Rishab k..

Drama Tragedy

4.0  

Rishab k..

Drama Tragedy

आसिफ साहब।

आसिफ साहब।

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ये कहानी एक ऐसे व्यक्तित्व की है जिसने भारतीय सिनेमा को उसके सबसे बड़े आयाम तक पहली बार पहुंचाया और गौरवान्वित किया।

कहानी शुरू होती है १९४२ की सुबह से, जहां हम देखते हैं की मुंबई का एक रिहायशी पॉश इलाका है। जहां एक बड़े मकान के सामने कोई खड़ा है और एक दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। कुछ देर दस्तक देने के बाद दरवाजा खुलता है और अंदर से एक इंसान बाहर आते हैं जिनका नाम सादत हसन मंटो (३२) होता है। उनके सामने एक नौजवान लड़का खड़ा होता है , जो खुद को कमरुद्दीन आसिफ(२२)बोल कर अपना परिचय देता है। मंटो उसको पहले से जानते थे इसीलिए , हामी में सर हिलाते हुए उसको आने की वजह पूछते हैं। तब वो लड़का उनकी तरफ कुछ कागज के पन्ने बढ़ा देता है। जब मंटो उन कागजों को अपने हाथ में लेते हुए पूछते हैं की ये सब क्या है? तो आसिफ उनको बताते हैं की ये एक फिल्म की कहानी है और उनकी इससे पढ़ना होगा और बताना होगा कि ये कहानी कैसी लगी उनको! मंटो पहले हँसते हैं पहले उसकी बात सुन कर और फिर बोलते हैं की वो कहानी किसी की भी ऐसे नहीं पढ़ते, वो कहानी पढ़ने का पैसा लेते हैं। तब आसिफ एक स्मित हास्य के साथ उनको बोलते हैं की उनको ये बात पता है और तुरंत वहां से निकल जाते हैं, इससे पहले की मंटो कुछ और कह पाते।

मंटो असोफ के इस अजीब बर्ताव से थोड़े चकित होते हैं लेकिन फिर उनको अफ़सोस भी होता है की शायद उन्होंने कुछ गलत बोल दिया है। इतना सोच कर वो उन कागजों को ले के घर के अंदर जाते हैं और दरवाजा बंद कर देते हैं।

कुछ देर बाद ,लगभग एक घंटे के उपरांत, फिर मंटो के दरवाजे पर दस्तक होती है। मंटो इस बार दरवाजा खोलते हैं ये सोच कर की वहां आसिफ होंगे, लेकिन वहां कोई दूसरा नौजवान खड़ा होता है। मंटो को देखते ही वो नौजवान उनको एक लिफाफा दे देता है । मंटो पूछते हैं ये क्या है, तो वो लड़का बोलता है की , उसको नहीं पता। बस उसको किसने दिया तो वो बस उसको मंटो तक पहुंचाने आया था। जब मंटो उसको उस आदमी का नाम पूछते हैं तो वो लड़का मंटो को नीचे की तरफ इशारा करता है। मंटो देखते हैं की नीचे आसिफ खड़ा है। मंटो को देखते ही आसिफ बोलते हैं की , उस लिफाफे में पैसे हैं जो उनकी फीस है । और फिर ये कहते हैं की कहानी पढ़ के रखना है मंटो को और वो कल आ कर उनसे कहानी के बारेमे उनकी राय लेगा। इतना कह कर वो अपनी गाड़ी में बैठते हैं , जो पहले से नीचे खड़ा था और वो लड़का जो लिफाफा देने आया था, वो भी तब तक गाड़ी के अंदर आकर बैठ गया था। गाड़ी चलने लगती है और वहां से निकल जाती है। मंटो लिफाफे में रखे १००/१०० की ५ नोट को देखते रहते हैं और एक मुस्कान देते हैं। यहां से कहानी पिछले अतीत में चला जाता है। हम देखते हैं उत्तरप्रदेश राज्य का इटावा शहर। तब इटावा ब्रिटिश इंडिया का एक प्रोविंस था, जो कुछ खास बिकासित नहीं हुआ था। वहां एक कस्बे में एक घर के अंदर एक बच्चे को उसका बाप पीट रहा है।

बाप का नाम डॉक्टर फैजल करीम(४५) और बेटे का नाम आसिफ (९) है। पास में मां बीवी गुलाम फातिमा (४०)खड़ी है मगर कुछ बोल नहीं रही डर से क्योंकि आज बात ही कुछ ऐसी है। जो बच्चा मार खा रहा है, वो लगातार स्कूल में शैतानी और मारामारी करने की वजह से आज स्कूल से निकला गया है। और हैरानी की बात है लड़के की उम्र बस ९ साल है। उसके इस रवैए से उसके पिता बहुत परेशान हो गए हैं इसीलिए आज गुस्से से उसको मार रहे हैं। उनके बातों से हमें पता चलता है की वो इंसान के दो बेटे ओर हैं जो बड़े अच्छे ओहदे पर काम कर रहे हैं, जहां ये छोटा वाला उनका नाम मिट्टी में मिला रहा है। स्कूल में आए दिन मारधाड़ करना, बदमाशी करना, शैतानी करना और स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं करना ही काम है इसका। इस वजह से उसके पिता अक्सर परेशान रहते हैं। तब तक मार मार के वो थक गए थे तो वहां से चले गए।

अगले दिन अपने बेटे को लेकर वो सीधा पहुंचे एक दर्जी कारीगर के पास, जो असल में उनका दोस्त था। और उनसे कहा की आसिफ को वो अपने पास रखें और काम सिखाएं। वो कारीगर फैजल की बातों को इनकार नहीं कर पाया।

उस दिन से उसने आसिफ को काम सिखाना शुरू कर दिया। आसिफ के अंदर एक अच्छी बात थी, की वो कोई भी काम बहुत जल्दी सीख जाता था और काम की गलती पकड़ लेता था। खुद को बहुत जल्दी विकसित करना और दूसरों की गलती निकालना ये हुनर उसके पास बचपन से था। कुछ दिन तक तो उसकी तालीम बहुत अच्छी चलती रही। उस दरमियान उसके चचेरी बहन सईदा बानो जो आसिफ से २ साल छोटी थी, उनके घर आई थी । जिसको फिल्मों का बड़ा शौक था। अब उनके साथ आसिफ काफी करीब था तो ये चस्का उसको भी लग गया। दिन भर भाई बहन बस फिल्मों की बातें करते। फिर कुछ महीनों में वो वहां से चली गई मुंबई अपने सपनों को पूरा करने और आसिफ वहीं रह गए।

अब आसिफ भी वक्त के साथ बड़े हो रहे थे और उनकी बदमाशियां भी। उम्र के साथ साथ आसिफ रंगीन मिजाज के बन रहे थे। जवानी की पहली स्पर्श से ही उनको प्यार हुआ , वो भी अपने ही उस्ताद की बेटी से। मामला कुछ देर तक चला।

उधर मुंबई में सईदा बानो को काम मिलने लगा और उनका नाम पड़ा स्वर्ण लता। और स्वर्ण लता की मुलाकात होती है उस वक़्त के मशहूर निर्देशक नज़ीर अहमद से और दोनों पहली नजर में ही एक दूसरे को दिल दे बैठते हैं।

इधर आसिफ रंगे हाथों पकड़ा जाता है उस लड़की के साथ और बहुत अपमानित होता है। बस फैजल जी के इज्जत की वजह से बवाल ज्यादा नहीं बढ़ता ,लेकिन इस बात से कुछ खास फर्क आसिफ को नहीं पड़ता। आसिफ को काम से निकल दिया जाता है। अब वो एक दम बेकार हो चुका था और उसके दिमाग में अब सिर्फ फिल्म ही फिल्म थी। दिन भर फिल्मों की बातें करता । तभी आसिफ को एक नाटक की किताब मिली जिसको इम्तियाज ने लिखी थी और जिसका नाम "अनारकली" था। आसिफ उस किताब को रोज पढ़ने लगे, जितना पढ़ रहे थे उतना उनको मजा आ रहा था। बहुत जल्द उन्होंने उस किताब को पढ़ लिया।

इधर इनके पिता फैजल जी अपने बेटे के भविष्य को लेकर चिंतित थे। तभी खबर मिली की सईदा और नज़ीर ने चुपचाप शादी कर लिया है। कुछ दिन बाद वो दोनों फैजल के घर पे आए और सभी रिश्तेदारों को दावत भी दिया। सब लोग खुश थे और सब से ज्यादा खुश आसिफ थे क्योंकि वो सईदा से बहुत करीब थे। उस महफिल के दौरान फैजल ने अपनी परेशानी नज़ीर को बताई। नज़ीर ने अकेले में आसिफ से बात किया तो उनको पता चला की ये तो फिल्म के लिए पागल है। तो अंत में उन्होंने फैजल जी से कहा की एक महीने बाद आसिफ को बंबई भेज देने के लिए। बाकी सारी बातें वहां वो देख लेंगे और जिम्मेदारी भी लेंगे। फैजल शुक्रगुजार हुए नज़ीर के और कुछ दिन बाद सईदा और नज़ीर दोनों वहां से बंबई के लिए रवाना हुए। जाते जाते सईदा ने आसिफ को एक चिट्ठी दी जिसमें लिखा था की "इंतजार रहेगा। अब तेरे सपनों को पंख देने का वक्त आ गया है।"

फैजल ने आसिफ को बंबई भी दिया। वहां आते ही नज़ीर ने उनको एक अच्छे दर्जी उस्ताद के पास काम पर लगवा दिया। आसिफ कहां ये सब काम करने वाले थे, उनका भूत अब सिर्फ फिल्म के लाइट ही था, ऊपर से आशिक मिजाज।

उस तरफ नज़ीर की मुलाकात मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी के साथ हो गई। नज़ीर उनके रूप से घायल हुए और बहुत जल्द दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ गए। इधर आसिफ भी दर्जी उस्ताद के पास काम करते करते उस दुकान के मालिक की बेटी से इश्क लड़ा लेते हैं। कुछ वक्त तक सब ठीक होता है लेकिन एक दिन वहां भी पकड़े जाते हैं, बेइज्जत होते हैं और काम से निकाले जाते हैं।

इधर नज़ीर का प्यार इतना आगे बढ़ गया था की उन्होंने अपनी नई शादी की हुई दुल्हन के होते सितारा देवी से शादी कर लिया। उस वक्त आसिफ के पास भी कोई काम नहीं था और वो घर पर ही रहता था । तो सईदा हमेशा उदास रहती थी, ये वो देखता था। वक्त के सात सब ठीक होने लगे और नज़ीर ने आसिफ को अपना सहायक बना लिया। सितारा देवी को हीरोइन का काम दिया। आसिफ जल्दी काम सिख लेते थे , ये बात नज़ीर को बहुत अच्छी लगी और वो आसिफ पर आंख बंद कर के भरोसा करने लगे थे। लेकिन दूसरी तरफ आसिफ अभी पूरी तरह जवान हो चुके थे और काम करते करते सितारा देवी के करीब आने लगे। अब सितारा देवी शादीशुदा होकर भी अपनी सीमा भूल गई थी और आसिफ के मोहब्बत तो उफान ले रहे थे। दोनों ने फैसला किया की शादी कर लेंगे लेकिन ये बात नज़ीर को पता चल गई और उसने दोनों का मिलना बंद करवा दिया।

इधर आसिफ को बंबई में एक दोस्त मिला, जो लेखक था। जिनका नाम कमाल अमरोही था। कमाल और आसिफ बहुत जल्दी एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे। तभी आसिफ अपने पहली फिल्म की तयारी में लगे थे, प्रोड्यूसर की तलाश कर रहे थे। क्योंकि उनको तो पहले से सुरूर था की वो कोई फिल्म बनाएं जो अनारकली पर आधारित हो। लेकिन उस वक्त कोई प्रोड्यूसर उनकी कहानी में रुचि नहीं दिखाते थे क्योंकि जिस सलीम और अनारकली की कहानी ते बनाना चाहते थे , वैसा कोई सलीम था ही नहीं सचाई में। अकबर के बेटे का नाम जहांगीर था और उनके बेटे का नाम शाहजहां था। और दोनों के नाम की फिल्म आ चुकी थी, जिसमे से कारदार प्रोडक्शन में बनी कारदार साहब की शाहजहां बहुत हिट थी। इसीलिए आसिफ थोड़े परेशान थे और तभी उनको कमाल ने एक कहानी सुनाई, जो आसिफ को बहुत पसंद आई।

ये वही कहानी है जिसको लेकर वो मंटो के पास गए थे। उस दिन मंटो को मालूम नहीं था, लेकिन बाद में मालूम चला की आसिफ ने वो पैसे अपने मेहनत से खरीदा हुआ सिलाई मशीन बेच कर दिया था।

अब हम वापस वर्तमान में आए हैं जहां आसिफ अगले दिन फिर मंटो से मिलते हैं और अपनी कहानी के बारे में पूछते हैं। तब मंटो उनको बताते हैं की ये उनके पूरी जिंदगी में पढ़ी गई सारी घटिया कहानियों में से सब से घटिया और बकवास है। तब मुस्कुराते हुए आसिफ अपनी कहानी वापस लेते हैं और बोलते हैं की वो यह इस घटिया कहानी का फिल्म बनाएंगे और कहानी किसे कहते हैं सब को बताएंगे।

उधर सितारा देवी और आसिफ मौका देख के छुप छुप के मिल रहे थे, लेकिन अब एक दूसरे के बिना अलग रहना उनके लिए मुश्किल था। इसीलिए दोनों ने छुप के शादी कर ली और सितारा ने नज़ीर को तलाक़ दे दिया। इस बात से नज़ीर को बहुत तकलीफ हुई।

लेकिन सईदा बानो को थोड़ी राहत महसूस हुई। आसिफ और सितारा की शादी हुई और दोनों अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर रहे थे बहुत खुशी से। तभी आसिफ को एक प्रोड्यूसर भी मिला जिसने आसिफ की कहानी पर भरोसा दिखाया। आसिफ ने मुहूर्त किया अपने पहले पिक्चर का, जिसका नाम "फूल" रखा। कमाल अमरोही इस फिल्म में लेखक रहे। सितारा देवी को दो डांस नंबर करने का मौका मिला। फिल्म बहुत हिट साबित हुई और आसिफ फिल्मी सफर यहां से शुरू हुआ जैसा वो चाहते थे। तब तक आसिफ दो और दोस्त बन गए थे एक अभिनेता चंद्रमोहन और दूसरे संगीतकार नौशाद साहब। आसिफ रफी साहब को भी बहुत मानते थे और इज्जत करते थे।

आसिफ साहब ने फिल्म तो बना लिया था लेकिन उनके दिल को सुकून नहीं था, वो मन ही मन हमेशा चिंता में रहते थे क्योंकि उनको अपने सपनों को नए आयाम देना था। उनको वो सलीम- अनारकली की कहानी बनानी थी , जो उन्होंने बचपन में पढ़ा था। ये बात उन्होंने सब से शेयर किया। नौशाद ,अमरोही, चंद्रमोहन सभी ने उनको प्रोत्साहित किया लेकिन उस वक्त कोई प्रोड्यूसर इसके लिए राजी नहीं हो रहा था। तभी उनको एक इंसान मिले जिनका नाम शिराज अली हकीम था, उन्होंने इससे पहले आसिफ को उनके पहली फिल्म में प्रोड्यूसर की तरह मदद किया था। इस फिल्म के लाइट जब उन्होंने आसिफ को हां बोला तो आसिफ के खुशी का ठिकाना नहीं था। आसिफ ने सलीम के रोल के लिए कास्टिंग ऑडिशन शुरू किया। जिसमे दिलीप कुमार रिजेक्ट हो गए और सप्रू को सिलेक्ट कर लिया गया। लेकिन व्यक्तिगत रूप से आसिफ को दिलीप का चेहरा अच्छा लगा था। बहरहाल फिल्म को तैयारी शुरू हुई।

सिनेमा का महूरत हुआ। फिल्म में चंद्रमोहन, सप्रू, नर्गिस और दुर्गा खोटे मुख्य किरदार में कास्ट किए गए। कुछ वक्त शूटिंग भी चली लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था इसीलिए १९४५ में मुहूर्त होने के वजूद फिल्म पूरा होने में १९६७ तक का वक्त लगा। क्योंकि बीच में भारत को आजादी का माहौल था और पाकिस्तान का सीमांतरण हुआ। तो बहुत से लोग ,कलाकार और प्रोड्यूसर देश छोड़ के पाकिस्तान जाने लगे। उनमें से शिराज अली भी थे, मंटो थे, सुरैया थी और भी बहुत लोग। सब चले जाने के बाद यहां भारत में आसिफ की फिल्म बैंड पड़ गई जिससे चंद्रमोहन को थोड़ा झटका लगा और वो धीरे धीरे बीमार रहने लगे और उनका देहांत हो गया। फिर कुछ साल बाद सपूर्जी नाम के एक प्रोड्यूसर मिले ।

जो फिल्म को पूरी करने में रुचि रखते थे। लेकिन तब तक आसिफ अपना घर, गाड़ी और फैक्ट्री गिरवी रख चुके थे। घर के हालत बहुत खराब थे और वो शराब पीने लगे थे, थोड़े गुस्सैल भी हो गए थे। उस वक्त एक दफा नए नए संघर्ष कर रहे इस्तियाक जाफरी ( जगदीप साहब)(२२) उनके पास आए और उनको काम मांगने लगे। आसिफ ने उनसे कहा की उनके पास अभी कोई काम नहीं है, जब होगा तो जरूर देंगे। जब आसिफ ने इस्तियाक से पूछा की उन्होंने खाना खाया या नहीं तो इस्तियाक ने बोला की उन्होंने ३ दिन से कुछ नहीं खाया। तब आसिफ के पास सिर्फ ५० रुपए थे जो उन्होंने अपनी जेब खाली कर के इस्तियाक को दे दी।

सपूरजी के सामने आसिफ ने एक शर्त रखी की फिल्म में उनका कोई दखल अंदाजी नहीं होगा और फिल्म बीच में नहीं रुकेगा। सपूरजी इस बात से राजी हुए । फिल्म वापस शुरू हुई । इस बार नर्गिस ने अपने दूसरे फिल्मों के डेट की वजह से फिल्म छोड़ दी तो उनकी भूमिका मधुबाला को मिली। लेकिन मधुबाला से पहले नूतन को ऑफर किया गया जिन्होंने मना कर दिया। चंद्रमोहन के देहांत की वजह से अकबर का किरदार पृथ्वीराज कपूर को दिया गया। और सप्रू अब तक बहुत ज्यादा सहायक भूमिका में आ चुके थे इसीलिए उनकी जगह दिलीप कुमार को लिया गया। फिल्म की शुरुआत हो गई। इस फिल्म में एक डांस नंबर के लिए जब सितारा देवी को ऑफर मिला तो उन्होंने अपने तबियत की वजह से इनकार किया लेकिन उन्होंने अपने सब से अच्छी सहेली और डांसर निगार सुल्ताना को आसिफ से परिचय करवाया। फिल्म के शूटिंग के दौरान आसिफ बहुत पजेसिव रहते थे , छोटी से छोटी चीज को बारीकी परखी जाती थी। एक साथ १०००० लोगों को सैनिक के रोल के लिए लिया गया था। आर्ट, कॉस्ट्यूम, मेकअप, कैमरा, लाइटिंग, एक्टिंग हर डिपार्टमेंट में आसिफ को अजीब महारत हासिल थी और वो हर शॉट, सीन को बेहतर से बेहतर शूट करना चाहते थे। इसी दौरान उनकी नजदीकियां निगारा से बढ़ती गई, जो अंत में निकाह पढ़ कर ही रुकी। इस बात से सितारा को बहुत दुख हुआ और वो आसिफ को बहुत बेइज्जत कर के फिर तलाक़ दे दिया।

कुछ साल निगार और आसिफ की जिंदगी ठीक रही। फिल्म में उनको एक गाना मिला और वो शूट खत्म होते होते गर्भवती हो चुकी थी। आसिफ भी अब थोड़ा ज्यादा परेशान रहने लगे थे फिल्म को खत्म करने में। वो रोज दिलीप कुमार के घर जाते थे सीन समझाने के लिए, वहां उनकी मुलाकात हुआ अख्तर बेगम से। इधर निगार अपने बच्चे के आने की तयारी कर रहे थे और उधर आसिफ अपने मोहब्बत के तीसरे पड़ाव पर थे अख्तर के साथ। फिल्म शूट हो कर खत्म होते होते निगार ने एक बच्ची को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया हिबा कौसर और आसिफ ने दुनिया कि परवाह न करते हुए अख्तर से तीसरी शादी कर ली। जिसकी वजह से उनके ताल्लुकात दिलीप कुमार के साथ बिगड़ गए।

उधर फिल्म को रिलीज करने की तैयारी चल रही थी और तब तक फिल्म में सपोरजी का १.५० करोड़ रुपए लग गए थे जो उस वक्त में एक रिकॉर्ड अमाउंट था और पूरे फिल्म जगत में चर्चा का विजय भी। बड़े बड़े फिल्म के दिग्गजों ने फिल्म की बहुत समीक्षा की थी और फ्लॉप होने का आकलन लगाया था। लेकिन आसिफ के बुलंद हौसले और सपूरजी की दुआओं से फिल्म बहुत अच्छी चली और हिंदुस्तान के फिल्म इतिहास में सब से ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई थी ,जिसने २३ मिलियन कमाया था। इसी के साथ आसिफ ने फिल्म इतिहास को बदल के रख दिया था और फिल्म निर्माण के नए आयाम बनाने में सफल रहे थे।

कुछ लोगों के दिल टूटे, कुछ से संबंध खराब हुए, बहुत कुछ गवाया आसिफ ने लेकिन आखिरकार अपने बरसों पुराने सपने को साकार कर दिया।


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