समझदारी रंग लायी
समझदारी रंग लायी
फ्लैट के बाहर एक कोने में हमेशा कचरा फैला देख मेरा मन कुफ्त हो जाता था ! वहाँ सब्जियों और फलों के टुकड़े और चिप्स के पैकेट्स आदि बिखरे पड़े रहते थे !
अपने पड़ोसन से यह बात मैं नहीं कह पाती थी ! कहें तो कैसे कहें! 'मुसीबत के वक्त अपनों से पहले पड़ोसी ही काम आते हैं !' यह जुमला मुझे कुछ कहने से रोक देता था।लेकिन मैं आखिर कब तक बर्दाश्त करती रहूँ ? कचड़े को ये कूड़ेदान में क्यूँ नहीं डालते ? इससे मैं बहुत परेशान रहती थी।"
अंततोगत्वा मन में चल रहे उथल-पुथल से बाहर निकलने का मैंने ठान ली ।दूसरे दिन सुबह उठते ही मैंने पति से कहा, “ अपने पड़ोसी शर्मा जी से आज आपको बात करनी ही पड़ेगी । ये घर को चकाचक रखते हैं , लेकिन बाहर के स्पेस को बहुत गंदा कर देते हैं ! स्वीपर रोज झाड़ू मारकर जाता है, फिर भी कचड़े का ढेर जस का तस पड़ा रहता है !यह हम दोनों का कामन स्पेस है न ! हमारे परिजन जो हमसे मिलने आते हैं ... यहाँ बिखरे कचड़े देखकर क्या सोचते होंगे!?”
“ ओह! फिर वही कचड़े....का राग तुम अलापने लगी ! सुबह-सुबह मेरा मूड मत खराब करो । तुम औरत कभी शांत से रह ही नहीं सकती !”
पति की फटकार सुनते ही मेरा पारा हाई हो गया ! मेरी आक्रामक मुद्रा को परखते इन्हें देर न लगी, तुरंत मनुहार करते हुए इन्होंने कहा, “अरे , छोड़ो इन झमेले को। आज सन्डे है, चलो, इनर्जी पार्क से टहल आते हैं।”
गुस्से को दरकिनार कर मैं भी इनके साथ पार्क के लिए निकली ।जैसे ही मैंने घर से बाहर कदम रखा कि कूड़े के ढेर पर नज़र पड़ी ! मैंने पति को केहुनी मार कर कूड़ा दिखलाया।
तभी पड़ोसी के अधखुले दरवाजे से उनके टीवी पर चल रहे मोदी जी का 'स्वच्छ-भारत अभियान'...का जोरदार भाषण सुनाई पड़ा।
अचानक पति के चलने की दिशा बदल गई । पड़ोसी शर्मा जी पर नजर पड़ते ही ये मेरा हाथ छोड़ तेज कदमों से उनके घर में घुस गये।
अब उनके घर से भाषण के बदले मुझे पति की कड़क आवाज़ सुनाई पड़ रही थी । मैंने गहरी सांस भरी... और अपने दरवाजे को खोलकर घर के अंदर घुस गई।
उस दिन के बाद से स्पेस में कचड़े का नामोनिशान कभी नहीं दिखा।