सजावट
सजावट
कभी कभी हम औरतें अपने घर के लिए क्या कुछ नही सोचती?
दरवाज़ें पर गणेश लगाना होगा... दीवारें इस रंग की होगी...पर्दें दीवार के रंग से मैचिंग होगे...फ्रंट दीवार पर बड़ी वाली पेंटिंग होगी....किचन में गैस इस साइड होगा....मॉड्यूलर किचेन होगा.....किचेन मे चिमनी ज़रूर होगी....सिंक थोड़ा बड़ा होगा...डाइनिंग टेबल ग्लास का होगा....और न जाने क्या क्या... हम औरतें घर के लिए पूरी जिंदगी लगा देती है उस घरको सजाने सँवारने के लिए.....लेकिन अब वक़्त बदला है।कभी बहू बनकर आयी वह आज सास बन गयी है।
न जाने क्यों आज वह पुरानी यादों में खो गयी...वही घर को सजाने सँवारने वाली बातों में.....
क्योंकि आज दीवारें फिर से रंगी जा रही है....पर्दें बदले जा रहे है..... पेंटिंग भी बदली जा रही है ....फ्रीज़ और डाइनिंग टेबल भी बदले जा रहे है...नयी बहू उत्साह से इंस्ट्रक्शन्स दे रही है.....
आज जैसे उसके हाथ से सब कुछ छूट रहा था.....घर की दीवारें जिन्हे कभी उसने अपने हाथों सजाया था, आज वही दीवारें उसे अजनबी सी लग रही थी.....घर का किचन जो कभी उसकी सल्तनत हुआ करती थी जहाँ उसकी ही हुक़ूमत चला करती थी। सब की पसंद नापसंद का ख़याल रखते हुए आज क्या खाना बनेगा से क्या नहीं बनेगा सबकुछ........
लेकिन आज वही किचन उसे पराया लगने लगा..... बहू ने मनुहार करते हुए उन्हें आराम करने की सलाह दी....यह कहते हुए कि मम्मी जी ने जिंदगी भर सिर्फ़ काम किया है !!!
बहू की सलाह सभी को वाज़िब लगी थी।पूरा परिवार बहू की तारीफ़ों के पूल बाँधने लगा। घर में आज जो भी हो रहा था वह सब कुछ सही था ....
लेकिन न जाने क्यों वह सब उसे ग़लत लग रहा था। दिमाग सही क़रार दे रहा था। लेकिन दिल गवाही नही दे रहा था।
आज यह शाम कुछ अजीब लग रही थी।क्या नहीं है उसके पास? सब कुछ तो है.... लेकिन जो कुछ भी है वह हाथ की रेत की तरह फिसलता जा रहा है।