समझ
समझ
घरवाले उनका मुंह भी देखना नहीं चाहते हैं, ऊपर से उसी दिन रोहन को सारे जायदाद से बेदखल भी कर दिया था। तब से लेकर आज तक रोहन और सोनिया दोनों जयाजी के पास ही रहते हैं। दोनों के बीच का प्यार और जुनून से दोनों को एक दूसरे से इस कदर जोड़ रखा है की जैसे चांद और रात हो दोनों। जयाजी भी उनको खुस देख कर बहुत संतोष की जिंदगी गुजार रही थी कल तक, जब तक सोनिया को दिल का दोहरा नही पड़ा था। यूं सोनिया को अचानक दिल का दोहरा पड़ने से पूरा परिवार सदमे में आ गया है।
रोहन के आंसू देख के तकलीफ जयाजी को हो तो रही थी, लेकिन वो खुद को बड़ी मुस्किल से संभाले हुई थी और रोहन को दिलासा दे रही थी।
"रोहन बेटा, मत रो, सब ठीक हो जायेगा।"
"लेकिन क्यों? क्या कमी थी उसको?"रोहन बिलक बिलक के पूछता है।
"हर बार कमियां ही वजह नहीं होती, शायद..."बोलते बोलते जयाजी रुक जाती हैं।
"शायद .. शायद क्या?"रोहन पूछता है।
" कुछ नहीं।" जयाजी जवाब देती हैं और बात को बदलने के लिए फिर तुरंत पूछती हैं..
"तुमने सुबह से कुछ खाया नहीं है, ये लो में सैंडविच लाई हूं घर से बना के , तुम खा लो।" रोहन माना करता है ,लेकिन जयाजी एक ममतामई मां की तरह उसको खिला देते हैं।
तभी ऑपरेशन थियेटर का लाल लाइट बंद होता है और दरवाजा खोल कर डॉक्टर बाहर आते हैं। डॉक्टर को आते देख जयाजी और रोहन भागते हुए दोनो उनके पास जाते हैं, और व्यग्रता से पूछते हैं एक ही स्वर में..."कैसी है अब सोनिया।"?
"कैसी है मेरी बेटी।"?
डॉक्टर जवाब देते हैं.."ठीक है अभी। खतरे से बाहर है लेकिन अब उनका ज्यादा खयाल रखना पड़ेगा। उनको किसी भी बात से कोई चोट न पहुंचे ना धक्का लगे।"
"क्या हम उसको देख सकते हैं?"रोहन पूछता है आतुरता से।
"हां, देख सकते हैं, पर बात नहीं कर सकते। हम उनको अगले 24 घंटे अपने निगरानी में रखेंगे। उसके बाद ही कुछ बता सकते हैं।"
इतना बोल कर डॉक्टर वहा से चले गए, डॉक्टर के जाते ही रोहन और जयाजी दरवाजे के बाहर खड़े होकर दरवाजे पर लगे कांच से सोनिया को बेहिस पड़े हुए देखते हैं। जयाजी सोनिया की हालत देख कर भावुक तो होती है,लेकिन कमजोर नहीं होती। होती भी कैसे, उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ झेला हुआ है। कम उम्र में शादी, फिर दो साल में पति का गुजर जाना, समाज के उल्टे सीधे ताने झेलना, एक छोटी सी बच्ची को पढ़ा लिखा कर अकेले बड़ा करना, लोगों के हजार गंदी नजर के बावजूद किसी के आगे न झुकना और दूसरी शादी नही करने का फैसले पर अटल रहना, नौकरी कर के घर संभालना और अपने खुदके अरमानों की आहुति देना, जैसे बहुत कुछ उनके जीवन गाथा है। लेकिन उनके हस्ते मुस्कुराते चेहरे को देख कर कोई नहीं बोल सकता की उन्होंने इतना कुछ झेला है अपनी लाइफ में। रोहन को कितनी सहजता से समझा दिया उन्होंने ,इसी से उनके अनुभव का अनुमान लगाया जा सकता है।
अब सोनिया स्वस्थ होकर , घर आगई है। रोहन भी बहुत खुश है उसके साथ। पर जैसे कुछ बदल सा गया है सोनिया के अंदर। सोनिया अब जयाजी से बात नहीं करती, घुमा फिरा के ताने कसती है, सीधे मुंह बात करती है ना समझती है। ये बात रोहन को बहुत सता रही थी। रोहन बहुत धैर्य से इन सब बातों को टाल रहा था, उपर से जयाजी ने कसम दे रखा था उसको,की सोनिया को कुछ न बोले। पर रोहन धीरे धीरे सोनिया के बात से अभ गया था। क्यों कि जिस तरह वो जयाजी को अपनी मां से ज्यादा मानता था और इज्जत करता था। इसीलिए वो खुद को ज्यादा दिन तक रोक न सका , और एक दिन सोनिया पर चिल्लाते हुए उसको एक थप्पड़ मारा और बोला...जब तुमको पूरी बात पता नहीं, तो किसी पर बेबुनियाद सक मत करो और न ही उल्टा सीधा सुनाओ। जयाजी ने उसको रोकना चाहा लेकिन वो आज कुछ सुनने के हालात पॉप में ना था। "
उसने सोनिया को बोला..
"जैसा तुम सोच रही हो, वैसा कुछ नहीं है। उस दिन में और मां दोनों घर पे अकेले थे , तुम्हे आने में लेट हो रहा था। मां को पिता जी की बहुत याद आ रही थी, मैं बस उसको सहारा दे रहा था। और तभी तुम आ गई, हमे एक साथ देख कर गैर समझ हो गया तुम्हे और तुम गलत समझ बैठी। पर तुम अपनी मां पर, देवी जैसे मां पर सक कैसे कर सकते हो यार। इस बार बहुत गलत हो तुम और तुम्हारी सोच। "
सोनिया को पछतावा हो रहा था, जयाजी की आंखें नम होगी थी। क्यों की अपनी औलाद गलत समझ बैठी और जिसको औलाद माना था उसने देवी का दर्जा देदिया।सोनिया की आंखों से अब आंसू बहने लगे और वो रोते हुए जयाजी के गले लग गई और माफी मांगने लगी। अब सारे काले बादल हट गए थे और खुशी के चमक पसर रही थी।