समझदारी
समझदारी
राजेश्वर बहुत दयालु इंसान थे। एक बार गाँव गए तो बगल में रहने वाले मुनीम काका से उनकी मुलाकात हुई।अरे मुनीम काका ! कैसे हो? तबीयत ठीक रहती है?काकी और शंकर कैसे हैं?
अरे बेटा धीरे-धीरे बोला कर ! इतना बड़ा हो गया पर एक साँस में दस सवाल पूछने की आदत नहीं गई।
हाहाहाहाहा काका आप भी ! राजेश्वर हँस पड़े।बुढ़ापा है बेटा !आँखें कमजोर हो गई ! छोटा वाला बेटा कमा रहा है ! तो घर चल रहा है !
शंकर तो आवारागर्दी में बर्बाद है !काका उसे मेरे साथ भेज दो !बेटा वो तेरा हाथ बंटाने की बजाय, नुकसान ही करेगा !
मैं इसलिए तुम्हारे साथ नहीं भेजना चाहता !निश्चित रहिए काका ! ऐसा कुछ नहीं होगा !मुझे पर भरोसा रखिए !
ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्जी !मुंबई के नाम से शंकर खुशी-खुशी अपना सामान बाँधने में लग गया।उसकी आँखों में समंदर की लहरों की तरह सपने उमड़ने लगे।
राजेश्वर का रंग-रोगन, नक्काशी, डेकोरेशन का काम था। उन्होंने शंकर को काम सिखाना शुरू कर दिया।शंकर के कई दोस्त बन चुके थे।
शुरू-शुरू में ईमानदारी से काम करने के बाद शंकर के मन में लालच आने लगा।राजेश्वर ने शहर से दूर कहीं काम का ठेका लिया ।
शंकर ! !जी दादा? जितना भी काम आए वो सब डायरी में नोट कर लेना !सबको कहना दस दिन बाद हो सकेगा।
जी दादा हो जाएगा ! राजेश्वर के जाते ही शंकर ने बड़े काम खुद नोट कर लिए। और छोटे-छोटे काम शंकर के आने से पहले करके पैसा भी रख लिया।
राजेश्वर आकर डायरी देखते हैं सिर्फ एक ही काम आया? जी दादा ! शंकर बोला।दादा गाँव से फोन आया था ! बाबा बीमार है ! मुन्ना को छुट्टी नहीं मिल रही है !
अगर आप..अरे पहले बताना था ! मैं तुम्हारे जाने की व्यवस्था करता हूँ ! नहीं-नहीं दादा ! शंकर हड़बड़ाकर बोला, मैं चला जाऊँगा !
शंकर वहाँ से निकलकर एक धर्मशाला में रुक गया और जो काम डायरी में नोट किए उन्हें निबटाने में जुट गया।वो यह नहीं जानता कि कोई उसपर नजर रखे हैं।
राजेश्वर को शंकर पर पहले ही शक हो गया था।राजेश्वर ने उन सभी ग्राहकों से बात कर शंकर के हाथ में पैसा देने से मना कर दिया।
सबने बहाना बनाकर कुछ दिन के लिए शंकर का भुगतान रोक दिया।अब शंकर शहर छोड़कर भी नहीं जा सकता था।
मजबूरन उसे राजेश्वर के वापस जाना पड़ा।आ गए तुम? कैसे हैं मुनीम जी !अब ठीक है इसलिए लौट आया !
हम्म ठीक है !आज नया माल आया है गिनकर रख दो ! जी दादा !राजेश्वर बाहर निकलकर उन सभी को भुगतान करने के लिए आने को कहते हैं।
थोड़ी देर में वो सारे दुकान पर थे।राजेश्वर जी आप नहीं थे तो शंकर ने सारा काम बड़ी जिम्मेदारी से पूरा किया !
यह लीजिए आपके पैसे !अपनी मेहनत की कमाई यूँ जाते देख शंकर को पहली बार महसूस हुआ कि क्यों बाबा अपनी कमाई बर्बाद होते देख उसे गाली देते थे।
शंकर यहाँ आओ ! मुझे पता था तुम बहुत गुणी हो ! इसलिए तुम्हें अपने साथ लेकर आया था। तुमने मेरी पीठ पीछे सारा काम संभाल लिया !
आज मैं बहुत खुश हूँ !यह लो सारे पैसे रखो ! मैं जानता हूँ यह तुम्हारी मेहनत की कमाई है. !आगे से कभी किसी के साथ बेईमानी मत करना !समझ तो गए होगे? मैं क्या और क्यों कह रहा हूँ?
मुझे सब पता चल गया था ! चाहता तो तुम्हें धोखाधड़ी करने के लिए जेल भेज सकता था !पर नहीं,काका से वादा किया है !तुम्हें काबिल बनाऊँगा !
आज से तुम इन पैसों से अलग काम शुरू करो ! मुझे माफ़ कर दो दादा ! शंकर शर्मिंदा होकर राजेश्वर के पैरों में गिर गया।
राजेश्वर की समझदारी ने शंकर को बदल दिया। शंकर ने अपना सारा ध्यान काम पर लगा दिया, और कुछ ही दिनों में राजेश्वर कम्पनी के साथ राज-शंकर नाम से शंकर की कम्पनी भी फेमस हो गई।
राजेश्वर की समझ-बूझ से शंकर का भविष्य सुधर गया। एक नाकारा इंसान मुंबई आकर काबिल इंसान बन गया।