Pradeep Ray

Inspirational Others

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सखा-अ वेल विशार (भाग -7)

सखा-अ वेल विशार (भाग -7)

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उसका मुंह लटका हुआ देखकर और अटक अटक कर बोलने से मेरे मन में शंका होने लग गया कि इस बार पक्का मेरी मेहनत रंग नहीं लाया और आज के बाद हमारी दोस्त जो आज तक अटूट थी वो हमेशा हमेशा के लिए टूट जायेगा इसलिए मैं रूवासा होकर बोला...ऋषि बोल न क्या हुआ तेरा लटका हुआ मुंह और यूं अटक अटक कर बोलना मुझे अगाह कर रहा हैं कि मेरा किया वादा टूट चुका हैं अगर ऐसा हुआ तो क्या तू सच में मुझसे दोस्ती तोड़ देगा बता न (मैं कुछ देर रूका लेकिन ऋषि कुछ नहीं बोला तब मैं फ़िर बोला) क्या हुआ ऋषि तू चुप क्यों हैं बोल न, तू बोलता क्यों नहीं!


मेरे पूछने पर भी ऋषि कुछ नहीं बोला वैसे ही मुंह लटकाए खड़ा रहा। ऋषि का इस तरह चुप्पी साध लेना मेरे अन्दर पनपी शंका को यकीन में बादल दिया। ऋषि और मेरी दोस्ती टूटने की बात मेरे मानसिक पटल पे आते ही मैं फूटफूट कर रो दिया। रोना कैसे न आता एक वहीं तो था जिसने मुझे भटके हुए रह से वापस लाया दोस्ती की कसम देकर असंभव सा काम जो शायद ही कभी मैं संभव कर पाता उसे संभव करवाया और आज एक पल में हमारी दोस्ती टूटने के कगार पर आ गईं। मगर ऋषि भी एक नम्बर का नौटंकी बाज निकला। मुझे रोता हुआ देखकर खिलखिलाकर हंस दिया फिर मुझसे लिपटकर बोला... अरे तू रो क्यों रहा हैं हमारी  दोस्ती नहीं टूटा न तेरा मुझसे किया वादा टूटा हैं। तू पास हों गया और मुझसे भी ज्यादा नंबरों से पास हुआ सिर्फ पास ही नहीं हुआ बल्कि स्कॉलरशिप पाने की सभी शर्तों को भी पूरा किया।


उसकी ये बातें और खुशी ने मुझे जतला दिया, हमारी दोस्ती अटूट ही रहा। कुछ पल उसके गले लगा रहा फ़िर उससे अलग होकर उसके पेट में मुक्का मरते हुए बोला...बता तूने इतना नौटंकी क्यों किया? तेरी नौटंकी ने मेरी जान हलक में हटका दिया था।


ऋषि बस मुस्कुराता हुआ मुझे देखा और फिर से मेरे गले लग गया। उससे अलग होकर दादी से खुशी खुशी गले मिला फ़िर ऋषि बोला... चल यार हमारी दोस्ती न टूटने की खुशी मनाते हैं। 


इतना बोलते ही हम दोनों घर से बहार की ओर चल दिया तब दादी रोकते हुए बोलीं... ऋषि बेटा मुन्ना ने सुबह से अन्न का एक दाना नहीं खाया पहले उसे कुछ खा तो लेने दे।


ऋषि...अम्मा मेरे दोस्त ने कुछ नहीं खाया तो मैंने भी कौन सा खाया हैं? मां ने आज हम दोनों के लिए स्पेशल तैयारी कर रखा हैं। मैं इसे घर ले जा रहा हूं बाद में सही सलामत आपके पोते को आपके पास लौटा जाऊंगा।


इतना बोलकर हम दोनों खिलखिलाते हुए चल दिए। सबसे पहले अपने अपने पैसे से मिठाई लिया और एक दूसरे के पास होने की बात लोगों को बताते हुए मिठाई बाटी फ़िर ऋषि के घर को चल दिया। अम्मा और सेठ जी ने हम दोनों का बड़े गर्म जोशी से स्वागत किया और खाना परोसकर अम्मा ने हम दोनों को एक साथ बिठाकर ख़ुद से खिलाया। खाना पीना होने के बाद मैं घर पहुंचा तो दादी मुझे खाट पर बिठाकर मेरे पास बैठ गई और बोलीं…मुन्ना मैं बहुत दिनों से तुझसे कुछ कहना चहती थी पर हिम्मत जुटा नहीं पाई लेकिन आज बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा पाई हूं।


इतना बोलकर दादी चुप हों गईं और मैं दिमागी घोड़ा दौड़ने लग गया कि ऐसी कौन सी बात हैं जिसे कहने के लिए दादी कई दिनों से हिम्मत जुटा रहीं थीं। मगर जुटा नहीं पाए, सोचते सोचते सहसा मेरे लबों पर हंसी छा गया और मैं दादी से बोला... यहीं न, आप ऋषि के कहने पर ही मुझे ताने दिया करती थीं।


मैं इतना बोलकर चुप हों गया और मंद मंद मुस्कान लबों पर लिए दादी को देखने लग गया। दादी की रूखी आंखें जो बेटे और बहू की एक साथ मौत के बाद रो रो कर सुख चुका था। मेरी बाते सुनते ही कुछ बूंदे नीर का बहा दिया। जिसे पोंछते  हुए मैं बोला...दादी आप रो क्यों रहीं हों आप ने और ऋषि ने जो कुछ भी किया मेरे भले के लिए किया था अगर आप दोनों ऐसा नहीं करते तो शायद मैं आज रास्ता भटककर किसी ओर दिशा में निकल चुका होता। अब चुप करिए मेरी अच्छी दादी रोते हुए भद्दी दिखती हैं।


अंत में मजाकिया लहजे में बोलने पर भी फायदा नहीं हुआ बल्कि दादी मुझसे लिपटा कर तेज लय में रोने लग गईं। एक पल में मैं समझ गया। मुझे ताने देते वक्त उनको जितनी तकलीफ हुआ था। उसे आज मुझसे लिपटकर आंसू बहाकर कम कर रहीं हैं। इसलिए मैंने उन्हें कुछ देर रोने दिया फ़िर खुद से अलग कर उनके न मात्र के बहते हुए आंसुओं को पोंछकर बोला... दादी अब बस भी कीजिए ओर कितना रोएंगी, पहले ही आप बहुत रो चुके हो अब ओर नहीं।


एक दो बार माना करने के बाद दादी का रोना बन्द हुआ। रोना बंद होते ही, कब जाना कैसे जाना सवाल दागना शुरू कर दिए। मुझे लगा जब पूछ ही रहीं हैं तो बता देना ही ठीक होगा। इसलिए मैंने उस दिन कैसे जाना सब बता दिया। सभी बाते बताने के बाद मैं दादी से बोला... दादी आप कभी भी ऋषि को ये न कहना कि मुझे पाता चल चुका है कि उसके कहने पर ही आप मुझे ताने दिया करती थी। मैं  सही समय देखकर उसे भी बता दूंगा।


दादी मेरा कहना मान नहीं रहीं थी। इसलिए मुझे उन्हें तरह तरह के तर्क और वास्ता देकर चुप करवाना पड़ा। ऐसे ही घूमते फिरते और मौज मस्ती करते हुए वक्त बीत गया और वो वक्त भी आ गया जब हम दोनों दोस्तों को अपने अपने मंजिल की और चलना था। ऋषि डॉक्टरी की पढ़ाई करने दिल्ली चला गया और मैं बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करने मुंबई आ गया। फ़िर से हम दोनों दोस्तों में जंग छिड़ गया। जी जान से हम पढ़ाई करने लग गए। शुरू शुरू में मन नहीं लगता था क्योंकि मेरा दोस्त मेरे पास नहीं था मगर धीरे धीरे आदत बन गया। जब जब कॉलेज में कई दिनों की छुट्टी पड़ती तब तब मैं और ऋषि एक दूसरे से मिलने गांव पहुंच जाते थे। 


ऐसे ही वक्त बीतने लग गया और पढ़ाई का रिजल्ट भी उम्मीद से बेहतर आने लगा। एक वर्ष का समय ओर शेष था उसी वक्त कॉलेज की तरफ से प्लेसमेंट के लिए बड़ी बड़ी कंपनियों को बुलाया गया। प्लेसमेंट की सभी करवाई पूरी होने के बाद एक कंपनी को मेरी सर्टिफिकेट और दूसरी जरूरी टेस्ट लेने के बाद मुझसे प्रभावित होकर अच्छी तनख्वाह की पेशगी करके मुझे उनकी कंपनी ज्वाइन करने की पेशकश कर दिया। मुझे ओर चहिए ही किया था। बिना भागा दौड़ी के अच्छी तनख्वाह के साथ नौकरी मिल रहा था तो मैंने भी हां कर दिया।


ये बात मैंने फ़ोन करके ऋषि, दादी और सेठ जी को बता दिया सभी बहुत खुश हुए। मगर ऋषि  खुश होने के साथ साथ वादा करवाने से बाज नहीं आया उसे डर था कहीं मैं नौकरी मिलने के कारण लापरवाही न करने लग जाऊं। खैर सब कुछ अच्छा रहा अच्छे नंबरों से पास हुआ। अब मुझे बस कंपनी ज्वाइन करना था। मैं चाहता था नौकरी ज्वाइन करने से पहले एक बार ऋषि और बाकी सबसे मिल आऊं इसलिए ऋषि को फ़ोन करके गांव जानें की बात कहा तो ऋषि ने उस वक्त गांव जानें को माना कर दिया उसका कहना था कि वो अभी गांव नहीं आ सकता इसलिए जब तक वो न कहें मैं गांव न जाऊं, मैं मान नहीं रहा था तो एक बार फ़िर से हमारी दोस्ती की दुहाई और कसम देकर मुझे उसकी बात मानने पर मजबूर कर दिया।


अगले दिन से मैं नौकरी ज्वाइन कर लिया रहने के लिए एक आपार्टमेंट में कम्पनी की तरफ से एक फ्लैट मिला तो रहने की समस्या भी हल हो गया रहीं बात खाना बनाने की वो कोई बड़ी बात नहीं थी दादी के तानों ने मुझे पहले से ही खाना बनाना सिखा चुका था। दिन पर दिन बीतने लगा मैं बार बार ऋषि से गांव जानें की बात पूछता मगर वो हर बार माना कर देता था। इसी बीच लगभग छा सात महीना बीत गया। एक दिन अचानक ऋषि मुम्बई आ पहुँचा उसका यूं अचानक मुम्बई आना साथ में दादी को भी लेकर आना मुझे हैरान कर दिया। मगर हैरानी से ज्यादा मैं खुश था क्योंकि बहुत दिनों बाद मैं अपने दोस्त से मिल रहा था।


दोनों को फ्लैट पर लेकर गया। फ्लैट देखकर ऋषि से ज्यादा दादी खुश हुईं। उनका खुश होना भी जायज था। पूरी जिंदगी उन्होंने झोपड़ी में बीता दिया और उम्र के अखरी पड़ाव पर उन्हें इतने बड़े फ्लैट में रहने को मिल रहा था। बीते छा महीने से मैंने एक भी दिन छुट्टी नहीं लिया था तो छुट्टी की अर्जी डालते ही छुट्टी मिल गई। एक हफ्ते की छुट्टी लिया था ये पुरा हफ्ता दोस्त और दादी के साथ बिताया। इन्हीं दिनों मुझे लगा ऋषि खुश तो हैं मगर किसी बात को लेकर अंदर ही अंदर उलझा हुआ हैं। अगर कोई उलझन हैं तो दोस्त होने के नाते उसे सुलझना मेरा फ़र्ज़ बनता हैं। इसलिए उसके उलझन का कारण जानना चाहा, तो ऋषि कुछ न बताकर साफ मुकर गया। कई बार पूछा लेकिन जवाब एक ही मिला "कुछ नहीं मैं बिल्कुल ठीक हूं" बार बार माना करने पर मैं  दादी से भी पूछा उन्होंने भी कुछ नहीं बताया तब मुझे लगा शायद मेरा भ्रम होगा इसलिए मैंने भी ये सोचकर टल दिया अगर कोई बात होता तो ऋषि मुझे बता देता। एक हफ्ते का वक्त बीत गया और ऋषि के लौटने का वक्त भी आ गया। जिस दिन ऋषि लौट रहा था उस दिन ऋषि ने कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर मैं अचंभित हों गया।


शालिनी... ऐसा क्या कहा की तुम अचंभित हों गए।


शालिनी ने मेरी बातों को बीच में कटकर पूछा तब मैं जवाब देते हुए बोला...उसने कहा राघव तू आज के बाद तब तक गांव नहीं आएगा जब तक तू अपने दम पर कुछ कर नहीं लेता।


उसकी बातें सुनते ही मुझे लगा किसी ने मेरे पैरों तले से जमीन ही खींच लिया हों और मुझे हवा में लटका दिया हों। कुछ वक्त लगा मुझे खुद को संभालने में, खुद को संभालकर मैं बोला...ऋषि तू क्या कह रहा हैं कुछ सोच समझकर कह रहा हैं या यू ही हवा में तीर चला रहा हैं। क्या तुझे लगता है? मैंने अपने दम पर कुछ भी नहीं किया।


ऋषि…राघव मेरे दोस्त तू आज जिस मुकाम पर है वहां तक तू सिर्फ अपने दम पर हैं मगर गांव वाले ये थोड़ी मान रहे है उनका कहना हैं। तू आज जिस मुकाम पर है यहां तक सिर्फ और सिर्फ़ मेरे वजह से पहुंचा हैं।


"वो लोग कह रहें है तो ठीक ही कह रहें हैं कहीं न कहीं उनका कहना भी ठीक हैं क्योंकि मैं आज जहां पर हूं यहां तक पहुंचने में तेरा हाथ सबसे ज्यादा रहा।"


ऋषि...चलो अच्छा हुआ जो तू ये बात मन गया। अब सुन मैं चाहता हूं तू यहां से आगे का सफर तब तक अकेला तय कर जब तक तू ओर अच्छी मुकाम तक नहीं पहुंच जाता तब तक न तू मुझसे मिलने की जिद्द करेगा न ही गांव आएगा।


"देख ऋषि मैंने तेरी हर बात माना तुझसे किया हुआ हर एक वादा पूरा किया मगर आज तू जो कह रहा है ये मैं  कतई नहीं मानने वाला।"


ऋषि... तुझे मानना तो होगा तुझे हमारी दोस्ती का वास्ता अब तू चाहें तो ये वास्ता तोड़ दे। अगर तूने वास्ता थोड़ा तो हमेशा हमेशा के लिए हमारी दोस्ती खत्म हों जायेगा। अब फैसला तुझे लेना हैं। दोस्ती का वास्ता तोड़ना हैं या फ़िर हमेशा हमेशा के लिए अपने दोस्त को खोना हैं।


To be continued…


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