Pradeep Ray

Inspirational

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Pradeep Ray

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सखा-अ वेल विशार (भाग-5)

सखा-अ वेल विशार (भाग-5)

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"पढ़ाई लिखाई पहले कभी किया नहीं तो अब करके क्या फायदा ? मेरा काम करना ही ठीक होगा। मैं काम करके कुछ पैसे कमाऊंगा तब दादी को किसी का अहसान नहीं लेना पड़ेगा, उनके खुद्दारी को चोट नहीं पहुंचेगा। आगर आपके पास मेरे लायक काम नहीं हैं तो बता दीजिए मैं किसी ओर के पास काम ढूंढ लूंगा।"

मेरी बातों और जज्बातों को समझकर सेठ जी ने हां कर दिया, मैं खुशी खुशी घर आ गया। अगले दिन से मैं काम पर जानें लग गया। नया नया था पहले कभी खेतों का काम नहीं किया था तो मुझे शुरू शुरू के कुछ दिन बहुत दिक्कत हुआ और काम करने की आदत नहीं था तो थकान भी बहुत हो जाता था। जब शाम को थका हारा घर लौटकर आता था। रात का भोजन करके विस्तार पर पड़ते ही मेरा शरीर निर्जीव सा हों जाता  और मैं गहरी नींद सो जाया करता था।

स्कूल का नया सत्र शुरू हुए एक महीने का वक्त हो चुका था और मैं एक भी दिन स्कूल नहीं गया। इस एक महीने के वक्त में न ऋषि से मैं मिला न ही ऋषि कभी मुझसे मिलने आया मगर एक दिन ऋषि खेत पर आया और मुझे काम करते हुए देखकर बोला...राघव तू यहां खेतों में काम कर रहा है मगर क्यों ?

"ऋषि तू तो जनता हैं घर की परिस्थिति क्या हैं ऐसे में मैं काम नही करूंगा तो घर का खर्चा और दादी के दवाई का खर्चा कैसे चल पाएगा।"

ऋषि…घर खर्चा चलाने के लिए काम करना जरूरी है वो तू कर रहा हैं लेकिन तेरा पढ़ना लिखना भी जरूरी हैं। सुना हैं नया सत्र शुरू होने के बाद तू एक भी दिन स्कूल नहीं गया। ऐसा क्यों ?

"हां यार तूने सही सुना अब तू ही बता काम करू की स्कूल  जाऊं दोनों काम एक ही वक्त पर नहीं कर सकता स्कूल गया तो काम छोड़ना पड़ेगा। काम छोड़ा तो घर का खर्चा नहीं चलेगा इसलिए पढ़ाई छोड़ देना ही बेहतर समझा।"

ऋषि...क्या ख़ाक बेहतर समझा, पढ़ाई नहीं करेगा तो तेरा भविष्य बर्बाद हों जाएगा तू खेतों में मजदूर बनकर रहा जाएगा। मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहता इसलिए तू मुझसे वादा कर स्कूल जाना नहीं छोड़ेगा।

"अरे यार मैं ये वादा बादा नहीं कर सकता और करूंगा भी क्यों जब मुझे पाता है एक न एक दिन वादा टूटना ही हैं तो फिर वादा करके कोई फायदा नहीं होगा।"

तरह तरह के पैंतरे आजमाकर देख लिया पर मैं ऋषि की एक भी बात मानने को तैयार नहीं हुआ। अंत में उसने बोला... अम्मा को कहते सुना था तेरे स्वर्गीय मां बाप चाहते थे तू पढ़ लिखकर एक लायक इंसान बने क्या तू अपने स्वर्गीय मां बाप के इच्छा को यूं ही बेकार जाने देगा कैसा बेटा हैं जो उनकी इतनी सी भी इच्छा पूरा नहीं कर सकता हैं। अम्मा सही कहती हैं तू नालायक है और नालायक ही रहेंगे। तेरे जैसे नालायक से दोस्ती रखा, तो एक दिन मैं भी नालायक बन जाऊंगा। न बाबा न मुझे नालायक नहीं बना इसलिए आज और अभी से न तू मेरा दोस्त न मैं तेरा दोस्त।

इतना बोलकर ऋषि पलटकर चल  दिया और मेरे दिमाग में हलचल मच गया। मेरे गिने चुने जितने भी दोस्त थे। उनमें से सिर्फ़ ऋषि ही एक ऐसा दोस्त हैं जो मेरे स्कूल न जाने का कारण जानना चाहा वरना बाकी के दोस्त जो मेरे साथ एक ही स्कूल में पढ़ते हैं फ़िर भी जानने नहीं आए, मैं स्कूल क्यों नहीं जा रहा हूं साथ ही ये बात भी मेरे मस्तिस्क में चल रहा था। मेरे मां बाप चाहते थे मैं पढ़ लिखकर एक लायक इंसान बनू इन बातों पर विचार करके मैंने मन ही मन एक फैसला ले लिया और ऋषि की ओर दौड़ लगा दिया। ऋषि मुझसे काफी दूर पहुंच चुका था। इसलिए मैं भागते भागते हाफ चुका था। हफ्ते हफ्ते उस तक पहुंचकर उसे रोका फ़िर हाफ्ते हुए बोला...तुझे लगता है मैं नालायक हूं इसलिए तू मुझसे दोस्ती तोड़कर जा रहा हैं। मगर तुझे ऐसा करने की जरुरत नहीं हैं मै वादा करता हूं मैं एक दिन तुझे लायक बनकर दिखाऊंगा।

मेरी बाते सुनने के बाद ऋषि हल्का सा मुस्कुराया दिया फिर पलटकर चल दिया। बिना कुछ बोले उसे जाता हुआ देखकर मैं दुबारा उसे रोका और फ़िर से वोही बात दोहराया मगर वो मानने को तैयार नहीं हुए। पहले वो मुझे मना रहा था अब मैं उसे मानने में लगा हुआ था तरह तरह के तर्क दिया तब कहीं जाकर ऋषि माना फ़िर दुबारा मिलने की  बात कहकर ऋषि चला गया। अगले दिन ऋषि फ़िर आया। उस दिन ऋषि खाली हाथ नहीं आया था। उसके हाथ में किताबें थीं जो मेरे हाथ में देकर बोला... राघव ये तेरे नए सत्र की किताबें हैं। इसे ले और मन लगाकर पढ़ाई करना, पढ़ाई में आनाकानी किया और तेरा नंबर मुझसे काम आया तब मैं तुझसे दोस्ती तोड़ दूंगा।

पहले तो मैंने उससे किताबें लेने से मना कर दिया अंतः मुझे उसकी बात माना पड़ा। किताबें देकर ऋषि वापस चला गया और शाम को घर आकर दादी को किताबें दिखाकर स्कूल जानें की बात कहा तो दादी शुरू हों गईं।

दादी...स्कूल जाएगा, पढ़ाई करेगा। पढ़ने लिखने में तेरा मन तो लगता नहीं फिर पढ़ाई लिखाई करके क्या करेगा। मेरी बात मान पढ़ाई लिखाई का भूत सिर से उतर और जो कर रहा है वही कर, वैसे भी तू स्कूल जायेगा तब घर खर्चा कैसे चलेगा ?

दादी की बाते बुरा तो लगा पहले मैं स्कूल जानें से आनाकानी करता था।  तब स्कूल न जानें और ठीक से पढाई न करने के कारण बाते सुना देती थी और अब खुद से आग्रह करके स्कूल जाना चाहता हूं, मन लगाकर पढाई करना चहता हूं तब भी दादी बाते सुना रहीं हैं। इस बार उनकी बातों का मुझे उतना बुरा नहीं लगा क्योंकि मैंने मेरे दोस्त से वादा किया था। साथ ही मुझे अपने मां बाप की इच्छा भी पुरा करना था। दादी के बातों का बूरा न लगने का एक कारण ये भी था अब मुझे दादी के ताने भारी बाते सुनने की आदत सी हों गई थीं। इसलिए उनकी बाते सुनने के बाद मैं बोला... दादी आप चाहें कितनी भी ताने मार लो लेकिन अब ये पढ़ाई का भूत नहीं उतरने वाला और रहीं बात घर खर्चे की तो उसका भी मैं कुछ न कुछ व्यवस्ता कर लूंग।

इतना कहकर मैं दादी के सामने से चला गया क्योंकि मैं जानता था दादी के सामने रहा तो वो कुछ न कुछ ओर सुना देगी। अगले दिन से मैं नियत समय पर स्कूल जानें लग गया। स्कूल तो जा रहा था मगर घर खर्चा कैसे चलेगा इसकी चिंता मुझे खाए जा रहा था क्योंकि स्कूल से आने के बाद दिन का आधा वक्त निकल जाता था और आधे वक्त के लिए कोई भी काम में लगाने को राज़ी नहीं हों रहा था ये बात ऋषि से बोला तब वो अपने बाबूजी से बोला कि मैं स्कूल से आने के बाद उसके खेत में आधे दिन से कम करू मगर सेठ जी इस बात पर राजी नहीं हुए। क्योंकि उनका कहना था। मैं खेत में काम करके थक जाऊंगा। ज्यादा थक गया तो पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाऊंगा इसलिए उन्होंने  कुछ पैसे देकर  घर पर एक छोटी सी दुकान खुलवा देने की बात कहीं, जब तक मैं स्कूल में रहूंगा तब तक दादी बैठ जाया करेंगी और स्कूल से आने के बाद मैं दुकान संभाला करू। उनकी बातें सही लगा मगर मेरा मन उनसे पैसे लेने को माना कर रहा था, क्योंकि पहले से ही सेठ जी कई बार पैसा देकर मदद कर चुके थे मैं पैसे लेने को राजी नहीं हुआ। इसलिए उन्होंने बाद में चुका देने की बात कहकर अपनी बात मनवा लिया  और खुद ही व्यवस्ता करके घर पर एक छोटा सा दुकान खुलवा दिया।

घर खर्चे की चिंता से मुक्त होते ही हम दोनों दोस्तों के बीच एक जंग शुरू हो गया। इस जंग से हम दोनों दोस्तों की दोस्ती और मजबूत होता गया। हम दोनों में एक दुसरे से ज्यादा नंबर लाने की होड़ लगा गया। मैं उससे ज्यादा नम्बर लता तो वो खुश होकर पुरे गांव में मिठाई बंटता और जब वो मुझसे ज्यादा नम्बर लता तो मैं पुरे गांव में मिठाई तो नहीं बांट सकता था मगर मैं अपने क्षमता के अनुरूप मिठाई बांटकर खुशियां मानता था।

शालिनी... वाहा जी वाहा क्या दोस्ती हैं ? एक दुसरे से ज्यादा नम्बर लाने की होड़ लगीं थी फ़िर भी एक दुसरे से चीड़ते नहीं थे।

"हमारी दोस्ती कमजोर थोड़ी न थी जो एक दुसरे से चीड़ते, हमारी दोस्ती गन्ने की तरह मीठा और नारियल की तरह बहार से शक्त और अन्दर से मुलायम हैं ओर एक बात एक दिन मुझे कुछ ऐसा पाता चला जिसके बाद हमारी दोस्ती ओर ज्यादा मजबूत हों गईं या कहूं अटूट हों गई।"

शालिनी...ऐसा क्या पाता चला जिससे तुम दोनों की दोस्ती अटूट हों गईं ? 

ये बात तब की हैं जब मैं और ऋषि मैट्रिक में जिले भर में टॉप किया था। मेरे पास मोबाईल था नहीं, ऋषि  के पापा के पास था इसलिए मेरा रोल नम्बर उसे दे दिया जब रिजल्ट आएगा तब देखकर बता देगा। जिस दिन रिजल्ट निकला देखते ही ऋषि भागा भागा घर पर आया और मुझे गले से लगाकर बोला...यार तूने तो अपने मां बाप और गांव का नाम रौशन कर दिया यारा तूने पुरे जिले में टॉप किया हैं।

ये सुनते ही मैं खुशी से उछाल पड़ा मगर मेरी खुशी पल भर के लिए था क्योंकि अचानक मुझे ख्याल आया की मैने आगर टॉप किया तो ऋषि ने क्या किया ? ये बात मेरे दिमाग में आते ही तुरन्त उससे अलग हुआ और बोला...मेरा छोड़ तू बता तूने क्या किया ?

ऋषि...मेरा देखा ही कब जो पाता होगा सबसे पहले तेरा देखा बस खुशी के मारे वाबला होकर भागा भागा तेरे पास चला आया।

" तू भी न ऋषि! चल कोई बात नहीं अभी देखकर बता तेरा रिजल्ट कैसा आया ?"

ऋषि...अरे छोड़ न यार बाद में देख लूंगा अभी तेरे टॉप करने की खुशी मनाते हैं।

"देख ऋषि मुझे अभी के अभी तेरा रिजल्ट जानना है तू देखकर बताता है कि मैं खुद देखू।"

ऋषि... तू मानेगा नही चल ठीक है मेरा रिजल्ट भी देख लेते हैं।

मेरे टॉप करने के खबर देखते ही ऋषि इतना बावला हों गया था कि मोबाइल साथ में लेकर चला आया मेरे कहते ही तुरन्त ऋषि ने अपना रिजल्ट देखा। रिजल्ट देखते ही ऋषि खुशी के मारे उछाल पड़ा और चिखते हुए बोला...यार तेरे साथ साथ मैंने भी जिले में टॉप किया बस तेरे से एक नम्बर कम आया।

ऋषि के टॉप करने की खबर सुनकर मैं भी खुशी से चीख पड़ा और उसे गले से लगाकर बोला...यार तेरी टॉप करने की खबर से खुश हुआ मगर दुख बस इस बात की है की तेरा मुझसे एक नम्बर कम आया ये एक नम्बर तेरा मुझसे ज्यादा आता तब कितना अच्छा होता।

ऋषि...शायद तू भुल रहा है तूने मुझसे क्या वादा किया था ? एक बार वादा टूट चुका है इस बार टूटता तो मैं तुझे माफ नहीं करता और वादे के मुताबिक दोस्ती तोड़ देता।

ऋषि की इन बातों ने मेरे आंखों में नमी ला दिया। मेरी आंखों में नमी इसलिए नहीं आया था कि मैं उसकी बातें सुनकर खुश था बल्कि इसलिए आया था। मेरा उससे ज्यादा नंबर आया जिसका उसके मन में रत्ती भर भी द्वेष नहीं था बल्कि नंबर उससे कम आने पर दोस्ती तोड़ने की धमकी दे रहा था। ये बात मेरे मस्तिस्क में आते ही पल भार में मेरे आंखो की नमी को सुखा दिया फिर उसे रूकने को बोलकर मैं मिठाई लेने चल दिया। घर के नजदीक ही मिठाई की दुकान थी। वहाँ से मिठाई लेकर जैसे ही मैं घर के दहलीज पर कदम रखा मेरे पैर स्वतः ही जहां का तहां जम गया।

To be continued…


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