shristi dubey

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2.6  

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जुलाई

जुलाई

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वो जुलाई का पहला दिन...

याद आ रहे वो हर साल के जुलाई के दिन। जब नई क्लास, नया बैग और नई किताबों के साथ पढ़ाई का एक नया जोश दिखाई देता था हर एक बच्चे के चेहरे पर। गर्मी की छुट्टियां क्या होती है तब समझ आती थी जब सब स्कूल जाकर अपनी बातें लेकर बैठ जाते थे कि हमने ये किया हमने वो किया। गर्मी की छुट्टियां गाव में जाकर मनाने का मजा ही कुछ और होता था। पेड़ के आम , खेतों में घूमना और अपनी अपनी बातें करना। वो बचपन के दिन थे जहां शहर के ऐशों आराम से दूर हमें गांव जाने की जल्दी होती थी। और फिर वहां से आकर स्कूल जाकर वो सब बताने की जल्दी जो हमने किया। तब ना ही कोई छोटा और ना बड़ा होता था। ना गम और ना ही किस्मत की मार का बोझ होता था। वो दिन जब हम अपनी एक पेंसिल भी बांट लिया करते थे कि ये ले तू इससे लिख। बारिश के ना ही बहाने मानते थे और ना ही कुछ। घर में बड़ों के आशीर्वाद और प्यार लेकर हम स्कूल जाया करते थे। हाँ बैग में पैसे कम होते थे पर दोस्ती में प्यार कहीं ज्यादा खास होता था। हाँ आज फिर से वो जुलाई के दिन याद आ गए। आज के दौर में बच्चों का बचपन कहीं खो सा गया है। बड़ी मोबाइल और सारे ऐशों आराम पर उनकी बातें कहीं बड़ी हो गई है। और इस महामारी के दौर में तो जुलाई की खुशियां कहीं गुम सी गई है। हस्ती हुई यादें और दोस्तों के साथ बिताया पल हमारे लिए याद और नई जेनरेशन के लिए तो ख्वाब सा हो गया है..


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