भाई की जमीन"
भाई की जमीन"
गांव काँकर खेड़ा, मुरादाबाद से पच्चीस किलोमीटर दूर, एक ऐसी जगह थी जहां सड़कें नहीं थीं, सिर्फ पगडंडियाँ थीं — और रिश्ते भी वैसे ही सीधे-सच्चे, बिना मोड़ के।
पिता के निधन के बाद, बड़े भाई ने ही मुझे पाला, पढ़ाया, और जीवन की दिशा दी। मुझे नौकरी मिल गई, शादी हो गई, बच्चे हुए और फिर धीरे-धीरे मैं उसी आदमी को भूल गया जो मेरे लिए पिता जैसा था।
जिंदगी ने अपनी रफ्तार पकड़ ली — ट्रांसफर, बच्चों की पढ़ाई, करियर की दौड़ — और मैं भूलता गया कि मेरी नींव किसी और ने रखी थी।
एक दिन गांव से किसी ने बताया कि भाई साहब की हालत ठीक नहीं, बेटी की शादी तय है और पैसे नहीं हैं। उस रात नींद नहीं आई। सुबह होते ही गांव पहुंचा। भाई साहब ने मुझे देखकर जैसे सालों बाद सास ली हो। मैंने अपने हिस्से की जमीन उनके नाम कर दी — बिना शर्त, बिना दिखावे।
शादी में गया, लेकिन ना मैंने पूछा ना उन्होंने बताया कि जमीन बिकी या नहीं। फिर समय बीतता गया। परिवार में जब यह बात बताई तो भूचाल आ गया। लेकिन मैंने साफ कहा — “उस जमीन पर पहला हक मेरा नहीं, उनका था। जो आप समझ नहीं सकते, वही रिश्ता है हमारा।”
समय ने करवट ली, भावी नहीं रहीं। भाई और टूट गए। मैंने उन्हें बुलाया — बरेली या बंगलौर आने का निमंत्रण दिया। खुद भी रिटायर हो कर बंगलौर आ गया।
छोटे से स्टडी रूम में ज़िंदगी सिमट गई — एक फोल्डिंग पलंग और एक चटाई। तभी एक दिन भाई साहब का फोन आया — “तबीयत ठीक नहीं है, आ रहा हूं।”
भाई साहब आए, रहे कुछ दिन, चुपचाप सबको देखा और लौट गए। एयरपोर्ट पर जाते हुए एक लिफाफा दिया — “घर जाकर खोलना।”
घर आकर जब लिफाफा खोला तो हाथ कांप गए।
अंदर दो करोड़ का चेक था और एक पत्र।
"प्रिय भाई अशोक,"
"तुमने जो जमीन मेरे नाम की थी, मैंने कभी बेची नहीं। वह मेरी आत्मा थी। शादी के लिए गिरवी रखी, फिर कर्ज चुका दिया। अब सरकार ने अधिग्रहण कर लिया और मुझे उसके बदले धन मिला। लेकिन मुझे क्या चाहिए?
ये दो करोड़ तुम्हारे हैं — बेटों का कर्ज उतर जाएगा। मेरी बेटी कुछ नहीं चाहती, बस रक्षाबंधन और भाई दूज पर एक फोन कर देना।
मुझे पैंक्रिएटिक कैंसर है। सिर्फ कुछ महीने बचे हैं। प्रधान को कह दिया है, तुम्हें बुलाएगा। तुम ही मुझे अग्नि देना — नहीं तो आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।
एक और बात — जब तक तुम हो, और तुम्हारे बाद तुम्हारे बेटे, मेरी बेटी को मायके की याद दिलाते रहना। मायका सिर्फ एक घर नहीं होता — वो एक भाव होता है, जिसे सिर्फ बेटी समझती है।"
तुम्हारा,
भाई।
पत्र हाथ में था और आंखें भीग चुकी थीं। परिवार चुपचाप था — कोई कुछ नहीं बोला। हम गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं। अब जब तक भाई हैं, हम गांव में ही रहेंगे।
