सुशांत थोड़ा और सब्र कर लेते सह लेते यार! कहाँ तुम चले गये सुशांत...! सुशांत थोड़ा और सब्र कर लेते सह लेते यार! कहाँ तुम चले गये सुशांत...!
यह उपहार जीवन भर की उपलब्धि उपहार है। यह उपहार जीवन भर की उपलब्धि उपहार है।
तो यही मंथन की बात है कि फिल्में समाज का आईना होती है या समाज फिल्मों की परछाई। तो यही मंथन की बात है कि फिल्में समाज का आईना होती है या समाज फिल्मों की परछाई।
पापा अपने कमरे में जाते हुए बोले। सब ठठाकर हंस दिए। पापा अपने कमरे में जाते हुए बोले। सब ठठाकर हंस दिए।
परब्रह्म परमेश्वर को बचाने सिर्फ़ अपनी जान। परब्रह्म परमेश्वर को बचाने सिर्फ़ अपनी जान।
लेखक : सिर्गेइ पिरिल्यायेव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास मैं और व्लादिक.... फ़िल्म लेखक : सिर्गेइ पिरिल्यायेव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास मैं और व्लाद...