चोबदार
चोबदार
रिटायर्ड जज भानु प्रताप शर्मा जी जब से अपने दोस्त की बेटी की शादी से लौटे हैं, तब से वह कुछ खिन्न से हो गये हैं। वज़ह यह कि दोस्त के बेटा-बहू हर बात 'पापा जी ' से पूछकर करते थे।
उन सबके बीच रहकर ऐसा लगता था मानो वो परिवार में बैठे हों। भानु प्रताप जी के दो बेटे हैं। क्या मजाल कभी गलती से भी वो उनके कमरे में आकर हालचाल पूछे हों। कभी साथ बैठकर खाना खाये हों। कभी यूँ ही आकर अपने पापा से बातें करी हों या किसी चीज में उनकी राय ली हो।
तमाम बातें अब मन को कचोट रही थीं। क्या बात है जज साहब ? जब से दोस्त के यहाँ से लौटे हैं आप बेहद अनमने से हैं ? पत्नी ने सवाल किया।
जज साहब ने अपने दोस्त के यहाँ की सारी बातें पत्नी को बतायी कि कैसे उनके दोस्त के बेटा बहू 'पापा' का कितना ध्यान रखते हैं। एक मेरे बच्चे हैं, उन्हें मेरी कद्र नहीं। क्या कमी करी है; मैंने उनकी परवरिश में।
जो किसी लायक नहीं बन पाये वो। "आपके बेटे नालायक नहीं हैं। जज साहब।" छोटे से बड़े होते तक आपने उन्हें पिता का प्यार नहीं दिया सिर्फ जिम्मेदारी उठायी। ऐसा नहीं कि आपके पास समय का अभाव था या आपको अपने परिवार से लगाव नहीं था।अपितु आप एक पिता की जगह घर में भी जज बने रहे। हमेशा आप अपने निर्णय उन पर थोपते रहे। इसलिये यह दूरी बालमन से ही उनके जेहन में घर कर चुकी है। सच सुनते ही भानु प्रसाद की आवाज़ पुनः तल्ख़ हो गयी। पत्नी को लगभग डाँटते हुये बोले " तुम तो माँ थी।" तुम समझाती बच्चों को। तुमने ऐसा क्यों नहीं किया ? मैं तुम सबका भविष्य बनाना चाहता था। इसलिये ऊंचाइयों को छूता रहा। अगर आगे नहीं बढ़ता तो इतनी सारी सुख सुविधाएँ कहाँ से जुटा पाता तुम सब के लिये।
आप सही हैं जज साहब लेकिन धन और पद की रेस में दौड़ते- दौड़ते आप सब रिश्तों को पीछे छोड़ते चले गये।
ऐसा नहीं है ? कम से कम तुम तो सच कहो। भानु प्रताप जी कड़क आवाज़ में पत्नी से बोले। तो सच सुन लीजिये आज, आप भी जज साहब। आपने मुझे अपने कोर्ट का " चोबदार " समझा। कभी आपने मुझे टोका या मना किया कि तुम मुझे "जज साहब " ना कहा करो। पत्नी के मुँह से यह सुनकर भानु प्रताप शर्मा पहली बार जज नहीं किसी फरियादी की तरह सज़ा सुन अवाक रह गये।