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ashok kumar bhatnagar

Romance Tragedy Inspirational

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ashok kumar bhatnagar

Romance Tragedy Inspirational

"संदेश जिसने सब कुछ बदल दिया"

"संदेश जिसने सब कुछ बदल दिया"

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 मुंबई की शाम जैसे किसी पुरानी ग़ज़ल की तरह थी — धीमी, भीगी, और भीतर तक उतर जाने वाली।
 त्रिशा वर्मा, 29 साल की, एक क्रिएटिव हेड, वर्सोवा के अपने फ्लैट में अकेली बैठी थी। ऊनी जुराबों और कॉफ़ी के प्याले के साथ, उस मौसम में वो बस अपने भीतर के किसी भूले हुए हिस्से को टटोल रही थी।

उसके सामने फोन रखा था। स्क्रीन पर टाइप हुआ एक संदेश —
 "मैं अब भी तुम्हारे हर जवाब में खुद को ढूँढ़ती हूँ, अयान…"
 उसने यह मैसेज कई बार लिखा था। हर बार मिटा दिया था।
 पर आज उंगलियाँ रुक नहीं सकीं।
 Send.

अगले ही पल...
 ब्लू टिक।
 और नाम — आर्यन शर्मा।
 उसका बॉस।

त्रिशा के भीतर जैसे कुछ चटक गया हो।
 वो गलती नहीं थी, वो एक भूचाल था।

फोन बजा। उसकी सबसे पुरानी दोस्त मीनल थी —
 "तू ठीक है?"
 "नहीं… मैंने अयान को नहीं, आर्यन को भेज दिया।"
 मीनल मुस्कराई, "तो ज़िंदगी ने स्क्रिप्ट बदल दी है। देखती हूँ तू कैसे निभाती है अगला सीन।"


 ऑफ़िस की ओर जाते हुए त्रिशा का मन डर से भरा था।
 हर आवाज़ धीमी, हर कदम भारी।
 ऑफिस में आर्यन का व्यवहार सामान्य था — सिवाय उस एक नज़र के, जो उसने त्रिशा की ओर डाली… थोड़ी देर तक… बिना कुछ कहे।

दोपहर होते-होते त्रिशा कॉलेज के दिनों में लौट गई —
 कविता मंच, अयान की तालियाँ, और वो अधूरी कविता…
 “तुम्हारा जाना भी एक कविता है…”
 अचानक लगा जैसे बीते हुए शब्द अब भी भीतर गूंज रहे हों।

शाम ढली। Slack पर मैसेज आया:
 "क्या तुम जाने से पहले मेरे केबिन में आ सकती हो?"
 उसके दिल ने धड़कना बंद कर दिया।



 आर्यन का केबिन आज कुछ और ही लग रहा था —
 त्रिशा बोली, “सर… वो मैसेज…”
 आर्यन ने उसे रोकते हुए कहा, “मुझे मालूम है, वो मेरे लिए नहीं था।
 पर तुम जानती हो… वो मुझे सुनना ज़रूरी था।”

फिर उसने कहानी सुनाई —
 सिया, कॉलेज की एक कवयित्री, जिसने एक बार उसे भी ऐसा ही मैसेज भेजा था।
 जिसका जवाब उसने कभी नहीं दिया।
 "मैंने सोचा था, भावनाएँ दिखाना कमज़ोरी है," उसने कहा।

त्रिशा की आँखें भर आईं।
 “तुम्हारे शब्दों ने मुझे मेरे भीतर के कवि से फिर मिलवाया है।”
 उनके बीच एक मौन संवाद पनप रहा था।


 ऑफिस की हवा अब कुछ बदलने लगी थी।
 आर्यन थोड़ा मुस्कराने लगा। चाय की चुस्कियों में भी भाव दिखने लगे।
 त्रिशा ने एक दिन एक नोट पाया:
 "तुम्हारी लाइन — 'सच हमेशा दयालु नहीं होता...' — मुझे भीतर तक छू गई।"

मीनल ने कहा,
 “शायद वो मैसेज आर्यन के लिए नहीं था,
 पर उसका पढ़ा जाना तुम्हारे लिए ज़रूरी था।”

और फिर…
 अयान की एक पोस्ट —
 नई प्रेमिका के साथ।
 "She reads me like a poem I never finished."
 त्रिशा की आँखें भीग गईं —
 पर इस बार टूटने से नहीं,
 बल्कि किसी पुराने भार के उतरने से।

 गोवा में शूटिंग के दौरान, आर्यन और त्रिशा के बीच फिर कुछ और खुला।
 रेत पर बैठकर उन्होंने अपने भीतर की आवाज़ें सुनीं।

“क्या तुमने कभी उस शख़्स को वो मैसेज भेजा?”
 त्रिशा मुस्कराई —
 “अब ज़रूरत नहीं रही। तुम्हारे पढ़ने के बाद… कुछ हल हो गया।”

आर्यन ने कहा,
 “ब्रह्मांड शब्दों को उस तक पहुँचा देता है… जिसे उनकी ज़रूरत होती है।”

उनकी आँखों में कुछ ठहर गया था।
 एक संभावना, एक मौन रिश्ता।


 मुंबई लौटते ही ख़बर मिली —
 आर्यन ने रेज़िग्नेशन दे दिया।
 “मैं अब कुछ अपना शुरू करना चाहता हूँ,” उसने कहा —
 “जहाँ डेडलाइन्स नहीं, दिल हों।”

विदाई के बाद, त्रिशा को एक लिफ़ाफ़ा मिला:
 "तुम्हारे लिए।"

उसमें लिखा था —
 "तुमने गलती से जो भेजा, वो मुझे मिलना ही था।
 तुम्हारे शब्दों ने मुझे बदल दिया।
 अगर कभी साथ में कुछ लिखना चाहो — पेशेवर या व्यक्तिगत —
 तो तुम जानती हो, मुझे कहाँ ढूँढ़ना है।
 – तुम्हारा, आर्यन"

त्रिशा मुस्कराई।
 उसने फोन उठाया और टाइप किया:
 "मुझे लगता है… मुझे अब जाकर सही व्यक्ति मिल गया है।"

जवाब आया:
 "तो चलो अगला अध्याय साथ में लिखते हैं।"


कभी-कभी ज़िंदगी हमें एक ग़लती की शक्ल में सबसे सही मोड़ देती है।
 एक अधूरा संदेश…
 किसी अधूरे दिल तक पहुँचकर
 एक पूरी कहानी की शुरुआत बन जाता है।


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