Rishab k..

Children Stories Drama Tragedy

4.5  

Rishab k..

Children Stories Drama Tragedy

अभिशप्त रावण।

अभिशप्त रावण।

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ये कहानी सिर्फ एक व्यक्ति विशेष या किसी समुदाय की नहीं है, बल्कि एक अनोखे विचारधारा की है। किस प्रकार एक इंसान अपने सघन मेहनत और असीम लगन के साथ अपनी कला को बिकाशीत करता है , लोगों की वाहवाही बटोरता है। कलाक्षेत्र में अपने प्रदर्शन से लाखों लोगों का दिल जीतता है और फिर उसके एक गलत फैसले से कैसे उसकी जिंदगी का रुख एक दम बदल जाता है, उसके सारांश की कहानी है "अभिशप्त रावण"।

ये दास्तान शुरू होती है ओडिशा के पूरी जिल्ले से, जहां हर इंसान, हर गली और हर मोहल्ले का एक खास संस्कृति है । पहला ईश्वर जगन्नाथ और दूसरा अखाड़ा। यहां अखाड़ा सिर्फ एक खेल या मनोरंजन का माध्यम नहीं, अपितु एक भावना, एक संभावना, एक रिवाज और एक मानविक धरोहर की परिभाषा है। हर नौजवान यहां जगन्नाथ को दिल में पूजता है और अखाड़े से बेहद मोहब्बत करता है। उसी गांव में हर साल की तरह इस साल भी एक महोत्सव का आयोजन हुआ है, जहां रामायण को एक नाटक की तरह पेश किया जायेगा। और हर बार की तरह इस बार भी लाखों की तादाद में लोग आए हैं और साथ ही भारतीय नाट्य कला आयोग के कुछ लोग भी आए हैं। सालों से चले आ रहे वाद विवाद और लोगों की मांग को नजर में रख कर सरकार ने ये फैसला लिया है की अब ये लोक कला को स्वीकृत नाट्य कला का दर्जा दिया जाए, इसीलिए सरकारी खेमे के लोग यहां इस नाटक को देखने के लिए आए हैं।

नाटक का मुख्य आकर्षण "रावण" है , जिसकी भूमिका शिवदास(३५) करने वाला है। सारे गांव की आंखें उस पर टिकी हुई है। ना जाने कितने सालों से वो इसकी अभ्यास में लगा हुआ है और न जाने कितनी दफा वो लोगों को अपने अभिनय और नृत्य से मोहित कर चुका है। आज भी लोग बेताब और बेचैन हैं उसको देखने के लिए। मोहल्ले के और अखाड़े के सारे लोग भी अधीर हैं क्योंकि आज उनके नियति का परीक्षा होगा और उनके ये परीक्षा किसी भी हालत में उत्तीर्ण होना है।

तभी माइक पर घोषणा सुनाई देता है की हर साल के मुकाबले रावण इस बार सबसे भारी वजन का कॉस्ट्यूम और ताट पहनने वाला है, जो की एक नया आयाम होगा, े। एक नया बिश्वबिक्रम निर्माण होगा। लोगों की उत्सुकता को दूर करते हुए रावण स्टेज पर आता है। रात का वक्त और आसमान में बादल गरज रहे हैं और बिजली कड़क रही है, जैसे चारों दिशाएं और आसमान भी रावण के स्वागत के लिए उत्सुक हो।

रावण अपने नृत्य शुरू करता है और संवाद साधन करता है। रावण के संवाद और नृत्य से लोग अभिभूत होते हैं। वो घड़ी आती है जिसका सबको बेचैनी से इंतजार था, रावण के वो मुख्य श्लोक संवाद। जैसे ही रावण उसको बोलने जाता है,आसमान में बिजली जोर से कड़कती है और रावण के कॉस्ट्यूम का एक बड़ा ताट टूट जाता है , जिससे रावण का संतुलन बिगड़ जाता है और वो जमीन पर गिर जाता है। सब कुछ जैसे ठहर सा जाता है, वक्त रुक जाता है। लोग चौंक जाते हैं, अखाड़े वाले परेशान हो उठते हैं।

वहीं से हम सीधा अतीत में चले जाते हैं, जहां शिवदास को देखते हैं जो अब बस ७ साल का है। जगन्नाथ के मंदिर में सेवायत की तरह काम करता है। लेकिन शिवदास का मन हमेशा अखाड़े में ही होता है,जब भी वक्त मिले वो तुरंत अखाड़ा पहुंच जाता है। वहां सबको अभ्यास करते हुए देखता है और खुद करने की कोशिश करता है। रोज उसके लगन और निष्ठा देख कर अखाड़े के गुरु मदन पांडा(४०) उसको अभ्यास करने की अनुमति देते हैं। यहीं से शुरू होता है एक सच्चे लगन और सघन मेहनत की कहानी जो आगे जाकर सफलता की बुलंदी को छूने वाला था।

अखाड़े से उसको प्यार और लगाव तो था ही, ऊपर से गुरु के प्रशिक्षण और तत्वावधान में वो और निखरने लगा। धीरे धीरे वक्त के साथ उम्र भी बढ़ने लगा और अखाड़े की कला में विकास भी होने लगा।

अब उसकी उम्र कुछ १७ साल के आसपास हो चुका है। इसी दौरान वो अखाड़े में प्रदर्शन भी करने लगा है और हर मोहल्ले में उसकी एक पहचान भी बनने लगी है। तभी उसकी मुलाकात एक लड़की महिमा(१५) से होती है। महिमा ओढिशी नृत्य की शिक्षा ले रही है और शिवा के घर के पास रहती है। शिवा को महिमा बहुत अच्छी लगती है और वो अब उसकी ओर आकर्षित होने लगा है। महिमा भी धीरे धीरे शिवा की दोस्ती को पसंद करने लगती है। दोनों एक दूसरे के साथ वक्त बिताने लगते हैं।

जो शिवा रोज मंदिर और अखाड़े के अलावा कहीं नहीं जाता था ,कुछ नहीं जानता था और समझता था ; वो अब महिमा की तरफ इतना आकर्षित हो चुका था की उसको महिमा के अलावा और कुछ नहीं दिखता था। ना मंदिर में ठीक से काम करता था न अखाड़ा में पूरा वक्त देता था। उधर महिमा का भी वही हाल था, वो भी शिवा के लिए ठीक से नृत्य पर ध्यान नहीं दे रही थी। दोनों का प्यार वक्त के सागर में गोते खा रही थी और मोहब्बत के बुलंदी को छूने के ख्वाब देख रही थी।

तभी एक दिन मदन जी को यह बात पता चलता है की शिवा किसी लड़की से प्यार करने लगा है। उनको बहुत गुस्सा आता है ये बात जान कर। वो अगले दिन शिवा को अखाड़े में बुलाते हैं और बहुत अपमानित करते हैं और उसको अखाड़े से निकल जाने का हुकम देते हैं। शाम को शिवा समंदर किनारे अकेले उदास और मायूस बैठा होता है , तभी मदन जी वहां आते हैं। वो मदन जी को देख कर थोड़ा थोड़ा घबरा जाता है, लेकिन इस वक्त मदन जी उसको बड़े प्यार से और आदर से पास बिठाते हैं और समझाते हैं। अखाड़े की संस्कृति, परंपरा और अनुशासन के विषय में। अखाड़ा खेलना और उसको नियम से पालन करना, दोनों ही बेहद जरूरी हैं। उसको समझाते हुए मदन जी बोलते हैं, नारी और नशा ये अखाड़े के शत्रु हैं। इनसे जितना हो सके दूर रहना चाहिए। ईश्वर ने मनुष्य को एक ही आयु प्रदान किया है। एक बार वक्त बीत गया और उम्र ढल गया तो वापस नहीं आएगा। सांसारिक और गृहस्थ जीवन के लिए एक उम्र है, उससे पहले इंसान अपने अंदर की प्रतिभा को निखारना बहुत जरूरी है।

शिवा को गुरु की हर बात अब समझ आती है। वो ये समझ चुका था की अगर उसमे प्यार मोहब्बत में वक्त जाया किया तो अखाड़े को खो देगा, जो वो हरगिज़ नहीं चाहता था। और उसको अखाड़े और महिमा में से किसी एक को चुनना पड़ेगा। महिमा को वो छोड़ना तो नहीं चाहता था लेकिन उसके पास दूसरा कोई उपाय नहीं था दोनों चीजों को एक साथ रखने का। और वो अखाड़े से दूर नही रह सकता था इसीलिए उसने फैसला किया की आज के बाद महिमा का चेहरा नहीं देखेगा।

ठीक वैसा ही हुआ और फिर उसने कभी महिमा को नहीं देखा न मिलने की कोशिश की। वक्त के साथ वो अखाड़े से इतना जुड़ गया की उसके प्यार के जख्म भर गए। अब अखाड़े में खेलना उसका जिंदगी बन गया था और एक सपना था की वो एक बार बद्ध रावण की भूमिका अदा करे। लेकिन उसके लिए उसकी उम्र और शरीर दोनों ही छोटे थे। उसने दिन दुगनी और रात चौगनी मेहनत की और खून पसीना एक कर दिया खुद को काबिल और निराला बनाने में। अब उसकी उम्र २५ साल हो चुका है। उम्र और शरीर दोनों की बढ़ चुके हैं। सिर्फ बढ़े नहीं इतने मजबूत, सुडौल और शक्तिशाली हो चुका है की एक साथ १०/१५ लोगों पर भारी पड़े।

अब शिवा रावण का किरदार निभाने लगा है और लोगों से वाहवाही लूटने लगा है। उसके इस कमियाबी से उसके गुरु मदन बहुत प्रसन्न हैं। और इतने सालों में शिवा का एक दोस्त भी बना है, जिसका नाम प्रताप(२५) है। वो शिवा का सबसे जिगरी और करीबी दोस्त है, जो उसके है प्रदर्शन के वक्त ढोल और तासे बजता है। ये दोनों ही मंदिर में मिले थे और वहीं काम करते करते इनकी दोस्ती पक्की हो गई। दोनों एक दूसरे के साथ हमेशा रहते हैं, सुखदुख बांटते हैं, भांग पीते हैं और अखाड़ा करते हैं।

इतने साल शिवा रावण बनते बनते इतना महारथ हासिल कर चुका है की उसको अब वो खेल लगने लग गया है और बहुत आसान लगता है उसको वो सारी चीज़ें जो दूसरों के लिए बहुत कठिन है।

धीरे धीरे महोत्सव का दिन नजदीक आ रहा है। इस बार सरकार के लोग आने वाले हैं अखाड़ा देखने। इसीलिए सारे अखाड़े वालों का चिंता बढ़ गया है और सब अपनी अपनी कोशिश में लग गए हैं की कैसे इस मेले को सफल करें। इस बार बद्ध रावण के लिए शिवा को चुना गया है और उसके ऊपर सारी जिम्मेदारी है अखाड़े की , क्योंकि वो ही मेले का मुख्य आकर्षण है।

एक दिन अभ्यास करते वक्त शिवा अपने गुरु मदन जी से कहता है की इस बार उसे कुछ अलग करना है, कुछ नया करना है जो इतिहास में कभी किसी ने नहीं किया है। गुरु के पूछने पर वो अपने मन की बात उनके बताता है की इस बार उसको सबसे भारी वजन का ताट और कॉस्ट्यूम पहनना है और बिश्वबिक्रम बनाना है। उसकी यह सोच जान कर गुरुजी थोड़ा चिंता में पड़ जाते हैं और उसको ऐसा करने से मना करते हैं। लेकिन वो इस बार जिद्द पकड़ चुका है की उसे कुछ अलग ही करना है। उसके जिद्द के आगे किसी की नहीं चलती। ऐसा लग रहा था कल तक जो बच्चा अखाड़े में हिस्सा लेने के लगन और मेहनत कर रहा था सच्चे दिल से आज वो खुद को ही अखाड़े का ईश्वर समझ बैठा है। रावण अहंकार में आ गया है।

अंत में होता उसका ही है। उसके कहे मुताबिक हर जगह ये बात प्रचार किया जाता है की शिवा इस बार ४० की जगह ७० किलो का ताट पहन कर अभिनय करेगा बद्ध रावण का।

देखते देखते महोत्सव का दिन आ जाता है। लोगों का भीड़ उमड़ पड़ता है रावण को देखने के लिए, साथ ही सरकारी लोग और भारतीय नाट्य आयोग के लोग भी मौजूद होते हैं। फिर वही होता है जो हमने शुरू के देखा था। ताट के टूटने के साथ जैसे रावण का अहंकार भी टूट चुका था।

अब वहां मौजूद लोग और अधिकारी सब एक दूसरे से बात करने लगते हैं । सबकी खुसुर फुसुर शुरू हो जाती है। स्टेज पर पड़ा रावण धीरे धीरे उठता है मगर तभी लाइट्स बंद हो जाती है।

मध्यांतर।

अगले दिन शिवा अपने घर से नहीं निकलता, प्रताप उससे मिलने आता है तो उससे भी नहीं मिलता। कुछ दिन अपने आप को घर के अंदर बंद कर लेता है, किसी से बात नहीं करता। उधर गांव में और आसपास के अखाड़ों में बात फैल जाती है की शिवा ने खराब अभिनय किया और नाम डुबा दिया अखाड़े का। इस वजह से हर जगह उसकी थू थू होती है, निंदा की जाती है। जो लोग कल तक उसके प्रतिभा की प्रशंसा कर रहे थे , आज वही लोग उसकी निंदा करने लगे थे। पूरे मोहल्ले में कानाफूसी होती रहती है और चर्चा का विषय बन जाता है शिवा।

कुछ दिन बाद शिवा अपने घर से निकलता तो है लेकिन अब पहले जैसा हावभाव नहीं थे उसके। वो बदल चुका था, किसी से बात नहीं करता था, चुपचाप रहता था। नजर मिलाने जैसी हिम्मत नहीं थी उसके पास। रावण का घमंड टूटा था साथ में शिवा के अंदर का सब कुछ टूट चुका था। अब उसे कोई अखाड़े में बुलाते नहीं था और न ही उसको कुछ करने को कहता था। प्रताप के अलावा सब ने उसका साथ छोड़ दिया था। शिवा की परेशानी और दुख को देख कर उसके घरवालों ने उसकी शादी करवा दी एक लड़की नमिता (२५) से। धीरे धीरे वक्त के साथ लोग बात करना तक बंद कर देते हैं लेकिन शिवा कभी भूल नहीं पाता वो अपमान। अब शिवा का एक बेटा (राघव ८)हो चुका है।

वो भी शिवा की तरह अखाड़े का बहुत शौकीन रहता है। शिवा अब अखाड़े में तालीम देने लगा है। उसके गुरु मदन जी ने उसके हाथ में अखाड़े की जिम्मेदारी दे रखी है। वो सख्ती से तालीम लेता है सब की, लेकिन कुछ नौजवान लड़के उसको पसंद नहीं करते। लेकिन कोई उसके मुंह पर कुछ बोलता भी नहीं। राघव अपने दोस्तों के साथ खेलता है तो कभी कभी उसको अपमानित होना पड़ता है शिवा के वजह से। फिर भी वो अपने पिता को तालीम देते हुए देखता है। एकलव्य की तरह देख कर वो भी दाव पेच सीखने लगता है। धीरे धीरे वक्त के साथ राघव बड़ा होता है, शिवा बूढ़ा होने लगता है। राघव अब एक धुरंधर अखाड़ेबाज बन चुका है लेकिन उसने कभी अपने पिता से सीधा तालीम नहीं लिया है। अपने पिता जैसी उसके अंदर भी एक लगन है और कुछ कर दिखाने का जज़्बा भी।

उसका एक सपना है की वो अपने पिता पर लगे कलंक को एक दिन मिटाएगा। क्योंकि बचपन के कुछ साल ही उसने अपने पिता से बात किया था और उनका प्यार पाया था। उसके बाद आज तक कभी बाप बेटे एक दूसरे से बात नहीं किए। लाख बुराई होने के बावजूद राघव के लिए उसके जिंदगी का पहला और इकलौता हीरो उसके पिता शिवा ही हैं।

इधर तालीम के दौरान शिवा को एक दो बार बेइज्जती झेलनी पड़ती है। कुछ नए लड़के उसको अपमानित करते हैं। वहां राघव बीच बचाव तो करता है मगर कुछ ज्यादा बोल नहीं पाता। उधर शिवा जिस बात को आज तक भूलने की कोशिश कर रहा है, बारबार उसका वो काला अतीत उसके सामने आ जाता है निंदा , तिरस्कार आए अपमान का सूरत लेकर।

गांव में एक बार फिर महोत्सव की तयारी होती है। एक बार फिर सरकारी लोगों के और वर्ल्ड हेरिटेज ऑर्गेनाइजेशन वालों के आने की खबर फैल जाती है। एक बार फिर मोहल्ले में इतने सालों बाद एक नई ऊर्जा की लहर दौड़ जाती है। हर कोई तैयारी में लग जाता है। लेकिन शिवा अब सब से दूर अपने घर में रहने लगता है, अखाड़े में नहीं जाता। तालीम ठीक से नहीं हो पाती, प्रताप इसलिए सबको डांट लगता है और जिन लोगों ने अपमानित किया था शिवा को , उन सबको शिवा की पूरी कहानी बताता है। इस रात गलती शिवा की नहीं थी, गलती थी टाट बांधने वाले की जिसने ठीक से नहीं बांधा था। गलती थी खराब मौसम की, गलती थी कुछ अलग करने के उत्साह की, गलती थी बड़े सपने देखने की।

ये सब सुन कर सब लोगों को शिवा की असली कहानी का पता चलता है और अफसोस भी होता है। लेकिन कमान से निकला हुआ तीर और मुंह निकली हुई बात कभी वापस नहीं की जा सकती।

सब लोग मिल कर ये तेह करते हैं की इस बार बद्ध रावण राघव को बनाने के लिए। लेकिन ये बात कहेगा कौन शिवा से? फिर सब मिल कर उसके घर जाते हैं और उससे बिनती करते हैं की राघव को रावण बनने की अनुमति देने के लिए।

शिवा को याद आ जाता है सब कुछ। कैसे वो एक बार मौके की तलाश में गया था और आज जैसे नियति का चक्र घुन गया है। आज मौका खुद उसके पास आया है। लेकिन उसको डर था की कहीं इतिहास वापस दोहराया न जाए। जो उसके साथ हुआ वो उसके बेटे के साथ न हो। लेकिन अपने बेटे के उत्साह और मेहनत वो देखा था और जनता था, इसीलिए मना भी नहीं कर पाया।

"मौन सन्मति लक्षण"।

इस आधार पर वो चुप रह कर अपने बेटे को अनुमति भी देता है और आशीर्वाद भी। गांव वाले अब खुश होते हैं। एक तरफ तयारी जोरशोर चल रही है और दूसरी तरफ एक अंतहीन प्रतीक्षा का अंत होने वाला है। शिवा रोज प्रताप के साथ तयारी देखता है चुपचाप।

इस बार महोत्सव का १०० साल पूरा हो रहा है तो हर चीज में एक भव्यता है। अंततः वो दिन भी आ जाता है जिसका शिवा और राघव दोनों को इंतजार था। एक तरफ बेटे का जोश, उमंग और पिता के परिचय को बदलने का स्वप्न साकार होने वाला था और दूसरी तरफ एक पिता के अंदर चल रहे डर और दुविधा की लहर। बेटे साथ वो न हो जो पिता के साथ हुआ है, इस बात की आशंका और ईश्वर से प्रार्थना। दोनों तरफ दो लोग दो महासंग्राम की तैयारी कर रहे थे।

मेला शुरू हो गया। अखाड़े की क्रीड़ा आरंभ हुआ। इधर प्रताप के ढोल के ताल पर शिवा का नाच शुरू हुआ। क्रीड़ा के आगे बढ़ने के साथ शिवा के कदम के नाद तीव्र होते गए। इसी बीच वो क्षण भी आया जब राघव बद्ध रावण के वेश में पंडाल पर आया। मौसम आज भी खराब था, आसमान में बिजली कड़क रही थी। लोगों को उस दिन की याद आ रहीं थी जब शिवा किसी ऐसी ही रात पंडाल पर था, इसीलिए सब डर रहे थे। उधर शिवा भी नृत्य बहुत तेज तेज कर रहा था और कान से सारे अखाड़े की गतिविधि सुन रहा था और देख रहा था दूर से।

इधर रावण ने अपने अभिनय की नई बुलंदी कायम कर दी। पिता पर लगा सारा कलंक मिटा दिया और अब तक का सब से सफल अभिनय पेश कर के दिखाया। ऐसा लग रहा था जैसे राघव नहीं शिवा खुद कर रहा हो। तालियों की गड़गड़ाहट से माहौल गूंज उठा और अधिकारियों में बहुत प्रशंसा की रावण रूपी राघव की और पूरे अखाड़े की। बेटे ने वो आखिरकार कर दिखाया जो बाओ प जा सपना था।

उधर शिवा नाचते नाचते गिर पड़ा और खामोश हो गया। प्रताप बहुत जोर जोर से चीख रहा था , चिल्ला रहा था लेकिन तालियों की आवाज और शोर के नीचे उसकी आवाज दब गई और साथ ही दब गई एक जिंदगी। अंत देखने की इच्छा शिवा की कभी पूरी ही नहीं हुई। वो जिंदगी भर तड़पता रहा इस श्राप से मुक्ति पाने को लेकिन मरते मरते भी श्रापित मौत ही मिली उसको। इसी के साथ "अभिसप्त रावण" की कहानी यहीं समाप्त हुई। बेटा बाप से मिलने आया लेकिन उसकी खुशी भी बाओ प को देख कर आंसू में तबदील हो गए।


                                                  समाप्त


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