Anita Sharma

Drama Classics Inspirational

4.5  

Anita Sharma

Drama Classics Inspirational

संस्कार

संस्कार

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"बहू एक काम करो ये सब्जी कम करो और एक रोटी उठा कर ले जाओ। मैं एक ही रोटी खाऊँगी।" दीपा की बूढ़ी सास ने उसके लाये हुए खाने की थाली को देखते हुए कहा।

दीपा अपनी सास से तो कुछ नहीं बोल सकती थी। पर गुस्से में आकर उसने सब कम किया और वापिस खाना दे कर आई। अभी वो आकर एक रोटी ही सेंक पाई थी कि वापिस सासू माँ की आवाज आई.....

" बहू थोड़ी सब्जी और दे जाओ।"

जब वो सब्जी देने वहीं पहुँच गई तो उन्होंने आधी रोटी की और मांग कर दी।

"इनका यही नाटक है। ठंड की वजह से इन्हें अपने कमरे में खाना चाहिये। फिर कितना भी कम खाना ले जाओ फिर भी बार - बार ये कम करो, ये और लाओ बोल - बोल कर मुझे परेशान करती रहती है। इस चक्कर में मैं रोटियाँ भी नहीं सेंक पाती सभी के लिये।

दीपा सासू माँ के कमरे से बाहर निकलते ही बड़बड़ाते हुए उन्हें रोटी देकर वापिस सभी के लिये और रोटियाँ सेकनें लगी।

दीपा की सास साठ पैंसठ साल की महिला है। जो बैठे - बैठे ही अपनी बहू दीपा से सारे काम करवाती है। दीपा घर के सारे काम बहुत अच्छे और समझदारी से करती है। पर अपनी सास की हर बात में मीन मेख निकालने की आदत और पूरे घर में बार - बार इधर से उधर दौड़ाने की वजह से खीज जाती।

और दीपा की भी तबियत ठीक नहीं रहती थी। तो बड़बड़ाते हुए सारे काम करना उसकी आदत में शामिल हो गया था।

ये सब दीपा की बारह साल की बेटी निधि बहुत ध्यान से देखती रहती। वह यथा संभव अपनी माँ की हेल्प भी करने की कोशिश करती पर अपनी पढ़ाई की वजह से ज्यादा कुछ कर नहीं पाती।

ऐसे ही एक दिन दीपा ने अपनी बेटी निधि को दादी के पास खाना लेकर भेजा, तो उन्होंने अपनी आदत के मुताबिक थाली से खाना कम ज्यादा करने को कहा। तो निधि अपनी दादी से खीजते हुए बोली....

" क्या दादी आप रोज ये नाटक क्यों करती है ? पहले खाना कम करवायेंगीं , फिर और मगवायेंगीं ।"

निधि की बात सुनकर दीपा सन्न रह गई। उसके गुस्से में कुछ न कुछ बोलने का ही असर था ये कि आज उसकी बेटी अपनी दादी से इस तरह से बात कर रही थी।

इसलिये दीपा बीच में ही उसे डांटते हुए बोली........

" निधि ये क्या बदतमीजी है? कोई दादी से इस तरह बात करता है क्या ? चलो माफी मांगो दादी से। "

और निधि के माफी मांगने से पहले खुद ही अपनी सास से माफी मांगते हुए बोली......

" माफ करना माँ जी , वो मैं गुस्से में बड़बड़ाती रहती हूँ , शायद इसलिये आज निधि ने आपसे इस तरह से बात की है। सही ही कहा है किसी ने कि " बच्चे वो नहीं सीखते जो हम उन्हें सिखाते है। बल्कि वो तो वो सीखते है जो हम करते है। "

तो दीपा की सास मुस्कराते हुए बोली.....

" सही कहा बहू इसमें गलती हमारी ही है। हम जैसा बीज बोते है हमारी फसल भी वैसी ही होती है। अभी इस घर में सबसे बड़ी मैं हूँ तो जब मैं अपनो से छोटो का ख्याल रखूंगी। तभी तो बच्चे सीखेंगे सभी का ख्याल रखना।

अब से मैं वहीं टेवल पर बैठ कर खाना खा लिया करूँगी। ताकि तुम्हे भी सभी को गरमा गर्म रोटियाँ सेंक कर देने में कोई परेशानी न हो।"

"अरे नहीं माँ जी आप यहीं बैठिये मैं आपको सब यहीं लाकर दूँगी। गलती मेरी है जो मैं अपनी बेटी के सामने बड़बड़ाती थी। पर अब मैं इस बात का ख्याल रखूंगी। "

दीपा अपनी सास को मनाते हुए बोली।

और पलट कर निधि को देखते हुए बोली .....

" तुमने माफी नहीं मांगी अभी तक दादी से"!

निधि बुत बनी अपनी माँ को दादी से माफी मांगते हुए देखकर समझ गई थी कि " माँ सिर्फ झूझलाहट में ही बड़बड़ाती है। दिल से वो उनकी बहुत इज्जत करती है। इसलिये निधि ने भी अपनी दादी से माफी मांग कर कभी भी किसी से ऐसा व्यवहार न करने का वादा भी कर दिया।

दादी ने बड़े होने के नाते अब से अपनी बहू का ख्याल रखने के साथ-साथ अबसे बहू को बार-बार इधर से उधर दौड़ाना कम कर दिया। जिसका सीधा असर दीपा की सेहत के साथ उसके स्वभाव पर भी पड़ा।

अब बात -बात में चिढ़ने वाली दीपा मुस्कराने लगी थी। जिसे देख उसकी बेटी निधि भी अब सभी के साथ खुश रहना सीख रही थी। और उससे कभी भी किसी काम की कहने पर वो झुझलाती नहीं थी। बल्कि खुश होकर अपनी बातों से भी सभी का मन खुश कर देती।

सखियों अक्सर हमने देखा होगा कि हमारे बच्चे हमारे सिखाने से ज्यादा वो सीखते हैं जो हम करते हैं। इसलिये बच्चों के सामने वही व्यवहार करे जिसकी हम उनसे अपेक्षा करते हैं। और इस बात की जिम्मेदारी घर के हर सदस्य की होनी चाहिए।


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