संस्कार
संस्कार
"आप मेरे दोस्तों के सामने क्यों आ गई भाभी? मैंने आपको मना किया था ना। आप नौकरों से चाय भिजवा देती। अब याद रखियेगा, आगे से ऐसा मत करिएगा।" डॉक्टर मानव अपनी शीला भाभी को फटकारते हुए बोला और फिर अपने कमरे से चला गया।
शीला उसके जाते ही मायूस सी ना जाने कब अनायास ही अतीत की यादों में खो गई। जब शादी होकर आई थी तब मानव कितना छोटा था। करण व मानव के माता-पिता का देहांत शादी के एक साल पहले हुआ था। कुछ महीनों से बुआ जी ही देखभाल कर रही थी। शादी होकर आते ही बुआ जी छोड़कर चली गई। वह बोली कि अब घर की बहू आ गई है देवर की देखभाल कर लेगी। शादी की पहली रात ही करण मेरे पति ने मानव की जिम्मेदारी मेरे ऊपर रख दी थी। मैंने हमेशा बहुत प्यार किया मानव को। ताकि कभी मां-बाप की कमी उस मासूम को महसूस ना हो। यह चाहती थी मैं सदा।
एक दिन मुझे पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं। उस दिन मैं व करण बहुत ही खुश थे अपने परिवार को बढ़ता देख। तथा अपने प्यार की निशानी को लेकर मैं हसीन सपने सजाने लगी। अभी 5 महीने बीते थे, मैंने और करण ने उस बच्चे का नाम तक सोच लिया। पहली बार मां बनने का अलग ही सुखद एहसास होता है। उसी खूबसूरत पलों को हर मां की तरह मैं भी अपनी आंखों में सजा रही थी। मेरे दिन बहुत ही अच्छे से राजी खुशी बीत रहे थे।
तभी अचानक एक दिन मानव खेलते -खेलते सीढ़ी पर ना जाने कैसे गिरने वाला था। तभी मैंने ना आव देखा, ना ताव फटाक से उसको खींचकर बचा लिया। पर इसमें मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं धड़ाधड़ करती हुई सीढ़ी पर नीचे गिरती चली गई। पेट में जोरदार पीड़ा शुरू हो गई और बहुत सी चोटें भी आई।
डॉक्टर को दिखाया गया। डॉक्टर ने बताया कि गर्भपात हो गया तथा अब मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी। करण वह मेरी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई। क्या सोचा था और क्या हुआ। हमारे सारे हसीन सपने चकनाचूर हो गए।
कई दिनों में मैंने अपने को संभाला। मैं और करण मानव को ही अपनी संतान मानने लगे और उसकी परवरिश में अपना सब कुछ अर्पण करने का संकल्प लें चुके थे। धीमे -धीमे मानव बड़ा होता जा रहा था। तभी करण की जोर-जोर से आवाजें आने लगी। "शीला ...शीला कहां खो गई तुम।" शीला के कंधे पर हाथ रख शीला को करण ने झकझोरा।
शीला की आंखों से आंसुओं की निर्झर धारा बहे जा रही थी। शीला अतीत की यादों से बाहर आई। जल्दी से अपने आंचल से अपने आंसुओं को पोंछने लगी।
"क्या हुआ शीला"
" कुछ नहीं"
" तबीयत सही नहीं है क्या"
" हां... सही है"
" तो क्या हुआ ? क्या फिर से मानव ने दिल दुखाया।"
" अरे नहीं ....बस यूं ही मन उदास है।"
" नहीं.... मैं कई दिन से देख रहा था हूं। उसको बात करने की तमीज ही नहीं रह गई है। अरे पढ़- लिखकर डॉक्टर बन गया तो क्या छोटे बड़ों का लिहाज भूल जाएगा। क्या यही संस्कार दिए हमने उसे? अपनी सारी जिंदगी लगा दी उस पर। उसका वह यह सिला देगा। ऐसा अपमान करेगा। क्या किया बताओ ना?"
" अरे बोला ना... कुछ नहीं"
" बताओ शीला... तुम्हें मेरी कसम"
इस बात ने शीला को अंदर तक झकझोर दिया। शीला आंखों में आंसू लिए सुबक -सुबक के दुखी मन से बोली-
" मैं तो बस उसके दोस्तों के सामने चाय लेकर गई थी। तो उसको खराब लगा। शायद वह सब बच्चे पढ़े- लिखे हैं इसलिए उसको खराब लगता होगा। जाने दीजिए कुछ ना कहिएगा। मानव को खराब लग जाएगा।"
करण गुस्से में "हर बार तो मना कर देती हो। पर अबकी तो मैं उसको जरूर डाटूंगा। ठीक है पढ़ लिख लिया और उसके दोस्त भी पढ़े लिखे डॉक्टर हैं। तो क्या तुम पढ़ी-लिखी नहीं हो। तुमने अपने समय के हिसाब से पढ़ाई की है। और यदि कोई मां बाप पढ़े लिखे ना हो तो क्या बच्चे उनकी इज्जत नहीं करेंगे? यह कहां लिखा है। जो आज के बच्चे हैं उनका अच्छा भविष्य हमने ही तो बनाया है। अपने आप हो कड़ी मेहनत और धूप में जला, हमने उनका आज का दिन सजाया है। उन्हें आज इतना काबिल बनाया कि वह समाज में और बैठ उठ सकें। इसलिए थोड़ी ना पढ़ाया कि वह बड़ों की इज्जत करना भूल जाए। यदि पढ़ाई से यही शिक्षा मिली तो ऐसी पढ़ाई तो बेकार है। हम अपने मां-बाप की कितनी इज्जत करते थे। जबकि वह लोग तो बिल्कुल अनपढ़ थे।"
" हां... हां अब चुप हो जाइए। आप आज पहली बार इतनी तेज आवाज में क्यों बोल रहे हैं। वह सुन लेगा।" शीला ने करण को टोकते हुए बोला।
" नहीं... आज तो मैं उसको जरूर बोलूंगा। यह तो कोई तरीका नहीं हुआ।"
तभी दरवाजे पर शीला की नजर गई । वहां मानव आंखों में आंसू लिए सब सुन रहा था।
"अरे मानव तू.... आजा बेटा।" मानव दौड़ के शीला के पास आकर उसकी गोद में सिर रख बोला।
"माफ कर दो.... भाभी मां... माफ कर दो।"
"ना..ना बेटा कोई बात नहीं" शीला रोने लगी और उसके बालों में उंगली फेरने लगी।
करण भैया से बोला "भैया मैं अहंकार में आ गया था। मुझसे गलती हो गई। आगे से गलती नहीं होगी। भैया आप सही कह रहे हैं मैं नालायक हो गया हूं। मुझे बड़े-छोटों की तमीज खत्म हो गई है। माफ कर दो भैया।" कहकर जोर-जोर से मानव रोने लगा।
करण भी उसकी आंखों में आंसू देख अपना सारा गुस्सा भूल गया। उसने भी बढ़कर मानव को गले लगा लिया और बोला "मानव बेटा पढ़ने का मतलब सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि उससे अच्छे संस्कार, बड़े -छोटों की इज्जत करना, अच्छा कैरियर बनाना सब सीखना चाहिए। मानव रोते हुए बोला "जी भैया।"
माहौल को हल्का करने के लिए करण ने बोला" अभी तक तू सब को इंजेक्शन लगाता था ना। आज मैंने भी तुझे डांट का इंजेक्शन लगाया। अब यह डांट रूपी दवा का असर हमेशा रहना चाहिए।" कह के करण हँस दिया। करण की बात सुन शीला व मानव भी हंसने लगे। सबकी आंखों में आंसू थे पर होंठों पर हँसी । दिल में जो भी मलाल था सब आंसुओं में धुल गया। दिल एक दूसरे के प्रति फिर से प्यार से भर गया।