पहली कमाई

पहली कमाई

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ज़िंदगी आज नीना को किस दोराहे पर ले आयी। उसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी नीना ने।

पति को गुज़रे दो महीने हुए हैं। सब रिश्तेदार चले गये। मायके में माँ बाप रहे नहीं। दो भाई हैं। दोनो भाई मेहमान की तरह आकर जा चुके। बड़े भाई ने इस मकान का एक साल का किराया भर दिया है। ताकि सर पर छाया बनी रहे और नीना उनके यहाँ जाने की न सोचे। छोटे भाई ने अपनी स्थिति बता दी। तीन बच्चे हैं। उसके घर का खर्च बामुश्किल चलता है। दो हजार पकड़ा कर छोटा भाई भी चला गया। किसी ने नहीं सोचा कि दो बच्चे लेकर वो कैसे गुज़ारा करेगी। दोनो भाइयों में से किसी ने उसे अपने साथ चलने को नही कहा। सच है, माँ बाप के बाद मायका भी खत्म हो जाता है।
    
पति पंडिताई करके इतना कमा लेते थे कि खाना हो जाये। शाम को किराने की दुकान में काम करते उससे बाकी खर्चा निकल आता। बड़ी, पापड़, अचार बना वो भी सीजन में बेच देती। अब क्या करे।

बच्चों की पढ़ाई छुड़वा दी। घर के बाहर चबूतरे पर सब्जी-भाजी बेचनी शुरू की। लेकिन कभी बिकती, कभी नहीं। कुछ महीने ऐसे निकले। नीना और उसकी बेटी को सब्जी बेचते देख एक अच्छी सी महिला उसके यहाँ हर दूसरे दिन सब्जी खरीदने आती। धीरे-धीरे जान पहचान हो गयी। सुमन नाम था उसका। फिर एक दिन नीना से मिलने अंदर चली आयी। सुमन के रहन-सहन के अनुरूप नीना के घर बैठाने की जगह नही थी। उसके यहाँ एक कमरा और एक दालान भर था। नीना पूरी रात सुमन के मिलनसार स्वभाव के बारे में सोचती रही। कितनी सरल है, भला इतने बड़े लोग हम गरीबों को इतना मान कहाँ देते हैं। उसकी बेटी बाहर पढ़ती है और पति किसी ऑफिस में काम करते हैं वो ज्यादातर टूर पर रहते हैं। सेल्स मैनेजर है।

दुनिया मे अच्छे लोगों की कमी नहीं। बहुत दिनों बाद किसी ने नीना को अपनेपन का अहसास कराया। फिर उसका आने का सिलसिला बढ़ गया। वो कब नीना के अलावा उसके दोनो बच्चों के करीब आ गयी पता ही नही चला। "दोनो बच्चों को फिर से स्कूल में दाखिला दिलवा दे नीना। उनकी पढ़ाई चौपट मत कर।" 
       
तू ज्यादा पढ़ी होती तो कहीं नौकरी कर सकती थी। बच्चों को इस लायक बना कि वो अपने पैरों पर खड़े हो सकें। पढ़ाई के लिये अभी पैसा मैं दे दूँगी। बाद में  धीरे-धीरे तू लौटा देना। नीना को भी बात जंच गयी। बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया। बच्चे तो सुमन आंटी को बेहद पसंद करने लगे। अब जब बच्चे स्कूल जाने लगे तो खर्चे की समस्या फिर पैर पसारने लग गयी।

ऐसे में सुमन ने एक ऑफर रखा। देखो कभी-कभी दोपहर को एक घंटे को तुम अपना कमरा किसी को देना चाहो तो पाँच सौ रुपये मिल जायेंगे। बच्चे भी तब स्कूल में होंगे। कोई मुसीबत नही आयेगी। तुम बाहर बैठ के ताकती रहना। कोई आये तो मुझे बता देना। नीना पहले तो समझी नहीं। "तो सुमन तुम ये करती हो?" नहीं, ये ठीक नहीं। इज्जत भी कोई चीज़ होती है। "नीना, अगर इज्जत से पेट भरता तो तुझे सब्जी नही बेचनी पड़ती। बच्चों की पढ़ाई छुड़ानी नहीं पड़ती।" सोच ले फिर बताना। जबरदस्ती नहीं है, कह सुमन चली गयी।

नीना पूरे दिन रात परेशान रही। फिर सोचा कि वो थोड़े ही गलत काम कर रही है। कोई भी मदद करने नही आया। ससुराल से देवर आया था, बोल गया कि जब खेत बिकेगा अच्छी कीमत पर तभी बेचूंगा। उस समय आपको अपना हिस्सा मिल जायेगा। पर वो जानती है कि जब ससुराल वाले जीते जी अपने बेटे को नही पूछते थे तो उसके जाने के बाद उसकी विधवा की क्या औकात।

जब मायके और ससुराल वालों ने कोई खैर ख़बर नहीं ली। तब सुमन ही बगैर रिश्तों के रिश्ता निभाती रही। ठीक है, कल सुमन को "हाँ" कह देगी।
    
पहली बार उसके अंदर बेहद धुकधुकी मची थी। जो भी घर के सामने से निकलता, लगता उसी के घर को देख रहा है। फिर आदत हो गई। सुमन महीने में चार पांच बार आती। अब उसके अच्छे से रहने का राज़ नीना जान गयी थी। नीना खुश थी कि घर बैठे पैसा आ रहा है। जिस महीने सुमन कम आती तो खर्च चलना थोड़ा मुश्किल होता और सुमन से ही पैसा उधार लेना पड़ता। देखते ही देखते पूरा साल बीत चुका। अब छह महीने का मकान किराया फिर चढ़ गया। आज मकान मालिक ने धमकी दी कि अगर इस महीने पिछला पूरा किराया नही दिया तो सामान फेंक देगा। कहाँ जायेगी नीना। कितना फ़ोन लगाया पर बड़े भाई ने नहीं उठाया और छोटा भाई फ़ोन पर अपनी ही गरीबी रोता रहा।

आजकल सुमन भी नही आ रही थी। बेटी के यहाँ जाने का कह कर चली गयी। पूरे दो सप्ताह बाद वो आयी। बताया बीमार हो गई थी। मकान मालिक से हुई बात नीना ने सुमन को बतायी। सुमन ने कहा उसकी तबियत ठीक नही है और पुलिस भी निगाह रखी हुई है। इसीलिये वो बेटी के यहाँ रुक गयी थी।

लेकिन चिंता मत कर मैं कल मकान मालिक को देने के लिये पैसे दे जाऊँगी। ना चाहते हुये भी नीना को जरूरत पर सुमन से मदद लेनी पड़ती। उसके अहसानों के बोझ तले वो धँसती जा रही थी।
       
इस बीच एक कमरे का घर बिक रहा था। तो तीन लाख रुपये लगाकर सुमन ने वो घर खरीद लिया। घर सुमन ने अपने नाम पर लिया और नीना के परिवार को रहने दे दिया। देख नीना अब तेरी मकान की समस्या खत्म। जब पैसा हो, तब मुझे किराया दे देना।
       
नीना की आँखें भर आयीं। कैसी भी है सुमन, पर उसके सुख दुःख की वही एकमात्र साथी है। सुमन भी अगर हाथ खींच ले तब। सुमन के बगैर उसकी जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ती नही थी। समय बीतता रहा।
      
एक दिन सुमन को अचानक पैसों की जरूरत आन पड़ी। नीना ने उस समय पैसे देने में असमर्थता जतायी। सुमन, तुझसे कुछ छिपा नहीं है। तुझे तो पता है मैं चार घर का खाना बनाती हूँ। उससे बस सबका पेट भरता है। कुछ समय दे तेरा पैसा लौटा दूँगी। इतनी जल्दी इतनी रकम का इंतज़ाम करना मुश्किल है।

" नीना! मुझे पैसे तो चाहिये। मैं मकान बेच देती हूँ। तुम अपनी रहने की व्यवस्था कहीं और कर लो।" सुनकर  नीना डर गयी।अगर सुमन घर से बेघर कर दे? "तब...?"

पहले भी खोली में रहकर देख चुकी है नीना। एक रात शराब के नशे में धुत्त तीन आदमियों को देख नीना डर गयी। उन लोगों का बार-बार दरवाजा पीटना और "दरवाजा खोल"  जोर-जोर से चिल्लाना, नीना और उसके दोनों बच्चों को डरा गया था। पूरी रात नीना के साथ उसके डरे सहमे बच्चे भी जागते रहे। अकेली और गरीब औरत का जीवन सुरक्षित नहीं। नीना समझ चुकी थी।पड़ोसियों के अनुसार ये कोई नयी बात नहीं थी उनके लिये। यहाँ सब के आदमी पीकर आते हैं। कभी-कभार ऐसा हो जाता है।

यह सब याद कर नीना की आँखों के आगे धरती घूमने लगी। कहाँ मिलेगा इतना सस्ता और सुरक्षित घर। बेटी पंद्रह साल की हो चुकी है। उसे लेकर कहाँ जाऊँगी। आज उसे अफसोस हो रहा है कि काश! उसके माँ -बाप ने विवाह की जल्दी ना कर उसे भी पढ़ाया होता। अब एक रास्ता है सुमन ने सुझाया। मेरा तो मार्केट कम हो गया है। अगर तू चाहे तो व्यवस्था हो जायेगी। बस जहाँ ग्राहक बुलायेगा तुझे जाना होगा। नीना रात भर अपने नसीब पर रोती रही। क्या-क्या दिन देखने पड़ रहे हैं। सुमन को ना कहना उसे भारी पड़ जायेगा। अब कोई रास्ता नही सिवाय सुमन की बात मानने के। नीना जब पहली बार घर से निकली तो उसके पैर मन-मन भारी हो रहे थे। वहाँ उस आदमी के छूते ही वो चीख़ पड़ी और किसी तरह अपने को छुड़ाकर भागी और बगैर पैसों के अपने घर वापिस आ गयी। सुमन को जैसे ही पता चला वो उल्टे पैर नीना के घर आयी। "ये क्या किया तुमने? "
मुश्किल से बड़ा आसामी हाथ आया था। तू अपने पैर पर आप कुल्हाड़ी मार आयी। "मुझसे यह सब नहीं होगा।"
     
सुमन ने उसे गले लगा, प्यार से समझाया। तू गलत नही कर रही। तुझे अपने बच्चों को उनके पैरों पर खड़े होने लायक बनाना है। कोशिश करेगी तो सब ठीक होने लगेगा। मैं सब सिखा दूँगी तुझे। अब तू खुद निर्णय ले। तुझे बच्चों का बेहतर भविष्य चाहिये या नहीं। आज पहली बार बाहर से लौटकर आने के बाद नीना जाने कितनी बार नहायी। फिर भी उसे अपना बदन "गंदा" लगा। उसको रोता देख बेटी बार-बार पूछती रही कि क्या हुआ माँ। "तुम सुमन आंटी के लिये पैसों का इंतज़ाम करने गयी थी मिला?" वो क्या बताती कि कैसे मिला। उसमें से हज़ार रुपये सुमन ने अपने कमीशन के ले लिये। ग्राहक वही लायी थी और सब तय भी उसने किया था।
        
आज सुमन ने एक पुराना मोबाइल भी लाकर दिया। दोनों बच्चे माँ के पास मोबाइल देख बेहद खुश हो रहे थे। सुमन ने उसे रहने का सलीका सिखाया। पुरुष से ज्यादा से ज्यादा पैसा निकलवाना हो, तो क्या करना चाहिये, वो सीक्रेट्स बताया। पुरुष भले ही कितना समझदार हो पर उसे कैसे  बेवकूफ़ बना औरत ज्यादा से ज्यादा फ़ायदा ले सकती है, वो सब कुछ नीना ने धीरे-धीरे सीख लिया। 

नीना को भी अब पैसों का चस्का लग गया था। कभी-कभी कोई खुश हो ज्यादा पैसे भी दे देता। पैसों के साथ अच्छा खाना पीना भी मिल जाता था। अब तो कई बार वो सुमन को भी नहीं बताती और अगली बार का प्रोग्राम खुद तय कर लेती। ऐसे में सुमन को कमीशन देने से बच जाती। लेकिन जाने कैसे सुमन को एक बार पता चल गया। उसने खूब झगड़ा किया। बच्चों को  सब बता देगी, धमकी भी दी। अंततः नीना ने उसके पैर पकड़ माफ़ी माँगी। आगे से ऐसा नही होगा भरोसा दिलाया। जिस थाली में खाती है, उसी में छेद कर दिया तूने। क्या नहीं  किया मैंने नीना तेरे लिये। उसका ये फल दिया मुझे। सुमन बहुत गुस्से में थी और बेहद खरी-खोटी सुना कर गयी।

ईश्वर तो जैसे उसका इम्तिहान लेने पर तुला था। अचानक उसे माहवारी में बेहद तकलीफ़ होने लगी। डॉ. ने कहा यूट्रस निकालना पड़ेगा। ऑपरेशन का खर्च फिर दो महीने आराम करना पड़ेगा। इतने दिन घर का खर्च कैसे चलेगा। जितना पैसा नीना जोड़ नहीं पायी थी, उससे ज्यादा का खर्च पहले आ गया। कहाँ कर्ज़े से उबरने की सोच रही थी फिर नया खर्च। अच्छा हुआ उसने सुमन से माफी मांग ली थी। एक बार फिर नीना हाथ फैलाये सुमन के सामने थी। एकबारगी सुमन ने मना कर दिया। मुझे कुछ हो गया तो मेरे बच्चे कौन पालेगा। तुम उन दोनों की आंटी हो। उनके लिये सुमन...।

आखिर उसके रोने पर सुमन एक बार फिर मदद करने को तैयार हो गयी। नीना ने सोचा ऑपरेशन के बाद वो ज्यादा समय देकर ज्यादा पैसे कमा सुमन को उसका पैसा ब्याज सहित लौटा देगी। पर होनी को कुछ और मंज़ूर था। ऑपरेशन होने के बाद नीना को काम मिलना कम हो गया। जितनी देखभाल होनी चाहिये थी उतनी नहीं होने के कारण नीना जल्दी ही थकने लगी थी। उसका वजन भी काफी कम हो गया था। फिर पहले की तरह घर मे पैसों की किल्लत होनी शुरू हो गयी। इस बार सुमन ने  नीना को समझाया।   

"देख नीना, अब तेरा वक्त निकल गया। अब तेरी भी पूछ कम हो गयी है। बेटी को काम करने दे।" जवान होने तक मंज जायेगी। अभी से शुरू करेगी तो लंबे समय तक टिकी रहेगी। उम्र है पैसा भी ज्यादा मिलेगा। वो चाहे तो दिन में स्कूल जाकर पढ़ सकती है। रात आँखों में बीती। पहले  नीना ने सोचा  कि वो आत्महत्या कर ले। लेकिन तभी विचार आया। फिर तो सुमन  का रास्ता और आसान हो जायेगा। उसकी बेटी को आसानी से वो इसी काम में हमेशा के लिये लगा देगी। फिर एक क्या मेरे दोनों बच्चे अनाथ हो जायेंगे। अगर पैसा नही होगा तो रोटी देने के बहाने दुनिया के सारे लोग उसकी बेटी को लूट लेंगे। एक तरफ कुआँ है, तो दूसरी तरफ खाई। सुमन उसे चारो तरफ से घेर चुकी थी। उस आग से बचना संभव नही। ये ऐसी आग है जिससे रौशनी तो होती है पर खुद का घर जलाने से। सुमन का विरोध करने की ताकत अब नीना के पास नहीं। कोई रास्ता नही सिवाय सुमन की बात मानने के। बेटी बोलती  कुछ नहीं, पर शायद सब समझने लगी है। बचपन तो कोरी स्लेट की तरह होता है जो लिख गया, वो समय के साथ समझ आने लगता है। सुबह उसकी सूजी आँख देखकर बेटी ने कहा। माँ मत रो। " तुम सुमन आंटी का कहना मान लो।" फिर हमें कभी पैसों की तंगी नही रहेगी। सुमन आंटी के सामने आपको कभी हाथ फैलाना नहीं पड़ेगा। "मैं भी तुम्हारी तरह तैयार होकर काम पर जाऊँगी।" इतना सुनते ही उसने बेटी को चटाक से थप्पड़ जड़ दिया। फिर नीना स्वयं फफक-फफक कर रोने लगी। वो किसका गुस्सा बेटी पर उतार रही है।
 
"खुद के अपने धंधे से हटाये जाने का या बेटी को इस काम में डालने का।" अपनी बेटी को इस नरक में कैसे झोंक दे। इस दलदल से निकलना कितना कठिन है। लेकिन सुमन ने बताया कि पैसा कमाकर उसने अपनी बेटी को पढ़ाया भी और शादी कर दी। आज वो सुखी है। तेरी बेटी भी खूब कमा लेगी तो उसकी शादी भी कर देंगे और वो अपने बच्चों का जीवन अच्छा बना लेगी।
     
पूरी रात सोच विचार में गुजर गयी। नीना ने निर्णय लिया कि वह क्या करती है, और उसकी बेटी को "क्या"  करने को सुमन आंटी कह रही हैं, बेटी को बताना जरूरी है। "यह सब जानकर अगर उसकी बेटी उससे नफ़रत करने लगे तब?" जो भी हो, अगर उसे ये काम करना है तो उसे तन के साथ मन से भी तैयार होना पड़ेगा। अगर तैयार नहीं होगी तो..? फिर भी मैं उसे बताऊंगी जरूर।
      
रात काँटों में बीती। "कैसी माँ है वो।" यह सब देखने के पहले नीना मर क्यों नही गयी। खुद को कोसते-कोसते कब सो गयी और सुबह हो गयी, नीना को पता नहीं चला। बेटी ने सुनकर कहा, मुझे सब पता है। सुमन आंटी ने पहले ही मुझे आपका सच बता दिया था। जब तक आप कर सकती थी माँ आप ने किया। मैं पढूंगी भी और कमाऊंगी भी। जैसे ही हम सुमन आंटी की तरह सम्पन्न हो जायेंगे हम लोग ये शहर छोड़ कर कहीं और चले जायेंगे। मैं इतनी पढ़ाई करूँगी कि मेरी नौकरी लग जाये।
फिर आपको या मुझे कभी भी यह काम नहीं करना पड़े। मैं आपको कोई तकलीफ़ नही होने दूँगी माँ। मेरा विश्वास करो।
        
दूसरे दिन बेटी जब थकी हारी घर लौटी तो वो भी उसकी तरह देर तक नहाती रही। शायद रोयी भी होगी अपनी किस्मत पर। उसकी पीड़ा सोचकर नीना का हृदय रो पड़ा। "ये मेरी पहली कमाई है माँ कह बेटी ने रुपये उसकी हथेली में रख  दिये।" नीना की आँखों से टप-टप आँसू टपकने लगे। रोते-रोते उसने कहा। "जा बेटा, अपनी पहली कमाई भगवान के चरणों मे रख हाथ जोड़ कर आ।"


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