Pradeep Ray

Inspirational Others

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सखा-अ वेल विशार (अंतिम भाग)

सखा-अ वेल विशार (अंतिम भाग)

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दरसल साक्षी की शादी के वक्त साक्षी ने हम दोनों को निमंत्रण दिया था मगर मुझे बिजनस के सिलसिले में कुछ जरूरी काम था इसलिए मैं नहीं आ पाया, शालिनी और पार्थ को भेज दिया था लेकिन जब साक्षी ने कहा शालिनी शादी में आकर ही ऋषि से मिला था तो मेरे मस्तिष्क में खलबली मच गया कि शालिनी न कभी ऋषि से मिला न ही कभी मैंने उसे ऋषि के बारे में बताया तो फ़िर शालिनी ऋषि को पहचाना कैसे, इन बातों पर मानसिक खींचातानी करने के बाद जब कोई नतीजा नहीं निकला तो मैं बोला...शालिनी तुम मुझे बस इतना बता दो तुम ऋषि को कैसे पहचाना जबकि मैंने तुम्हें न कभी ऋषि से मिलवाया न कभी ऋषि के बारे में बताया।


शालिनी... तुम स्टडी रूम में ऋषि भाई साहब की तस्वीर देखकर आंसू बहाते रहोगे और मुझे पाता भी नहीं चलेगा हुआ ये था कि एक दिन तुम ऑफिस से जल्दी घर आ गए और सीधा स्टडी रूम में चले गए मैं तुमसे चाय को पूछने आ रही थी कि देखा तुम एक पुरानी डायरी निकल रहें हों मेरे आवाज देते ही तुमने वो डायरी वापस वहीं रख दिया जहां से निकाला था फ़िर स्टडी रूम से बाहर आ गए। कुछ दिन बाद मैं स्टडी रूम की सफाई कर रहा था तब वो डायरी मेरे हाथ लग गईं ऐसा नहीं की उस दिन से पहले कभी वो डायरी मैंने नहीं देखा, कई बार देखा मगर न जानें उस दिन मुझे किया सूजा की मैं उस डायरी को खोलकर देखा लेकिन उसका हर एक पन्ना कोरा था। मैं पन्ना पलटता गया पलटता गया तब कहीं जाकर बीच के पन्नों में मुझे तुम दोनों की तस्वीर दिखा तुम्हें देखकर मैं पहचान गईं मगर दूसरे शख्स को पहचान नहीं पाया कैसे पहचानता उस दिन से पहले मैंने कभी देखा ही नहीं था। मैंने सोचा तुमसे पूछूंगा, ये शख्स कौन हैं पर सही वक्त नहीं मिला इसी बीच साक्षी की शादी में आ गई। साक्षी भी बड़ी छुपी रूस्तम निकली मेरी प्रेम कहानी की पल पल खबर लेती रहीं लेकिन अपनी छुपा गईं। जब शादी में आई तो इससे लड़के के बारे में पूछा तब इसने तुम्हारे दोस्त की तस्वीर दिखाया और बताया कैसे एक यात्रा के दौरान दोनों एक दूसरे से मिले और इनकी प्रेम कहानी चल पड़ी। जब इसने मुझे ऋषि भाई साहब की तस्वीर दिखाया तब मुझे वो तस्वीर जाना पहचाना लगा दिमाग पर जोर दिया तब समझ आया ये तुम्हारे पास रखी तस्वीर में मौजूद दूसरे शख्स की तस्वीर हैं। तब ये बात मैंने साक्षी को बताया इसने तुरन्त ऋषि भाई साहब को तुम्हारी एक फोटो भेजा फिर फोन करके पूछा तब उन्होंने तुम दोनों की दोस्ती का एक एक किस्सा बता दिया और शादी वाले दिन इनसे मिल भी लिया फ़िर….।


मैं शालिनी को बीच में रोकर बोला...शालिनी जब तुम ऋषि से मिल चुके थे तब मुझे क्यों नहीं बताया।


शालिनी...अरे बताने तो दो तुम दोनों की मिलने की बात इनसे कहा तब न जानें क्यों ये उस वक्त माना कर दिए साथ ही तुम्हारी कसम देकर ये कहा कि मैं तुमसे ये न कहूं की मैं तुम्हारे दोस्त को जानती हूं और मेरी सहेली साक्षी का पति हैं। उसके बाद मैं मुम्बई लौट आयीं और तुम पर नज़र रखने लग गईं इसी दौरान मुझे तुम्हारे अंदर तुम्हारे दोस्त से मिलने की तड़प दिखा तुम खुलकर रोना चाहते थे पर नहीं रो पाते थे। ये देखकर मैं ऋषि भाई साहब को सब बता दिया लेकिन ये फिर भी नहीं मिलना चाहते थे। मुझे इन पर बहुत गुस्सा आया इनका गुस्सा उस दिन तुम पर निकला मैं जान बूझ कर तुम्हें ताने दिया। यकीन मानना तुम्हें ताने देते वक्त मुझ पर क्या बीत रहीं थीं मैं ही जानती हूं मेरे आंखों से आंसू रूक नहीं रहें थे। राघव उस दिन के लिए मुझे माफ कर देना।


इतना बोलकर शालिनी रूक गईं और फूट फूट कर रोने लगीं। मैं उसके पास गया समझा बुझा कर उसे चाप करवाया फ़िर ऋषि की और पलट कर बोला... ऋषि तूने क्या जीवन भर मुझे ताने सुनवाने का ठेका ले रखा हैं। पहले दादी से ताने सुनवाया फ़िर शालिनी से ताने सुनवाया, भाई तू साफ साफ बता दे ओर कितने ताने सुनवाएगा।


खुलासा करते ही ऋषि चौक गया और एक टक मुझे देखने लग गया। तब मैं बोला... ऐसे क्या देख रहा हैं मुझे बहुत पहले ही पाता चल गया था कि मुझे जिम्मेदारी का एहसास करवाने के लिए तूने ही दादी से कहा था कि….।


मैंने बस इतना ही कहा था की ऋषि मेरे पास आया और मेरे गले से लगकर बोला... मुझे माफ कर दे यार!


"तू क्यों माफ़ी मांग रहा हैं तूने जो भी किया मेरे भले के लिए ही किया था। तू अगर वैसा न करता तो मुझे कभी जिम्मेदारी का एहसास नहीं होता। तेरे ही कारण आज मैं फर्श से अर्श तक पहुंच पाया। उस बात के लिए तुझे माफ कर दिया। मगर तूने अब जो क्या, क्यों किया, तू मुझसे मिलना क्यों नहीं चाहता था? ये नहीं बताया तो कह देता हूं तुझे कभी माफ नहीं करूंगा।"


कुछ देर की चुप्पी छाया रहा फ़िर ऋषि बोला... राघव मैं तुझसे मिलना चाहता था लेकिन तू ही बता मैं तुझसे कैसे मिलता जबकि मैं ये जनता था। गांव वाले हमारे बारे में बाते बना रहें हैं। ऐसा झूठ बोला था। जब तुझे सच्चाई पाता चलता तब मैं तुझे क्या जवाब देता मगर तू ये न समझना कि मैंने तुझसे बिना कारण झूठ कहा था उसका भी एक कारण था।


"ऋषि तू मुझे झूठ क्यों बोला बता जल्दी बता।"


ऋषि...ये बात उस वक्त कि हैं जब तेरी बिजनेस मैनेजमेंट और मेरे डॉक्टरी की पढ़ाई पूरा होने में सिर्फ एक महीने का वक्त रहा गया था उस वक्त तूने मुझे फोन करके एक महीने बाद गांव आने को कहा था मैंने भी हामी भर दिया था मगर उसके कुछ ही दिन बाद मां बाबूजी मुझसे मिलने दिल्ली आ रहें थे लेकिन मुझ तक पहुंच ही नहीं पाए रास्ते में एक दुर्घटना का शिकार हों गए और इस दुनिया में मुझे अकेला छोड़ गए।


इतना सुनते ही मैं क्या प्रतिक्रिया दूं भूल चुका था और उधर ऋषि सिर्फ आंसू बहा रहा था तब साक्षी ने जाकर ऋषि को संभाला आंसू तो मेरे भी बह रहें थे क्योंकि मुझे अफसोस हों रहा था मेरे मां बाप नहीं थे और जब ऋषि और मेरी दोस्ती गहराने लगा तब सेठ जी और अम्मा ही मुझे ऋषि की तरह मां बाप का प्यार देते थे और मैं उनका अन्तिम दर्शन भी नहीं कर पाया कुछ वक्त तक मैं आंसू बहता रहा फिर बोला... ऋषि जब अम्मा बाबूजी दुर्घटना में गुजर गए तब तूने मुझे सूचना क्यों नहीं दिया बता तूने ऐसा क्यों किया?


ऋषि... मैं जनता था जिस दिन तुझे पाता चलेगा उस दिन तू मुझसे ये सवाल जरूर पूछेगा। तो सुन, बिना मां बाप के जीने का दर्द क्या होता हैं तुझसे बेहतर शायद ही कोई ओर जानता होगा मैं यहां भी जानता था तुझे पाता चलते ही तू सब कुछ छोड़ छाड़कर गांव चला आएगा और मुझे अकेला छोड़कर कभी नहीं जायेगा। तू वापस नहीं गया तब तेरा बेहतर भविष्य जो बाहें फैलाए इंतजार कर रहा था वो तुझसे बहुत दूर चला जाता। तेरे बेहतर भविष्य को बनाने के लिए हमारी दोस्ती तोड़ने की धमकी दे देकर न जानें तुझसे कितना मेहनत करवाया मैं नहीं चहता था तेरा बेहतर उज्ज्वल भविष्य जो मेरे सच कहने पर तुझसे दूर भाग जाएं, जिसे वापस लाने में तुझे न जानें कितनी और मेहनत करना पड़ता सिर्फ इसलिए मैंने तुझे गांव आने से मना कर दिया। अम्मा को भी माना लिया, वो कभी तुझसे सच न बोलें, मैं यहां भी जनता था कभी न कभी तू गांव आने की जिद्द करेगा और मैं तुझे ज्यादा दिन रोक नहीं पाऊंगा इसलिए तेरे नौकरी ज्वाइन करने के छः महीने बाद अम्मा को लेकर तेरे पास गया। तू भी कमाल का निकला मेरे खुशनुमा चेहरे के पीछे की उलझन को समझ गया और बार बार मेरे उलझन का कारण पूछने लग गया। मैं तुझे टालता रहा। मेरा मन तो था कि कुछ दिन ओर तेरे साथ बिताऊं लेकिन मुझे डर था कहीं तेरे बार बार पूछने पर मैं तुझे बता न दूं इसलिए सिर्फ एक हफ्ता रुककर तुझे वो झूठ और दोस्ती का वास्ता देखकर वापस आ गया। वापस आ तो गया था मगर मैं इस बात से अनजान भी नहीं था कि तू मेरे दिए दोस्ती के, वास्ता के चलते जी तोड़ मेहनत करके खुद को सिद्ध करके कभी न कभी वापस जरूर आएगा। इसलिए मैंने सोचा था जमीन जायदाद बेचकर कहीं और चला जाऊं फ़िर गांव वालों के बारे में सोचकर जमीन जायदाद उनको बंटाई पर दे दिया और ये भी बता दिया की जब भी तू गांव आए मेरे बारे में या मां बाबूजी के मौत के बारे में कुछ न बताए फ़िर मैं ये गांव छोड़ कर जयपुर चला गया। हालाकी मैं बाबूजी के मौत के कारण फाइनल एग्जाम नहीं दे पाया था। इसलिए मुझे एक साल और डॉक्टर की पढ़ाई करने के बाद फाइनल एग्जाम देना पड़ा फ़िर प्रैक्टिस करने के लिए जयपुर चला गया। मैं वहां चैन से कभी रह ही नहीं पाया बार बार तुझसे मिलने का दिल करता रहता था। इसलिए मैं कई बार तुझसे मिलने मुबई आया लेकिन हिम्मत जुटाकर कभी तुझसे मिल ही नहीं पाया मगर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था मुम्बई आने जाने के दौरान मेरी मुलाकात साक्षी से हुआ। हमारी मुलाकातें बढ़ती गई और कब प्यार में बादल गया मैं समझ ही नहीं पाया फ़िर आई शादी की बारी शादी से एक दिन पहले ही मुझे पता चला साक्षी और शालिनी भाभी दोनों सहेली हैं साथ ही ये भी पता चला शालिनी भाभी और तू पति पत्नी हैं। यकीन मान मुझे शादी से कुछ दिन पहले पता चलता तो मैं शादी तोड़कर साक्षी से कहीं दूर चला जाता लेकिन उस दिन मुझे पाता चला मैं अब और नहीं भाग सकता एक न एक दिन मुझे तेरा सामना करना होगा और सारी सच्चाई तुझे बताना होगा। इसलिए शादी के कुछ महीने बाद हम गांव चले आएं। हम गांव आ गए हैं ये बात शालिनी भाभी को न बताएं ऐसा साक्षी से कहा था।लेकिन साक्षी ने शालिनी भाभी को बिना मेरे पता चले बता दिया और शालिनी भाभी तुझे लेकर गांव चली आई।


ऋषि जैसे जैसे बताता जा रहा था। शुरू शुरू में मुझे गुस्सा आ रहा था। मन कर रहा था उसे पकड़कर ढंग से कूट दूं मगर किसी तरह खुद पर काबू रख लिया और जैसे जैसे आगे बताता जा रहा था मेरा गुस्सा हैरानी में बदलता जा रहा था फिर जब उसने कहा कि शादी से कुछ दिन पहले अगर उसे शालिनी के बारे में पता चलता तो ऋषि शादी तोड़ देता उसकी ये बातें सुनकर मैं समझ गया कि मेरा जिगरी यार किस कदर शर्मिंदा हैं सिर्फ एक बात छुपाने के लिए एक ऐसा झूठ बोला जो कभी सच था ही नहीं और उस झूठ को छुपाने के लिए मुझसे भागता रहा । मुझसे दूर पहले से ही था मगर जब मुझे पाता चला वो उस झूठ को छुपाने के लिए अपनी शादी तक को तोड़ने के लिए राज़ी था। इसलिए उससे कोई और सवाल जब करना सही नहीं समझा जो होना था हों चुका अंत में खुशी इस बात की मिली मेरा जिगरी दोस्त मुझे वापस मिल गया। हमारी दोस्ती एक बार फिर से टूटते टूटते बच गईं जो लगभग टूटने के कगार पर पहुंच चुका था।


समाप्त 



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