दोहरे मापदंड
दोहरे मापदंड




पंडित राम प्रसाद जी गुस्से में बड़बड़ाते हुये जैसे ही घर में दाखिल हुये, पत्नी जो कि आम का अचार बनाने में व्यस्त थी, तुरंत हाथ धोकर, पानी का गिलास लेकर बाहर आयी।
"आज कहाँ उलझ आये? " पत्नी ने सवाल किया। "होना क्या था, ज़रा सा तंबाकू वाला ज़र्दा खाया था, जो गले में अटक रहा था, वहीं वर्मा जी की बाउंड्री वाल के किनारे थूका था कि बाहर आकर वर्मा जी का लड़का मुझे नैतिकता का पाठ पढ़ाने लग गया। मैंने भी सुना दिया कि मैं रिटायर्ड प्रिंसिपल हूँ। स्वच्छ भारत अभियान मुझे तुमसे ज्यादा पता है। " आदमी अपनी जेब में तो थूकेगा नहीं। नसीहत देना है तो अपने माता- पिता को दे।
रामप्रसाद का भुनभुनाना सुन पत्नी ने समझाया। " गुस्सा नहीं करते आनंद के पापा। बेकार में ब्लडप्रेशर बढ़ जायेगा।'' और हाँ, पत्नी ने कहा। "आज पोते को स्कूल से घर लाने की जिम्मेदारी आपकी है।"
रामप्रसाद जब घर लौटे तो पोते के पैर में पट्टी बंधी देख पत्नी ने सवाल किया। " इसे क्या हुआ?" सड़क पर किसी ने केले का छिलका फेंक दिया था, इसका पैर फिसल गया। उसी से चोट लग गयी। मरहम पट्टी करवाकर ला रहा हूँ। '' लोगों को ज़रा सी तमीज़ नही। सड़क को डस्टबिन समझते हैं। पढ़े- लिखे होकर भी ऐसी हरकत करने से बाज़ नहीं आते लोग। "
रामप्रसाद का कुढ़ना देख पत्नी ने कहा। " यह आप कह रहे हैं आनंद के पापा ! सुबह तो आप कुछ और ही कह रहे थे।" पत्नी की बात सुन, रामप्रसाद झेंप कर खिसियानी हँसी हँसने लगे।