Pradeep Ray

Others

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सखा-अ वैल विशार (भाग -2)

सखा-अ वैल विशार (भाग -2)

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इतना बोलकर मैं ख्यालों में खो गया। "पापा कहा खो गए, मुझे बड़ी जोरों की भूख लगा हैं जल्दी घर चलो न" इन शब्दो को सुनते ही मेरी तंद्रा टूटा तो देखा पार्थ अपने पेट पर हाथ रखे कार के अगले सीट पर बैठा हैं। अब वो अदाकारी कर रहा था या उसे सच में भूख लगा था। मैं नहीं जानता परन्तु मुझे लगा वो सच कह रहा हैं। इसलिए मैं सभी यादें भुला तुरंत ही कार में बैठा और कार स्टार्ट क्या ही था की मेरा दुर्भाषी यंत्र घनघाना उठा। 


स्क्रीन पर "my sweetheart" नाम देखते ही एक पल देर किए बिना कॉल रिसीव किया, मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही शालिनी बोली... कहां हों घर पहुंचे की नहीं!


"नहीं, अभी रस्ते में...।


"क्या रस्ते में हों। मेरे कहने के बाद भी तुम देर से पहुंचे, न जानें मेरे बच्चे को कितनी देर खड़ा रहना पड़ा। आज तो तुम्हारी खैर नहीं जल्दी घर पहुंचो। मै भी थोड़ी में घर पहुंच रहीं हूं"


शालिनी ने मेरी बातों को बीच में कटकर मुझे झिड़कते हुए अपनी बाते कह दिया और मुझे बचाव करने का मौका दिए बिना कॉल कट कर दिया। अपना बचाव न कर पाने की बेबसी की लकीरें मेरे चहरे पर देखकर मेरा बेटा खिलखिला कर हंसते हुए बोला...पापा डर गए, मम्मा से डर गए। अब तो मैं मम्मा से झूठ बोलूंगा कि आप देर से आए और मुझे बहुत देर खडा रहना पड़ा फिर देखना मम्मा, आपकी अच्छे से खबर लेगी ही ही ही...।


"ऐसा क्यों मैं तो समय से आया था। फिर तू झूठ क्यों बोलेगा, तेरी मम्मा पहले से ही नाराज़ है आगर तूने सच नहीं बोला तो तेरी मम्मा से मुझे बचाने वाला कोई नहीं हैं आगर कोई बचा सकता है तो वो तू हैं। Please सच बोल देना।


"Ummm (कुछ सोचकर पार्थ आगे बोला) ठीक है सच बोल दूंगा लेकिन आप मुझे आइस क्रीम खाने से नहीं रोकेंगे। मेरी बात मानते हों, तो ही मैं मम्मा से सच बोलूंगा।


"अच्छा पापा को ब्लैकमेल कर रहा हैं। चल ठीक हैं प्रमिशन दिया मगर ज्यादा आइस क्रीम नहीं खाना क्योंकि ज्यादा आइस क्रीम खाने से सेहत पर बुरा असर पड़ता हैं।"


पार्थ...मैं कहा ज्यादा आइस क्रीम खाता हूं कभी कभी मन करता है उस पर भी आप माना कर देते हों।


पार्थ के इन बातों का मेरे पास कोई जबाव नहीं था। क्या जवाब देता? जो कह रहा था बिल्कुल सच ही कह रहा था। कभी कभी ही तो आइस क्रीम की मांग करता था। उस पर भी मैं टोक देता था। बरहाल बातों की दिशा बदलकर कुछ ओर बाते करते हुए हम घर पहुंच गए। पार्थ और मैं कार से उतरे भी नहीं थे कि एक और कार हमारे आंगन में प्रवेश कर गया। उसमे से शालिनी उतरी और जब तक शालिनी हम तक पहुंची तब तक मैं और पार्थ कार से उतर गए। शालिनी पार्थ के पास पहुंची और उसे गोद में उठते हुए बोलीं... मेरा बच्चा आ गया। तुम्हें भूख लगा होगा चलो तुम्हें खान देती हूं।


इतना बोलकर अन्दर जाते हुए मुझे तिरछी नज़र से ऐसे देखा जैसे इशारें में कह रहीं हों " जजमान अपना तसरीप लेकर अंदर पधारिए आपकी खातिरदारी, बहुत ही खिदमत से करूंगी।"


मैं बस हल्का सा मुस्कुराया और कार के पिछली सीट पर बिखरी पड़ी किताबे-काफियां समेटा और अन्दर को चल दिया। मुझे अन्दर जानें में थोड़ा समय लगा , उतने वक्त में अन्दर का माहौल बादल चुका था। डाइनिंग मेज के एक कुर्सी पर पार्थ बैठा था और दूसरी कुर्सी पर शालिनी बैठे पार्थ को खिला रहीं थीं। ये देखकर मैं मुस्कुराते हुए एक सोफे पर किताबे और काफियो को रखा फ़िर मैं भी बैठ गया। बिना बैग के किताबे और काफियां को देखकर शालिनी बोलीं...पार्थ सुबह तुम बैग में किताबें लेकर गए थे फिर आते वक्त बैग कहा छोड़ आए (फ़िर मेरी और देखकर बोलीं) राघव तुमसे एक काम भी ठीक से नहीं होता। बिना बैग के ही किताबे लेकर आ गए काम से काम…।


"मम्मा (शालिनी को बीच में रोककर पार्थ आगे बोला) मम्मा आप पापा को क्यों डांट रहें हों। मैंने मेरा बैग मेरे दोस्त को दे दिया। उसका बैग न, फट गया था इसलिए वो दो तीन दिन से स्कूल नहीं आ रहा था।"


शालिनी…मेरा अच्छा बेटा (इतना बोलकर पार्थ के सिर पर हाथ फेरा फिर मेरी ओर देखकर आगे बोला) दोस्तों की मदद करना अच्छी बात हैं मगर दोस्तों को भुला देना बुरी बात कुछ लोग दोस्त के परोपकार को भुला कर अपनी लाईफ जीने में मस्त हों जाते हैं। (फ़िर पार्थ के सिर को एक बार और सहलाते हुए आगे बोली) तुम मम्मा का अच्छा बेटा हों न इसलिए तुम बिल्कुल भी ऐसा न करना।


शालिनी ने मेरी ओर देखकर जितनी भी बाते कही, एक बार को मुझे लगा जैसे वो मुझे तंज कसते हुए बोला मगर मैं उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया क्योंकि उसी वक्त शालिनी की बाते सुनकर, वहीं छवि मेरे मस्तिष्क में किसी चलचित्र की तरह चल पड़ा। जिसको देखे अभी कुछ ही वक्त हुआ था।


शालिनी के बातों का बिना जवाब दिए मैं कमरे में चला गया। बिना एक पल बर्बाद किए कपड़ों का दराज खोला और कपड़ो को उथल पुथल कर दिया। मगर मुझे कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिसे देखकर, खुद से कह पाऊं कि हा मैं इसे ही ढूंढ रहा था। वहां से बेड के एक एक दराज खोलकर ढूंढा मगर वहां भी कुछ नहीं मिला वहां से सिंगर दान के पास गया। एक एक दराज खोज डाला पर वहा भी नहीं मिला। क्या ढूंढ रहा हूं? उसकी छवि याद नहीं आ रहा था। मगर इस उम्मीद में ढूंढ रहा था कि शायद देखते ही याद आ जाएं, कभी अलमारी, कभी बेड, कभी सिंगर दान के एक एक दराज को खोल कर ढूंढता रहा बार बार कई बार ढूंढा मगर मेरी तलाश खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। हताश निराश होकर अलमारी, बेड और सिंगर दान के दरजा में मौजुद एक एक समान को फर्श पर बिखेरकर सुसज्जित कमरे को कबाड़ खाने में बादल दिया मगर फिर भी वो चीज नहीं मिला जिसकी मुझे तलाश हैं।  यकायक एक तेज आवाज़ मुझे सुनाई दिया... राघव ये क्या किया? ऐसा कौन सा खजाना ढूंढ रहें हों जिसके लिए तुमने  एक एक समान बिखेर कर कमरे को कबाड़ खाने में बादल दिया। तुम जानते भी हों इन सामानों को समेटने में मुझे कितना वक्त और कितनी मेहनत करना पड़ेगा।


शालिनी की बाते सुनकर आशा भारी नजरों से उसकी ओर देखा शायद शालिनी मेरी तलाश को मंजिल तक पहुंचाने में कुछ मदद कर दे। किन्तु उसके लिए धीरज रखना जरूरी था। जो इस वक्त मैं रख नहीं पा रहा था। शालिनी के नजरों से नजर हटाकर फर्श पर बिखरे पड़े सामानों को उलट पलट कर देखते हुए हताशा जाहिर करते हुए बोला... कुछ तो (याद करते हुऐ कुछ देर रूका फ़िर बोला) कुछ तो ढूंढ रहा हूं मगर क्या? मुझे याद नहीं आ रहा हैं।


शालिनी... वाहा जी वाहा! क्या ढूंढ रहें हों, याद नहीं और देखो कमरे का क्या हाल कर दिया। (कुछ क्षण रूकी फिर मुस्कुराते हुए आगे बोलीं) राघव क्या ढूंढ रहें हों उसे याद करो हों सकता हैं उसे ढूंढने में, मैं कुछ मदद कर दूं।


इतना बोलकर मेरे पास आई और मुझे बैड पर बिठा दिया और एक बार फ़िर से याद करने को बोला तब मैंने मस्तिस्क पर जोर दिया। कुछ पल की मानसिक खीच तन के बाद मेरे मुंह से निकाला…शालिनी मेरी एक पुरानी डायरी हैं। मैं उसे ही ढूंढ रहा था। तुम जानती हों कहा रखा है।


शालिनी... तुम भी न राघव नीरा बुद्धू हों, रूको मैं लेकर आती हूं।


मेरी वो पुरानी डायरी जिसमें कुछ भी नहीं लिखा था। एक एक पन्ना कोरा हैं फ़िर भी मैं उसकी तलाश बेसब्री से कर रहा था। वजह सिर्फ़ इतना हैं, उसमें मेरी एक अनमोल चीज सहेज कर रखा हुआ था। जब उसके मिलने की आश जगा और शालिनी उसे लेने जा रहीं थीं। तो मुझसे रूका नहीं जा रहा था इसलिए मैं शालिनी के पीछे पीछे बदहवासी में चल दिया। शालिनी को स्टडी रूम में घुसते देखकर मैं भी उस ओर चल दिया। जब तक मैं स्टडी रूम के दरवाजे तक पंहुचा, उतनी देर में शालिनी डायरी लेकर वापस मुड़ी और मुझे देखकर बोलीं... तुमसे जरा सी देर रूका नहीं गया। लो देख लो न जानें कौन सा खजाना इसमें छुपा रखा हैं। जिसे ढूंढने में मेरी सजी सजाई कमरे को तहस नहस कर दिया।


इतना बोलकर शालिनी मुझे डायरी देने आ ही रहीं थीं कि डायरी उसके हाथ से छुट गई। फर्श पर गिरते ही, फर्श से टकराकर डायरी खुल गई। खुलते ही सीधा वहां पन्ना सामने आया जिसमे  एक तस्वीर रखा हुआ था। तस्वीर को हाथ में लेकर देखते हुए शालिनी बोलीं... राघव ये तो बहुत पुरानी तस्वीर हैं। किसकी तस्वीर हैं? जिनके बारे में तुमने मुझे कभी बताया नहीं!


To be continued….


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