सखा - अ वैल विशर (भाग - 1)
सखा - अ वैल विशर (भाग - 1)
चक्र, समय चक्र कितनी तेज या फ़िर कितनी धीमें धीमें चल रहा हैं। यहां समझ पाना संभव ही नहीं बल्कि असंभव सा हैं। जो बीत गया और भविष्य में क्या घटने वाली हैं, सभी घटनाओं को खुद में समेटकर, परत- दर-परत सहेंज कर रख रखा हैं।
मेरे जीवन की बहुत सी घटनाएं जो बीत चुका हैं। उन्हें भी समय चक्र ने खुद में समेटकर रख रखा हैं। बरहाल इस वक्त मैं, मेरे आलीशान ऑफिस में बैठा हूं। जो मेरे दिन रात के अथक परिश्रम का नतीजा हैं। लगभग घंटा भर हुआ मुझे ऑफिस आएं हुए कि मेरे मोबाईल ने बजकर मुझे अगाह कर दिया कि मान्यवर मैं भी आपके साथ साथ ऑफिस आया हूं और आपके जीवन का अभिन्न अंग हूं, जरा मुझ पर भी ध्यान दे लो, मोबाईल के स्क्रीन पर नज़र डालते ही एक मुस्कुराहट मेरे लवों पर तैर गया और मुंह से निकाला... अभी अभी तो घर से आया हूं और तुम्हें मेरी याद सताने लगीं।
फोन करने वाली मेरी धर्मपत्नी शालिनी थीं। ज्यादा वक्त बर्बाद न करते हुए तुरंत फोन रिसीव किया और बोला…हां शालिनी बोलों कैसे याद किया।
शालिनी... याद तो उन्हें किया जाता हैं जिन्हें भुला दिया जाता हैं (थोड़ी देर रुकी फ़िर खिलखिलाते हुए आगे बोलीं) सुनो न, मैं पड़ोस वाली दीदी के साथ शॉपिंग पर जा रहीं हूं….।
"तो जाओ न, मैंने तुम्हारे कहीं आने जानें पर कोई पाबन्दी थोड़ी न लगा रखा हैं" शालिनी की बातों को बीच में कटकर मैं बोला, तो शालिनी खिलखिलाती हंसी को बरक़रार रखते हुए बोलीं... मैंने कब कहा की तुम मुझ पर पाबन्दी लगा रखा हैं। कहीं भी आने जानें से पहले तुम्हें बताना मेरा फर्ज बनता हैं। जिससे तुम निश्चिन्त रहो कि तुम्हारी बीवी तुम्हारे अलावा किसी और से नैन मटक्का नहीं करेंगी ही ही ही...।
इतना बोलकर शालिनी ओर ज्यादा खिलखिला कर हंसने लग गईं और मेरे पास शालिनी के बातों का कोई जवाब नहीं था। इसलिए मैं भी शालिनी के साथ हंसने लग गया। बरहाल कुछ क्षण हंसने हंसाने के बाद शालिनी बोलीं... मुझे आने में देर हों जायेगी इसलिए समय से जाकर पार्थ को स्कूल से ले आना नहीं तो बिचारा इंतेजार करते करतें परेशान हों जायेगा और सोचेगा मेरे मां बाप ने बेशुमार प्यार करके मुझे पैदा तो कर दिया पर मेरा ख्याल रखना भुल गए ही ही ही...।
"शालिनी तुम भी न अच्छा ठीक हैं मैं समय से जाकर उसे ले आऊंगा और उसके मन में ये ख्याल भी नहीं आने दूंगा की उसके मां बाप सिर्फ एक दुसरे से प्यार करते हैं उससे नहीं!"
शालिनी… ओ.. हों… मेरा पति कितना समझदार हैं (थोड़ा सा रूका फ़िर झिड़कते हुए आगे बोलीं) ध्यान रखना मेरे बेटे को इंतेजार न करना पड़े और ये न सुनने को मिले की मम्मी आप मुझे लेने नहीं आए इसलिए मुझे कड़कड़ाती धूप में खडे रहना पड़ा अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं, समझे तुम, मैं क्या कह रहीं हूं।
इतना कहते ही बिना कुछ सुने फोन काट दिया। शालिनी ऐसा ही तो करती है जितना फिक्र मेरा करती हैं उससे कहीं ज्यादा फिक्र हमारे एक मात्र बेटे की करती हैं। कब वो पत्नी से मां और मां से पत्नी बन जाती हैं। मेरे लिऐ समझ पाना दुष्कर हों जाता हैं। खैर एक बार फ़िर से मैं काम में व्यस्थ हों गया। मगर मेरा ध्यान घड़ी पर रहा। जैसे ही स्कूल के छुट्टी का समय नजदीक आया मैं तुरंत ही पार्थ को लेने निकल पड़ा। कुछ ही वक्त में मैं स्कूल पहुंच गया। जहां अभी बच्चों की छुट्टी नहीं हुआ था। मैं इंतजार करता रहा इसके अलावा ओर कोई चारा नहीं था बरहाल कुछ वक्त इंतजार करने के बाद स्कूल की छुट्टी हुआ और मुख्य दरवाजा खोल दिया गया। बच्चे आते गए और अपने अपने अभिभावक के साथ घर को चल दिया मगर मुझे वो अभी तक नहीं दिखा जिसे लेने मैं आया था।
मेरी नज़रे बस उसे ही ढूंढ रहा था मगर पार्थ मुझे दिखा नही, धीरे धीरे भीड़ कम हुआ तब अपने क्षमता से ज्यादा वजन पीठ पर लादे, जमीन की ओर देखते हुए धीरे धीरे चलकर मुख्य दरवाजे की ओर आता हुआ मेरा इकलौता चिराग मुझे दिखा मैं तुरंत ही लंबे लंबे डग भरता हुआ उसके पास पुछा, मुझे देखते ही उत्साहित होते हुए पार्थ बोला... पापा आप, मम्मा नहीं आई।
मैं उसके कंधे से बैग लेते हुए बोला...तुम्हारी मम्मा शॉपिंग पर गई हैं तो कैसे आती इसलिए मैं…..।
पार्थ...क्या मम्मा शॉपिंग करने गई और मुझे लेकर नहीं गई। मम्मा बहुत बुरी हैं मैं उनसे बात नहीं करूंगा।
मेरे बातों को बीच में कटकर अपनी बाते कह दिया ओर मुंह बनाते हुए सरपट आगे को चल दिया। पार्थ को रूठता देखकर मेरे लवों पर हल्की सी मुस्कान आ गया मगर उसे जल्दी से जाता हुआ देखकर मैं भी सरपट उसके पास पुछा और पार्थ का एक हाथ थामे बोला... बेटा तुम स्कूल में थे तो तुम्हारी मम्मा तुम्हें कैसे लेकर जाती।
पार्थ... मैं स्कूल में था तो क्या हुआ? स्कूल के छुट्टी होने के बाद मुझे साथ में लेकर जा सकती थी, पर नहीं मम्मा से तो वेट नहीं हों रहीं थी। मम्मा सच में बहुत बुरी हैं। मम्मा से कट्टी, कट्टी, कट्टी।
उंगली हिलाकर पार्थ के कट्टी कहने के अंदाज ने मुझे एक बार फिर से हंसने पर मजबूर कर दिया। मैं हसने के अलावा कर भी क्या सकता था। बरहाल दोनों बाप बेटे बहार आए और कार में बैठने जा ही रहें थे की टन, टन टन घंटी बजने की आवाज़ हुआ। इन आवाजों ने पार्थ के कान खडे कर दिया और मुझसे बोला…पापा आइस क्रीम…दिलवाओ न, आइस क्रीम खाने का मेरा बहुत मन कर रहा हैं।
"नहीं बिल्कुल नहीं आइस क्रीम खाना अच्छी बात नहीं हैं। तुम्हारे छोटे छोटे दांत सड़ जायेंगे।"
पार्थ... पापा आप से अच्छी तो मम्मा हैं। उन्हें एक बार कहते ही आइस क्रीम दिलवा देती हैं। आप बहुत बुरे हों कट्टी, कट्टी,कट्टी।
"अच्छा जी, अभी तो मम्मा को बुरा कह रहा था अब पापा बुरा हो गया।"
पार्थ...मेरी मम्मा दुनियां की सबसे अच्छी मम्मा हैं। उन्हें तो मैं ऐसे ही बुरा बोल दिया था। बुरे तो आप हों, जाओ मुझे आपसे बात नहीं करना।
इतना बोलकर पार्थ मुंह बनना लिया और कार का दरवाजा खोलकर बैठ गया। बेटे का उतरा हुआ मुंह देखकर मेरे लवों की हंसी पल भर में गायब हों गया। तब मैं बोला... अच्छा बाबा अब रूठना छोड़ो और चलो आइस क्रीम दिलवाता हूं।
पार्थ... सच्ची पापा।
मैं सिर हिलाकर हां बोला बस इतना ही काफी था पार्थ के बुझे हुए चहरे को गुलाब की तरह खिलाने के लिए। तुरंत ही पार्थ कार का दरवाजा खोलकर आइस क्रीम वाले की और दौड़ लगा दिया। "पार्थ धीरे" बोलते हुए मैं भी उसके पीछे पीछे चल दिया। अपने पसन्द की दो आइस क्रीम की कोन लिया और पैसे देकर वापस आते वक्त एक आइस क्रीम कोन मुझे दिया। मैं कोन को लेकर उसके सिर पर हाथ फिरा दिया फिर कार में आकर बैठ गए। जब तक आइस क्रीम खत्म नहीं हुआ तब तक दोनों बाप बेटे आइस क्रीम का लुप्त लेता रहा। जैसे ही आइस क्रीम खत्म हुआ हम घर की और चल दिए।
हम घर पहुंचने ही वाले थे की पार्थ मुझे कार रोकने को बोला मगर मैं कार नहीं रोका तो फिर से कार रोकने को बोला और जिद्द करने लगा। इसलिए मजबूरन मुझे कार को रोकना पड़ा, कार रोकते ही पार्थ बहार निकाला ओर बगल में बनी फुटपाथ की ओर चला दिया। उसे जाता हुआ देकर "पार्थ कहा जा रहें हों" बोलते हुए मैं भी कार से निकाला, निकलते ही देखा, एक महिला के साथ खड़े पार्थ के उम्र के एक बच्चे से, पार्थ बात कर रहा हैं। तो मैं वही रूक गया, न जानें दोनों में क्या बाते हुआ कि पार्थ तुरंत पलटा और कार के पास आकर अपना स्कूल बैग खाली करने लग गया। ये देखकर मैं बोला... बेटा क्या हुआ स्कूल बैग क्यों खली कर रहें हों।
पार्थ... पापा वो मेरा दोस्त हैं और पिछले दो तीन दिन से स्कूल नहीं जा रहा हैं। कहता हैं उसका स्कूल बैग फट गया हैं इसलिए स्कूल नहीं आ रहा हैं। तो मैं उसे अपना स्कूल बैग दे रहा हूं जिससे वो स्कूल बंग न करें।
उसकी बाते सुनते ही मैं स्तब्ध सा हो गया और मानो मेरे सामने किसी ने एक स्क्रीन चला दिया हों, स्क्रीन में चल रहीं चल चित्र में मैं खड़ा हूं और कोई मुझे किताबे देते हुए बोला "ये ले राघव तेरे नए सत्र की किताबे और मन लगाकर पढ़ाई करना आगर अच्छे नंबरों से पास नहीं हुआ तो मैं तुझसे दोस्ती तोड़ दूंगा।"
बस इतना ही दिखा फिर सब कुछ सामन्य हों गया और मेरे दिल की धड़कने तेज हों गया। बडी हुई धड़कनों के साथ मेरी आंखें भी छलक आया और मेरे मुंह से निकाला "कहा हैं यार तू"
इतना बोलकर मैं ख्यालों में खो गया। "पापा कहा खो गए, मुझे बड़ी जोरों की भूख लगा हैं जल्दी घर चलो न" इन शब्दो को सुनते ही मेरी तंद्रा टूटा तो देखा पार्थ अपने पेट पर हाथ रखे कार के अगले सीट पर बैठा हैं। अब वो अदाकारी कर रहा था या उसे सच में भूख लगा था। मैं नहीं जानता परन्तु मुझे लगा वो सच कह रहा हैं। इसलिए मैं सभी यादें भुला तुरंत ही कार में बैठा और कार स्टार्ट क्या ही था की मेरा दुर्भाषी यंत्र घनघाना उठा।
To be continued…