समाज सोच और कानून
समाज सोच और कानून
सरकार कानून बनाकर खौफ जरूर बना सकती है। हो सकता है कुछ समय के लिए अपराध ना भी हो, परंतु क्या इससे एक स्त्री खुद को सुरक्षित महसूस कर सकती है ? सदियों से आ रही ये रीत जो हमें यही सिखाती है कि नज़र अगर लड़के की उठी तो गलती लड़की की ही होगी।
त्रेता युग में एक समाज के बीमार सोच के कारण देवी सीता को भी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। द्वापर में न्याय के लोगों से भरी सभा मे द्रोपदी के साथ अन्याय हुआ
उसके पश्चात् ऐसे कई कानून आए जो दोषियों के ह्रदय मे भय पैदा कर सकते थे।
परंतु क्या ऐसे सारे कानून से बीमार सोच पूर्णतः ठीक हो गई ?
क्या हर स्त्री खुद को सुरक्षित महसूस कर रही ?
क्या कानून बनाने के बाद कोई अपराध नहीं हुए ?
जवाब है, नहीं।
इसकी वजह क्या है ?
जिस देश में नारी पूजन होती है आखिर क्यों उसी देश की नारियों को पल हर पल खौफ मे रहना पड़ता है ?
और अपराधी बेखौफ होकर जुर्म भी करते है और उसी समाज में एक अच्छी ज़िंदगी जीते है।
वजह है सोच , जो किसी भी कानून के तहत सुधारा नहीं जा सकता।
वजह है ममता, जब एक स्त्री के साथ जुर्म होता है तो वही दूसरी स्त्री अपने ममता मे उलझकर अपने बेटे को बचाने आ जाती है ये कहकर कि उसका बेटा अभी नाबालिक है परंतु ये भूल जाती है कि ऐसे अपराध करने के बाद उसे नाबालिक की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है ?
वजह है जब किसी लड़की के माँ बाप को न्याय के लिए सालों साल भटकना पड़ता है।
वजह है समाज जो बड़े ही आसानी से एक लड़की को दोषी ठहरा कर समाज से बाहर कर देते है वहीं एक अपराधी सर उठाकर ज़िन्दगी बसर कर सकता है।
वजह है वो परिवार जिसमें ये सिखाया जाए कि मर्द को कभी रोना नहीं चाहिए और स्त्री को हमेशा आंसू ही मिलते है।
और ये सब हमारे शारीरिक विकास के साथ ही विकसित होते है। हमारी सोच हमारे जीवन के पहले दिन से ही बनती है।
अब हमारे सोच के विकास में महत्वपूर्ण योगदान हमारे परिवार , समाज , दोस्त , रिश्तेदार के साथ बहुत से अजनबियों का भी होता है। तो असल में हमारी सोच को नियंत्रित रखने और एक बदलाव के लिए कानून तो बचपन से ही बनने चाहिए।
तो कानून बने पर साथ में देश के हर माँ बाप से निवेदन है लड़का हो या लड़की दोनों को एक अच्छी शिक्षा दे । जब भी एक लड़की सामने रहे तो उसकी इज्जत करना सिखाये ना कि गुड़िया समझकर उसके साथ खेलना सिखाये।
एक सुनियोजित शिक्षा बेहतर भविष्य के लिए आवश्यक है।
लड़के और लड़की में भेद ना करें । बच्चों को सोच समझकर चलना सिखाये । जहां नारी पूजन हो वहाँ की नारियों की रक्षा इस समाज का दायित्व है। तो कानून को दोष देने से पहले खुद की कमियों में सुधार लाएं।
सरकार ने तो बहुत पहल की आज एक पहल समाज भी कर ले शायद सुधार आ जाए ।