संस्कारी बहु
संस्कारी बहु
"अगर मां होती तो कुछ संस्कार भी सिखाती, मैंने तो नीता से बात करने के लिए भी अपनी बेटी को मना कर रखा है। नीता के भाग कर शादी करने की वजह से हमारी लड़कियां भी बिगड़ जाएंगी।"
नीता के फ्लैट के थोड़ी ही दूर पर बहुत सी औरतें इकट्ठा होकर नीता के विषय में बातें कर रही थीं कि तभी भावना जी भी बाहर निकलकर उन खड़ी हुई औरतों पर बरस पड़ी| "खबरदार जो मेरी बहु के बारे में कुछ भी कहा तो। अपने बच्चों पर विश्वास नहीं है तो मेरी नीता पर क्यों लांछन लगाते हो? तुम उसके संस्कार के बारे में क्या जानो? देवी है मेरी बहू तो!"
यह सब सुनकर दुकान पर जाते हुए दूर निकल गई नीता को अपनी सासूमां पर बहुत प्यार आया। बस में बैठ कर दुकान पर जाते हुए पुरानी बातें आंखों के सामने नाच रही थीं। मां की मृत्यु के समय नीता केवल 11 बरस की ही थी और भाई 5 बरस का। पापा खाना बनाकर देते थे, लेकिन क्योंकि वह एक कंपनी की गाड़ी चलाते थे तो कई बार उन्हें अपने साहब के साथ कुछ दिनों के लिए भी बाहर जाना पड़ता था। धीरे धीरे छोटी उम्र में ही नीता घर का काम करना और भाई का भी ख्याल करना सीख गई थी। पापा जब भी बाहर जाते तो उनका ख्याल था फ्लैट में रहने वाले सोसायटी के लोग उनके बच्चों का ख्याल रख लेंगे लेकिन 11 वर्ष की उम्र में नीता बहुत सुघड़ गृहिणी बन चुकी थी।
दोनों भाई बहन घर के बाहर ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। कुछ साल पहले कंपनी बंद होने के कारण पापा की भी नौकरी छूट गई थी। निराशा और आर्थिक तंगी के समय नीता बहुत हिम्मत से उठी और घर से थोड़ी दूर मार्केट के साड़ियों के बड़े से शोरूम में उसने नौकरी करना शुरू की। पांचवी के बाद भाई को भी प्राइवेट स्कूल में डलवा दिया गया। पापा भी घर घर जाकर सेल्समैन का काम कर लेते थे। डिप्रेशन और टेंशन के कारण जब कभी पापा का ब्लड प्रेशर बहुत बड़ जाता था तो नीता पापा को सांत्वना ही देती थी। घर के और बिट्टू की पढ़ाई के खर्च के कारण घर में कुछ नहीं बचता था नीता की शादी के बारे में सोच कर ही पापा परेशान हो उठते थे।
राजू भी उसी साड़ी की दुकान में काम करता था और मालिक अक्सर उसे सूरत ,भागलपुर, बनारस साड़ियों के सिलसिले में भेजते ही रहते थे। उस दिन जब मालिक ने राजू को 3 दिन की छुट्टी देने को मना करा तो राजू बेहद परेशान था। मालिक उसे बनारस भेजना चाहता था और राजू छुट्टी चाहता था। नीता के पूछने पर राजू ने बताया कि उसकी मां की तबीयत बहुत खराब है। उसकी सारी कमाई मां की दवाइयों में ही खर्च हो जाती हैं। कुछ समय पहले माता जी को अस्थमा और आर्थराइटिस का अटैक पड़ा तो उनकी लगभग सारी जमा पूंजी अस्पताल में ही खर्च हो गई थी। पापा के मृत्यु के कारण वह भी दसवीं से आगे नहीं पढ़ सका। मालिक ने हीं उसको अपने घर में सोने की जगह दे रखी है, इसलिए वह उसे नाराज नहीं कर सकता। बेहद दुखी मन से वह बोला ना मैं मां का ख्याल रख सकता हूं और ना ही मालिक को खुश रख सकता हूं। तुम्हारी मम्मी अभी कहां है? नीता के पूछने पर राजू ने बताया कि वह उन्हें अकेले नहीं छोड़ सकता इसलिए वह वृद्धाश्रम में रहती है।
नीता ने राजू को सुझाव दिया कि यदि वह दोनों शादी कर लेते हैं और नीता के घर में ही माता जी को भी ले आएंगे। कुछ समय बाद उसका छोटा भाई भी पढ़ लिख कर कमाने लायक हो जाएगा। वह दोनों मिल कर अपना काम अलग भी शुरू कर सकते हैं। लोन लेकर साड़ियों के ठिकानों से यदि वह कुछ साड़ियां अपने लिए भी लाए तो पापा सेल्समैन के जैसे कम प्रॉफिट लेकर हमारी साड़ियां बेचेंगे और मिलजुल कर हम अपनी जिम्मेदारियां भी अच्छे से संभाल सकेंगे । राजू को कोई एतराज नहीं था लेकिन शादी करने के लिए खर्च एक बहुत बड़ी समस्या थी। बस तभी दोनों ने कुछ फैसला किया और मंदिर जाकर विवाह कर लिया। दूसरे दिन जब नीता सिंदूर लगाकर घर से बाहर निकली तो आसपास की औरतों को करने के लिए एक बात मिल गई थी। कुछ दिन बाद नीता सासू मां को भी घर ले आई थी। पापा भी खुश थे, भाई का भी इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हो गया था। घर में खुशियां और धन दिन दोगुना बढ़ रहा था। सासू मां भी नीता को बहुत प्यार करती थी।
यह सच है कि लोग अपने दुख से दुखी नहीं होते बल्कि दूसरे के सुख से ज्यादा दुखी होते हैं। नीता को संस्कार-विहीन बोलते हुए शायद सबको आत्मसंतुष्टि मिलती थी। लेकिन जब नीता की सासु मां ने उन सबको यह कहते हुए झिड़का कि अपनी बच्चियों पर विश्वास करो। बच्चे अच्छे संस्कार देखकर सीखते हैं ना कि तुम्हारी बुराइयां सुनकर। मेरी बहू सबसे ज्यादा संस्कारी और समझदार है। इतना सुनकर चुगली करने वाली औरतों की भीड़ अपने आप तितर-बितर हो गई।
पाठकगण सब जानते हैं कि किसी की बुराइयां नहीं करनी चाहिए लेकिन फिर भी बिना सच्चाई जाने लोग क्यों किसी का मन दुखाते हैं?