स्नेह की दौलत
स्नेह की दौलत
वर्षों बाद मॉल में अंकित की मुलाकात अपने स्कूली दिनों के दोस्त विवेक से हुई।
एक दूसरे को देख दोनों खुश हुये और एक दूसरे के बारे में जानने को बेताब भी। अंकित ने सुझाया यहीं पास ही मेरा घर है वहीं चलते हैं और चाय पीते हैं। अंकित की लंबी चमचमाती कार देख विवेक को थोड़ा संकोच हुआ लेकिन अंकित ने उसका हाथ पकड़ अपनेपन से बैठा लिया। बड़े से बंगले के सामने कार रुकी।
"अंदर चल, यही मेरा घर है।" घर देखते ही विवेक के मुँह से बेसाख़्ता निकल गया।
"तेरा बंगला बड़ा शानदार है।" सुन अंकित के चेहरे पर गर्वीली मुस्कान आ गयी।
स्कूल की बातों से शुरु हो सिलसिला कब परिवार, तक जा पहुँचा पता ही नहीं चला। अंकित ने बताया उसकी पत्नी की कमर के नीचे का हिस्सा सुन्न हो गया है। वो चल नहीं पाती। बताते हुये अंकित के भीतर का दर्द उसकी आँखों मे छलक आया। उसके दो बेटे हैं जो विदेश में नौकरी करते हैं। दोनों अपनी- अपनी बात सुनने सुनाने में लगे थे। बातें थीं कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं।
अगर उस समय विवेक की बहू का फ़ोन नहीं आता तो दोनों को वक़्त का पता नहीं चलता। अंकित एक दिन अचानक विवेक के घर पहुँच गया। वह उसे सरप्राइज देना चाहता था लेकिन अचानक अंकित को अपने घर आया देख विवेक को अपनी कमतरी का अहसास हुआ। अंकित उसके पोते के लिये खूब सारे खिलौने लेकर आया था। विवेक ने उलाहना भी दिया कि इतने सारे खिलौने की क्या जरूरत थी। विवेक ने अपनी बहू को अंकित से मिलवाया कि यह उसके बचपन का दोस्त है। बहू ने तुरंत अंकित के पैर छुये। और खाना खाये बगैर जाने नहीं दिया। जाते समय जब विवेक के पोते ने अंकित को बाय-बाय "बाबा" कहा, सुन अंकित एक क्षण को ठिठक गया। " तुम बहुत अमीर हो विवेक।" कह अंकित ने विवेक के कंधे पर हाथ रख दिया।
नहीं अंकित ! तेरे वैभव के सामने मैं कुछ नहीं।
मैं संपन्न हूँ विवेक लेकिन तेरी तरह रिश्तों में अपनेपन की गर्माहट और स्नेह की दौलत के सामने मुझ सा ग़रीब कोई नहीं, कहकर अपनी आँखों की नमी छुपाने की चेष्टा करते हुए अंकित तुरंत कार में बैठ गया।