संघर्ष ( दास्तां ए इंतकाम )
संघर्ष ( दास्तां ए इंतकाम )
मैं लौट आई हूं... मैं नेहा ! हां आज 2 साल बाद फिर लौटी हूं मैं इंतकाम की आग अपने मन में लेकर, नहीं भूली हूं आज भी वो दिन जब मुझे बेइज्जत करके घर से निकाल दिया गया था। क्या गलती थी मेरी सिर्फ ये कि मेरे पति को मुझसे नहीं किसी और से प्यार था। मैंने सारे रिश्तों को अपने जीवन से बढ़कर मान सम्मान और स्नेह दिया फिर भी मुझे क्या मिला सिर्फ दुत्कार। उस दिन मेरे बच्चे को मुझसे अलग कर दिया गया मुझे एक कोने में फेंक दिया गया। अब जितना अत्याचार मुझ पर हुआ उन सबका बदला लेने लौट आयी हूं मैं। अपने मान सम्मान और अधिकार को पाने लौट आयी हूं मैं, मेरे हर आंसू का हिसाब लेकर अपने दुश्मनों को खून के आंसू रुलाने के लिए लौट आयी हूं फिर मैं। इन दो सालो का संघर्ष बहुत कठिन था जब तक अफसर नहीं बनी थी एक रात चैन से नहीं सोयी मैं। अब किसी को चैन से सोने नहीं दूंगी मैं, मैंने अपने हर वचन का पालन किया सदा उनकी दासी बनकर सेवा की पर अब मैं उन्हें अपना दास बनाऊंगी जो स्त्री का सम्मान नहीं करते इसलिए सामाजिक दृष्टिकोण बदलने के लिए भी फिर लौट आयी हूं मैं।