सखा-अ वेल विशार (भाग-6)
सखा-अ वेल विशार (भाग-6)
ऋषि की इन बातों ने मेरे आंखों में नमी ला दिया। मेरी आंखों में नमी इसलिए नहीं आया था कि मैं उसकी बातें सुनकर खुश था बल्कि इसलिए आया था। मेरा उससे ज्यादा नंबर आया जिसका उसके मन में रत्ती भर भी द्वेष नहीं था बल्कि नंबर उससे कम आने पर दोस्ती तोड़ने की धमकी दे रहा था। ये बात मेरे मस्तिष्क में आते ही पल भार में मेरे आंखों की नमी को सुखा दिया फिर उसे रुकने को बोलकर मैं मिठाई लेने चल दिया। घर के नजदीक ही मिठाई की दुकान थी। वहाँ से मिठाई लेकर जैसे ही मैं घर के दहलीज पर कदम रखा मेरे पैर स्वतः ही जहां का तहां जम गया।
घर के दहलीज पर मेरा पाव कैसे न रुकता, अन्दर मेरा दोस्त, मेरा जिगरी यार ने कहा ही कुछ ऐसा था जिसे सुनकर मेरी आंखें भी नम हों गया था और अन्दर ही अन्दर मैं खुश भी हो गया था। भगवन ने मां बाप छीनकर हीरे जैसा एक दोस्त दिया जो मेरे लिए अनमोल था। अन्दर दादी से ऋषि कह रहा था।
ऋषि...अम्मा बना दिया ना मेरे दोस्त को जिम्मेदार अब तो आप खुश हो न!
दादी...बेटा खुश तो हूं पर उस वक्त तुम्हारे वजह से मुझे कितनी तकलीफ हुआ तुम नहीं जानते, दिल पर पत्थर रखकर उसे ताने देता था। मेरा बोला एक एक शब्द निकलता तो मेरे मुंह से था लेकिन वापस आकर मेरा ही हृदय छलनी कर देता था। जब उसे दिन भर की थकान से थका हरा बेसुध सा सोया देखता था तब खुद को ही दोषी मानकर खुद को ही कोसता रहता था।
ऋषि…आपको क्या लगता है सिर्फ आपको ही तकलीफ होता था नहीं मुझे भी तकलीफ होता था जब वो मुझसे मिलकर बताता था कि आज दादी ने ऐसा कहा वैसा कहा मन तो करता था कि आपको माना कर दूं फिर किसी तरह खुद को रोक लेता था। वैसे अम्मा भगवान जो भी करता है अच्छे के लिए करता हैं आपकी टांग न टूटी होती तब ये बात मेरे दिमाग में कभी न आता। अगर हम उस वक्त ऐसा नहीं करते तो आज की ये खुशी न उसके किस्मत में होता न ही मेरे और आपके किस्मत में होता।
दादी... सिर्फ़ हम ही क्यों इस खुशी में सेठ जी भी बराबर हिस्सेदार है उन्हें क्यों भूल रहें हों।
"हाय रे दोस्ती भटके हुए दोस्त को रह पर लाने के लिए दूसरे दोस्त ने क्या पैतरा निकला सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटा तुम दोनों की दोस्ती बड़ा ही अनमोल हैं।"
मेरी बातों को कटकर शालिनी बीच में बोलीं तब मैं उसका जवाब देते हुए बोला... सही कहा ऋषी और मेरी दोस्ती अनमोल हैं जिसकी कीमत नहीं लगाया जा सकता हैं।
शालिनी... हां हां तुम्हारे लिए तुम्हारा दोस्त और दोस्ती ही अनमोल हैं। मैं तो कुछ हूं ही नहीं जाओ जी मुझे आपसे बात नहीं करना।
इतना बोलकर शालिनी रूठने का दिखावा करके मुझसे अलग हों गई और पलटकर खड़ी हों गईं। मैं जान गया था शालिनी दिखावा कर रहीं हैं फिर भी उसे मानना जरूरी था। इसलिए मैं उठाकर खड़ा हुआ और शालिनी को घुमाकर उसके सिर को दोनों हाथों से थामकर उसकी आंखों में देखते हुए बोला... शालिनी ऋषि और उसकी दोस्ती मेरे लिए जितना अनमोल हैं तुम भी मेरे लिए उतना ही अनमोल हों मेरे बेरंग जिंदगी में रंग भरने वाली तुम ही हों ऐसे में तुम वे-मोल कैसे हों सकती हों मेरे लिए तुम भी अनमोल हों अब ये दिखावे की रूठना छोड़ दो।
मेरा इतना कहना था की शालिनी की लबों पर मुस्कान तैर गई और रहीं सही कसर उसके लबों को चूमकर मैंने पूरा कर दिया। कुछ वक्त तक हम एक दूसरे को जकड़े पॉजिनेटली किस्स करते रहें फिर शालिनी खुद से ही मुझे धक्का देकर अलग किया और बोली...अच्छा अच्छा ठीक है बाकी का बाद में आगे क्या क्या हुआ पहले वो सुनाओ।
दादी से सेठ जी के साथ देने की बात सुनकर ऋषि मुस्कुरा दिया फ़िर दादी के गले लग गया। बहार खड़ा मैं आंसू बहाकर ऋषि और उसके बाप के साथ ही दादी को धन्यवाद दे रहा था। उसी दिन दादी के प्रति मेरे मन में जितना मैल जमा था वो बहते आंसुओं के साथ धूल गया। मैं दबे पाव बहार आया और दुकान के पास लगी नलके से मुंह धोया ताकि मेरे आंखों से बहते आंसू के दाग धूल जाएं। क्योंकि मैं उन्हें अगाह नहीं करना चाहता था कि जो भी दादी ने किया वो सब ऋषि का रचा हुआ था जिसका पाता मुझे चल चुका था। बरहाल मैं अन्दर गया और दोनों को खुशी खुशी मिठाई भी खिलाया और बहुत दिनों बाद दादी के गले लगकर बोला...मेरी अच्छी दादी आप बहुत अच्छी हों।
मुझसे ऐसी बातें सुनकर दादी हैरान तो हुई पर मुस्कुराकर छुपा लिया क्योंकि लंबे समय बाद मैं दादी से गले मिला था और उनसे ऐसी बातें कहा था। खैर हमारे टॉप करने की खबर पूरे गांव में आग की तरह फैल गई और बधाई देने वालों का ताता लग गया। ऐसे ही वक्त बीतता गया अब हमें आगे की पढ़ाई के लिए गांव से बहार निकलना था जिसका व्यवस्था सेठ जी ने कर दिया। इंटरमीडिएट में एडमिशन लेने से पहले ही हमने अपना अपना क्षेत्र चुन लिया था उसे शुरू से ही डॉक्टर बनने की चाहा थी तो वो उसी क्षेत्र से वास्ता रखने वाला सब्जेक्ट और सेक्टर चुना और मेरा रुचि डॉक्टरी में कभी था ही नहीं इसलिए मैंने बिजनेस को चुना। एक बार फिर से हम दोनों में जंग छिड़ गया। मिड टर्म के दौरान ही हमें पाता चला की एक बड़े और नामी कॉलेज की और से स्कॉलरशिप का ऑफर हैं पढ़ाई और रहने खाने पीने का सारा खर्चा उनका होगा बस शर्त ये थी कि 85% से ज्यादा मार्क लाना था। बस फिर किया ऋषि एक बार फ़िर मेरे पीछे लग गया कसमें वादे खिलाया दोस्ती तोड़ने की धमकी देकर स्कॉलरशिप हतियाने का जिम्मा भी मेरे कंधे मढ़ दिया।
दुनिया चाहें इधर की उधर हों जाएं मगर मुझे ऋषि की अटूट दोस्ती हमेशा हमेशा के लिए चहिए था। उसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था। एक बार फ़िर से मैं मेहनत करने में जुट गया धीरे धीरे दिन बिता गया और परीक्षा के दिन नजदीक आ गया। एक एक करके पेपर दिया और हम दोनों दोस्तों की किस्मत का फैसला कागज के पन्नों में कैद हों गया। मुझे उम्मीद था कि मेरा पासिंग मार्क्स 85% से ऊपर आएगा फ़िर भी एक अनजाना सा डर मन में घर कर गया था क्योंकि दाव पे हमारी दोस्ती लगीं हुई थीं शायद कुछ ओर दाव पे लगा होता तो मुझे इतना डर नहीं लगता। बरहाल हम गांव लौट गए। लेकिन मेरे अंदर डर अब भी बना हुआ था जिसे भांपकर ऋषि मुझे समझता रहता था कि तू डर क्यों रहा है मुझे खुद से ज्यादा मेरे दोस्त पर भरोसा है। मैं जानता हूं कुछ भी हों जाएं मेरा दोस्त कभी हमारी दोस्ती नहीं टूटने देगा।
उसकी ये बातें मेरे अंतर मन को बल तो देता था लेकिन कुछ वक्त के लिए बरहाल दादी भी मेरी मनोस्थिति से अंजान न थीं मगर वो समझाने और दिलासा देने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थीं। एक एक दिन मुझे खड़ी पहाड़ी चढ़ने जैसा लग रहा था। वक्त काटे से नहीं कट रहा था। मैं बेचैन सा रहने लग गया था। तब ऋषि मुझे यहां वहां घूमने ले जाया करता था। बस ऐसा ही घूमने फिरने में वक्त बीतने लग गया अब मैं उतना बेचैन नहीं रहता था कारण ऋषि था जो एक एक पल मेरे साथ रहने लग गया था।
दिन बीतते बीतते वो दिन भी आ गया जिस दिन रिज़ल्ट निकलने वाला था। उस दिन मैं हद से ज्यादा बेचैन हों गया इतना बेचैन कि पूरा घर और आंगन अनगिनत बार नाप लिया। मुझे इतनी बेचैनी में चहल कदमी करता हुआ देखकर दादी बोली... मुन्ना इतना बेचैन होने की जरूरत नहीं हैं मुझे मेरे पोते पर भरोसा है वो कुछ भी हों जाएं पर अपनी दोस्ती नहीं तोड़ने देगा।
मैं जानता था दादी दिलासा दे रहीं हैं और कहीं न कहीं सच भी बोल रहीं हैं पर मैं, मेरे बेचैन मन को कैसे समझा पाता उसे तो बस यहीं डर खाए जा रहा था कि अगर मैं पास नहीं हो पाया तब ऋषि और मेरी अटूट दोस्ती हमेशा हमेशा के लिए टूट जायेगा। दोपहर बाद रिज़ल्ट आने का वक्त तय हुआ था और मैं सुबह से बिना कुछ खाए पीये बस बैचैन सा फिर रहा था दादी खाना लेकर मेरे पीछे पीछे घूमता रहा बार बार रोककर बैठा दिया फ़िर खाने को कहने लगीं मगर मेरा मन न खाने को करता न ही बैठने को कर रहा था। कुछ पल बैठ जाता फ़िर उठाकर कभी घर से बहार तो कभी घर के अन्दर बस यहीं कर रहा था। वक्त कितना हुआ टाईम क्या हों रहा हैं? इसका भी मुझे ध्यान न रहा। अचानक ऋषि घर आया। उसके चहरे का भाव दर्शा रहा था कुछ तो अनहोनी हुआ हैं। जिसके बारे में सोचकर मेरे अन्दर उथल पुथल मच गया। निराशा मेरे अन्दर घर करने लग गया इसलिए मैं जल्दी से उसके पास पहुंचा और बोला...ऋषि तूने रिज़ल्ट देखा हैं। जल्दी से बता न रिज़ल्ट में क्या आया, मैं पास हुआ कि नहीं हमारी दोस्ती अटूट रहेगा कि आज ही टूट जायेगा।
ऋषि... देखा तो हैं (फिर मुंह लटका लिया और रूक रूक कर आगे बोला) तू न, राघव तू न….।
उसका मुंह लटका हुआ देखकर और अटक अटक कर बोलने से मेरे मन में शंका होने लग गया कि इस बार पक्का मेरी मेहनत रंग नहीं लाया और आज के बाद हमारी दोस्त जो आज तक अटूट थी वो हमेशा हमेशा के लिए टूट जायेगा इसलिए मैं रुआंसा होकर बोला...ऋषि बोल न क्या हुआ तेरा लटका हुआ मुंह और यूं अटक अटक कर बोलना मुझे अगाह कर रहा हैं कि मेरा किया वादा टूट चुका हैं अगर ऐसा हुआ तो क्या तू सच में मुझसे दोस्ती तोड़ देगा बता न (मैं कुछ देर रूका लेकिन ऋषि कुछ नहीं बोला तब मैं फ़िर बोला) क्या हुआ ऋषि तू चुप क्यों हैं बोल न, तू बोलता क्यों नहीं!
To be continued…