सजा
सजा


राजलोक की सुंदर पहाडिय़ों के बीच छोटा सा सुंदर गांव सुहानी स्थित था। इसी गांव में बहुत कम लोग झूठ का सहारा लेते थे और झूठ बोलने से कतराते थे। बड़ी से बड़ी आपत्ति आने पर भी झूठ का सहारा नहीं लेते थे। इस सुंदर से गांव को कलंकित करने वाला भी एक जन धरा पर भार बना हुआ था। यह शत प्रतिशत अपंग व्यक्ति नरेश भी भगवान् की दया से उत्पन्न हुआ था। ऐसे अपंग व्यक्ति को भगवान की दी हुई सजा पर क्षमा याचना करके अपने भावी जन्म को बेहतर बनाने की प्रार्थना करनी चाहिए किंतु उलट यह अपंग व्यक्ति तो भगवान् को भी कोसते देर नहीं लगाता था। वह कुछ पढ़ लिख गया और सरकार की कृपा से शिक्षक बन गया। भगवान् ने उसके साथ बुरी बिताई थी। उसके दोनों पैर लगभग खत्म हो चुके थे। बैशाखियों के सहारे जीवन जी रहा था तथा पैरों में कैलिपर लगाकर थोड़ा बहुत खड़ा हो सकता था। घर परिवार में उनकी सुशील पत्नी एवं बच्चे भी थे। पत्नी एवं बच्चे भी उसकी खूब सेवा करते थे किंतु यह यह शिक्षक तो उनको भी गाली गलौच के सिवाय कुछ भी साफ सुथरी भाषा प्रयोग नहीं करता था। इस प्रकार के इंसान पर सभी को रहम आता था किंतु ऐसा इंसान भी भगवान् से नहीं डरता अपितु पाप पर पाप किए जाए तो भगवान् की नजरों से कब बचने वाला होता है?
लोग बस एक ही बात कहते-पहले तो भगवान् ने इसके साथ बुरी बिताई है पर यह इंसान अपनी गलती पर गलती दोहरा रहा है। ऐसे जन को तो इससे भी बड़ी सजा मिलेगी? कहते हैं कि लोगों की जुबान भगवान् की जुबान होती है। अनायास ही लोगों के मुख से यह बात निकलती-यह तो नरक का भागीदार होगा। इसे तो भगवान् वो सजा देंगे कि इसकी रूह भी कांप उठेगी।
अब तो क्षेत्र में शेयर मार्केट का बोलबाला है और अपंग जन नरेश इस काम में बहुत अग्रणी है। फोन से शेयर की पल-पल की नजर रखता है और भारी धनराशि शेयर मार्केट में लगा रखी है। हर बार उसका भाग्य साथ देता रहा है और बेहतर मुनाफा अब तक लेता आ रहा है। पर यह क्या इस बार तो उस अपंग जन नरेश ने भारी पूंजी शेयर मार्केट में झोंक दी। इस बार तो अगर शेयर पिट गया तो समझो अपंग मर जाएगा या फांसी लगा लेगा और अगर शेयर मार्केट बढ़ गया तो उसके वारे न्यारे हो जाएंगे।
दिनोंदिन शेयर मार्केट गिरता चला गया और यह देख देखकर नरेश भी मरणासन्न पहुंंच गया। अब तो आलम यह था कि लोगों को गाली से बोलने वाला जन चारपाई पर पड़ा अंतिम सांसे गिन रहा था। भारी संख्या में आस पास के लोग आकर उसे ढांढस बंधाते। धीरे धीरे पता चला कि लोगों को गाली देने वाला नरेश को लाखों रुपये की चपत लग गई है। खुद तो मरा ही साथ में कई लोगों को भी मार डाला। उसने लोगों के पैसे भी शेयर में लगा दिए थे और यह कहता-तुम्हें इस बार भारी मुनाफा दूंगा। नरेश के साथ कई जन जिनके पैसे अपंग नरेश में डूब गए फांसी खाने को तैयार थे। समय बीता और अपंग जीवन मृत्यु के बीच से उभरा और जीवन की राह पर चलने लगा किंतु वो कब मानने वाला है। जिस किसी के पैसे शेयर मार्केट में लगा दिए वो अपनी मूल पूंजी ही मांगने आता किंतु नरेश उन्हें गाली गलौच से बोलता। सभी के पैसे मारे गए। वो बेचारे मूल के लिए रोते तो कभी थाना तहसील जाने की बात करते किंतु थाना तहसील में भी जब अपंग को देखते तो उसे कहकर छोड़ दिया जाता कि लोगों के पैसे दे देना।
समय बदला और अपंग ने फिर से गाली गलौच शुरू कर दी। यहां तक कि एक दैनिक जीवन में काम आने वाले सामान की दुकान भी घर के एक कोने में बना ली। पड़ोसी गांव के एक गरीब ब्राह्मण कमल को दुकान पर नौकर रख लिया। अपंग जन दिनभर स्कूल में शिक्षा देने जाता और शाम को दुकान पर बैठ जाता ताकि उनके दबदबे से ग्राहक अधिक आएं। स्कूल में शिक्षा देने के नाम पर भी एक कलंक ही था। यूं कहा जाए कि मुफ्त में वेतन फोड़ता था तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। दिनभर कमल दुकान पर सामान पकड़ाता और बदले में बहुत कम राशि उसे मिलती किंतु गरीबी बहुत बुरी होने के कारण ब्राह्मण मजबूरी में दुकान पर काम करता था। दुकान पर काम करते हुए लंबा समय बीत गया।
समय बीता और दुकान बेहतर चलने लगी। एक दिन शाम के वक्त जब अपंग नरेश दुकान पर बैठा था और गरीब ब्राह्मण ग्राहकों को सामान तोलकर दे रहा था तभी एक सरकारी गाड़ी दुकान पर आई और गाड़ी से तीन जन उतरे। वे सीधे दुकान में घुसे और सैंपल लेना शुरू कर दिया। अब तो अपंग नरेश के होश ठिकाने लग गए। सैंपल भर लिया गया है और वो भी घी का सैंपल भरा गया है जो मिलावटी था। अब तो समझो नरेश की कैद निश्चित है। अधिकारियों ने पूछा-दुकानदार कौन है? यह सुनकर सन्नाटा था। कमल कभी नरेश की ओर देखता तो कभी नरेश कमल की ओर। एक विकट समस्या उत्पन्न हो गई।
अगर दुकान के मालिक बतौर नरेश का नाम बताया जाता है तो नौकरी तो गई साथ में कैद निश्चित है। रही कमल वो बेचारा तो नौकर था। ऐसे में अपंग नरेश ने चाल चलते हुए ब्राह्मण से कहा-तुम अपना नाम मालिक बतौर लिखवा दो। मैं तुम्हें में पांच लाख रुपये दे दूंगा।
बेचारा गरीब ब्राह्मण समझ नहीं पाया कि नरेश उसके साथ क्या चाल चल रहा है? भोला होने के साथ साथ वो गरीब भी था। उसने लोभ के वशीभूत सैंपल की टीम को अपना नाम मालिक बतौर बता दिया। कुछ दिनों बाद सैंपल फेल की रिपोर्ट आ गई और मामला न्यायालय तक पहुंचा। न्यायालय ने दुकान के मालिक पर सजा-ए-कैद की घोषणा कर दी। दुकान के मालिक को पांच साल की कैद घोषित हो गई। अब तो गरीब ब्राह्मण कभी अपने परिवार की ओर देखता तो कभी कैद की बात सुनकर परेशान हो जाता। कैद की नाम पर तो राक्षस भी घबरा जाते हैं तो ऐसे में एक गरीब ब्राह्मण पर क्या बीतती होगी समझ पाना कठिन था। नरेश ने कहा-कमल, जो हो गया वो तो भुगत लो किंतु अपने परिवार को असहाय मत समझना। वो स्वयं उसके परिवार का सहारा बनेगा और राशि देकर परिवार का गुजर बसर होने में मदद करेगा।
गरीब ब्राह्मण कैद में चला गया समझा नरेश उसके परिवार को बदले में पांच लाख दे देगा। गरीब कमल के कैद में जाने बाद ब्राह्मण के परिवार को एक खोटी कौड़ी भी न देकर उन्हें धमका दिया। बार बार गरीब ब्राह्मण का परिवार पैसे के लिए नरेश के पास आया किंतु महज खाली हाथ लौटना पपड़ा था। लोगों ने समझाया कि किसी गरीब ब्राह्मण की बद दुआ न ले किंतु वो कब मानने वाला था। नरेश ने साफ मना कर दिया कि वो ब्राह्मण को एक पैसा भी नहीं देगा। एक ओर ब्राह्मण कैद में रोगी हो गया वहीं उसका परिवार गरीबी से तंग आकर बेहाल हो गया। खाने को दो जून की रोटी नसीब नहीं थी क्योंकि घर का मुखिया कैद में था। ब्राह्मण का परिवार अधमरा हो गया। पांच साल बीताए और फिर वो बाहर आ गया। ब्राह्मण कमल ने नरेश से समझाया कि उसे कुछ पैसे तो दे दो। भगवान् का डर भी दिखाया और हाथ फैलाकर अपने परिवार की सहायता की नरेश से भीख मांगी। नरेश ने स्पष्ट मना कर दिया कि वो कोई पैसा नहीं देगा। अन्तत: एक दिन उस गरीब ब्राह्मण ने कहा-सुन नरेश, एक दिन भगवान् तुम्हें वो मौत देगा कि रूह भी कांप उठेगी।
नरेश ने सिगरेट का कस लेते हुए कहा-जा, कौवों के श्राप से शेर नहीं मरा करते हैं। गरीब ब्राह्मण हताश एवं निराश होकर नरेश के घर से टूटे पैरों से घर की ओर चल दिया। उसके मन में विचार आ रहे थे कि उसके साथ इस नरेश ने कितना बड़ा अन्याय किया। उसे मार दिया जाए तो अच्छा होता किंतु उसकी अन्तरात्मा ने कहा-इसे मारने वाला भगवान् है उस पर विश्वास करो। समय बीता और गरीब ब्राह्मण समय की मार झेलता हुआ चल बसा। उसका परिवार भी समय की मार झेलता दो जून की रोटी को तरसता रहा। कोई उस परिवार पर रहम एवं तरस नहीं खा रहा था।
एक दिन जब नरेश अपने परिवार के साथ मौज मस्ती में डूबा हुआ था तभी अचानक सीने में दर्द होने लगा। सीने का दर्द इतना भयंकर कि नरेश ने छाती पर हाथ रखा और कहा-अरे, कोई मुझे बचा ले। मुझे भयंकर पीड़ा हो रही है। उसके परिजनों ने आंव देखा ना ताव और उसे गाड़ी में डालकर बड़े अस्पताल भर्ती कराया गया जहां दो दिनों तक अपंग नरेश को होश नहीं आया। आईसीयू में आखिरकार भारी पैसे लगने के बाद तीसरे दिन नरेश ने आंखें खोली जब तक बहुत देर हो चुकी थी। नरेश को एक बड़ा हार्ट अटैक आया था।
हार्ट अटैक के चलते शेष शरीर पर भी हवा लग चुकी थी और जिस जुबान से गालियां दिया करता था वो आज बंद हो चुकी थी। अब तो ब-ब-ब-ब के अलावा कुछ भी बोल नहीं पा रहा था। हाथों में इतना कंपन आ गया कि लिख भी नहीं सकता था। बस चिल्लाकर रह जाता। डाक्टरों के भरसक प्रयासों के बाद भी उसकी जुबान नहीं आ सकी। भारी धन खर्च करके नरेश को विभिन्न हकीमों एवं डाक्टरों के पास ले जाया गया किंतु न तो जुबान लौटी और न हाथों का कंपन गया। अब तो बस अपंग नरेश बेड पर लेट सकता था। मलमूत्र त्यागना हो तो इशारा करता और उस पर उसके परिजन उसे मल मूत्र त्यागने में मदद करते। इतनी भयंकर सजा आज भगवान् ने दी दे जिसे सुनने वाला और देखने वाला बस यही कहता-गरीब ब्राह्मण की हाय लग गई। अब तो यह मर जाए तो बेहतर हो। चारो ओर चर्चा होने लगी। कोई कहता -सचमुच जगत में भगवान् है जो पापी को सजा देता है तो कोई कहता अपने कर्मों का फल तो भोगना पड़ेगा। यहां तक कि कुछ लोग तो स्पष्ट कहने लगे कि सजा मिलनी जरूरी थी।
जब भी कोई उनसे मिलने आता तो रोने में कसर नहीं छोड़ता। सामन से लोग कहते कि सब ठीक हो जाएगा किंतु पीछे से कहते नहीं शर्माते कि किए की सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी। अब तो नरेश असहाय बेड पर लेटा रहता और हाथ पैर कांपते रहते थे। वो भगवान् से उसे उठाने की प्रार्थना करता रहता किंतु भगवान् उसके किए की पूरी सजा देने पर उतारू था। आज स्वयं नरेश, उसका परिवार एवं आस पड़ोस के लोग दुआएं मांगते कि नरेश को उठा ले किंतु अब भगवान् उसके पापों की सजा देने पर आतुर था।
जब भगवान ने अपंग नरेश को नहीं उठाया तो उसने चिल्लाना शुरू कर दिया और जोर जोर से हाथ कांपते, चिल्लाता कि भगवान् उसे उठा ले। लेकिन उसकी जुबान से लोगों को कुछ समझ आने वाला नहीं था। कभी उसे अपने किए कर्म याद आते तो कभी उसे वो ब्राह्मण दिखाई देता। वो भयंकर पीड़ा से कांपता रहता। वो लाचार, असहाय तथा उसे जहर की गोली देने की आने जाने वालों से प्रार्थना करने लग गया। आखिरकार आने जाने वाले भी कम होते चले गए। अब तो लग रहा था कि मंदिरों में नरेश के मरने की प्रार्थना की जाएगी। इतना दर्दनाक मंजर कहीं देखने को नहीं मिल रहा था। आखिरकार एक दिन अपंग नरेश को मौत मिल गई। आस पास के लोगों ने खुशी मनाई और भगवान् का शुक्रिया अदा किया। अब तो चर्चा छिड़ गई कि भगवान् इतनी बुरी मौत किसी दुश्मन को भी न मिले। जब उसकी अर्थी उठाई गई तो महज चार व्यक्ति ही साथ थे। जिस किसी ने उसकी मौत के बारे में सुना बस कहा-अरे, ऐसे पापी के दाह संस्कार में जाने वाला भी पाप का भागीदार होता है। जब उसकी मौत की खबर कमल के परिवार ने सुनी तो राहत की सांस ली और कहा-पापी का ऐसा घोर विनाश होना ही था। अच्छा होता भगवान् ऐसे पापी को और सजा देता।