास थी उसका वो अच्छे से ख्याल रखती थी पर कब तक, आखिरकार नंदिनी ने भी गीत से बात करना कम कर दिया।
अचानक गीत ने आवाज़ लगाई तब नंदिनी का ध्यान भांग हुआ। जब भी गीत पूछता कहाँ खोयी रहती हो तो नंदिनी बस यह कहके टाल देती कि कुछ नहीं ऐसे ही। क्या कहती और कैसे कहती कि अब उसे गीत से प्यार या नफरत जैसा कुछ नहीं है।
दोस्तों हमसब को भी जो चीज़ हमारे पास है उसकी कदर करनी चाहिए.. वरना कब वो चीज़ या इंसान हमसे दूर हो जाए हमें पता नहीं चलेगा... इसलिए संतोष करना सीखें।